हाल में ही वरिष्ठ लेखिका नासिरा शर्मा की किताब आई है ‘फ़िलिस्तीन एक नया कर्बला’। लोकभारती प्रकाशन से प्रकाशित इस किताब में इज़रायल और फ़िलिस्तीन के संघर्ष को लेकर कहानियाँ, कविताएँ, लेख, साक्षात्कार आदि हैं। प्रस्तुत है इसी किताब से नाजिया हसन से एक बातचीत-
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नासिरा शर्मा : पिछली आधी सदी से फ़िलिस्तीनी समाज युद्ध की विभीषिका झेल रहा है, ऐसी स्थिति में औरत का सहयोग और योगदान क्या है?
नाज़िया हसन : औरत के सहयोग के बिना इस संघर्ष का दो क़दम चलना भी मुश्किल था। औरत की क़ुर्बानी से ही मर्द को शक्ति मिलती है। वह बच्चा पैदा करती है और उसको पाल-पोसकर बड़ा इस आशा में नहीं करती है कि वह उसके बुढ़ापे की लाठी बनेगा बल्कि इसलिए करती है कि वह रणक्षेत्र में जाकर शहीद हो और बूढ़ी माँ तब उसकी क़ब्र पर सिर पटक-पटककर रोये । यह दृश्य और व्यथा हमारी रोज़ की ज़िन्दगी में इस तरह शामिल हो गई है कि हमको इसकी आदत-सी पड़ गई है।
नासिरा शर्मा : ऐसी हालत में उन बच्चों की मानसिकता पर क्या प्रभाव पड़ता होगा जो बम के धमाके, पिता-चाचा के जनाज़े और बड़े भाइयों के शव देखते होंगे?
नाज़िया हसन : यहीं तो फ़िलिस्तीनी औरत के धैर्य एवं हिम्मत की दाद देनी पड़ती है कि वह किस संयम और अनुशासन से बच्चों को पालती है कि वे सहज औरनिरोग बढ़ें और अपने समाज, जीवन-लक्ष्य, विश्व स्तर पर होती राजनीति को समझते हुए अपने विरोध में उठे अन्याय के कोलाहल में अपना योगदान देने से न झिझकें और न ही उसकी भर्त्सना करें। माँ की भूमिका आज फ़िलिस्तीन के लिए लड़ते योद्धाओं से भी अधिक महत्त्वपूर्ण है।
नासिरा शर्मा : इस संग्राम में ‘पैन अरब’ की भूमिका?
नाज़िया हसन : पैन अरब अर्थात् अरब देशों की एकता ! अरब एकता हर मुद्दे पर एक नहीं हो सकती है। अलग-अलग राष्ट्र की अपनी-अपनी समस्याएँ हैं। कभी वे सब किसी एक मुद्दे पर एक हो जाते हैं कभी नहीं।
नासिरा शर्मा : आपको नहीं लगता कि इससे आपके संघर्ष को धक्का लगा है? जो युद्ध-विराम या शान्ति सुरक्षा बहुत पहले इस इलाक़े को मिल जानी चाहिए थी वह पाँच दहाई से ज़्यादा खिंच रही है?
नाज़िया हसन : आपका कहना सही है मगर हमने किसी के भरोसे यह जद्दोजहद शुरू नहीं की थी। जो अरब देश हमारा साथ दे रहे हैं उनके प्रति हम कृतज्ञ हैं परन्तु जो नहीं हैं हमारे साथ उनके बारे में कुछ कहना उचित नहीं है। उसके कारण अनेक हैं और वह जगजाहिर हैं।
नासिरा शर्मा : इस युद्ध का सिलसिला जो लगातार चल रहा है उसमें किशोरियों की मन:स्थिति क्या होगी?
नाज़िया हसन : जैसा कि मैं पहले भी बता चुकी हूँ कि सारे भय, ख़ून और मौत के बावजूद औरतों ने ज़िन्दगी की लय को तोड़ा नहीं है। उन्होंने बच्चे पैदा करने बन्द नहीं किए हैं। उसी तरह लड़कियों ने अपनी नाजुक अनुभूतियों को दफ़न नहीं कर दिया है। उनके दिल धड़कते हैं, उनमें प्यार-अनुराग के अंकुर फूटते हैं। वे अपने आसपास के वातावरण से पूरी तरह चौकस रहती हैं। जहाँ पढ़ने की सुविधा है पढ़ती हैं। जहाँ नहीं है वहाँ परिस्थितियों से जूझती हैं। भले ही संसार की अन्य लड़कियों की तरह उनका जीवन समान गतिविधि का न हो तो भी वे सहज एवं सन्तुलित रहती हैं।
नासिरा शर्मा : फ़िलिस्तीन का भविष्य?
नाज़िया हसन : उज्ज्वल है। हमारा संघर्ष हमको हमारे लक्ष्य तक एक दिन ज़रूर पहुँचाएगा। फ़िलिस्तीन में शान्ति होगी और हम नॉर्मल जीवन व्यतीत कर पाएँगे। (हँसी)
नासिरा शर्मा : मेरी शुभकामनाएँ आपके साथ हैं।
[अप्रकाशित, 1983, अन्तर्राष्ट्रीय महिला सम्मेलन]
1 Comment
फिलिस्तीन की महिलाओं के संघर्ष को पढ़कर जानकारी प्राप्त हुई, अच्छा लगा कि उनकहौसले बुलंद है .