जानकी पुल – A Bridge of World's Literature.

लगता है यह समय कोरियाई साहित्य की विश्वव्यापी प्रतिष्ठा का साल है। 10 अक्तूबर 2024 को हान को साहित्य का नोबेल मिलने की घोषणा वाले दिन ही यानी 10 अक्तूबर को ही कोरियाई अमेरिकी लेखिका किम जू हे को उनके पहले उपन्यास ‘बिस्ट्स ऑफ ए लिटिल लैंड’ के लिए रुस का ‘यासनाया पोलयाना लिटरेरी अवार्ड फॉर फॉरेन लिटरेचर’ का पुरस्कार मिला। इस पुरस्कार की स्थापना साल 2003 में लियो टोलस्टॉय के 175वें जन्मदिवस के अवसरा पर यासनाया पोलयाना लियो टोलस्टॉय एस्टेट-म्यूज़ियम और सैमसंग इलेक्ट्रॉनिक्स द्वारा किया गया था। किम जू हे के अलावा इस पुरस्कार के शॉर्ट लिस्ट में 10 अन्य किताबें भी थीं, जिनमें पोलैंड के नोबेल-पुरस्कार विजेता लेखक ओलगा टोकर्क्ज़ूक भी शामिल हैं। पढ़िए कुमारी रोहिणी का यह आलेख। रोहिणी जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय में कोरियन भाषा एवं साहित्य पढ़ाती हैं- मॉडरेटर

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कभी हर्मिट किंगडम कहे जाने वाला कोरियाई प्रायद्वीप 21वीं शताब्दी आते-आते वैश्विक स्तर पर यूँ अपनी जगह बनाएगा कि साहित्य के नोबेल तक पहुँच जाएगा, ऐसा तो शायद ख़ुद कोरिया के लोगों ने भी नहीं सोचा होगा। लेकिन ऐसा होना नहीं चाहिए या हो नहीं सकता है यह भी नहीं कहा जा सकता है। अगर हम कोरियाई प्रायद्वीप के ना केवल इतिहास बल्कि उसके वर्तमान का भी विश्लेषण करके देखने का प्रयास करें तो कुछ बातें साफ़-साफ़ दिखाई पड़ती हैं जैसे हार्ड वर्क, अपने काम के प्रति ईमानदारी, ख़ुद को साबित कर लेने की ज़िद, दुनिया को अपना वर्थ दिखाने का जज़्बा। इन सबके पीछे का कारण लंबे समय तक अपने से शक्तिशाली देशों द्वारा किए जाने वाले हमलों और फिर उन्नीसवीं शताब्दी के पहले दशक में जापान का उपनिवेश बन जाना भी है। कोरियाई प्रायद्वीप 1910 से 1945 तक जापान का उपनिवेश बना रहा। और इस पूरी अवधि में जापान ने उसके साथ वही सब किया जो एक शक्तिशाली देश अपने उपनिवेश के साथ करता है। शायद यही दुख-पीड़ा और दर्द कोरियाई लोगों को अपने को बचा लेने, आगे बढ़ने और ख़ुद को साबित कर लेने का साहस और बल दोनों देता है।

ख़ैर ये सब तो इतिहास की बातें हैं, लेकिन बात ये भी तो होती है कि इतिहास, राजनीति, समाजशास्त्र सब कुछ का असर देर-सेवर, सीधे-अप्रत्यक्ष रूप से हमारे मानस पर पड़ता ही है तो फिर साहित्य इससे कैसे अछूता रह सकेगा। ये खबर अब आम हो चुकी है कि साल 2024 का नोबेल पुरस्कार दक्षिण कोरियाई लेखक हान कांग को उनके लिरिकल और मार्मिक गद्य के लिए दिया गया है। लेकिन ऐसा नहीं है कि वर्तमान में हान कांग ही एक मात्र कोरियाई लेखक हैं जो युद्ध, युद्ध की विभीषिकाओं, उसका मानव जीवन और मस्तिष्क पर पड़ने वाले प्रभाव, अकेलापन, अलगाववाद, विछोह और ऐसे ही आंतरिक भावों को अपने साहित्य में पिरो रही हैं। उनके समकालीन कई ऐसे लेखक हैं जो सीधे या अप्रत्यक्षय रूप से इन विषयों को रेखांकित करते हुए लिख रहे हैं और कोरियाई साहित्य को समृद्ध कर रहे हैं। 10 अक्तूबर 2024 को हान को साहित्य का नोबेल मिलने की घोषणा वाले दिन ही यानी कि 10 अक्तूबर को ही कोरियाई अमेरिकी लेखक किम जू हे को उनके पहले उपन्यास ‘बिस्ट्स ऑफ ए लिटिल लैंड’ के लिए रुस का ‘यासनाया पोलयाना लिटरेरी अवार्ड फॉर फॉरेन लिटरेचर’ का पुरस्कार मिला। इस पुरस्कार की स्थापना साल 2003 में लियो टोलस्टॉय के 175वें जन्मदिवस के अवसरा पर यासनाया पोलयाना लियो टोलस्टॉय एस्टेट-म्यूज़ियम और सैमसंग इलेक्ट्रॉनिक्स द्वारा किया गया था। किम जू हे के अलावा इस पुरस्कार के शॉर्ट लिस्ट में 10 अन्य किताबें भी थीं, जिनमें पोलैंड के नोबेल-पुरस्कार विजेता लेखक ओलगा टोकर्क्ज़ूक भी शामिल हैं।

किम जू हे का उपन्यास ‘बीस्ट्स ऑफ़ ए लिटिल लैंड’ का कथानक 1910-1945 के समय का है जब कोरियाई प्रायद्वीप जापान का उपनिवेश था। अपने इस पहले उपन्यास में किम जू ने इतिहास और मिथकिय चरित्रों और प्रकृति के माध्यम से अपने अस्तित्व और स्वतंत्रता के लिए संघर्ष कर रहे आम लोगों के जीवन को चित्रित किया है। इस उपन्यास में जंग हो, जेड और हानचल नाम के तीन मुख्य पात्र हैं। प्रेम के धागे से बंधे ये तीनों पात्र आपको मनुष्य के जीवन में प्रेम का स्थान, उसके बहुआयामी स्वरूप की झलक देते हैं। लेखक किम का मानना है कि किन्हीं तीन लोगों के बीच जो प्रेम का संबंध होता है वह हमेशा ही जीवन और साहित्य दोनों में एक तरह का तनाव और टकराहट पैदा करता है। वास्तविक जीवन में शायद ही ऐसा होता है कि कोई दो व्यक्ति एक दूसरे को एक समान प्रेम करे। हालाँकि यह एक आदर्श स्थिति है लेकिन वास्तविकता यह है कि आपके जीवन में कोई ऐसा होता है जो आपको अधिक प्रेम करता है, कोई ऐसा भी होता है जिसे आप अधिक प्रेम करते हैं। हालाँकि प्रेम कोई मापने की चीज नहीं है लेकिन फिर भी ऐसा होता तो है ही ना। भले ही प्रेम की वह मात्रा छटाँक भर ही कम या बेसी हो, वह रिश्तों में एक तरह का असंतुलन लाने का काम करती ही है। रिश्तों में ऐसी तनावपूर्ण स्थितियों ने ही मुझे इस कहानी को रचने के लिए उद्वेलित किया। आगे अपनी बातचीत में किम ने यह भी बताया कि उनके इस उपन्यास में उपस्थित तीन में से एक मुख्य पात्र जंग -हो उसके नाना के जीवन से प्रेरित है, जिन्होंने ग़ुलामी के दिनों में जापान में संघर्ष करते हुए अपना जीवन गुज़ार दिया था।

अपने पहले ही उपन्यास में इतना गंभीर विषय चुने जाने का कारण पूछने पर किम का कहना है कि आपको मेरे उपन्यास में प्रकृति के प्रति प्रेम दिखाई पड़ेगा। हम आज एक भयावह समय में जी रहे हैं जब हमारी सबसे बड़ी चिंता पर्यावरण और प्रकृति होनी चाहिए क्योंकि हमने इसका सीमा से परे दोहन कर लिया है। अपने उपन्यास में मैं ने बाघ को कोरिया की आज़ादी का रूपक बनाया है। मेरे लेखन में दिखाई पड़ने वाला यह प्रकृति प्रेम और चिंता मेरे निजी विचारों के कारण नहीं है। बल्कि इसके मूल में कोरिया की संस्कृति है। कोरिया के लोग प्रकृति को अपने नाते-रिश्तेदारों के रूप में देखते और मानते हैं, विशेष रूप से बाघ को। बाघ एक ऐसा जानवर है कोरियाई संस्कृति और इतिहास में महत्व कम नहीं किया जा सकता है। कोरियाई लोककथाओं में बाघ को एक बहु-आयामी जानवर के रूप में दिखाया गया है। कोरियाई बाघ बेवकूफ है; यह तेज-तर्रार है; यह धूर्त है; यह सज्जन है; यह दयालु है; इसमें बदला लेने की भावना भी है। ये सभी ऐसे गुण हैं जो मनुष्य में भी होते हैं। इस बात को सोच कर हैरानी ही होती है कि हम 5 हज़ार वर्षों तक बिना बाघ के विलुप्त हुए एक साथ रहते आने में सक्षम हुए। ऐसा इसलिए संभव हुआ क्योंकि हमारे भीतर प्रकृति के साथ सौहार्दपूर्ण जीवन जीने का एक भाव मौजूद है।

लेखक किम जू-हे कोरियाई लेखक और आलोचक ली मुन-यल को अपना आदर्श मानती हैं जिनका कहना है कि ‘साहित्य का सबसे बड़ा मूल्य मार्मिकता है।’ अपनी इसी बात को आगे बढ़ाते हुए किम कहती हैं कि लोगों को उद्वेलित किए जाने की ज़रूरत है। और लोगों को तब तक उद्वेलित नहीं किया जा सकता है जब तक आप  अपने साहित्य के माध्यम से उन्हें चोट-पीड़ा नहीं देते हैं। आपको अपने लिखे के माध्यम से उनका दिल तोड़ना होगा। मेरा मानना है कि लोगों के दिलों में सहानुभूति पैदा कर पाना तभी संभव है जब उनका अपना दिल टूटा हो। यह वह तरीका है जिससे साहित्य, लोगों को बचा सकता है और दुनिया को बचा सकता है।

किम जू हे का यह उपन्यास मूल भाषा में ‘छागन तांगऊई येसुलदुल’ नाम से 2021 में प्रकाशित हुआ था।

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