मार्केज़ ने अपनी एक बातचीत में कहा है कि क्यूबा की साम्यवादी क्रांति के बाद संसार की नज़र लैटिन अमेरिकी साहित्य की ओर गई. उनकी उसमें दिलचस्पी बढ़ी और एक-एक करके लैटिन अमेरिका के छोटे-छोटे देशों के कई गुमनाम लेखक अंग्रेजी में अनूदित होकर प्रसिद्धि की सीढियां चढ़ने लगे. विश्व साहित्य में इस घटना को ‘लैटिन अमेरिकन बूम’ के मुहावरे से याद किया जाता है. पेरू जैसे एक छोटे देश का लेखक मारियो वर्गास ल्योसा इसी बूम से चर्चा में आया. मुझे यह जानकर बहुत आश्चर्य हुआ था कि ६० के दशक के आरम्भ में जिन युवा लैटिन अमेरिकी लेखकों की अंतर्राष्ट्रीय पहचान बनी उसमें मार्केज़ नहीं थे बल्कि १९६७ में उनके उपन्यास ‘वन हंड्रेड ईयर्स ऑफ सालिट्यूड’ के प्रकाशन और उसकी अप्रत्याशित चर्चा से पहले मार्केज़ को तो ठीक से कोई लैटिन अमेरिकी भूभाग में भी नहीं जानता था. लेकिन आज मारियो वर्गास ल्योसा का दिन है क्योंकि उनको साहित्य का सबसे बड़ा पुरस्कार नोबेल पुरस्कार मिला है. और मुझे यह जानकर आश्चर्य हुआ था मार्केज़ से बहुत पहले अंग्रेजी के पाठकों के लिए मारियो वर्गास ल्योसा एक जाने-पहचाने नाम बन चुके थे.
कहा जाता है कि लैटिन अमेरिकी लेखन का यह बूम मेक्सिको के लेखक कार्लोस फुएंतेस के 1958 में प्रकाशित ‘व्हेयर द एयर इज क्लियर’ उपन्यास से शुरू हुआ और उसमें ज़ल्दी ही मार्केज़ से उम्र में ९ साल छोटे मारियो वर्गास ल्योसा का नाम जुड़ गया. १९६३ में प्रकाशित अपने पहले उपन्यास ‘द टाइम ऑफ द हीरो’ के प्रकाशन के साथ उनके उपन्यासों ने आलोचकों का ध्यान खींचा और १९६५ में प्रकाशित दूसरे उपन्यास ‘द ग्रीन हाउस’ पर उनको पुरस्कार भी मिला जिसके समारोह में भाग लेने ल्योसा के साथ मार्केज़ भी गए थे. मार्केज़ के जीवनीकार ने यह संकेत दिया है कि जब मार्केज़ फुएंतेस और ल्योसा के मित्र बने तब जाकर उनको प्रसिद्धि की राह मिली.
ल्योसा के लेखन को जो बात बाकी लैटिन अमेरिकी लेखकों से विशिष्ट बनाती थी वह यह कि उन्होंने समकालीन समाज को कथात्मकता दी जबकि बाकी ज़्यादातर लैटिन लेखक जातीय कथा का ताना-बाना बुनने में लगे हुए थे. अपनी पुस्तक ‘लेटर्स टु ए यंग नॉवेलिस्ट’ में मारियो वर्गास ल्योसा ने लिखा है कि सभी भाषाओं में दो तरह के लेखक होते हैं- एक वे होते हैं जो अपने समय में प्रचलित भाषा और शैली के मानकों के अनुसार लिखते हैं, दूसरी तरह के लेखक वे होते हैं जो भाषा और शैली के प्रचलित मानकों को तोड़कर कुछ एकदम नया रच देते हैं। २८ मार्च, १९३६ को लैटिन अमेरिका के एक छोटे से गरीब देश पेरू में पैदा होनेवाले इस उपन्यासकार, निबंधकार, पत्रकार ने स्पैनिश भाषा के मानकों को तोड़ा या उसमें कुछ नया जोड़ा यह अलग बहस का विषय है। लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं कि संसार भर में ल्योसा को अपनी भाषा के प्रतिनिधि लेखक के तौर पर जाना जाता है। पेरू के एक पत्रकार ने उनके तआरूफ में लिखा था, हमारे देश की दो बड़ी पहचानें हैं- माच्चूपिच्चू की पहाड़ी ऊँचाइयां और लेखक मारियो वर्गास ल्योसा। इस पुरस्कार के बाद वे सचमुच पेरू की सबसे बड़ी पहचान बनकर माच्चूपिच्चू के पहाड़ी शिखरों पर अवस्थित हो गए हैं.
मारियो वर्गास अपने लेखन, अपने जीवन में एडवेंचरस माने जाते हैं, जीवन-लेखन दोनों में उन्होंने काफी प्रयोग किए। विद्रोह को साहित्यिक लेखन का आधार-बिंदु माननेवाले मारियो वर्गास शायद हेमिंग्वे की इस उक्ति को अपना आदर्श मानते हैं कि जीवन के बारे में लिखने से पहले उसे जीना अवश्य चाहिए। हालांकि जिस लेखक के वे स्वयं को अधिक ऋणी मानते रहे हैं वे अमेरिकी लेखक विलियम फाकनर हैं जिनको संयोग से मार्केज़ भी अपने लेखन के बेहद करीब पाते रहे हैं. उनकी कई यादगार रचनाएं अपने जीवन के अनुभवों से निकली हैं। १९ वर्ष की उम्र में उन्होंने खुद से १३ साल बड़ी अपनी आंटी जुलिया(स्पेनिश भाषा में खुलिया) से शादी कर ली, कुछ साल बाद दोनों में अलगाव भी हो गया। बेहद प्रसिद्ध उपन्यास ‘आंट जुलिया एंड द स्क्रिप्टराइटर’ में उन्होंने इसकी कथा कही है। हालांकि यह उपन्यास केवल प्रेमकथा नहीं है। उपन्यास को याद किया जाता है स्क्रिप्टराइटर पेद्रो कोमाचो के चरित्र के कारण, जो उन दिनों रेडियो पर प्रसारित होनेवाले सोप-ऑपेराओं का स्टार लेखक था। उसके माध्यम से ल्योसा ने रेडियो पर धारावाहिक प्रसारित होने वाले नाटकों के उस दौर को याद किया है जो बाद में टेलिविजन धारावाहिकों के प्रसारण के कारण लुप्त हो गया। मुझे याद है हिंदी के सोप-ओपेरा लेखक मनोहर श्याम जोशी ने धर्मयुग के अंतिम दिनों में प्रकाशित एक बातचीत में इस उपन्यास और इसके सोप ओपेरा लेखक को अपने प्रिय उपन्यास-चरित्र के रूप में बताया था. यह इस बहुरंगी लेखक से मेरा पहला परिचय था.
१९७७ में प्रकाशित इस उपन्यास में उन्होंने निजी-सार्वजनिक कहन की एक ऐसी शैली से पाठकों का परिचय करवाया, बाद में जिसकी पहचान उत्तर-आधुनिक कथा-शैली के रूप में की गई। उत्तर-आधुनिक कथा-लेखन की एक और प्रमुख शैली के वे पुरस्कर्ता कहे जा सकते हैं- हास्य-व्यंग्य की चुटीली शैली में गहरी बात कह जाना। उनके पहले उपन्यास ‘द टाईम ऑफ द हीरो’ में सैनिक स्कूल के उनके अनुभवों की कथा कही है। सेना में व्याप्त भ्रष्टाचार के कथानक से अपने पहले ही उपन्यास से लेखक के रूप में उनकी विवादास्पद पहचान बनी। प्रसंगवश, ऐतिहासिक घटनाओं के बरक्स निजी प्रसंगों की कथा की शैली ल्योसा की प्रमुख विषेशता मानी जाती है।
अपने समय में स्पेनिश भाषा के सबसे बड़े लेखक के रूप में जाने जानेवाले ग्राबियल गार्सिया मार्केज़ की रचनाओं पर शोध करनेवाले इस लेखक की तुलना अक्सर मार्केज़ से की भी जाती है। मार्केज़ के बाद निस्संदेह ल्योसा स्पैनिश भाषा के सबसे बड़े लेखक हैं जो बूम के बाद भी मजबूती से डेट रहे. जादुई यथार्थवाद की शैली को ऊँचाइयों तक पहुंचाने वाले मार्केज़ और मुहावरेदार वर्णनात्मक शैली के बेहतरीन किस्सागो ल्योसा की शैलियां भले अलग हों, मगर दोनों के सरोकार, राजीतिक-सामाजिक चिंताएं काफी मिलती-जुलती हैं। सर्वसत्तावादी व्यवस्थाओं के प्रति विद्रोह का भाव दोनों की रचनाओं में दिखाई देता है, अपनी संस्कृति से गहरा लगाव दोनों की रचनाओं में दिखाई देता है। यह अलग बात है कि बाद में दोनों राजनीतिक रूप से भी एक दूसरे के विचारों के विरोधी बन गए. मार्केज़ की वामपंथ में आस्था तो नहीं डिगी लेकिन पेरू के राष्ट्रपति का चुनाव लड़नेवाला यह लेखक दक्षिणपंथी उदारवादियों से मिल गया. जिस पर मार्केज़ ने कटाक्ष भी किया था और इसे दुर्भाग्यपूर्ण बताया था. लेकिन ल्योसा अपनी राजनीति के लिए नहीं अपने लेखन के लिए जाने जाते हैं. देश में भी देश के बाहर भी.
ल्योसा ने बाद में अपने उपन्यासों में समकालीन पेरूवियाई समाज की विडंबनाओं को दिखाने के लिए मार्केज़ की ही तरह ऐतिहासिक कथाओं, मिथकीय से लगने वाले चरित्रों का सहारा लिया. लेटिन अमेरिका के एक अत्यंत पिछड़े देश से ताल्लुक रखनेवाले इस लेखक में भी मार्केज़ के उपन्यासों की तरह निजी-सार्वजनिक का द्वंद्व दिखाई देता है, मार्केज़ ने अपने उपन्यास ‘ऑटम ऑफ द पैट्रियार्क’ में तानाशाह के चरित्र को आधार बनाया है, ल्योसा के उपन्यास ‘फीस्ट ऑफ गोट’ में भी डोमिनिक रिपब्लिक के एक तानाशाह के जीवन को कथा का आधार बनाया गया है। ल्योसा के एक अन्य उपन्यास ‘कनवर्सेशन इन द कैथेड्रल’ में पेरू के एक तानाशाह से विद्रोह करनेवाले नायक की कहानी है। मार्केज़ ने ‘लव इन द टाइम ऑफ कॉलरा’ के रूप में प्रेम के एपिकल उपन्यास की रचना की. हाल ही में ल्योसा का उपन्यास प्रकाशित हुआ ‘बैड गर्ल’, यह भी प्रेम की एपिकल संभावनाओं वाला उपन्यास है। वैसे इस तुलना का कोई अर्थ नहीं है क्योंकि खुद ल्योसा ने मार्केज़ के बारे में लिखा है कि पहले से चली आ रही भाषा उनका संस्पर्श पाते ही जादुई हो जाती है। भाषा का ऐसा जादुई प्रभाव रचनेवाला दूसरा लेखक नहीं है। याद रखना चाहिए कि ल्योसा उन आरंभिक लोगों में थे जिन्होंने मार्केज़ के लेखन में बड़ी संभावनाएं देखी थीं.
लैटिन अमेरिका के दोनों महान लेखकों में एक समानता यह जरूर है कि दोनों ने कुछ भी कमतर नहीं लिखा। ल्योसा ऐसे लेखक के रूप में जाने जाते हैं जिन्होंने विषय और शैली के स्तर पर कभी अपने आपको दुहराया नहीं। हेमिंग्वे की तरह उनके उपन्यासों में विषय की विविधता है और युद्ध का आकर्षण। ब्राजील के एक ऐतिहासिक प्रसंग को आधार बनाकर लिखे गए उनके उपन्यास ‘द वार ऑफ द एंड ऑफ द वर्ल्ड’ को अनेक आलोचक उनका सर्वश्रेष्ठ उपन्यास भी मानते हैं। इसमें कोई संदेह नहीं कि वे विविधवर्णी लेखक हैं। हमेशा प्रयोग के लिए तत्पर.
अपनी एक भेंटवार्ता में ल्योसा ने कहा है कि साहित्य-लेखन के प्रति वे इसलिए आकर्षित हुए क्योंकि इसमें झूठ लिखने की आजादी होती है। ऐसा झूठ जो पहले से प्रचलित सत्यों में कुछ नया पहलू जोड़ देता है, कोई नया आयाम जोड़ देता है। साहित्य में जीवन की पुनर्ररचना नहीं होती है, वह उसमें कुछ नया जोड़कर उसे रूपांतरित कर देता है। यही साहित्य की सबसे बड़ी शक्ति होती है। ल्योसा के साहित्य के व्यापक प्रभाव का भी शायद यही कारण है।
मारियो वर्गास ल्योसा को नोबेल पुरस्कार मिलना लैटिन अमेरिकी बूम के प्रभावों के आकलन का एक अवसर भी जिसके करीब चार आरंभिक बड़े समझे गए लेखकों में से दूसरे लेखक को नोबेल पुरस्कार मिला है. ऐसे में मन में उठ रहे इस सवाल को मन में ही दबे रहे देना चाहिए कि आखिर इस समय उनको नोबेल क्यों जबकि पिछले कई सालों से उन्होंने कुछ खास उल्लेखनीय नहीं लिखा है.
यह शायद उनके लेखन के विस्तृत प्रभाव का सम्मान है जिसके बारे में कुछ आलोचकों का तो यहाँ तक मानना है कि लैटिन अमेरिकी बूम के लेखकों में उनकी व्याप्ति सबसे अधिक रही.