पल्लवी त्रिवेदी ऑफ़बीट लिखती हैं। कभी विषय तो कभी विधा। अब गद्य-कविता के में लिखी उनकी यह सीरिज़ देखिए- मॉडरेटर
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1- प्रेमिका का पति
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हम अचानक ही मिल गए थे किसी समारोह में
मैं जानता था कि वह मेरी प्रेमिका का पति है
वह नहीं जानता था कि मैं उसकी पत्नी का प्रेमी हूँ
अलबत्ता यह जानता था कि मैं उसकी पत्नी का सहकर्मी हूँ
बड़े जोश से वह मिला
हमने एक टेबल पर बैठकर खाना खाया
आज वह पत्नी के बिना आया था
लेकिन उसकी पत्नी उसकी बातों में इस कदर उपस्थित थी
कि मुझे लगा नहीं कि वह नहीं आई है
‘पम्मो ने एक दो बार आपका ज़िक्र किया था
अच्छे दोस्त हैं ना आप दोनों’
मैं ‘ पम्मो ‘ सुनकर चौंका
अनुपमा शाह यानी मेरी ‘अनु’ किसी की पम्मो भी है
दिल ने ज़ोर से धड़क कर मुझे इत्तिला किया
कि उसे अच्छा नहीं लगा
मैं पम्मो के बारे में वह सब सुन रहा था
जो मेरी अनु में नहीं था
मसलन अनु कितनी व्यवस्थित है
और पम्मो कितनी लापरवाह
अनु को संवर कर रहना कितना पसन्द
पम्मो इतनी बेखबर अपने आप से
कि इतवार को घर में बाल भी न बनाये
अनु को पसन्द है कॉफी
और पम्मो चाय की दीवानी
अनु को गुलाबी रंग पसन्द है और पम्मो नीले पर फिदा
पम्मो को उसका पति सुबह आठ बजे हिला-हिलाकर उठाता है
अनु उसे खुद से पहले जागी हुई मिलती है
अनु मेरी प्रेमिका और पम्मो उसकी पत्नी
एक नाम के दो हिस्सों की तरह एक इंसान के अस्तित्व के भी दो हिस्से
अनु मेरे दिल की तरह मेरी अपनी
और पम्मो मेरे लिए कितनी अजनबी स्त्री
मुझे याद आया कि अनु बिल्कुल मेरे जैसी है
व्यवस्थित ,कॉफी लवर , अर्ली राइज़र
और अपने वार्डरोब से हर बार गुलाबी चुनकर मुझसे मिलने आती
इतनी ज्यादा मेरे जैसी
जैसे हम दोनों ट्विन फ्लेम हों।
जबकि पम्मो बिल्कुल खुद के जैसी है
पति की पसन्द के ख़िलाफ़ जाती हुई, उससे झगड़ती हुई
अपने वह होने की घोषणा करती हुई जो वह है
बिना परवाह किये कि उसका पति उसके होने को स्वीकारता है या नहीं
जिसे पति इस कदर हंसकर सुना रहा है
जैसे अपने और पम्मो के गहन प्यार के बारे में बता रहा हो।
आइसक्रीम खाते हुए बड़ी ज़ोर से दांत झनझना उठा मेरा
दांत के पहले मेरे समूचे अस्तित्व में एक झनझनाहट शुरू हो चुकी थी
मुझे अपने सामने बैठे पम्मो के पति से ईर्ष्या हो आई
इसके सामने इसकी पत्नी कितनी असल है
मेरे सामने मेरी प्रेमिका एक कुशल अभिनेत्री
प्रेमी को खुश करने के लिए उसकी पसन्द जैसा बनने का अभिनय करती हुई
पम्मो नाम के एक बवंडर से जन्मों से दहक रहीं ट्विन फ्लेम भक्क से बुझ गईं ।
मुझे उस पल में पम्मो से मिलने की तलब हुई
जो उसके पति को हासिल थी बरसों से
क्या कुछ बरसों बाद मुझे भी पम्मो मिल जाएगी ?
क्या कुछ बरस पहले वह अपने पति की भी ‘ अनु ‘ थी ?
क्या मैं खुद जो अपनी पत्नी का ‘ कांत ‘ हूँ
अपनी प्रेमिका के ‘ नील ‘ जैसा ही हूँ
या मेरे नाम की तरह मैं भी दो हिस्सों में बंटा हूँ ?
मैं अपने तमाम द्वंदों के साथ एक नई ईर्ष्या भी लिये चला आया
कि मेरी प्रेमिका का पति कितना निर्द्वंद है
कि वह नहीं जानता कि उसकी पम्मो किसी की ‘ अनु’ भी है
अगले दिन अनु के साथ कॉफी पीते हुए मैं पाता हूँ
कि मुझे पम्मो नाम की स्त्री से प्यार होने लगा है।
2-पति की प्रेमिका
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उस दिन पति के ऑफिस के गेट टूगेदर में मिली थी अनुपमा
मल कॉटन की गुलाबी साड़ी पहने खूब सुंदर लग रही थी
मैं दूर बैठी देख रही थी अपने पति की प्रेमिका को ।
पहले एक बार मिले हैं हम
कांत ने ही मिलवाया था
जब अचानक टकरा गयी थी अपने पति के साथ एक कैफे में
नेवी ब्लू मिडी ड्रेस पहने हुए
तब कहाँ जानती थी मैं कि यह मेरे पति की प्रेमिका है
फिर एक रोज़ कांत की वाट्सएप चैट पढ़ ली गलती से
तब तो जान पाई कि
मेरा कांत दो सालों से किसी अनु का नील भी है।
तब मन तो बहुत किया कि घर में तूफान खड़ा कर दूं
और इस अनु के घर भी जाकर तमाशा कर दूं
फिर जी चाहा कि कांत को छोड़ कर चली जाऊं
या उसे ही जाने को कह दूं घर से
ठंडे दिमाग से यह भी सोचा कि समझदारी से कांत से बात करूं ।
फिर जाने क्यों चुप रहना चुना
कह देने से उससे प्रेम करना तो बंद करेगा नहीं
अलबत्ता और सतर्क हो जाएगा
या रिश्ता तोड़ भी ले तब भी मन से कैसे निकालेगा उसे?
और फिर कांत इतना ज्यादा कांत था मेरे साथ कि
अगर गलती से पता नहीं चलता तो यह बात शायद मैं कभी न जान पाती
कांत का मेरे प्रति ना प्रेम बदला , ना व्यवहार
प्रेम अब ना भी हो तो एक्टिंग तो बेमिसाल करता आया है पट्ठा
सोचती हूँ कि कोई और होने का अभिनय तो करते हैं लोग
पर खुद होने का अभिनय करना कितना कठिन होता होगा
कैसे इतना पैशनेटली चूमता है अब भी ….
शायद उसे इमेजिन करता हो
कांत नहीं जानता कि अब मैं किस किस को इमेजिन करने लगी हूँ
ना जान गई होती असलियत तो
उसके हर चुम्बन के साथ इसके प्यार में और और डूबती जाती।
इग्नोरेंस इज़ रियली अ ब्लिस।
उसका प्यार देखकर सोचती हूँ
कि क्या कोई दो लोगों से एक साथ प्रेम कर सकता है ?
अनु के साथ चैट में पूरा मजनूं है यह
और मेरे साथ एकदम रांझा
दिमाग घूम जाता है मेरा कि यह किसके साथ असल है ?
जो भी हो, मुझे फिर पहले जैसा प्यार नहीं रहा कांत से
प्रेमी से एक पायदान ऊपर उठाकर उसे प्रेमी के साथ पति बनाया था
अब दो पायदान नीचे उतारकर पति की कुर्सी पर ला बैठाया
और सब गुडी-गुडी चलने दिया।
बच्चे बड़े हो जाएं शायद तब छोड़ भी दूं इसे।
अभी क्यों बिगाड़ लूँ मैं अपनी ( सुखी ?) गृहस्थी इस बारे में बात भी करके ?
मेरी भी ज़रूरतें हैं जो उससे पूरी होती हैं
प्रैक्टिकल होना ही कभी-कभी बेस्ट ऑप्शन होता है
जब उस दिन गेट-टूगेदर में अनुपमा दिखी
मुझे नहीं थी कोई ख्वाहिश उससे मिलने की
पर वह खुद ही मेरे पास आ गयी और मुहब्बत से गले मिली
वह नहीं जानती कि मैं उसके बारे में जानती हूँ
इसलिए उसके चेहरे पर कोई झिझक नहीं थी मुझसे मिलते हुए,
पर होनी चाहिए थी
क्योंकि वह तो जानती थी ना कि वह मेरे पति से प्रेम करती है।
मुझसे ज्यादा सुंदर तो नहीं है अनुपमा,
सैलेरी भी मेरी उससे ज़्यादा ही होगी
समझदार लगती है , पर वो तो मैं भी कम नहीं
फिर क्यों कांत को यह पसन्द आई होगी ?
शायद बातें अच्छी करती हो या कोई और बात हो
या अ-कारण ही आ गयी होगी
इसका पति भी कितना हैंडसम और कूल है
इसे कांत से प्रेम क्यों हुआ होगा ?
शायद कांत के सेंस ऑफ ह्यूमर पर मर मिटी होगी।
कांत हम दोनों को कनखियों से देख रहा था
क्या सोच रहा होगा वह उस वक्त ?
मैं और अनुपमा औपचारिक बने रहे
वह सिर्फ अपने पति और बेटी के बारे में बात करती रही
जैसे उसके मन का चोर पकड़े ना जाने की पुरजोर कोशिश कर रहा हो
मुझे उसकी बातों में कोई दिलचस्पी नहीं थी
मैं देख रही थी उसके चेहरे , बालों और देह को
जिसे कांत ने ना जाने कितनी बार छुआ होगा
जानती तो पहले से थी
पर उस देह को सामने देखकर उन दोनों का प्रणय दृश्यमान हो उठा
समोसे में आई तेज़ मिर्च सीधे दिल मे जा उतरी
अजीब-सी ईर्ष्या और क्रोध से सुलग उठा मन
बड़ी ज़ोर से जी चाहा कि
अपने और कांत के कल रात हुए अंतरंग सम्बंध के बारे में उसे बताऊं
और एक हज़ार सांप उसके सीने पर लोटा दूं
पर कुछ कहा नहीं , मैं भी अभिनय में पक्की जो हो गयी हूँ ।
बस हमारी एनिवर्सरी पर मुझे चूमते कांत की फोटो को वॉलपेपर बनाकर
मोबाइल सामने टेबल पर धर दिया।
उसने देखा था , जली होगी ज़रूर
मैं अकेली क्यों जलूँ ? सबको बराबरी से जलना चाहिए ।
इस आग की लपट कांत तक भी पहुंचेगी।
फिर मुझसे बैठा न गया
अनुपमा से वॉशरूम जाने का बोलकर मैं कट ली
घर लौटते हुए मैंने पति से कहा ‘ नीलकांत ..चलो पान खाते हैं ‘
वह अपना पूरा नाम सुनकर एक पल को चौंका
और पान की दुकान की ओर गाड़ी मोड़ दी
रास्ते में उसने हमेशा की तरह मेरे हाथ को अपने हाथ में लेकर गियर पर रख दिया
लगा जैसे हाथ पर हज़ारों बिच्छू रेंग गए
मैंने अपना हाथ अलगाया और फोन देखने लगी
इसी हाथ से तो उस अनुपमा की बच्ची का हाथ भी पकड़ता होगा ।
‘एक मीठा ,एक सादा पान’ कांत ने पान वाले से कहा
‘नहीं दोनों सादा पान लगाओ ‘ मैंने अपने पसंदीदा मीठे पान को खारिज किया
कांत फिर चौंका पर कुछ बोला नहीं
ढेर-सी सुपारी और कत्थे वाला कड़वा पान चबाते हुए
मैंने खुद को उस नैतिक दबाव से पूरी तरह मुक्त कर लिया
जो मुझे किसी और के प्यार में पड़ने से रोकता आया था अब तक।
3-पत्नी का प्रेमी
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पांडे के भाई की शादी में मिल गया था नीलकांत
अकेला आया था , मैं भी अकेला ही था
तो सोचा आज पम्मो के प्रेमी से गुफ्तगू कर ही ली जाए
वह बेचारा नहीं जानता कि मुझे सब पता है
अनु को इतना ज्यादा जानता हूँ मैं
कि उसके जीवन में आई छोटी से छोटी तब्दीली मुझसे छुपी नहीं रह सकती
पम्मो का नील मेरे सामने बैठा था बढ़िया टक्सीडो पहनकर
कितना सहज था मेरे सामने !
वेल स्पोकन , चार्मिंग , गज़ब का ह्यूमर
ऐसे लफ़ंडर तो किसी को भी अपने प्यार में फांस लें
फिर पम्मो ठहरी सीधी सादी ,आ गयी होगी बातों में।
कॉलेज टाइम में काफी प्ले किये हैं मैंने
आज अभिनय कला आजमाने का टाइम आया था
अपनी चिढ़ को सीने में दबाते हुए मैं उससे बड़े जोश से मिला
आज वह मौका हाथ आया था जिसकी मुझे कब से प्रतीक्षा थी
अपने और पम्मो के बारे में इसे बताकर इसे राख कर देने की
पम्मो पम्मो कर के मैंने इसके कान से खून निकाल दिया
पम्मो इसके सामने कैसे सज संवर कर जाती है
इसकी पसन्द के रंग पहनती है
इसके हिसाब से सारे काम करती है
घर में आठ बजे से पहले ना जागने वाली पम्मो
टूर पर जाते ही सुबह छह बजे अपने फोटो के साथ वाट्सएप स्टेटस अपडेट कर देती है
कैसे लापरवाह पम्मो इसके सामने टिपटॉप अनु बन जाती है
पम्मो सोचती है कि मैं कुछ नोटिस नहीं करता
जबकि पहले दिन ही जब उसने अपनी ऑफिस का पूरा वार्डरोब बदला
तभी मुझे खटका था
मैंने नीलकांत से पम्मो के असली रूप का ऐसा विस्तार से वर्णन किया
इतना प्यार उड़ेला अपने शब्दों में ,
कि साला नीलकांत जलन के साथ सोच में पड़ गया होगा
कि उसकी अनु और पम्मो एक ही हैं या अलग अलग ?
उसके चेहरे के बदलते रंग देख मुझे मज़ा आ रहा था।
सेडिस्टिक प्लेजर भी क्या कमाल की चीज़ है …..
पम्मो जब टूर निकालकर दूसरे शहर जाती है
तब मैं इसके ऑफिस में पता करवा लेता हूँ कि नीलकांत महाशय भी ऑफिस से नदारद हैं क्या
पम्मो को लगता है कि उसका पति गधा है
और वो इसलिए कि मैं लगने देता हूँ ।
मैं कब का पम्मो और इसका भांडा फोड़ चुका होता
अगर शादी के बाद भी मैं अपनी एक्स के साथ सम्बन्धों में नहीं होता
मैं अपनी कॉलेज टाइम की प्रेमिका के प्यार से कभी निकल ही नहीं पाया
या सच कहूँ तो निकलना चाहता ही नहीं था
पम्मो बेचारी उसके बारे कुछ नहीं जानती
इसलिए मैं भी नीलकांत के बारे में ना जानने का अभिनय कर रहा हूँ
इसलिए जब पम्मो मेरे पास एक टर्म लेकर आई ‘ स्लीप डिवोर्स’
और पचास वजहें गिनाते हुए अलग अलग कमरों में सोने का प्रस्ताव रखा
मैं मन ही मन हँसा था उसके भोली शातिरता पर
और मन ही मन खुश भी हुआ कि अब मैं अपनी प्रेमिका से देर रात चैट कर सकूंगा
और पम्मो से मुझे प्यार है या उसकी आदत
इस सवाल का ठीक ठीक उत्तर खुद को नहीं दे पाता
मगर वह मुझे चाहिए अपनी ज़िंदगी में
अपनी पत्नी और अपनी बेटी की माँ के रूप में
जब कोई एक चोरी करता है तब शोर होता है
और शादियां टूटती हैं
अब दोनों चोर हैं और दोनों चुप हैं
ऐसे ही चल रही हैं शादियां और ऐसे ही बच भी रही हैं।
कभी कभी सोचता हूँ
कि हर वक्त अभिनय करते हुए हम खुद भी भूल जाते हैं
कि हम असल कब और कहाँ होते हैं
कितने मंजे हुए कलाकार हो जाते हैं हम दो रिश्तों को साधते हुए
फिर सिगरेट का एक कश लेकर इस ख़याल को हवा में उड़ाता हूँ और सोचता हूँ कि
कि हम एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर करने वालों से
बॉलीवुड को ट्रेनिंग लेनी चाहिए
हा हा हा…..
4-प्रेमी की पत्नी
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कितनी खूबसूरत है नील की वाइफ
चमकदार सांवली रंगत , बड़ी-बड़ी आंखें और दिलफ़रेब मुस्कान
चंदेरी की इंडिगो साड़ी में बहुत ग्रेसफुल लग रही थी
जब उस दिन ऑफिस की पार्टी में दूर कोल्ड ड्रिंक लिए बैठी थी
बीच बीच में हमारी नज़रें टकरा जा रहीं थीं
पर उसकी नज़र तक मुझे देख नहीं मुस्कुराई थी
जबकि हम एक बार मिल चुके थे पहले
बहुत देर तक मैं सोचती रही
कि खुद जाकर उससे मिलूं या नहीं ?
एक झिझक सी हो रही थी
मन का गिल्ट बहुत उलझनें पैदा करता है
फिर लगा कि
नहीं मिलूंगी तो कहीं इसे मेरे और नील के बारे में शंका ना हो जाये
मैं गयी तो थी उसके पास सिर्फ हाय हेलो करने
पर जाने क्यों उसे हग कर बैठी
उसके स्पर्श में आत्मीयता बिल्कुल नहीं थी
बल्कि उसकी मुस्कान भी मुझे नकली लगी
शायद कुछ तो जानती है ये ….
वैसे नील कहता तो है कि पत्नी को कुछ नहीं पता
मगर मैं एक स्त्री होने के नाते दूसरी स्त्री को जितना जान सकती हूँ
उतना कोई पति भी अपनी पत्नी को नहीं जान सकता।
मैंने नर्वसनेस में पति और बच्ची की बातें सुनाना शुरू कर दिया
वह हां हूँ कर रही थी पर शायद सुन नहीं रही थी
और इस बीच उसने मोबाइल टेबल पर रखा
जिसे देख मेरा दिल डूबने लगा ,रुलाई छूटने लगी
स्क्रीन पर नील था उसे होंठों पर चूमते हुए।
अच्छा हुआ , वही वॉशरूम के बहाने उठकर चली गयी
नील भले ही ना माने
पर अब मैं यकीन से कह सकती हूँ कि वह हम दोनों के बारे में जानती है
मैं भी भागकर अपने चेम्बर में गयी और खूब सारा रोकर बाहर आई
नील ने देखा मगर पत्नी के कारण मेरे पास भी नहीं आया
फिर मैं यकायक बेचैन हो उठी
क्या कर रही हूँ मैं ?
वह भी तो नील से प्रेम करती होगी
कितना दर्द और घुटन होगी उसके भीतर
मुझे सामने देखकर गुस्सा नहीं आया होगा क्या उसे ?
पर कितनी संयमित रही वह
मैं खुद को उसका मुजरिम मान रही थी
पर जब नील ही खुद को उसका अपराधी नहीं मानता
तो मुझे क्या ज़रूरत है इतना सोचने की
मुझे अपने पति के बारे में सोचना चाहिए
असल धोखा तो मैं उसे दे रही हूँ
मैं कहां अपने पति के अलावा किसी से रिश्ता रखना चाहती थी
कबीर बहुत अच्छा पति है
प्यार ,परवाह ,इज़्ज़त ! किसी चीज़ में ज़रा कमी नहीं
पर शादी के बाद से ही मुझे लगता रहा जैसे सिर्फ ड्यूटी निभा रहा हो
उसके स्पर्श में उत्तेजना भरपूर है पर ऊष्मा नहीं ।
फिर जब नील से मिली
तो कब उसके प्यार में डूबती चली गयी ,पता ही ना चला
नील के साथ ने वह सब दिया जो कबीर के साथ में अनुपस्थित था
नील का देखना ,छूना ,चूमना सब मुझे जैसे अपने साथ बहाए ले जाते हैं
नील से मिलकर लगा कि प्रेम कितनी बेसिक नीड है हमारे लिए
प्यार तो मैंने बहुत किया कबीर से
लेकिन किसी से प्यार पाना इतना सुंदर है मैं नहीं जानती थी
मैं डर गयी उस प्यार को खोने से
नील के लिए इतनी पजेसिव हो गयी कि
उसकी पसन्द जैसा बनने की कोशिश करने लगी
कैसे भी वह बना रहे मेरे साथ , कहीं छोड़ ना जाये
एक असुरक्षा बोध घर कर गया मन में ।
नील के रंग में रंगी मैं कितना दोहरा जीवन जीने लग गयी हूँ।
क्या प्रेम इतना मजबूर कर सकता है कि
हम खुद की पसन्द के खिलाफ जाने लग पड़ें।
कभी कभी डर लगता है कि नील मेरे इसी रूप को तो प्रेम नहीं करता ?
अब कबीर का स्पर्श मुझे अच्छा नहीं लगता
जैसे मन के साथ देह भी सिर्फ नील की हो
कबीर के साथ प्यार करते हुए लगता है कि जल्द से यह सब बीत जाए
जैसे मुझे सिर्फ नील का स्पर्श ही भाता है
वैसे ही क्या नील भी अपनी पत्नी के साथ मजबूरी में सोता होगा ?
फोटो देखकर तो ऐसा लगा नहीं था।
कभी कभी लगता है कि शायद कबीर भी किसी रिश्ते में है
जब बहुत डरते हुए अलग अलग कमरों में सोने की बात की तो झट से मान गया
पक्का तो नहीं पता मुझे पर लगता तो है कि उसकी जिंदगी में कोई और है
पर किस मुँह से पूछूं या सवाल उठाऊँ , जब खुद ही ईमानदार नहीं हूँ ।
कबीर है ,नील है, प्यारी बेटी है ,अच्छी नौकरी है
पर सच कहूँ तो मैं खुश नहीं हूँ
झूठ कहते , अभिनय करते हुए दिन बीत रहे
कबीर के सामने ऐसे एक्ट करती हूँ जैसे सब पहले जैसा हो
नील के सामने तो भावनाओं के सिवाय पूरा अस्तित्व ही नकली बना लिया है
अनु और पम्मो के बीच झूलते मैं ‘ अनुपमा ‘ को तलाश करती हूँ
जो कहीं नहीं मिलती अब मुझे।
सही गलत का द्वंद लगातार मेरे मन को मथता रहता है
नील से मिलने की तड़प दिल से जाती नहीं कभी
उसकी पत्नी से एक जलन अलग मन को कचोटती रहती है।
नील ने कहा है कि
वह कभी पत्नी को नहीं छोड़ेगा
मैं खुद भी बेटी की खातिर कबीर को नहीं छोड़ पाऊंगी
नील रोज़ घर पहुंचने के बाद और छुट्टी के दिन मुझसे बात ,मैसेज भी नहीं करता
मैं जानती हूँ कि
अगर उसे कभी मुझमें और पत्नी में से किसी एक को चुनना पड़े
तो वह एक पल में मुझे छोड़ देगा।
मुझे कभी ऐसा चुनाव करना पड़ा तो मैं क्या करूँगी ?
इसका जवाब नहीं है मेरे पास
मैं वक्त पर छोड़ती हूँ इसका फैसला
और चलने देती हूँ ,जैसा चल रहा है
सारी उलझनों , बेचैनियों और गिल्ट के बावजूद।
अगर आज ईश्वर मुझसे कोई वरदान मांगने को कहें
तो मैं कहूँगी कि
मुझे वापस उन दिनों में जाना है
जब मेरी ज़िंदगी में नील और कबीर दोनों ही नहीं थे।
मैं सचमुच बहुत थक गई हूँ। बहुत ज़्यादा…
5-शादीशुदा प्रेमी की सिंगल प्रेमिका
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कितना रोई थी मैं जब कबीर ने कहा था कि
मुझसे शादी नहीं कर पायेगा
दिल टूटकर चूर चूर हो गया था
ज़िंदगी बेमानी नज़र आने लगी थी
वह खुद भी फूट फूट कर रोया था
जाने कितनी तो मजबूरियां गिनाईं थीं।
फिर अनुपमा उसकी पत्नी बनकर आ गयी
और हमारा सात साल का रिश्ता सात फेरों में अतीत बन गया
मैं इस सदमे से निकलने की पुरजोर कोशिश कर ही रही थी
कि एक दिन कबीर मिलने आ गया
कहा कि मेरे बिन नहीं जी पायेगा
और फिर से रोया मेरी गोद में सर रखकर
जाने कितनी कसमें खाईं ,कितने वादे किए
कि अनुपमा के साथ सिर्फ पति बनकर रहेगा
प्रेम तो सिर्फ मुझसे करता है
और मैं जो अभी तक उसके चले जाने को पूरी तरह स्वीकार भी न कर पाई थी
उसके आंसुओं के दरिया के सामने क्या ही टिकती ?
मूव ऑन करते करते मैं दोबारा उसके प्रेम में बह गई
यह मेरी पहली गलती थी ।
कबीर मुझसे रोज़ बातें करता ,मिलने आता
मुझे लगा था कि ज़रा सा तो जीवन है , यूं ही प्यार में बीत जाएगा
यह सोचना मेरी दूसरी गलती थी ।
अब मुझे अपने फैसले की कीमत अदा करनी थी
मैं अपनी मर्ज़ी से उससे बात नहीं कर सकती थी
मुझे इंतज़ार करना होता था उसके कॉल का , मैसेज का और उसके आने का
मेरा सारा जीवन जैसे एक अन्तहीन प्रतीक्षा बनकर रह गया था
रातों को उसके और अनुपमा की अंतरंगता के बारे में सोचकर मेरी आँसू न रुकते
मेरा दिल जोरों से धड़कता ,बेचैनी बढ़ जाती और मैं सारी रात जागते हुए बिताती
मैं डिप्रेशन की खाई में गिरती जा रही थी
साइकियाट्रिस्ट के लाख मना करने भी मैं उससे मिलती रही और दवाएं खाती रही
यह मेरी तीसरी गलती थी
एक दिन कबीर ने बताया कि मेरी वजह से उसने सोने के लिए अपना कमरा अलग कर लिया है
ओह… कितना चाहता है मुझे !
कितनी मुश्किल हुई होगी उसे अनुपमा को कन्विन्स करने में ,
पर मेरे कबीर ने मेरे लिए यह भी किया
मैं उसके प्रेम में पागल ही हो उठी
अब मेरी बेचैनी को राहत मिलने लगी
हम दोनों अब देर रात बातें करने लगे थे
लेकिन जब वह मुझसे उखड़ा होता तो पत्नी के साथ के फोटो सोशल मीडिया पर डालता
मेरे मैसेजेस के जवाब नहीं देता , मेरे कॉल इग्नोर कर देता
मैं रोती ,गिड़गिड़ाती और अपनी बेबसी पर खुद ही शर्मसार होती
फिर कुछ दिनों बाद जब उसे मेरी देह पर प्रेम उमड़ता ,
तब वह आता और रोकर माफी मांग लेता
गलत कहते हैं लोग कि आंसू औरतों का हथियार होते हैं
कबीर ने मुझे इन्हीं कमज़ोर हथियारों के बल पर बंधक बनाए रखा
प्यार नाम की बेड़ी मुझे मेरी इच्छा से उसके साथ बांधे रही
सच कहूँ तो उससे अलग होने का सोचकर ही मैं बेचैन हो उठती
उन दिनों मैंने अपने दिल को बुरी तरह दिमाग पर हावी होते देखा
मैं खुद के ही खिलाफ खड़ी थी, अपनी ही मदद करने में नाकाम।
मैं बावली इसे गहन प्रेम का नाम देती रही ।
तो क्या यह प्रेम था जो इतनी पीड़ा दे रहा था?
नहीं , प्रेम से कहीं ज़्यादा यह कबीर का एडिक्शन था।
पिछले हफ्ते मैंने पैनिक अटैक की हालत में उसे फोन करके बुलाया
और उसने क्या किया ?
अपनी मजबूरी का गाना मुझे सुनाते हुए फोन काट दिया
उस दिन मैं मर सकती थी ,पागल हो सकती थी
लेकिन उपेक्षा के उस करारे झटके से एक पल में कबीर नाम के भंवर से बाहर निकल गयी
उसके प्यार से ,उसे खोने के डर से , उसके इंतज़ार से और अपनी बेबसी से भी।
कई बार झटके आपको उबारने आते हैं
इस झटके ने मुझे मेरा अस्तित्व वापस लौटा दिया जो सिर्फ मेरा था
जिस पर किसी कबीर फबीर की छाया नहीं थी।
क्यों हम लड़कियाँ इतनी भोली ( मूर्ख ) होती हैं ?
बहुत देर से समझ पाती हैं कि पुरुष तब तक ही आंसू बहाता है
जब तक कि उसे यकीन न हो जाये कि अब प्रेमिका कहीं नहीं जाएगी
कबीर भी प्रेमी नहीं, ठेठ पुरुष ही निकला ।
कल आया था कबीर और फिर से मेरे गले लगकर सिसक सिसक कर रोया
आज मैं पिघल नहीं रही थी बल्कि मजबूत चट्टान बनी बैठी रही
जिस पर से उसके आँसू बहकर गुज़रते रहे
उसे हैरत हुई होगी कि
मैं नहीं रोई उसके साथ और ना सर पर बच्चों की तरह हाथ फेरा
मुझे पता है कि
अभी वह रोज़ तब तक रोयेगा जब तक कि मैं पिघल ना जाऊं
उसके बाद वह वही मजबूर प्रेमी बन जायेगा।
मैंने अभी उसे मैसेज करके घर आने को कहा है
वह दौड़ा चला आ रहा है क्योंकि उसे मुझे खोने का डर है
अभी उसकी मजबूरियां कहीं तेल लेने चली गयी हैं
लेकिन वह नहीं जानता कि आज उसका डर सही साबित होने वाला है
मुझे यह संदेह नहीं है कि वह मुझे प्यार नहीं करता होगा
करता ही होगा तभी तो दो रिश्ते साध रहा है
पर उसे पत्नी और प्रेमिका दोनों उसकी शर्तों पर चाहिए
और मैं उसे अब मेरी ज़िंदगी की शर्तें तय करने की इजाज़त नहीं दूँगी
मैं अब यह भी जानती हूँ कि
अगर मैं उससे अलग हुई तो उसे दिल से ज़्यादा ईगो पर चोट लगेगी।
लेकिन आज मैं अपनी सारी गलतियां सुधारने वाली हूँ
और उसे उस दिन दिए झटके के लिए शुक्रिया कहने के बाद उसे विदा कर
उसके लिए दिल का दरवाज़ा हमेशा के लिए बंद कर देने वाली हूँ।
हीरामन की तीसरी कसम की तरह मैंने भी आज एक कसम खायी है
अपने दिल में प्रेम वाली जगह पर किसी शादीशुदा आदमी को नहीं बैठाऊंगी।