जानकी पुल – A Bridge of World's Literature.

हिंदी के वरिष्ठ कवि विमल कुमार ने देश की भूली बिसरी तवायफों पर पिछले दिनों कई कविताएं लिखी हैं।उनकी इनमें से कुछ चुनिंदा कविताओं की पुस्तक “तवायफनामा” आ रही है।।शायद ही किसी ने इतनी संख्या में तवायफ गायिकाओं पर कविताएं लिखीं होंगी।।इस पुस्तक में गौहर जान मल्लिका जान, जानकी बाई छप्पन छुरी, असगरी बाई से लेकर मेरे शहर मुजफ्फरपुर की “ढेला बाई” पर भी कविताएं है।यह देखकर मुझे खुशी हुई क्योंकि ये सभी गायिकाएं आज एक इतिहास बन चुकी हैं, एक किवदन्ती बन चुकी हैं। विमल कुमार की इन कविताओं में इतिहास फंतासी और कल्पना भी है।इनमें एक दो गायिकाओं को छोड़कर किसी पर कोई किताब भी नहीं है। हमारे पास कोई ऐसा मुक्कमल इतिहास भी नहीं हैं जिनसे हम उनके जीवन के बारे में प्रामाणिक रूप से जान सकें।कई गायिकाओं के अब तो रेकॉर्ड्स भी नहीं हैं।ऐसे में कल्पना और छिटपुट अधूरी जानकारियों के आधार पर 30 से अधिक भूली बिसरी गायिकाओं को शब्दों में जिंदा करना बहुत मुश्किल काम है।पढ़िये कुछ कविताएं- 

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1
मल्लिका जान!
मैं कल ही लौट कर आया हूँ
लाहौर की हीरा मंडी से।
तुम्हारी याद ताजा हो गई है
तुम्हारा चेहरा
मेरी स्मृति में अभी भी दर्ज है
तुम्हारी पूरी जिंदगी
एक फिल्म की तरह
एक बार में
मेरे सामने घूम गयी है
कैसी है बिब्बो?
रज्जो कैसी है?
कैसी है कुलविंदर?
कैसी है अनवरी बाई?
मल्लिका जान!
लौट तो आया मैं यहाँ
लेकिन एक अजीब सी बहस में फँस गया हूँ
कुछ लोग हीरामंडी हीरामण्डी चिल्ला रहे हैं
कुछ लोग उसके खिलाफ हो गए हैं
हर कोई लिखने लगा है
हर कोई बोलने लगा है
पर कोई पूछ नहीं रह
मल्लिका जान कैसी है?
कोई नहीं पूछ रहा
रौशन बाई कहां गयी?
कोई नहीं पूछ रहा
हरजिंदर का पता?
कोई नहीं पूछ रहा
निदा कैसी है?
कैसी है शमीना?
आलमजेब
फरदीना?
कोई नहीं पूछ रहा
उनके बच्चे कैसे हैं?
उसका घर कितना सही सलामत है
कितनी बची है
उनकी जिंदगी
उनकी रूह
उनकी तन्हाई
उनक़ा आसमान
मुझे समझ में नहीं आता
मैं क्या कहूँ हीरा मंडी के बारे में क्योंकि मैं पिछले महीने
हीरामंडी को अपनी आंखों से देखकर लौटा हूँ
तो फिर मैं कैसे
उसे फिल्म में देख सकता हूँ
उस हीरा मंडी को
जो कितने मुल्कों का इतिहास बन चुका है
मुझे समझ में नहीं आता
कि मैं तुमको भी जिंदा समझूं
या मरा हुआ
क्योंकि तुम तो अभी भी हमारी धड़कनों में हो
रगों में
खून में हो
हमारी माजी में हो
मुस्तकबिल में हो
मलका जान!
मैं पिछले सप्ताह ही लौटा हूँ
हीरा मंडी से
अभी ट्रेन की टिकट भी पड़ी हुई है जेब में
और यहाँ चुनाव हो रहे हैं
तीसरे चरण के
पता नहीं चल पा रहा
कौन जीतेगा
कौन हारेगा
कभी कोई कहता है
कि फलां जीतेगा
कभी कोई कहता है
फलां हारेगा
पर बहुत कुछ अनिश्चित है
जैसे तुम्हारे मुल्क में था
हालात दोनों जगह बहुत खराब हैं
मल्लिका जान!
तुम्हारे यहाँ कौन-सा अच्छा था
निज़ाम
वहाँ भी तो कितने वजीरआजम आए गए
कई तो मौत के घाट उतार दिए गए कई बेकसूर लोगों की हत्याएं हुईं
कई स्त्रियों के साथ बलात्कार हुआ
जो हीरा मंडी में हुआ
वह यहाँ भी हो रहा है
जो हीरा मंडी में हुआ था
वह भी यहाँ भी हुआ था
जो हीरा मंडी में घटेगा
वह यहाँ भी घटेगा
मलिक जान!
हीरा मंडी केवल एक जगह नहीं थी
कई शहरों में थी
मसलन बनारस में दाल मंडी
इस तरह कई मंडियां थी जिस्म की
लेकिन यहाँ की हीरा मंडी के बारे में
लोग कम जानते हैं
हीरामंडी का नाम सुनते ही मुझे याद आ गया
वह दृश्य जब मैं पतंगे उड़ाता था मल्लिका जान!
अनाज की मंडियां याद आ गयी
अब साढ़े 4 किलो अनाज पर टिकी है जिंदगी
मुझे मालूम है
तुम लोगों का ऐश्वर्य
उतनी अमीरी नहीं थी
जितना हीरा मंडी में दिखाया गया
तुम्हें पहले भी बेचा गया था
आज भी बेचा जा रहा है
मल्लिका जान!
अगर मैं जिंदा बच गया
4 जून के बाद
बादशाह सलामत के हाथों
तब फिर आऊंगा
तुमसे मिलने
एक लंबा अफसाना लिखूंगा
उसे किसी रिसाले में छपवाऊंगा
हीरा मंडी देखते-देखते
किस तरह
एक कोयला मंडी में बदल गयी
कोयले से धुआं अब भी निकल रहा है
इसी धुएं में दम घुटने से
मर गयी थीं
कई तवायफें
मल्लिका जान!
एक बार तुम भी आओ
मेरे मुल्क
देखो
यहाँ भी कितना धुआं
धुआं है
सबकी जिंदगी!
***

2

गौहर जान
कहां हो गौहर जान?
मैसूर में या कोलकत्ता में
बनारस या आजमगढ़ में
कहीं नहीं मिलते अब
तुम्हारे नामो निशान
क्या तुमको पता है
क्या से क्या हो गया इस मुल्क में
तुम्हारे जाने के बाद
तुमने सोचा भी नहीं होगा
जब नहीं रहोगी जिंदा तुम
कितनी बदल जाएगी
यह दुनिया
कितना पानी बह जाएगा
नदियों में
यह दुनिया तो बहुत कुछ
तुम्हारे जीते जी भी बदल गयी थी
तभी तो तुम्हारे पिता ने
इनकार कर दिया
तुम्हें अपनी बेटी मानने से
तुम्हारा हाल चाल जानने से
आशिक ने तुम्हें धोखा दिया
धोखा दिया अपने लोगों ने
कोर्ट कचहरी के चक्कर में
बर्बाद हो गयी तुम
उजड़ गया तुम्हारा सुंदर गुलिस्तां
तुमको मैंने सबसे पहले गाते देखा था
दरभंगा महाराज के महल में
फिर जार्ज पंचम के दरबार में
बिल्ली की उस शानदार पार्टी में भी था मैं
फिटन से जब तुम जा रही थी
और पुलिस ने तुम पर
लगाया था जुर्माना
उस घटना का भी गवाह था मैं
तुम्हारा खैरख्वाह
तुम्हारा मुरीद
तुम्हारा प्रेमी
मन ही मन इश्क करता था
पर कभी इज़हार नहीं किया
बहुत चाहनेवाले लोग थे
तुम्हारी महफ़िल में
पर किसी ने तुमसे प्यार नहीं किया
सबकी निगाह तुम्हारे दौलत पर थी
सबकी तुम्हारे जिस्म पर
दुनिया तब भी बहुत खूंखार थी
गौहर जान!
छल प्रपंच
झूठ से भरी
चालाकियां और साजिशों की गवाह
तुम्हारे तराने आज भी याद हैं
मैं मिला भी था
तुम्हारी माँ मल्लिका जान से
जब मोहनदास नहीं आये तुम्हारी महफ़िल में
सभागार में एक श्रोता मैं भी था
जब भी तुम्हें देखता था
किसी जलसे में
रोजनामचा लिखता था
घर आकर
आज मिली है मुझे वह डायरी
मेरे मरने के इतने साल बाद
मुझे तुम बहुत याद आयी हो
मैसूर में तुम्हारे बीमार चेहरे की याद आज भी है
आज भी उठती है एक कराह
इतनी गुमनामी में मरोगी
यह नहीं था मालूम
मुझे पता है वह किस्सा
बचपन में तुम्हें किस तरह
मसल दिया गया था
फूलों की तरह
क्या बीती होगी तुम पर
लेकिन नहीं मालूम था
तुम इतिहास में भुला दी जाओगी
अगर कोई छाप दे
मेरी डायरी
तो बहुत कुछ पता चलेगा
कोठे पर गाने वाली का भी
एक वसूल था जीवन में
एक ख्वाब था
दुनिया को अपनी सुंदर आवाज़ में ढालने का
एक जुनून था
नफरत के दौर में
मोहब्बत का एक पैगाम फैलाने की
एक चाहत थी
गौहर जान!
अब तुम सिर्फ
एक तस्वीर हो
ग्रामोफोन पर
बनी हुई
जिसके रिकार्ड भी
अब नहीं मिलते हैं
लेकिन तुम्हारे नहीं रह पर
यह मुल्क अभी जिंदा है
मरा नहीं है
गौहर जान!
कुछ लोग तुम्हें अभी भी
याद करते हैं शिद्दत से
चाहें कुछ भी नतीजे हों
किसी चुनाव के।
***

3
जानकी बाई
छप्पन ज़ख्म कम नहीं होते
किसी के लिए जानकी!
कई बार खत्म नहीं होता
जिंदगी भर
एक ज़ख्म का दर्द
तो 56 जख्मों का दर्द
कैसे खत्म हो जाएगा
तुम्हारे जीवन से
कम नहीं होते
चेहरे पर 56 बार
चाकुओं के वार
इन ज़ख्मों
के निशान
मिटे नहीं ताउम्र
ये ज़ख्म ही
बन गए तुम्हारी पहचान
कुछ जख्म तो
तुम्हारे सीने में भी होंगे
जानकी!
जिनकी गिनती तुमने नहीं की आज तक
जो अदृश्य रहे
तुमने तो यह भी नहीं बताया
किसी को
सीने में तुम्हारे कितने जख्म थे
जानकी! यह हादसा केवल तुम्हारे साथ नहीं हुआ था
इतिहास में
आज भी हो रहा है
जब चाकू से
छलनी कर दिया जा रहा है
प्रेमी द्वारा प्रेमिकाओं को
तुम्हारी आवाज तो अभी भी कानों में गूंजती है
जिनमें ज़ख्म उभर आते हैं
तुम्हारे अलबम कई बार सुने मैंने
जार्ज पंचम के सामने
क्या उम्दा गाया था तुमने
अशर्फियाँ लुटा दी गईं थी तुम पे
तुम्हारी सखी गौहर पर भी
बहुत धोखा मिला तुमको
शोहरत के साथ जीवन में
जानकी!
तुम्हारी शोहरत से लोगों ने की थी मोहब्बत
तुम्हारे धन दौलत से
लोगों ने की थी मोहब्बत
तुम जिंदगी भर
तड़प कर रह गई
मोहब्बत के लिए
जबकि तुमने न जाने
कितने लोगों से की थी
सच्ची मोहब्बत
यह वह मोहब्बत नहीं थी
जो सांसों के गर्म होने पर खत्म हो जाती थी
यह वह मोहब्बत नहीं थी
जो जिस्म की जलती आग में बुझ कर राख हो जाती थी
तुम्हारी मोहब्बत के किस्से
यूं ही नहीं बने थे
गलियों चौराहों पर
अक्सर होती रही चर्चा
तुम्हारे भीतर बनारस जिंदा था
जब तक तुम जिंदा थी
भले ही चली गई थी
इलाहाबाद घंटा घर इलाके में
लेकिन तुम्हें बनारस की गलियां ही याद आती रही
वे कोठे याद आते रहे
जहां तुम जाती थी
जहां तुमने रघुनंदन को पराजित कर दिया था बुरी तरह
जिसने अपनी हार का बदला चुकाया तुम पर
56 जख्म करके
कम नहीं होते इतने ज़ख्म
किसी के चेहरे पे जानकी!
आखिर किस ने स्त्री के जख्मों को देखा है
ठीक से
यह तो पता भी नहीं चलता
किसने उसे जख्म दिए है
अक्सर प्रेमी ही देते हैं ये ज़ख्म
फिर शौहर
कई बार सारा शहर भी उसे देता है जब कई बार तो वक्तभी देता
कई बार किस्मत भी
इतने जख्मों को लेकर जिंदा रहना आसान काम नहीं
लेकिन तुम कई सालों तक
जिंदा रही
याद करती रही
अपना अतीत
अब कौन तुम्हें जानता है
कौन याद करता है
कौन पुकारता है
अरी ओ! छप्पन छुरी!!
***

4
क्या अब भी कुछ बचा है रतन बाई!
कितनी ही रतन बाई थी
हमारे ज़माने में
जब किताबें बदली जा रही थीं
अध्याय समाप्त किए जा रहे थे
एक एक करके
इतिहास में
एक ही समय में
एक ही काल में
एक ही शहर में
यहाँ तक कि एक ही मोहल्ले में
और एक ही गली में
कई रतन बाई रहती थीं
कभी
एक तो काम करती थी फिल्मों में
एक वह थी जिस ने कर ली थी आत्महत्या
एक की पूरी जिंदगी कोठे पर बीती एक कुंवारी रह गई
शादी भी नहीं हुई उसकी
कितनी रतनबाई थी अपनी अपनी दास्तानें कहती हुईं
लहरों पर
लिखती हुई अपने बारे में
कहानियां
कई तो करती थी काम
किसी मंडली में
कई बड़ा अच्छा गाती थी
कितना सुंदर गला था उसका
कई तो बड़ी बिंदी लगाती थी
कई तो काजल भी नहीं
लगाती थी
जब बीत रहा था समय
रतन बाई
दीवारों पर प्लास्टर की तरह झरती जा रही थी
कई तो घड़ी में ही बंद होकर रह गई टिक टिक करती हुई
कई आसमान पर चमकी थी
थोड़ी देर के लिए
कई खिली कई उसी बगीचे में मुरझा गई
कई रह गयी प्रेम से अवंचित
कई रह गयी प्यासी
कई बलात्कार की शिकार
एक रतन बाईकी हत्या कर दी गई थी
उसे बचा भी नहीं पाए हम
बहुत सारी रतन बाई थी मेरे शहर में
कराहती हुई
बदलती हुई करवटें
चादरों की सलवटों को ठीक करती
आंखों में टूटे हुए स्वप्न
और छाती में कफ लिए
मैं एक पुराने किले के पास खड़ा हूँ
रतन बाई
अगर तुम मुझे आज भी पहचानती हो
तो आ जाओ
किसी नुक्कड़ पर बैठकर
पी ले हम लोग एक कप चाय
शाम को
याद कर लें बीते हुए दिन
बना लें किसी कागज़ पर
एक नक्शा
और चाँद को धरती पर उतार लें
रतन बाई!
अब कुछ बचा नहीं
इन भग्नाअवशेषों
लहू का एक एक कतरा टपक रहा
हमारी आंखों के सामने
रतन बाई!
रतन बाई!!
क्या तुम अब भी जिंदा हो
सांस ले रही हो?
मोहब्बत में लिखी गयी तमाम खतों के बीच…
***

5
दलीपा बाई!
कितनी अफवाहें फैलाई गईं
तुम्हारे बारे में
कितना कुछ लिखा गया
तुम्हारे बारे में गलत
इलाहाबाद के एक नामी बैरिस्टर से जोड़ा गया तुम्हारा रिश्ता
किसी ने सच जानने की कोशिश नहीं की
कोई नहीं गया तुम्हारे गांव चिलबिला
पता लगाने सच्चाई
किस किस से तुम्हारे रिश्ते नहीं जोड़े गए
बिलावजह
इसलिए कि तुम कोठे पर गाती हो
तुमको तो कितना बदनाम किया गया
उनको भी शर्मशार किया गया
तुम्हारे गर्भ में उनक़ा ही बच्चा था कहकर
कितनी अफवाहें फैलाई गयीं
आज तक
किसी ने नहीं जाना चाहा
जब तुम इतनी कम उम्र में
विधवा हो गई
कैसे काटा तुमने पहाड़ जैसा यह जीवन
कैसे तुम भागी अपने शहर से
रोज अफवाहों के बीच
कैसे रहा जा सकता है
किसी शहर में
एक सारंगी वादक के साथ भागते हुए
क्या तुमने सोचा था
अपने जीवन के बारे में
आखिर
क्या-क्या नहीं करना पड़ा तुम्हें
जद्दन के लिए
कैसे सिखाया तुमने उसे संगीत
कैसे बनाया तुमने इतनी बड़ी शख्सियत
दलीपा बाई!
आज तुमको कोई नहीं जानता
सब भूल गए हैं
किसी ने तुम्हारी जीवनी नहीं लिखी
तुमने भी अपनी कोई आत्मकथा नहीं लिखी
न डायरी
कितने नबाबों ने तुम्हें लालच दिया
कितनों ने धोका
यह तुम ही जानती हो
तुम केवल एक स्त्री नहीं हो
इतिहास में इसी तरह बीतता है
स्त्री का जीवन अलक्षित!

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