हाल में पंकज चतुर्वेदी की एक किताब आई ‘जवाहरलाल हाज़िर हो’। यह किताब आजादी की लड़ाई के दौरान देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की जेल यात्राओं को लेकर है। नेहरू जी ने 3259 दिन जेल में बिताये थे। पेंगुइन स्वदेश से प्रकाशित इस किताब में लेखक ने बहुत विस्तार से उनकी जेल-यात्राओं के बारे में लिखा है। बहुत शोधपूर्ण पुस्तक है। आइये इसका एक अंश पढ़ते हैं- मॉडरेटर
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जवाहरलाल गैर-हाज़िर ही कब थे?
आज इलाहाबाद स्थित ‘आनंद भवन’ को ही देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित नेहरू का निवास माना जाता है, लेकिन हकीकत में जवाहरलाल का जन्म हुआ था, 77 मीरगंज में। मीरगंज इलाकेमें किराए का एक मकान लेकर रहने वाले मोतीलाल नेहरू इलाहाबाद हाईकोर्ट में बैरिस्टर थे। ये उनके शुरुआती संघर्ष के दिन थे। इसी दौरान 14 नवंबर, 1889 को जवाहरलाल का जन्म हुआ। जवाहर के जन्म के बाद लगभग 10 साल तक परिवार यहीं रहा।हालाँकि, यह मकान अब नहीं है। इसे नगर पालिका ने सन् 1931 में गिरा दिया था। सन् 1900 में मोतीलाल नेहरू ने भवन खरीद कर नए सिरे से बनवाया और ‘आनंद भवन’ नाम दिया।
सन् 1905 में जवाहरलाल नेहरू इंग्लैंड चले गए। हैरो स्कूल, फिर ट्रिनिटी कॉलेज, और फिर कैब्रिज। वह दौर भारत में आज़ादी के लिए अकुलाहट और विद्रोह का था। इंग्लैंड में भी उनकी रुचि लोकमान्य तिलक की मुहिम, सरदार अजीत सिंह के देश-निकाले, गदर पार्टी के गठन और अरविंद घोष के नेतृत्व में चल रहे राजनीतिक आंदोलनों में थी। भारतीय छात्रों द्वारा गठित ‘मजलिस’ में इन विषयों पर विमर्श होते और जवाहरलाल इनमें सहभागी ।
जब नेहरू सन् 1912 में एडवोकेट बनकर भारत आए, एक तरफ अपने पिता की व्यावसायिक विरासत सँभालने का दबाव था तो दूसरी तरफ़ पिता की ही राजनीतिक सक्रियता को समझने का। उसी समय 28 जुलाई, 1914 से पहला विश्व युद्ध शुरू हो गया। दुनिया पहले विश्व युद्ध की आग में झुलस रही थी और भारत के आम लोग अंग्रेज़ों के दमन की चक्की में पिस रहे थे। युद्ध के लिए चाहे इंसान चाहिए या फिर धन, ब्रितानी. हुकूमत के लिए भारत ही सबसे बड़ा सहारा था। लोकमान्य तिलक ने आमजन में राष्ट्रवाद की अलख जगा दी थी। इधर कांग्रेस में गांधी जी का असर गहरा होता जा रहा था। सन् 1917 के चंपारण किसान आंदोलन ने आज़ादी की बात आम लोगों तक सलीके से पहुँचा दी थी। ब्रितानी परिवेश में जवान हुए जवाहरलाल, गांधी जी से ऐसे प्रभावित हुए कि फिर उन्हीं के होकर रह गए।
नेहरू जी की आत्मकथा बताती है कि विदेश में पढ़ाई के दौरान उनकी भारतीय राजनीति में रुचि कितनी गहरी थी। इस दौरान उनके अपने पिता से हुए पत्र-व्यवहार से भारत की स्वतंत्रता में उनकी साझा रुचि का पता चलता है। गांधी जी से मिलने से पहले नेहरू पिता-पुत्र महात्मा के अनुयायी नहीं थे। गांधी जी के जिस गुण ने पिता और पुत्र, दोनों को प्रभावित किया, वह था कार्य के प्रति उनका आग्रह। गांधी जी ने तर्क दिया कि गलत बात की न केवल निंदा की जानी चाहिए, बल्कि उसका विरोध भी किया जाना चाहिए। भारत में ब्रिटिश शासन के खिलाफ बिना किसी डर या नफरत के लड़ने की गांधी की प्रतिबद्धता से जवाहरलाल भी आकर्षित हुए। फिर एक आम कार्यकर्ता के रूप में धरना-प्रदर्शन, भाषण और पर्चे बाँटने में नेहरू जी डूब गए। यहीं से शुरू हुईं उनकी जेल यात्राएँ। सन् 1922 में पहली बार जेल जाने और 1945 में आखिरी बार रिहा होने के बीच वो कुल नौ बार जेल गए। सबसे कम 12 दिनों के लिए और सबसे ज्यादा 1,041 दिनों तक, वे कुल 3259 दिन जेल में रहे। यदि एक साल में 365 दिन गिनें तो अपने जीवन के लगभग आठ साल, तीन महीने पंडित नेहरू ने जेल में गुजारे। इस दौरान, कई बार वे अँधेरी कोठरी में भी रहे, उन्हें सश्रम कारावास की सज़ा भी हुई। हर बार अंग्रेज़ सरकार को जन आक्रोश के सामने झुकना पड़ता और उनकी समय से पहले रिहाई होती।