जानकी पुल – A Bridge of World's Literature.

प्रसिद्ध संस्कृतिकर्मी वाणी त्रिपाठी ने अपने कॉलम ‘जनहित में जारी सब पर भारी’ में इस बार स्टूडियो घिबली और चैट जीपीटी से जुड़े संवेदनशील मुद्दे को उठाया है, AI और कला के भविष्य के मुद्दे को उठाया है। एनिमेशन इतिहास के सबसे प्रभावशाली व्यक्तित्वों में से एक हयाओ मियाजाकी की बात की है। एक बेहद ज्ञानवर्धक लेख- मॉडरेटर

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हयाओ मियाज़ाकी का जन्म 5 जनवरी 1941 को टोक्यो, जापान में हुआ था और वे एनीमेशन इतिहास के सबसे प्रभावशाली व्यक्तित्वों में से एक हैं। उनके पिता, कटसुजी मियाज़ाकी, मियाज़ाकी एयरप्लेन कंपनी में निदेशक थे, जो द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान विमानों के पुर्जे बनाती थी। युद्धकालीन जापान में उनके बचपन ने उनके दृष्टिकोण को गहराई से प्रभावित किया, जिससे उनकी युद्ध-विरोधी सोच और प्रकृति के प्रति गहरा लगाव विकसित हुआ। ये दोनों तत्व उनकी फिल्मों में बार-बार देखने को मिलते हैं।

हालाँकि उन्होंने गाकुशुइन यूनिवर्सिटी से राजनीति विज्ञान और अर्थशास्त्र की पढ़ाई की, लेकिन उनका असली जुनून एनीमेशन था। 1963 में, उन्होंने Toei Animation में बतौर एनिमेटर काम करना शुरू किया, जहाँ उनकी मुलाकात इसाओ ताकाहाता से हुई, जो बाद में उनके करीबी सहयोगी बने। 1985 में, उन्होंने ताकाहाता और निर्माता तोशियो सुजुकी के साथ मिलकर स्टूडियो घिबली की स्थापना की। यह स्टूडियो जापानी एनीमेशन को वैश्विक स्तर पर प्रसिद्ध बनाने में एक महत्वपूर्ण शक्ति बना।

मियाज़ाकी की फिल्में अपनी गहरी कहानी, मजबूत महिला पात्रों और गहरे दार्शनिक विषयों के लिए जानी जाती हैं। उनकी कुछ सबसे प्रसिद्ध कृतियों में नौसिका ऑफ द वैली ऑफ द विंड (1984) शामिल है, जो पर्यावरण विनाश और युद्ध की समस्याओं को दर्शाती है। माय नेबर तोतरो (1988) बचपन और प्रकृति की सुंदरता की कहानी है, जबकि किकीज़ डिलीवरी सर्विस (1989) आत्मनिर्भरता और आत्मविश्वास की खोज पर आधारित है। प्रिंसेस मोनोनोके (1997) औद्योगीकरण और प्रकृति के बीच संघर्ष को दर्शाती है, जबकि स्पिरिटेड अवे (2001), जिसने अकादमी पुरस्कार (ऑस्कर) जीता, एक युवा लड़की की जादुई दुनिया में परिवर्तन और आत्म-विकास की कहानी कहती है। हाउल्स मूविंग कैसल (2004) एक युद्ध-विरोधी संदेश देती है और प्यार व आत्म-स्वीकृति की शक्ति पर ध्यान केंद्रित करती है।

मियाज़ाकी हमेशा अपने विचारों को खुलकर व्यक्त करते रहे हैं। उनके युद्ध-विरोधी विचार उनके परिवार की युद्धकालीन उद्योग में भागीदारी से प्रभावित हैं, और उनकी फिल्मों में अक्सर सैन्यवाद और मानव लालच की आलोचना की जाती है। एक पर्यावरणविद् के रूप में, वे मनुष्यों और प्रकृति के बीच सामंजस्य को बहुत महत्वपूर्ण मानते हैं। साथ ही, वे कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) द्वारा बनाई गई कला के भी प्रबल विरोधी हैं, क्योंकि उनका मानना है कि वास्तविक कला केवल इंसानों की संवेदनाओं और अनुभवों से ही आ सकती है, न कि मशीनों द्वारा। मियाज़ाकी न केवल एक महान फिल्म निर्माता हैं, बल्कि एक विचारक भी हैं, जिनकी कहानियाँ और संदेश आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करते रहेंगे।

स्टूडियो घिबली और चैटजीपीटी (या एआई) से जुड़े विवाद का मुख्य मुद्दा एआई-जनित कला और घिबली की हस्तनिर्मित एनीमेशन शैली की नकल करने की नैतिकता से जुड़ा है। हयाओ मियाज़ाकी ने एआई-निर्मित एनीमेशन को लेकर अपनी नाराजगी कई बार जाहिर की है। 2016 की एनएचके डॉक्यूमेंट्री में, जब उन्हें एक एआई-जनित एनीमेशन दिखाया गया, तो उन्होंने इसे “मानव जीवन का अपमान” कहा। उनका मानना है कि कला को भावनाओं और अनुभवों से आना चाहिए, न कि किसी एल्गोरिदम से।

कई एआई टूल्स, जिनमें चैटजीपीटी-आधारित टूल भी शामिल हैं, घिबली-प्रेरित कला बना सकते हैं। इससे यह बहस छिड़ गई है कि क्या एआई का उपयोग करके घिबली की शैली की नकल करना नैतिक रूप से सही है, खासकर जब स्टूडियो अपनी पारंपरिक, हाथ से बनाई गई एनीमेशन प्रक्रिया के लिए जाना जाता है। कई कलाकारों को लगता है कि एआई से बनी ऐसी कलाकृतियां मेहनत और रचनात्मकता के मूल्य को कम करती हैं। इसके अलावा, एआई मॉडल को विशाल डेटा पर प्रशिक्षित किया जाता है, और यह चिंता बनी हुई है कि कहीं इनमें बिना अनुमति के घिबली की कॉपीराइटेड छवियों का उपयोग तो नहीं हुआ। यह कानूनी और नैतिक प्रश्न खड़े करता है कि क्या एआई-निर्मित घिबली जैसी कलाकृतियाँ सही मानी जानी चाहिए।

स्टूडियो घिबली और एआई-जनित कला (जिसमें चैटजीपीटी से जुड़े टूल भी शामिल हैं) के बीच विवाद का समाधान पारंपरिक कला के सम्मान और तकनीकी प्रगति को स्वीकार करने के बीच संतुलन बनाने से हो सकता है। सबसे पहले, एक स्पष्ट कानूनी ढांचा तैयार किया जाना चाहिए, जिसमें यह सुनिश्चित किया जाए कि एआई मॉडल बिना अनुमति के स्टूडियो घिबली की कलाकृतियों पर प्रशिक्षित न हों। कॉपीराइट कानूनों को सख्ती से लागू करने और एआई प्रशिक्षण डेटा की पारदर्शिता बढ़ाने से इस समस्या का समाधान किया जा सकता है।

इसके अलावा, एआई को पारंपरिक एनीमेशन के स्थान पर नहीं, बल्कि एक सहायक उपकरण के रूप में उपयोग किया जा सकता है। यह इन-बिटवीन एनीमेशन या बैकग्राउंड एन्हांसमेंट जैसे कार्यों में मदद कर सकता है, लेकिन मुख्य कलात्मक दृष्टिकोण इंसानों के हाथों में ही रहना चाहिए। साथ ही, यदि स्टूडियो घिबली और एआई कंपनियाँ सहयोग करें, तो वे ऐसे एआई टूल विकसित कर सकते हैं जो घिबली की कलात्मक फिलॉसफी के अनुरूप हों। इससे पारंपरिक एनीमेशन की आत्मा बनी रहेगी, और तकनीक इसे और उन्नत बनाने में सहायक होगी।

एक अन्य महत्वपूर्ण समाधान यह है कि एआई कंपनियाँ नैतिकता को प्राथमिकता दें और कलाकारों व स्टूडियो की अनुमति लेकर ही उनके कार्यों का उपयोग करें। इससे एआई-निर्मित कला पारंपरिक कलाकारों के प्रयास और विरासत का सम्मान कर सकेगी। साथ ही, जनता को यह समझाने की जरूरत है कि एआई-निर्मित कला और इंसानों द्वारा बनाई गई कलाकृतियों में क्या अंतर है। इससे लोग स्टूडियो घिबली जैसी पारंपरिक एनीमेशन की गहराई और मेहनत को और अधिक सराहेंगे, बजाय इसके कि वे एआई को इसका प्रतिस्थापन मानें।

अंततः, यदि एआई को पारंपरिक एनीमेशन के पूरक के रूप में विकसित किया जाए, न कि उसके प्रतिस्थापन के रूप में, तो यह विवाद सुलझ सकता है। अगर एआई डेवलपर्स और एनीमेशन स्टूडियो आपसी बातचीत और समझौतों के माध्यम से नैतिक एआई उपयोग की दिशा में आगे बढ़ते हैं, तो यह पारंपरिक हस्तनिर्मित कला की गरिमा को बनाए रखते हुए तकनीक को सही दिशा में आगे बढ़ाने में मदद करेगा।

हयाओ मियाज़ाकी के प्रशंसक के रूप में, यह स्पष्ट है कि उनकी गहरी लगन पारंपरिक, हाथ से बनाई गई एनीमेशन और कला में मानवता के स्पर्श पर आधारित है, और एआई के बारे में उनके विचार इस बात को दर्शाते हैं कि कला में मानवीय भावना का महत्व कितना है। इस विवाद का समाधान ढूंढने के लिए हमें एक ऐसा रास्ता खोजना चाहिए जो घिबली की पारंपरिक कला को बनाए रखते हुए तकनीकी प्रगति को भी अपनाए।

कल्पना करें कि घिबली एआई को एक सहायक उपकरण के रूप में स्वीकार करता है, लेकिन केवल उन तकनीकी पहलुओं को तेज करने के लिए, जैसे बैकग्राउंड आर्ट या इन-बिटवीन फ्रेम्स, जबकि हाथ से बनाई गई एनीमेशन की मूल आत्मा को बनाए रखा जाए। घिबली एक नया पहल कर सकता है, जिसे “मियाज़ाकी डिजिटल एटेलियर” कहा जा सकता है, जहाँ एआई को एक सख्त दिशा-निर्देशों के तहत कलाकारों की मदद के लिए पेश किया जाएगा, न कि उसे कला का प्रतिस्थापन माना जाएगा। यह एक ऐसा स्थान होगा जहाँ तकनीक मानवीय भावना के साथ काम करेगी, कलाकारों की मदद करेगी, लेकिन पारंपरिक कला के दिल और आत्मा को कभी भी नजरअंदाज नहीं किया जाएगा।

इसके अलावा, घिबली और एआई कंपनियों के बीच साझेदारी की जा सकती है, जहां युवा कलाकारों के लिए शैक्षिक मंच बनाए जाएं, जो हाथ से एनीमेशन बनाने और एआई टूल्स का रचनात्मक तरीके से उपयोग करने की कला सीख सकें। इसका उद्देश्य अगली पीढ़ी को यह सिखाना होगा कि कैसे वे अपनी कला दृष्टि के साथ एआई को जोड़ सकते हैं, जिससे पारंपरिक तकनीकों के साथ नए तकनीकी तरीकों का संतुलित मिश्रण होगा।

एक और समाधान यह हो सकता है कि घिबली स्पष्ट सीमाएँ तय करे कि एआई-जनित कला को उसके काम से प्रेरित करके किस प्रकार का उपयोग किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, एआई टूल्स को फैन आर्ट या छोटे, गैर-व्यावसायिक प्रोजेक्ट्स के लिए अनुमति दी जा सकती है, लेकिन जो कलाकृतियाँ घिबली की मूल शैली को व्यावसायिक रूप से नकल करती हैं, उन पर प्रतिबंध हो। इससे एआई-जनित कला की अभिव्यक्ति को बढ़ावा मिलेगा, जबकि घिबली की मूल रचनाओं की अखंडता की रक्षा भी होगी।

अंत में, इस विवाद का एक उपयुक्त निष्कर्ष यह हो सकता है कि एक बड़ा फिल्म या प्रदर्शनी बनाई जाए, जो पारंपरिक एनीमेशन और एआई को एक साथ प्रस्तुत करती है और मियाज़ाकी के करियर को श्रद्धांजलि देती है। यह प्रोजेक्ट कला के विकास के विषय को प्रदर्शित कर सकता है, जहाँ कहानी खुद पुराने और नए के मिलन को दर्शाती है—यह दिखाती है कि कैसे तकनीक का इस्तेमाल मानवीय रचनात्मकता को बनाए रखने और सम्मानित करने के लिए किया जा सकता है, न कि उसे प्रतिस्थापित करने के लिए। इससे घिबली के प्रशंसकों को कला के भविष्य के बारे में एक शक्तिशाली संदेश मिलेगा और साथ ही यह समझ भी मिलेगी कि कैसे इंसान, तकनीक और रचनात्मकता के बीच का संबंध विकसित हो रहा है।

इस तरह, घिबली और एआई के बीच यह विवाद एक “हम बनाम वे” की स्थिति नहीं होना चाहिए। यदि हम एआई को घिबली की परंपरा के सम्मान में बुद्धिमानी से शामिल करें, तो हम एक ऐसा भविष्य बना सकते हैं जहाँ तकनीक और कला एक साथ समन्वय से चलें, और पारंपरिक कला के मूल्यों को बनाए रखते हुए नये तरीकों से विकास हो।

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