जानकी पुल – A Bridge of World's Literature.

आज पढ़िए अनामिका सिंह की ग़ज़लें-

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(1)

ज़िंदगी के इस सफ़र में देखिए क्या-क्या मिला।
दौर-ए-हाज़िर में हमें हर आदमी तनहा मिला।

हो गयी तूती की गुम नक्कारखाने में सदा,
न्याय की उम्मीद जिससे थी,वही बहरा मिला।

चढ़ गये हम अर्श पर छल से सभी को रौंद कर,
आईने में हाँ मगर अपना झुका चेहरा मिला।

दर्द हैं इतने मिले, है दर्द का अहसास गुम,
हाँ मगर नम आँख में ठहरा हुआ दरिया मिला।

नफ़रतों की फ़स्ल बो दी आदमी ने मुल्क में,
ईद-होली क्या मनाएँ जब चमन जलता मिला।

जाइए मत आप इस रंगत पर मेरी खामखाह,
सुर्ख़रू है हो गई जो आपका बोसा मिला।

है अना किरदार में सबके यहाँ पर लो ‘अना’
क़द बड़ा जिसने रखा वो आदमी छोटा मिला।

(2)

हम क़दम भी क्यों बढ़ाते राजधानी के लिए।
उम्र जब  सारी गँवाई  है  किसानी  के लिए।

ये बुजुर्गों की  ज़मीं है ज़िन्दगी से भी अज़ीज,
जान भी हाज़िर हमारी इस निशानी के लिए।

अड़ गए फिर -फिर अड़ेंगे हुक्मरां ये जान लें,
इस धरा पर लहलहाती फ़स्ल धानी के लिए।

इक दफ़ा भी तो न हमने चाँद माँगा है, कहो
हम लड़े  हैं  तो  हमेशा खाद  पानी के लिए।

शुक्रिया करती हमेशा ही जुबाँ उस वक्त का,
जब मिलीं थीं ये जमीनें ज़िन्दगानी के लिए।

घर हमारे ये हमेशा ही भरे रखती रही,
ज़िन्दगी कम इस जमीं की पासबानी के लिए।

ये जमीनें सिर्फ दौलत ही नहीं हैं इक ‘अना’ है,
बाप-माँ भाई-बहन हैं खानदानी के लिए।

(3)

नसीबों की हुई चर्चा जहाँ भी बात आयी
किसी के हिस्से दिन आया किसी के रात आयी

कभी जो भूल से होंठों पे हक़ की बात आयी
हथेली की दो गालों पर छपी सौगात आयी

कठिन ही था उसे जब प्यास लेकर और जीना
घड़े और आदमी के बीच फिर-फिर जात आयी

मुहब्बत किस तरह परवान चढ़ती ऐ ज़माने!
कहीं मज़हब कहीं भौंहें सिकोड़े जात आयी

निवालों पर न रोज़ी पर हुई चर्चा अभी तक
मगर नागा बिना हाकिम के मन की बात आयी

जहाँ तुम भी न आये थे, जहाँ हम भी न आए
वहाँ पर भी हुए हैं दिन, वहाँ भी रात आयी

(4)

जिसका हमने सदा कहा माना ।
उसने  इन्कार का  बुरा  माना ।

पत्थरों सा पड़ा रहा पत्थर,
सब ने मन से जिसे खुदा माना ।

शख़्स जो सोच से रहा कमतर ,
उसने खुद को बड़ा,बड़ा माना।

काम आया वही-वही आख़िर,
सबने खोटा जिसे टका माना ।

बद्दुआ दी बहुत अज़ीज़ों  ने ,
हमने हँसकर उसे दुआ माना ।

जान लेकर क़रार दे शायद,
इश्क़ को इस तरह जुआ माना ।

भूल पाये नहीं मुहब्बत हम ,
आदतन सबने सिरफिरा माना ।

काट ली उम्र  बंद कमरों में ,
ब्याह को सौंप दी सज़ा माना  ।

गालियाँ माँ-बहन की सुनकर भी ,
औरतों ने कहाँ बुरा माना ।

एक चुप पर है तबी’अत कच्ची ,
जानकर वो नहीं  ‘अना ‘ माना ।

(5)

सवाल सौ हैं सामने कोई तो इक जवाब हो
जवाब हो सवाल का न हो तो इंकलाब हो

मगर तमाम डूबकर मरेंगे बोलो किस जगह
यूँ झूठ-मूठ रोओ मत कि आप तो नवाब हो

कमाए क्या, खिलाए क्या है सोचता ये शख्स वो
समय की मार पड़ गई कि जिसपे बेहिसाब हो

सुबह से आधी रात तक खटी हैं जो रसोई में
‘किया है क्या’ की बात पर हिसाब से हिसाब हो

‘अना’ अगरचे बोल दे तो होगा कुछ नया नहीं
जनाब आप पहले ही से पूरे बेनकाब हो

गया है भीग वो जो सूखने की एक आस में
सड़क पे जो अनाज उसपे और मत अजाब हो

‘अना’ भरोसा तोड़कर जो लौटने को कह रहा
ये तुझपे है किसी भी तौर वो न कामयाब हो

(6)

केवल भलाई  छोड़के सब पे चला है वो।
फिर भी है ये मुगालता सबसे भला है वो।

कब और कौन-सी जगह गलनी है कौन दाल,
सब जानकार हैं, यहाँ सबमें कला है वो।

जिस काम को तो होना था फ़ौरन से पेश्तर,
बोला था ख़ास दोस्त को लेकिन टला है वो

बाबा ने उसके हाथ की जानी नहीं छुअन,
ज़्यादा ही लाड़ प्यार से पोता पला है वो।

हो आपके लिए भले कूड़े का वो सबब,
चूजे सहेजे इक चिड़ी के घोसला है वो।

रोया कभी न था जो उसे हिचकियाँ लगीं,
बेटी के ब्याह पर भला कितना गला है वो।

होकर ‘अना’ के साथ जो पकड़े रहा अना,
आख़िर में अपने हाथ ही दोनों मला है वो।

पता –

अनामिका सिंह

स्टेशन रोड गणेश नगर , शिकोहाबाद- जिला –फिरोजाबाद, पिन 283135 (उ.प्र.)

yanamika0081@gmail.com

सम्पर्क सूत्र-9639700081

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