आज शंकरानंद की कुछ कविताएँ प्रस्तुत हैं –
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१.भागने वाले लोग
दुनिया में सबसे ज्यादा खतरा ऐसे ही लोगों से है
जिनके बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता
कोई भी समस्या होती है तो वे उसे सुलझाते नहीं
और उलझाने के लिए भाग जाते हैं कभी भी
कहीं भी भाग जाते हैं
वे कहाँ जाते हैं इस बारे में किसी को खबर नहीं होती
वे क्या खाते हैं इस बारे में कहा नहीं जा सकता कुछ
रहते कैसे हैं कुछ कहा नहीं जा सकता उनके बारे में
उनकी बस एक ही आदत होती है कि
जरा भी मुश्किल हुई तो निकल पड़े घर छोड़ कर
दुनिया का चक्कर लगाने वाले वे
दरअसल बोझ होते हैं उस टहनी के लिए
जिस पर पैदा हुए उसके भी होकर नहीं रह पाए
जब इच्छा हुई चल दिए
जब मन हुआ न किसी से कुछ पूछा
न किसी से कुछ कहा
सुबह से शाम हुई तो कहीं नहीं दिखी परछाईं
आखिर में पता चला कि फिर भाग गए हैं वे
कई दिनों तक भटकते हुए
एक दिन आ जाते हैं लौट कर सहसा
जब लगता है कि बात दब गई होगी
जब लगता है कि खत्म हो गया होगा मामला
जब लगता है कि थक गए होंगे सब लड़ते हुए आपस में
ऐसे लोग किसी के सगे नहीं हो सकते
अपनी साँस के भी नहीं
दुनिया में सबसे ज्यादा खतरा ऐसे ही लोगों से है
जो न लड़ सकते हैं
न लड़ने की जगह दे सकते हैं
सिर्फ तबाह कर सकते हैं सबको और
भाग जाते हैं चुपचाप।
२.बातें जिनकी
जिनकी बातें चलती रहती हैं
उनके पास कहने को कुछ न कुछ हो जाता है
उनकी आदत हो जाती है कि
चुप नहीं रह सकते
इसीलिए वे कहीं भी रहकर
अपना होना दिखा देते हैं
जिनके पास कहने को कुछ नहीं होता
वे चुप लोग पिघला हुआ शीशा हैं
जब भी बोलेंगे
छलक जाएँगे चारों तरफ
इस तरह कि
कहीं भी चुभ सकता है
वही वर्षों से जमा पिघला हुआ शीशा।
३.जगह बदलने से कुछ नहीं होता
जिनके जीवन में शोक
देह के ईंट और गारे में घुला हुआ है
वे कितना भी चाह लें
उस धाह से नहीं बच सकते
जो कलपते हुए चेहरे से
फिसलकर घुल चुकी है हवा में
यातना एक दिन दी जाए या हजार दिन
कौन भूल सकता है उसे जब
एक कील की टीस
उम्र भर के लिए स्मृति में धँस जाती है
बहुत आसान होता है किसी को ठोकर मारना
बहुत आसान होता है किसी की रोटी छीन लेना
बहुत आसान होता है किसी को घर से निकाल देना
लेकिन यह सब एक बार नहीं होता
जो एक बार होता है वह होता है हजार बार
जब जब कौंधती है याद तो दिल दहल जाता है
उतनी बार दुहराती है यातना
उतनी बार खुल जाता है घाव
कितना भी जगह बदल ले कोई
उससे अपराध नहीं मिट जाते
खत्म नहीं हो जाती रोने वाले की आह
जो लपट की तरह उठती है दिन रात।
४.स्मृति का बोझ
दूसरों के भूलने की लत
बहुत यातना देने वाली है उन्हें
जो इस गुमान में डूबे हुए हैं कि
उन्हें पहचाना जाएगा अब भी
कि चाल नहीं बदली
कि देह अब भी वैसी है और
आँखें भी उतनी ही बड़ी
वैसी ही बोली
वैसी ही भाषा जो
कौंध सकती है दस साल बाद भी
पहचान का चेहरा सामने आ कर
ओंझल हो जाता है सहसा
बदल जाता है एक धुंधले दृश्य में
यह एक आदत है जो धीरे-धीरे
जमा लेती हैं जड़ें
लोग खुश हैं कि
याद रखने की जरूरत नहीं रही
सबकुछ सिमट रहा है तो
स्मृति का जंगल क्यों हरा किया जाए
जो आज मिला
वह दूर हो गया कल
आज साथ थाली में खाना याद रहेगा कुछ दिन
कुछ बातें भी घूमेंगी गोल चक्कर स्मृति में
फिर जो जगह है वह शून्य में बदलने वाली है अंततः
स्मृति का बोझ
पहाड़ से ज्यादा भारी है उनके लिए
जो भूल जाना चाहते हैं सबकुछ
उनकी जड़ें भी
उनके लिए एक कील की तरह है
जिसमें जंग लगने वाली है
वे इसके टूटने का इंतजार कर रहे हैं।
५.स्त्री बीमार
वह जो चौखट पर बैठ कर रास्ता देखती थी
पूछती थी मोहल्ले वालों का हाल
इन दिनों खुद बीमार है बहुत
इतनी कि चल नहीं सकती
उठ नहीं सकती
बिस्तर पर काट रही हैं अपने दिन
उसे पूछने वाले एक नहीं बचे मोहल्ले में
उसे देखने वाले एक नहीं बचे
उससे मिलने नहीं आता कोई
जिसने अपनी उम्र गुजार दी गाँव घर के लिए
अब न गाँव काम आ रहा है
न गाँव के लोग
उस स्त्री की जीवन भर की कमाई वह सिक्का है
जिसका चलना बंद हो गया बाज़ार में
यही दुःख और गला रहा है उसे!
६.ईश्वर चुपचाप
बड़े से घर में छोटी सी जगह है पूजा घर
ईश्वर को रहने के लिए यही ठिकाना दिया गया है
वहाँ भी युद्ध होता है रोज
दो लोग लड़ते हैं अपने अपने ईश्वर के लिए
अपने ईश्वर की जगह के लिए
उन्हें चाहिए अपने ईश्वर के लिए पूरी जगह
दूसरे के ईश्वर को ईश्वर नहीं मानते वे
इसलिए उन्हें जगह नहीं देना चाहते
इस तरह ईश्वर को उठा कर कोई जमीन पर रखता है
कोई ईश्वर को रख देता है ताखे पर
ईश्वर एक खिलौना बन गया है
यह रोज की बात है जिसमें लड़ाई होती है
तनाव बढ़ता है और
दो लोग बेचैन रहते हैं हर पल
हर पल एक दूसरे को निगल लेने की जिद में
अपना सब कुछ छोड़ कर
वे ईश्वर को जगह दिलाने की जिद पर अड़े हैं
ईश्वर उन्हें लड़ते देखता है चुपचाप
ईश्वर उन्हें मरते देखता है
मिटते देखता है चुपचाप!
७.गुमनाम
पते की जगह तो वही रहती है
गुम हो जाता है एक दिन
वहाँ रहने वाला आदमी
कब गया कहाँ गया कुछ पता नहीं
किसी ने देखा नहीं किसी ने पूछा नहीं
रोटी की भूख में पृथ्वी पूरी एक घर लगती है
सफ़र एक आदत बन जाती है
उपेक्षा से दम नहीं घुटता
यही कारण है कि
जब लगता है कि रोटी मिलना मुश्किल है
लोग जगह बदल लेते हैं
छोड़ देते हैं शहर
छोड़ देते हैं अपना घर
जो गुमनाम मौत मरते हैं
उनमें अधिकांश
रोटी के लिए निकले हुए लोग होते हैं
जिन्हें न ठीक से रोटी मिलती है
न जीने लायक साँस
उनके हिस्से में भूख आती है केवल
वही भूख खा जाती है उन्हें चुपचाप
एक दिन।