जानकी पुल – A Bridge of World's Literature.

[१] प्रार्थना

हर सुख मेँ मिले आधा सुख उसे
मिले मुझे हर दुख पूरा
सपने सच्चे होते मिले उसको
मिले मुझे जो ख्वाब अधूरा

ग्रहण न लगे उसके पूनम को
महका करे उसका मन बावरा
हर रात मिले उसे तारोँ भरी
छिने मुझसे मेरा सवेरा

साथ मिले अच्छोँ का उसे
सूना रहे गरीब का बसेरा
दिल मिले, दौलत मिले उसे
खुशियाँ ले जाए मेरा लुटेरा

खराबी न आए कभी उसकी चाह मेँ
ख़राब कविता जैसी रहे जहान ख़राब मेरा

[२] उजाले मेँ

ऐलोपैथी से निराश हूँ
होमियोपैथी से उदास हूँ
चमत्कार की आस थी
उजाले मेँ यहाँ आया हूँ
 
तकलीफ़ कुछ मामूली-सी है
जान पड़ती लाइलाज़ है
कहता है ज़माना कुछ
दोहराती और आवाज़ है

अपनी आवाज़ से हताश हो गया
ज़माना मुझसे निराश हो गया

देख रही थी टीवी
खिलखिलाती थी मेरी बीवी
बीच मेँ एक प्रचार आया
एकदम नया विचार आया
हमने पूछा कि कौन है?
क्रिकेटर ये भारी है!
हमने दोहराया, क्या कहा
भेस बदला जुआरी है!

कर रहा था कोई अभिनेता घोटाला
इलायची के नाम पर थमाता था पान मसाला
बीवी ने कहा कि महानायक है
हम समझे सबसे बड़े नालायक हैँ

झुँझलाहट मेँ चैनल बदल गया
खबरों को सिलसिला चल गया
मन्त्री जेल मेँ छटपटा रहा है
क्या कहा, वहीँ से जेब कटवा रहा है?

चैनल बदल कर दिखाया
कुछ सीखो, यह दुनिया जहान है!
देखो इसे, धर्मगुरु है, विद्वान है
दोहराया, छद्म सत्तालोलुप महान है।

आखिर वो आजिज़ आ गयीँ
भरी बैठी थीँ, खार खा गयीँ
आपका मिजाज़ ठीक नहीँ
आप की आवाज़ ठीक नहीँ

अफलातून को ज़रा याद कीजिए
सबकी बेहतरी की तलाशी कीजिए
दूर यहाँ से चले जाएँ
दानिशमन्दोँ से मिल कर आएँ!

हम अपना-सा मुँह लेकर बाहर चले आए
सोचा साहित्यकारोँ से मिलने जाएँ
आदमी की बेहतरी के लिए
उपाय जानेँ, सीखेँ और सिखाएँ

कहीँ कोई साहित्यिक सम्मेलन हो रहा था
दरअसल समोसा वितरण हो रहा था

समोसा निगलने वाले से हमने पूछ लिया
बताया कि पेशे से हूँ फेसबुकिया
समझा, आप ताक-झाँक करते हैँ
समय खुशी से बरबाद करते हैँ

नहीँ, नहीँ मैँ रिपोर्टर भूतिया हूँ
शक्ल से ही खूफिया हूँ
बकवास सुन कर अहसान किया है
समझा, आपने काम महान किया है।

अपना सीना ठोक कर ऐलान किया
हमेशा सच कहता हूँ, सब गलीज़ हैँ।
दोहराया, पुराने बदतमीज़ हैँ।

मिला हमेँ कोई साहसी समीक्षक
समाज मेँ शुचिता का रक्षक
हमने दोहराया आप मेँ ताकत है
खूब गाली देने की कूव्वत है।

शायद कहा था सम्पादक बना हूँ
समझा कि एक आँख का काना हूँ
अच्छा, आप आधा ही देख पाते हैँ!
बाकी सच को दबाते हैँ?

एक आँख को दबाए हुए
पत्रिका मेँ विमर्श चलाए हुए
आन्दोलन की पीठ थपथपाए हुए
धीरे-धीरे बैंक बैलन्स बढ़ाता हूँ
जी, मैँ पत्रकार कहलाता हूँ।
दोहराया, नैतिक बीमार फरमाता हूँ।

आलोचना का महत्त्वपूर्ण नुस्खा देता हूँ
मैँ कथ्य को अनदेखा कर देता हूँ।
कह दिया है, अशुद्धियोँ की भरमार है।
व्याकरण के साथ खिलवाड़ है।
गलत समझे थे कि आप प्रोफेसर हैँ
पता चला कि काबिल प्रूफ रीडर हैँ।

परिचय यह दिया कि राष्ट्रवादी हूँ
हमने समझा, भीड़ का सङ्गी-साथी हूँ!
बताया ऐँठे हैँ, धर्मनिरपेक्ष हैँ, व्यस्त हैँ।
दोहराया कि अल्पसङ्ख्यकपरस्त हैँ!

प्रकाशक थे, मञ्च पर लगे कहने
हमने गढ़े साहित्य के गहने!
हम समझे कि क्या वार किया
मेहनत का हक़ मार लिया!

बेबाकी से मञ्च से दहाड़ा
मैँ ठहरा समलैङ्गिक बेचारा!
समझा, वासना आपकी उदात्त है
सदी की यही महत्त्वपूर्ण प्यास है!

बेचारगी का ढोल पीटता हूँ
सितमोँ को लेखा रखता हूँ।
अच्छा, आप दुनिया के पहले बेचारे हैँ
केवल आप ही सितमोँ के मारे हैँ!

अधिकार माँगता हूँ, छीन लूँगा
बसोँ-रेलोँ को आग सङ्गीन दूँगा
इतना ही नहीँ, तोड़ दूँगा, फोड़ दूँगा
दूसरे विचार पर बाँह मरोड़ दूँगा।

हूँ मैँ विश्वविद्यालय का छात्र नेता
समझा, ठहरे आप अधकचरा विक्रेता!

युवा कवियोँ का आया झुण्ड
शीलरहित, विचाररहित नरमुण्ड।
मक्कारोँ के सिर चढ़ाए हुए
बलि के नए बकरे बनाए हुए।

प्रतिवाद ही अन्याय है
हम सबकी समर्थित राय है।
फूहड़ता हमारा नारा है
कवियों की यही नई धारा है।

ख़राब बोलोगे तो जीभ काट लेँगे
तुम क्या समझे थूका चाट लेँगे?
हिंसा और प्रतिहिंसा ही सङ्घर्ष है
मनमानी ही हमारा विमर्श है।

हमनेँ दूर से प्रणाम किया
याद अपना काम किया
समझ गए थे कान मेँ खराबी है
उजाले मेँ जँचवाना होशियारी है
इलाज़ के लिए चले आए
आप ही अब कुछ बताएँ।

वे बोले, हमेँ आपकी बड़ी चिन्ता है
भीड़ जज्बाती है और आप अभी जिन्दा हैँ!
कितना लिखते हैँ, मर क्योँ नहीँ जाते।
हम आपकी भी अर्थी उठाते!

उल्टा कहने वाले, क्योँ घबराता है?
बल प्रयोग से सच सामने आता है।
आस्तीन अपनी चढ़ा कर वह बोले
दुनिया मेँ देखभाल कर रह भोले।

देखो ठीक से, यह वकील का डेरा है
आँख ने भी तेरा साथ छोड़ा है!
पर इससे क्या, बच जाओगे?
मुकदमे चलेगा, फिर पछताओगे!

हम वहाँ से सरपट भाग लिए
होठोँ पर पट्टी अपने साट लिए!

यदि इस हाल पर आपको अफसोस है
हम कहते हैँ आपका ही यह दोष है।
दिमाग दरअसल हमारा ख़राब है
यह ख़राब कविताओँ का बाप है।

[३] हो रही थी

नदी पर बारिश
घाट पर चहल पहल
आँखोँ की साजिश
दिल मेँ मीठी हलचल

यादेँ पुरानी
गुड़िया की शादी
एक प्रेम कहानी
हमारी बरबादी

सालोँ बाद मुलाकात
बिछुड़ने की नादानी
पुलकित चित और गात
फिर वही कहानी

वही बेड़ियाँ पुरानी नयी
इस तरह खत्म कहानी

[४] और दिल


नीले नभ मेँ
काले बादल
रूप बदलते
हिल-मिल
और दिल

सूरज ढँकते
चन्दा छुपाते
झट उड़ जाते
श्यामल स्नेहिल
और दिल

काली लटाएँ
बूँदे समेटी
फिसलती जाती
झिड़की प्रेमिल
और दिल

थरथर काँपती
पलकेँ मीँजती
भीगती जाती
तन्वी कोमल
और दिल


छुट्टियाँ सारी
बीतती जाती
वापस जाकर
रातेँ बोझिल
और दिल

[५] भादो की तरह


जिक्र छिड़ा उनका यादोँ की तरह
छुप गया आफताब भादो की तरह

दौलत वाले निकले नामुरादोँ की तरह
खत्म जिनके उजाले भादो की तरह

उनकी बातेँ उनके वादोँ की तरह
जैसे कपड़े कोरे भादो की तरह

जिद है अपनी फौलादोँ की तरह
दिल है कि रोता भादो की तरह

[६] रोए जा रहा था

उसने मुझे इसलिए ठुकरा दिया था क्योँकि
मैँ कमबख्त रोए जा रहा था
कि मेरे पास न पैसा है न बङ्गला है
न गाड़ी है न घोड़ा है
न नौकर है न चाकर है
न जुनून है न सुकून है
न इल्हाम है न पैगाम है
न इज्जत है न शोहरत है
न अकल है न काबिलियत है
न ताकत है न किस्मत है

तबसे उसने जाने से पहले
मुझसे कहा था कि
मैँ तुम्हेँ एक जादुई शीशा देती हूँ
जिसमेँ तुम्हेँ आने वाली जिन्दगी
ठीक-ठीक नज़र आ जाएगी

मैँने उस शीशे मेँ देखा कि
आने वाले दिनोँ मेँ
पैसा है बङ्गला है
गाड़ी है घोड़ा है
नौकर है चाकर है
जुनून है सुकून है
इल्हाम है पैगाम है
इज्जत है शोहरत है
अकल है काबिलियत है
ताकत है किस्मत है

सब कुछ है पर वह नहीँ
और मैँ लगातार
रोए जा रहा था।

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