जानकी पुल – A Bridge of World's Literature.

आज पढ़िए प्रचण्ड प्रवीर की यह पोस्ट-

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कल की बात – २५९

कल की बात है। जैसे ही मैँने रेस्तराँ मेँ कदम रखा, रिसेप्शन पर खड़े कर्मचारी ने मुझे टोका, “सर क्या आपकी कोई बुकिङ् है?” मैँने कहा, “नूर जहाँ के नाम से दो लोग के लिए टेबल रिजर्व होगी।“ कर्मचारी ने चुस्ती से कहा, “जी, वे आ गयीँ हैँ। आप उधर चले जाइए।“
मेरी नज़र जहाँ पड़ी वहाँ मैँ देखता रह गया नूर जहाँ के बेपनाह हुस्न को। मैँनै इससे पहली उसकी तस्वीर डेटिङ् ऐप पर देखी थी, लेकिन बेजान हुस्न में कहाँ रफ़्तार की अदा, इनकार की अदा है न इक़रार की अदा, कोई, कोई लचक भी ज़ुल्फ़-ए-गिरहगीर में नहीं।  इसलिए उसका दीदार होते ही मैँ घबरा गया। घबराने का कारण यह था कि मैँ एक मामूली सफेद कॉलर वाला भूमिहीन मजदूर और कहाँ वो मलिका-ए-हुस्न। हरे रङ्ग की पोशाक पर उसने स्लेटी रङ्ग का कोट पहना था। गले में रङ्ग-बिरङ्गे पत्थरोँ की माला। घुँघराले बाल भूरे और कत्थई रङ्ग में बल खाते हुए। तीखी नाक और तराशे हुए होँठ। इतना तो मालूम ही था कि उसका नाम नूर जहाँ नहीँ है और उसे भी मालूम था कि मेरा नाम कविराज नहीँ है। फिर भी उसकी मेहरबानी हम पर हुई और हमेँ जिन्दगी मेँ पहली बार किसी डेटिङ् ऐप से एक अदद डेट मिलने की कामयाबी हासिल हो रही थी।
यह सच था कि मैँ उसके हुस्न से चोट खा चुका था। चोट खाया आदमी आम तौर पर क्या करता है? यही कि वह मौका देखकर पलट वार करता है। वह अपनी कमजोरी छुपाने के लिए कुछ ऐसी हरकतेँ करेगा ताकि लोग समझे कि उसमेँ भी दम है और चोट का उस पर कोई असर नहीँ पड़ा है। बहुत से आदमी हुस्न से चोट खा कर, या कहा जाए हार कर फब्तियाँ कसने लगते हेँ या अकारण हुस्नवालोँ से झगड़ा मोल लेना चाहते हैँ। मैँ उनमेँ से नहीँ था जो कि इस तरह अपनी हार मान जाए। नूर जहाँ ने जब मेरा अभिवादन किया तो मैँने भी मुस्कुरा कर जवाब दिया।
उसने मेनू देख कर कुछ ड्रिंक्स ऑर्डर किए फिर मुझे पूछने लगी, “आप कैसे आए? आपको आने मेँ कोई तकलीफ तो नहीँ हुयी!” मैँने कहा, “मेट्रो से। इतनी दूर से मुझे मेट्रो से आना ठीक लगता है। आप कैसे आयीँ।“ नूर जहाँ ने कहा, “मैँ ज्यादा दूर नहीँ रहती। यहाँ पार्किङ् की बड़ी समस्या है। ड्राइवर ने कहीँ दूर पार्किङ् मेँ गाड़ी लगायी है। आपके आने से दो मिनट पहले ही आयी। वैसे मेट्रो भी दूर से आने जाने के लिए ठीक है।“
मैँ समझ गया कि मैडम ने कभी मेट्रो मेँ सफर नहीँ किया है वरना पता होता कि भीड़ के समय बैठना तो दूर बड़ी मुश्किल से खड़े होने की जगह मिलती है। वह तो शुक्र है कि मेट्रो है, वरना अपनी बदहाली नुमाया हो जाए यह तो किसी तरह ठीक नहीँ होगा। मैँ जल्द से जल्द उस पर हावी होना चाहता था। मैँने कहा, “एक बात कहूँ।“ उसने मुझे प्रश्नवाचक निगाहोँ से देखा। मैँने कहना शुरू किया, “आपकी यह खूबसूरती अनोखी नहीँ है। आपकी नाक और आपके होँठ मलयाली लड़कियोँ जैसे हैँ। आपके चेहरे की चमक और आपके आँखोँ का काजल बताता है कि आप दिल्ली से कम और केरल से अधिक हैँ।“
नूर जहाँ हैरत से मुस्कुरायी और बोली, ”लोग कहते हैँ कि मेरी शकल मेरी मौसी जैसी है। आप ठीक कहते हैँ। मेरी माँ केरल से थी।“ मैँने मन ही मन ईश्वर को धन्यवाद दिया कि पहला किला फतह  हो गया है। नूर जहाँ ने अपने लिए शरबत और मेरे लिए जूस मँगाया था। लोग कहते हैँ, पता नहीँ सच है या झूठ कि नूर जहाँ के हलक से जब शरबत का घूँट उतरता था तो गले से लाल धारा नीचे उतरती दिखती थी। पर यह मेरी नूर जहाँ के लिए सच था। किसी नन्हीँ चिड़िया की तरह उसका कण्ठ पारदर्शी जान पड़ता था। मुझे ऐसे देखता देख उसने मुझे टोका, “आप ऐसे क्या देख रहे हैँ?” मैँ झेँप गया। चकोर चाँद को देखे और चाँद पूछ ले कि क्या देख रहे हो तो चकोर क्या कहेगा? बस इतना कह पाया, “ओ, शी डोथ टीच द टॉर्चेज टू बर्न ब्राइट।“ उसने भौँहेँ चढ़ा कर पूछा, “मतलब?” मैँने बताया कि शेक्सपीयर के मशहूर नाटक ‘रोमियो और जूलियट’ मेँ जब पहली बार जूलियट का दीदार होता है तो रोमियो बरबस कह उठता है कि वो तो मशालोँ को तेज जलना सिखाती है।“
नूर जहाँ ने मुस्कुराते हुए कहा, “आप सच मेँ कविराज मालूम होते हैँ। मेरा डेटिङ् ऐप को ले कर अभी तक अनुभव अच्छा नहीँ रहा है। मैँ शादीशुदा हूँ और बहुत खुश हूँ। पर मैँ चाहती हूँ कि नए लोग से मिलूँ और नई-नई बातेँ जानूँ। पर…”
“पर इसमेँ उन लोग का कुसूर क्या है जो आपसे केवल दोस्ती नहीँ चाहते। आपने क्या कभी आईना नहीँ देखा?” मेरे सवाल पर नूर जहाँ ने कहा, “वे सब क्या चाहते हैँ, वे बेकार की बाते हेँ। मैँने अपनी प्रोफाइल मेँ लिखा है ना कि मैँ किसी तरह का हुक-अप नहीँ चाहती। जापानी-कोरियन सिनेमा देख-देख कर मेरा मन हुआ कि किसी जापानी या कोरियन से मिलूँ। यहाँ दिल्ली मेँ बहुत से कोरियन और जापानी हैँ। एक से मिली भी। लेकिन वो इतना बेवकूफ था कि क्या बताऊँ। बात करना तक नहीँ आता था।“
“और उसके अलावा?” मैँने पूछा। नूर जहाँ कहने लगी, “मैँने एक जापानी लड़की को दोस्त बनाया। उसने पूछा कि मेरा क्या इरादा है। मैँने कहा कि मैँ नए लोग से मिलना चाहती हूँ, बस। उसने पता है क्या जवाब दिया? वह बोली डेटिङ् ऐप पर तुम केवल दोस्ती चाहती हो? सोचो, वह लड़की…”
मैँने आश्चर्य से पूछा, “दुनिया को ले कर आप इतनी भोली है? आपको क्या लगता है कि आपको यहाँ धर्मराज युधिष्ठिर मिलेँगे?” नूर जहाँ ने उतनी बेफिक्री से कहा, “क्योँ इसी दुनिया से तुमसे मुलाकात हो रही है? हो रही है या नहीँ?” सुन कर मैँ कुछ सकुचा गया। मैँने कहा, “आप बड़ी जल्दी भरोसा कर रही हैँ हम पर। आपको डर नहीँ लगता?”
“तुम से डरने वाली कोई बात नहीँ है। तुम कोई नुकसान नहीँ कर सकते!” कह कर नूर जहाँ डिनर मेनू देखने लगी। मैँने सहमते हुए पूछ लिया, “आपको इतना यकीन कैसे है?” मेनू देखने मेँ मशगूल नूर जहाँ ने कहा, “एक औरत जितनी जल्दी आदमी को परख लेती है उतनी तेजी से मर्द औरतोँ या मर्द दूसरे मर्दोँ को नहीँ परख पाते।“
मुझे लगा कि यह औरत मुझे मात दे सकती है। मैँ इतनी जल्दी हारने को तैयार नहीँ था। सच यह था कि अब मैँ दोहरी चोट खा चुका था, पहले उसके रूप से और अब उसकी बुद्धि से। इसलिए मैँ सँभल कर चाल चलना चाहता था। हमने इधर-उधर की बातेँ करते हुए डिनर किया। उसे चाइनीज खाना पसन्द था और मुझे दाल रोटी। डेजर्ट मेँ वह गुलाबजामुन पसन्द करती थी और मैँ जलेबी। डिनर के बाद उसने बिल का भुगतान किया और फिर हम बाहर निकल खुले मेँ आ गए।
बाहर चाँदनी छिटकी हुयी थी। मॉल की जगमगाती रोशनी मेँ वह और भी खूबसूरत लग रही थी। मैँने नूर जहाँ से कहा, “आपने क्या सोचा है? क्या हम फिर मिल सकते हैँ?” नूर जहाँ ने उल्टे मुझसे पूछा, “तुम सच-सच बताओ कि तुम क्या चाहते हो?” मेरा दिल धड़क कर रह गया। कोई सचाई का वास्ता दे तो शरीफ आदमी सच बोलने के अलावा क्या कर सकता है? जैसे मैँ कटघरे मेँ खड़ा हूँ और मेरे हाथोँ मेँ गीता सौँप दी गयी हो, मैँ बेबस हो कर बोल उठा, “मैँ आपके मोहब्बत मेँ गिरफ्तार हो गया हूँ। आपसे प्यार करता हूँ। लेकिन… लेकिन मेरा प्यार वैसा नहीँ है कि जिसकी मंजिल साथ रात गुजारने की हो। आप समझ सकती हैँ कि…।“ मैँ चुप हो गया। नूर जहाँ ने मेरी कमजोर नस पकड़ ली थी और मैँ उससे मात खा चुका था। अब देखना बाकी यह रह गया था कि वह मुझे क्या सज़ा सुनाती है।
नूर जहाँ ने कहा, “मैँ तुमसे अब नहीँ मिलूँगी। अगर तुमने यह भी कहा होता तो कि तुम केवल रात गुजारना चाहते हो, उस सूरत मैँ तुम्हेँ ईमानदार समझती और फिर भी नहीँ मिलती। अफसोस यह है कि इतने सालोँ मेँ भी तुम इतना नहीँ समझते कि प्यार करने मेँ बहुत दर्द होता है। बहुत तकलीफ होती है। तुम क्योँ तकलीफ झेलना चाहते हो? और मैँ क्योँ तकलीफ़ झेलूँ? बताओ?”
मैँ घायल शिकार की तरह नूर जहाँ को अकेले जाते देखता रहा। उन क्षणोँ मेँ मुझे लगा कि वह रोमन देवी अलौकिक सुन्दरी डायना है, जो कि शिकार, जङ्गल और चन्द्रमा की देवी है। उसने रहम खा कर मुझे जीता छोड़ दिया था।
ये थी कल की बात!

सन्दर्भ:
१. गीतकार- साहिर लुधियानवी, चित्रपट – ताजमहल (१९६३)

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2 Comments

  1. नवरत्न on

    फिर भी…वह मशालों को….को एक मुक्कमल कहानी तो नहीं ही माना जा सकता… हालांकि ये घटनाक्रम आगे बढ़ाकर कहानी को पूरा बढ़ाया जा सकता है….प्र.प्र. कैसे चूके कहा नहीं जा सकता।💐💫✨🌟🌟🙏

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