जानकी पुल – A Bridge of World's Literature.

कल की बात है। जैसे ही मैँने महफिल मेँ कदम रखा, गौरव त्यागी मिल गए। गौरव त्यागी का बहुत गौरवशाली अतीत है। पिछली कम्पनी मेँ भी हमारे साथ थे, इस कम्पनी मेँ भी हमारे साथ हैँ। एक सहकर्मी के जन्मदिन की पार्टी मेँ दोपहर के खाने पर हम सब इकट्ठे हुए थे। गौरव त्यागी हमेँ देखते ही गले से लगे। साथ खड़ी महिला सहकर्मी से हमारा परिचय कराने लगे। हम उन देवी जी को जानते नहीँ थे और उनके सामने अपनी हो रही तारीफ से हम शर्मिन्दा हुए जा रहे थे। चुनाँचे हमने बात का रूख मोड़ दिया और पुरानी यादोँ के तारोँ को छेड़ दिया। हमने कहा, “तारीफ के लायक तो केवल सोमेश मल्होत्रा हैँ। एक बार पिछली कम्पनी की पार्टी मेँ उन्हेँ सबसे हैण्डसम आदमी का खिताब दिया गया था। कहा जाता है कि वे लड़कोँ के साबुन के विज्ञापन के लिए बने सुपरमॉडल हैँ।“ देवी जी की तरफ देखते हुए हमने बातोँ को विस्तार दिया, “गौरव त्यागी और सोमेश मल्होत्रा पड़ोसी हैँ। पहले साथ काम भी करते थे। दोनोँ मेँ इतनी मोहब्बत है कि गाली-गलौज, लात-जूते का भी बुरा नहीँ मानते। क्योँ मैँ सच कह रहा हूँ न?”
गौरव त्यागी मुस्कुराए और कहने लगे, “सोमेश सर को बहुत दिनोँ से जानता हूँ। मैँने जम्मू मेँ पढ़ाई की है। उन दिनोँ वे जम्मू के जङ्गलोँ मेँ निशानेबाजी करते थे।“ मैँने आश्चर्य से पूछा, “कहीँ उन्होँने जङ्गल की झील मेँ आपके पानी पीने की आवाज़ सुन देख कर शब्दभेदी बाण तो नहीँ चला दिए थे?” गौरव त्यागी ने झेँप कर कहा, “नहीँ सर, वो बाण नहीँ बन्दूक रखते थे।“ इतना कह कर गौरव त्यागी जी ने फिर से हमारी तारीफोँ के पुल बाँधने शुरू किए। हम शर्मसार हो कर पानी-पानी हो रहे थे और वह सुन्दर देवी जी हमेँ देख कर मुस्कराए जा रही थी कि इन झूठी बातोँ मेँ क्या रखा है! इसलिए हमने भी बदला लेने की ठानी।
पार्टी मेँ ही नज़रेँ बचा कर हमने सोमेश मल्होत्रा को फोन लगाया। “नमस्ते सर, आपने इतनी बड़ी राज की बात हमसे छुपायी।“ हमारे ऐसा कहने पर सोमेश मल्होत्रा चौँक उठे। हमने आगे कहा, “हम तो यही जानते थे कि आप हॉकी के खिलाड़ी हैँ। साथ ही बहुत अच्छे मुक्केबाज हैँ।“ सोमेश मल्होत्रा की छाती गर्व से फूल गयी। उन्होँने फरमाया, “चालीस को हो गया हूँ पर अभी भी चौबीस साल के लड़कोँ को हॉकी के मैदान मेँ पानी पिला देता हूँ। चार-चार हॉकी स्टिक अभी भी पड़ी है मेरे पास।“ मैँने कहा, “लेकिन हमने सुना कि आप शिकारी भी थे। जम्मू के जङ्गलों मेँ आप धोती पहन के घोड़े पर सवार होके अपने रिवाल्वर से खरगोशोँ का शिकार किया करते थे।“
सोमेश मल्होत्रा चौँक उठे, “ये किसने कहा आपसे?” हमने भोलेपन से कहा, “इस जन्मदिन की पार्टी मेँ बहुत चर्चा चल रही थी इस बात पर कि आप शब्दभेदी बाण भी चलाया करते थे। ऐसे मेँ ही आप किसी ग़रीब की जान ले लेते लेकिन उसकी जान बच गयी।“ सोमेश जी कुछ गरम होते हुए बोले, “ये पक्का त्यागी ने बताया होगा आपको। यह सब पुरानी बात है। छोड़िए।“ सोमेश जी आराम करने के मूड मेँ लग रहे थे। उन्होँने ज्यादा बात नहीँ की और फोन रख दिया।
हमने इस बातचीत का मजमून कपिल गुरुरानी को बताया। कपिल हम लोग से कुछ आठ-नौ साल छोटा लड़का है। वह भी पिछली कम्पनी मेँ हमारे साथ काम करता था। उसने इस बात मेँ बहुत दिलचस्पी ली। बात दिलचस्पी तक टिकी रहती तो ठीक थी। वह इससे बढ़ कर जायके तक पहुँच गयी। उसने लस्सी का गिलास हाथ मेँ लिया और वहीँ टेबल पर बैठे-बैठे स्पीकर पर सोमेश को फोन लगाया। “अरे सर जी, ये क्या सुन रहा हूँ मैँ?” सोमेश सर कुछ अचकचाये, “क्या सुन रहे हो तुम?” कपिल ने कहा, “सुना है कि आप जम्मू के जङ्गलों मेँ धोती पहन के घोड़े पर चढ़ कर चिड़िया मारने जाया करते थे।“ सोमेश सर एकदम गरम हो गए , “मैँ और चिड़ीमार? किसने कहा तुमसे?” कपिल बोला, “सर क्या बताऊँ। हर तरफ यही चर्चा है।“
सोमेश सर बौखला से गए, “धोती नहीँ, जीन्स-पैण्ट और शर्ट पहन के शिकारी की तरह शिकार करने जाता था। वह भी अपनी खुली जीप मेँ।“
“सर, सुना तो यही है कि आप चिड़िया मारते थे।“ कपिल को जवाब देते हुए सोमेश सर की मर्दानगी कुछ आहत हो गयी, “तीतर के साथ-साथ जङ्गली सुअर का भी शिकार किया है। वह भी राइफल से। दुनाली अभी भी है मेरे पास। मेरे बारे मेँ ये उल्टी बातेँ कौन फैला रहा है?” कपिल ने मिर्च लगा कर कहा, “सुना तो हमने गौरव त्यागी से है। यहाँ कुछ देवियों और सज्जनों के बीच आपकी बहादुरी की चर्चा कर रहे थे। वैसे सुना है कि आपके बॉक्सिङ् के दस्तानोँ को चूहोँ ने काट दिया है?” सोमेश सर गुस्से मेँ गुर्राये, “तू रख फोन। अभी रख।“
ऐसी पार्टियों मेँ सबसे ज्यादा तकलीफ होती है, हमारे प्रिय मित्र कृष्ण भक्त अर्जुन भारद्वाज को। अर्जुन भारद्वाज भी पिछली कम्पनी मेँ हमलोग के साथ थे। वैष्णव होने के कारण वे कहीँ बाहर खाना नहीँ खाते। लेकिन सामाजिक विवशता से इन जगहोँ पर वे आते हैँ और कहीँ किनारे बैठ कर भगवद् भजन करते हैँ। ऐसे ही वे कोने मेँ आँखेँ बन्द कर के बैठे मानसिक जप मेँ लगे थे। हम उनके बगल मेँ बैठ गए और जोर-जोर से ‘राधे, राधे’ की जाप करने लगे। उन्होँने धीरे से अपनी बाँयी आँख खोली और हमारी तरफ मुड़ कर बोले, “राधा वही हैँ जो कृष्ण हैँ। सेम टू सेम।“ मैँने उनके चरण छू कर कहा, “जी प्रभु।“ हमारे पैर छूने से वह कुछ उछल गए। कहने लगे, “हम जैसे पापियोँ के पैर छूने से क्या होगा। नटवरलाल की शरण मेँ जाइए। वहीँ से मुक्ति होगी।“
मैंने भाव-विह्वल हो कर कहा, “प्रभु, आप जैसे भक्तोँ के साथ से ही यह घना अन्धकार मिटेगा। आपकी ही सङ्गति से गोलोक का मार्ग खुलेगा।“ अर्जुन जी हमारी बातोँ से बहुत प्रसन्न हुए। हमने आगे कहा, “प्रभु, हम जैसे भटकोँ को आपका ही सहारा है। यहाँ आज सुनने मेँ जो आ रहा है, वही आपको बताना चाहता हूँ। आपके पुराने मित्र को आपके मार्गदर्शन की आवश्यकता है।“
अर्जुन जी हमारी तरफ शङ्का से देखा और पूछा, “किसे?” हमने कहा, “प्रभु, कोई और नहीँ अपने मित्र सोमेश मल्होत्रा।“ अर्जुन जी सोमेश जी के बहुत प्रिय मित्रोँ मेँ से एक थे। नाम सुनते ही हड़बड़ा गए। कहने लगे, “क्या हुआ सोमेश को?” हमने कहा, “क्या बताऊँ प्रभु, आज इस महफिल मेँ सोमेश जी के अतीत पर प्रकाश डाला गया। पता चला कि पहले वो चिड़ीमार थे। गाँव मेँ जब रहते थे, तब वे धोती पहन के भैँसे की सवारी करते हुए वह जम्मू के जङ्गलों मेँ तीतरोँ को मारा करते थे।“
“हरि बोल!“ अर्जुन जी के दोनोँ नेत्र द्रवित होकर करुणा से फैल गए। हमने उनसे विनती की, “प्रभु, आप अगर उनको कुछ समझाएँ तो वे अपने जघन्य पापोँ का प्रायश्चित कर लेँगे।“ अर्जुन जी ने सिर हिला कर आश्वासन दिया, “अवश्य, अवश्य!“
कुछ देर बाद अर्जुन बाल्कनी मेँ फोन पर बात करते नजर आए। कपिल और हम दोनों वहाँ पहुँच कर चुपके से उन्हेँ सुनने लगे। “सोमेश जी, हरि बोल। जी, ये मैँ क्या सुन रहा हूँ? प्रभु, सुना कि आप पहले धोती पहना करते थे। धोती पहनना तो ठीक है, पर सुना कि आप बकरे की सवारी करते थे। बकरे पर बैठ कर आप जम्मू के जङ्गलों मेँ गुलेल से कौओँ का घोँसला गिरा देते थे? प्रभु, अज्ञान मेँ आप बहेलिए का काम किया करते थे, किन्तु ईश्वर बड़े दयालु हैँ! आपके सभी पापोँ को क्षमा कर देँगे। आज तक आपने जितनी गौरयाओँ, जङ्गली मुर्गियोँ और कबूतरोँ को उछल-उछल कर, कूद-फाँद कर पकड़ा है, बेचा है या मारा है, उन सभी पापोँ को धोना होगा।…… किसने बताया का क्या मतलब? …. यहाँ पर यही चर्चा चल रही है।… हरि बोल!“ अचानक से उनकी नज़र हम दोनोँ पर जा पड़ी। अर्जुन भारद्वाज कुछ निराशा से बोले, “सोमेश जी ने फोन काट दिया। बड़े गुस्से मेँ लग रहे थे। कह रहे थे कि वहीँ आ रहा हूँ।“
तूफान के आने से पहले बचाव ज़रूरी है। सुरक्षा के मद्देनजर कपिल और हम फौरन वहाँ से रवाना हो गए।

            कुछ देर बाद हमेँ अर्जुन जी का फोन आया और वहाँ के हाल का सीधा प्रसारण प्रारम्भ हुआ। “प्रभु, माहौल मेँ बहुत गर्मी छा गयी है। एयर कण्डीशनर काम करना बन्द कर चुका हो, जैसे। प्रभु, यहाँ सोमेश मल्होत्रा नाम की आँधी आयी है। चौखट पर आ खड़े दोनोँ हाथोँ मेँ बॉक्सिङ् के लाल रङ्ग के ग्लोव्स पहने दोनोँ कन्धो पर हॉकी के स्टिक लिए हुए लाल बरमुडा और बिना बाजू वाली लाल टी-शर्ट धारण किए हुए, शिकारी का तेवर लिए सोमेश मल्होत्रा मानसून के घने-काले बादलोँ की धमक से आगे ही आगे बढ़ते ही चले जा रहे हैँ। जिस तरह महाभारत मेँ सात्यकि का रथ तेजी से कौरवोँ को चीरता गया था, उसी तरह मेहमानोँ को तितर-बितर करते हुए सोमेश मल्होत्रा सीधे महफिल मेँ मगन गौरव त्यागी के पास पहुँच चुके हैँ। जिस तरह युद्ध छिड़ने से पहले श्रीकृष्ण शान्ति वार्ता के लिए आगे आए थे, एक मनोरम सुन्दरी सोमेश जी को शान्त करने के प्रयास हेतु आगे आ चुकी हैँ और उनकी हॉकी स्टिक अपने हाथोँ ले चुकी हैँ। किन्तु जिस तरह भीम के गदे ने दु:शासन पर जोरदार प्रहार किया था, ठीक उसी तरह बायीँ भुजा का एक जबरदस्त शब्दभेदी मुक्का गौरव त्यागी की दायीँ कनपटी पर पड़ चुका है। ओहो, जिस तरह अनुशासन पर्व मेँ शरशय्या पर पड़े भीष्म के उपदेश ने दग्ध युधिष्ठिर के चित्त को शान्त किया था, उसी तरह अब रूपवती देवियोँ ने अपनी शीतल वचनोँ से और चञ्चल चितवनोँ से उद्धत सोमेश मल्होत्रा को एकदम शान्त कर दिया है। जिस तरह बाँकेबिहारी के चारोँ तरफ गोपियाँ स्वयँ ही जुट जाती थीँ, उसी तरह सोमेश मल्होत्रा के मनोहारी रूप से आकृष्ट सभी उपस्थित देवियाँ मन्त्रमुग्ध हो कर उन्हेँ घेरे खड़ी-खड़ी मधुर-मधुर बातेँ करने लगी हैँ। फलस्वरूप सोमेश मल्होत्रा अब स्थिरचित्त हो चुके हैँ और मन्द-मन्द मुस्कुरा रहे हैँ। हरि बोल!“

            शेर से शाइरी से डरते हैँ,  
            कम-नज़र रौशनी से डरते हैँ


            लोग डरते हैँ दुश्मनी से तिरी,
            हम तिरी दोस्ती से डरते हैँ

ये थी कल की बात !

सन्दर्भ:
            १. हबीब ज़ालिब (१९२८-१९९३) की ग़ज़ल से

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प्रचण्ड प्रवीर की लघुकथा शृङ्खला कल की बात एक विशिष्ट विधा में है, जिसके हर अंक में ठीक पिछले दिन की घटनाओं का मनोरंजक वर्णन है। आपबीती शैली में लिखी गयी ये कहानियाँ कभी गल्प, कभी हास्य, कभी उदासी को छूती हुयी आज के दौर की साक्षी है। कहानीकार, उसके खुशमिजाज सहकर्मी, आस-पड़ोस में रहने वाले चुलबुले बच्चे, भारतीय समाज में रचे-बसे गीत और कविताएँ पारम्परिक मूल्यों के साथ विविधता में बने रहते हैं। कई बार छोटी-छोटी बातों में गहरी बात छुपी होती है, ऐसी ही है कल की बात ! इसे पढ़ कर आप भी कह उठेंगे कि यह मेरी भी कहानी है। कल की बात हमारी ही तो बात है!
            इस शृङ्खला की तीन प्रकाशित पुस्तकेँ नीचे दिए गए लिङ्क से खरीदी जा सकती हैँ –

  1. कल की बात :  षड्ज (Kal Ki Baat : Shadj – 2021)
  2. कल की बात : ऋषभ (Kal Ki Baat : Rishabh- 2021)
  3. कल की बात : गान्धार (Kal Ki Baat : Gandhar – 2021)

 

 

 

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