भरत तिवारी की जादुई तस्वीरों के हम सब प्रशंसक रहे हैं. उनकी गज़लों की रवानी से भी आप प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाएंगे. समकालीन हालात को लेकर कुछ मौजू शेर. रविवार की सुबह आपके लिए- प्रभात रंजन
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मजबूत थी इमारत, कमज़ोर हो रही है
फिर तोड़ने की कोशिश हर ओर हो रही है
अपने लहू की गर्मी, ठंडी न होने देना
माहौल में तरावट, बा-ज़ोर हो रही है
ये जो खड़े हुए हैं, हाथों को अपने जोड़े
इनके ज़ेहन में बातें कुछ और हो रही हैं
अपने पड़ोस को तुम, अपना ही घर समझना
घर लूटने की कोशिश पुरज़ोर हो रही है
तोड़ो भरम ये अपना, जागोगे या मरोगे
सोये भरत बहुत दिन, अब भोर हो रही है
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इन हुक्मरानों पर ज़रा सा भी भरोसा क्या करें
इनको खबर खुद भी नहीं, कब ये तमाशा क्या करें
शर्म ओ हया से दूर तक, जिसका न हो कुछ वास्ता
वही आबरू-ए—मुल्क का, जब हो दरोगा क्या करें
इक नौकरों का शाह है, इक बादशाह बेताज़ है
दोनों का मकसद लूटना, अब बापदादा क्या करें
काला बना पैसा हमारा, भेज दे स्विस बैंक में
रोया करें हम प्याज को, खाली खजाना क्या करें
नाटक दिखाते हैं तुझे, सब टोपियों का खेल है
सब के इरादे एक से, बस अब इशारा क्या करें
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किस्मत है अब सितारा तुम जो मुझे मिले हो
सब कुछ लगे है प्यारा तुम जो मुझे मिले हो
टूटा वजूद मेरा, टुकड़े तमाम बिखरे
जुड़ने लगे हैं यारा तुम जो मुझे मिले हो
सारे का सारा आलम अपना लगे है मुझको
क्या साथ है तुम्हारा तुम जो मुझे मिले हो
लिखना मुहाल बिलकुल गो गर्द में क़लम थी
उसको है अब सहारा तुम जो मुझे मिले हो
वो ताज़गी मिली है पहले न थी कभी जो
मीठा है पानी खारा तुम जो मुझे मिले हो
अब देखिये ‘भरत’ को ठहराव मिल गया है
मैं ना रहा अवारा तुम जो मुझे मिले हो