कविता की मोजार्ट कही जाने वाली विश्वावा शिम्बोर्स्का का 89 साल की उम्र में निधन हो गया. पोलैंड की इस कवयित्री को नोबेल पुरस्कार भी मिला था. हिंदी में भी उनकी कविताओं के खासे प्रसंशक थे. अनेक कवियों-लेखकों ने उनकी कविताओं के अनुवाद किए. आज हम उनकी पांच कविताएँ प्रस्तुत कर रहे हैं. तीन कविताओं के अनुवाद किए हैं प्रसिद्ध आलोचक आशुतोष कुमार ने. दो कविताएँ कवि-कथाकार, पत्रकार, सलमान रुश्दी के उपन्यास ‘midnight’s children’ का बेहतरीन अनुवाद करने वाले प्रियदर्शन ने. इन अनुवादों को तत्परता से उपलब्ध करवाने के लिए हम दोनों के आभारी हैं. आशुतोष जी ने न केवल हमारा आग्रह स्वीकार किया बल्कि आधी रात तक अनुवाद करके कविताएँ भेजते रहे, अनुवादों की नोक-पलक दुरुस्त करते रहे. प्रियदर्शन जी ने अपनी रचनात्मकता से एक बार फिर जानकी पुल को गौरवान्वित होने का मौका दिया. शिम्बोर्स्का की एक कविता ‘under one small star’ का अनुवाद दोनों ने किया है और दोनों ही अनुवाद अपनी-अपनी रंगत में खास हैं. आइये शिम्बोर्स्का की कविताएँ पढते हैं.
यूटोपिया
अनुवाद- आशुतोष कुमार
वह द्वीप
जहां सब कुछ साफ़- शफ्फाक हो
पैरों तले ठोस धरती हो
पथ जहां भी हों
सुगम ही सुगम हों
झाडियाँ झुकी जाती हों
सबूतों के भार से वैध मान्यताओं के
वृक्ष खूब उगते हों
शाखें सुलझी- सुलझाई हों
कल्पनातीत काल से सीधे
आलीशान तने हुए
समझ के दरख्त में
आने लगते हों मौर
जैसे ही उस वसंत की आह्ट आने लगती हो
जिसे कहते हैं –‘पकड़ ली जड़‘ जगजाहिर की सुरम्य घाटी में
जितने घने वन
उतनी ही वनवीथियाँ प्रशस्त संशय ज्यों ही उमड़ें -घुमड़ें
उन्हे बहा ले जाएँ हवाएं
अनुगूंजें बिना बुलाये आयें
सब को दौड़ दौड़ समझाएं
दुनिया के सकल रहस्य दाहिनी ओर ‘अर्थ‘ की गुफा
और बांये को
‘पूर्ण विश्वासों ‘की
झील उमगता ऊर्ध्व को
तल से उठ कर
टलमल करता नील नील
‘परिपूर्ण सत्य ‘ दिखतीं हों सब चोटियाँ ‘अटूट निश्चय‘ की
उन से झांको तो
‘चीजों के सारतत्व‘ का क्या रमणीय दृश्य दिखता हो सब कुछ हो लेकिन टापू यह निर्जन है तट पर कुछ मिटते चरण चिह्न दिखते हैं
सब निरपवाद जाते समुद्र की ओर जाना
—बस यही मानवी क्रिया यहाँ फबती है
या लेना
नामुमकिन लौटने की डुबकी अथाह जीवन में .
जहां सब कुछ साफ़- शफ्फाक हो
पैरों तले ठोस धरती हो
पथ जहां भी हों
सुगम ही सुगम हों
झाडियाँ झुकी जाती हों
सबूतों के भार से वैध मान्यताओं के
वृक्ष खूब उगते हों
शाखें सुलझी- सुलझाई हों
कल्पनातीत काल से सीधे
आलीशान तने हुए
समझ के दरख्त में
आने लगते हों मौर
जैसे ही उस वसंत की आह्ट आने लगती हो
जिसे कहते हैं –‘पकड़ ली जड़‘ जगजाहिर की सुरम्य घाटी में
जितने घने वन
उतनी ही वनवीथियाँ प्रशस्त संशय ज्यों ही उमड़ें -घुमड़ें
उन्हे बहा ले जाएँ हवाएं
अनुगूंजें बिना बुलाये आयें
सब को दौड़ दौड़ समझाएं
दुनिया के सकल रहस्य दाहिनी ओर ‘अर्थ‘ की गुफा
और बांये को
‘पूर्ण विश्वासों ‘की
झील उमगता ऊर्ध्व को
तल से उठ कर
टलमल करता नील नील
‘परिपूर्ण सत्य ‘ दिखतीं हों सब चोटियाँ ‘अटूट निश्चय‘ की
उन से झांको तो
‘चीजों के सारतत्व‘ का क्या रमणीय दृश्य दिखता हो सब कुछ हो लेकिन टापू यह निर्जन है तट पर कुछ मिटते चरण चिह्न दिखते हैं
सब निरपवाद जाते समुद्र की ओर जाना
—बस यही मानवी क्रिया यहाँ फबती है
या लेना
नामुमकिन लौटने की डुबकी अथाह जीवन में .
![]() |
आशुतोष कुमार |
सब से विचित्र तीन शब्द
अनुवाद- आशुतोष कुमार
‘भविष्य‘
कहते कहते ही
भ
अतीत का हो चुका होता है
‘चुप्पी‘
कहते ही
टूट जाती है
और जैसे ही मैं कहती हूँ
‘कुछ नहीं‘
कुछ ऐसा रच देती हूँ
जो किसी ‘कुछ नहीं‘
का नहीं हो सकता.
अकेले नन्हे तारे के नीचे
अनुवाद- आशुतोष कुमार
क्षमा मांगती हूँ ‘संयोग‘ से, उसे ‘जरूरत‘ बताने के लिए
और ‘जरूरत‘ से, अगर भूल हो रही हो मुझ से
खुशी, मुझे माफ़ कर देना प्लीज़
यह सोचने के लिए कि तुम मुझ पर उधार थी
दिवंगतों, धीरज रखना
अगर धुंधलाती लगें स्मृतियाँ मेरी
समय से क्षमा मांगती हूँ
उस पूरी एक दुनिया के लिए
जो हर सेकेण्ड मेरे ध्यान से छूट जाती है
क्षमा मांगती हूँ बिसरी मुहब्बतों से
सोचने के लिए कि मुहब्बत
मैंने अभी शुरू की है
खुले हुए जख्मों, दिल पर मत लेना, कि कुरेदना बंद नहीं कर पाई अब तक
अदीठ गहराइयों से रोने वालों, क्षमा करना, कि
कामकाज का अपना रजिस्टर ही नहीं भर पाई अब तक
महज़ इसलिए कि सबेरे पांच बजे सोते रह गए
जो बैठे हैं प्रतीक्षालयों में, प्लेटफार्मों पर
उन सब से मुझे क्षमा मांगनी है
मुझे क्षमा करना, क्षत-विक्षत उम्मीद
कि हंसी मुझ से छूट नहीं पाती है
रेगिस्तानों मुझे माफ़ करना
कि कभी चम्मच भर पानी ले कर पास नहीं आती मैं
और बरसों से
जैसे के तैसे
इसी पिंजरे से
एक ही बिन्दु को अन्तरिक्ष में निहारते
बाज़,
तुम भी,
जरूर मुझे कर देना माफ़,
चाहे यही पता चले आखिरकार
कि भूसा भरा हुआ था तुम में.
गिराए गए दरख्तों,
मैं अपनी मेज के चार पैरों के लिए
तुम से क्षमा मांगती हूँ
बड़े बड़े सवालों,
अपने नन्हे जवाबों के लिए
मैं तुम से क्षमा मांगती हूँ
सचाई, तुम से बिनती है,
मेरी इतनी परवाह मत करो
गरिमा, मेहरबानी कर के,
दिल अपना तनिक बड़ा करो
अस्तित्व के रहस्यों,
थोड़ा साथ सहन करना
अगर मैं
तुम्हारी लान्गूल से
कभी एकाध रेशा निकाल लूं
बुरा न मानना, आत्मा
चाहे मैं
कभी कभार ही
तुम को पाऊँ
जो कुछ भी है सब से
मैं क्षमा मांगती हूँ
कि हो नहीं सकती
सब के साथ एक साथ
मैं क्षमा मांगती हूँ
हर एक से
कि मैं हर एक स्त्री
हर एक पुरुष
नहीं हो सकती रातोरात
जानती हूँ जब तक जीवित हूँ
मुझ से नहीं हो सकेगा इन्साफ
अपने साथ
कि मैं आप ही
रोकती ह
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