आज पढ़िए देवेश पथ सारिया का यह संस्मरण को ताइवान से जुड़ा हुआ है। एक रात के अनुभव को लेकर लिखा है देवेश ने जब वे एक दुर्घटना के गवाह बने थे। देवेश हिन्दी के उन कवियों में हैं जो अच्छा गद्य भी लिखते हैं- मॉडरेटर
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उस रात भी भटक रहा था मैं— रात का वीराना और मैं निशाचर बना हुआ। निशा का निमंत्रण और मैं अनमना-सा उसे स्वीकारता हुआ। कौन सर्द रात में घूमने जाए। पर चिकित्सकीय राय थी। तो बस निकल पड़ा था।
रास्ता सूना पड़ा था। कभी-कभार कोई इक्का-दुक्का वाहन सड़क के वीराने को चीरता गुज़र जाता तो गनीमत। रोज़ पैदल चलने के दस हज़ार क़दम पूरे करने होते थे। मैं जानता था कि जो रास्ता मैंने निर्धारित किया था, उस पर रात को घूम कर वापस लौटने में चार हज़ार के करीब कदम हो जाते हैं। बाकी छ: हज़ार कदम मैं दिन में चल लेता था। इसी अंदाज़े के साथ घूमकर मैं वापस लौट रहा था।
वापस लौटते समय सर्द अंधेरी रात में तेज़ गति से आता एक स्कूटर गाओची रोड के डिवाइडर से टकराकर गिर गया। उस ख़ाली सड़क पर दूसरी तरफ़ फुटपाथ पर चलता सिर्फ़ मैं उपस्थित था। मैं दौड़कर उस ओर गया। वहाँ पड़े आदमी के शरीर में एकबारगी कोई हलचल न देख मुझे भय हुआ कि कोई गंभीर मसला तो नहीं हो गया है। मैंने मोबाइल की टॉर्च की रोशनी में देखा। उसके कपड़ों पर या सड़क पर ख़ून नहीं था। मैं आश्वस्त हुआ। वह शायद बेसुध हो गया था। फिर भी यह आशंका मुझे हुई कि उसे कोई अंदरूनी चोट लगी हो सकती थी। मैं मोबाइल की रोशनी में उसे ठीक से परखने लगा। वह एक दुबला, पतला लड़का था। उसकी टीशर्ट कमर से ऊपर उठ गई थी जिसकी वजह से उसकी कमर पर बना ड्रैगन का टैटू नज़र आ रहा था। उसके होश में आने की उम्मीद के चलते कुछ देर तक मैं उससे एकतरफ़ा संवाद करता रहा। कभी अंग्रेज़ी और कभी हिंदी में उसे कुछ बोलता रहा। अचानक उसके कराहने की आवाज़ आई। कभी-कभी सिर्फ़ एक आवाज़ आपको बहुत तसल्ली दे जाती है। जैसे कई दिन इंतजार होने के बाद उस लड़की का फ़ोन आ जाए जिसके बारे में सोचता मैं रास्ते पर भटक रहा था। अपनी दिनचर्या के प्रति इतना लापरवाह उसी के खो जाने पर हो गया था कि तबियत कुछ डांवाडोल हो गई थी और डॉक्टर की बात माननी पड़ रही थी। ख़ैर, मेरे सामने फुटपाथ पर पड़ी उस देह से कराहने की आवाज़ आई। दिल को सुकून देने वाली आवाज़ कभी-कभी एक कराह की भी हो सकती है। वह होश में आ रहा था और मुझे लगा जैसे मैंने किसी चिड़िया के अंडे को फूटने से बचा लिया है। हालांकि उसके शरीर का कोई हिस्सा स्कूटर के नीचे फंसा हुआ नहीं था फिर भी उसने असहज होने का इशारा किया। मैंने उसका शरीर खींचकर स्कूटर से दूर कर दिया। फिर मैंने अपने मोबाइल की रोशनी से ही उसका फ़ोन ढूंढा जो करीब ही गिरा हुआ मिला।
ताइवान में यह नियम है कि कोई भी एक्सीडेंट हो जाने पर तुरंत पुलिस को सूचना देनी होती है। मैंने उसे उसका फ़ोन उसे थमाते हुए कहा कि वह पुलिस को फ़ोन कर ले। पर मुझे वह अशक्त-सा लगा। ईद के चाँद सी प्रकट हुई सिर्फ़ तीन गाड़ियां इस दौरान सड़क से गुज़रीं। मैंने उन तीनों गाड़ियों को रोकने की कोशिश की। लेकिन वे सर्र से गुम हो गईं। कोई गाड़ी चलाने वाला सड़क पर पड़े उस आदमी के लिए नहीं रुका। शायद सबको जाकर अपनी रजाई में दुबकना होगा। या कोई किसी के फटे में पांव नहीं डालना चाहता होगा।
इतने पर भी किसी ताइवानी को रोकने का प्रयास मैं करता रहा क्योंकि उसे स्थानीय नियम-कायदों की मुझसे बेहतर जानकारी होती। कोई ताइवानी व्यक्ति उस लड़के से संवाद भी मेरी अपेक्षा सुगम तरीके से उनकी भाषा में कर सकता था। अंततः, एक स्कूटर चालक मेरे इशारे पर रुक गया। उसकी भी यही राय थी कि हमें पुलिस को बुलाना चाहिए। एक्सीडेंट वाला लड़का अब तक होश में आ चुका था। उसने पुलिस को बुलाने से साफ़ मना कर दिया। मुझे लग रहा था कि उसने उसने नशा किया हुआ था।
बहरहाल, मामले को समेटने की दिशा में काम करते हुए हमने सड़क पर डिवाइडर के नज़दीक पड़े स्कूटर को उठाकर फुटपाथ पर खड़ा किया। दुर्घटनाग्रस्त स्कूटर के मालिक ने कहा कि वह कल-परसों में आकर स्कूटर को वहाॅं से ले जाएगा। फिर वह अपने ठिकाने पर पहुँचने के लिए टैक्सी बुलाने की बात करने लगा। उसने अपना पर्स निकाल कर टटोला। मैंने उसके पर्स में झांककर देखा ताकि यदि उसके पास किराए की रक़म नहीं होती तो मैं उसे कुछ न्यू ताइवान डॉलर (एनटीडी) दे सकता था। उसके पर्स में 200 न्यू ताइवान डॉलर थे जो कि रात के समय कम पड़ सकते थे। रात को टैक्सी का किराया कुछ बढ़ जाता है।
उसने एक कार्ड निकाल कर हमें दिया जिसमें उसके किसी पहचान वाले का नंबर था जो गाड़ी लेकर आ सकता था। मेरे साथ उसकी मदद कर रहे ताइवानी लड़के ने वह नंबर मिलाया।
गाड़ी आने तक एक्सीडेंट कर बैठा लड़का मुझसे बात करने लगा। मेरे यह कहने पर कि मैं भारत से हूॅं, उसने बताया कि उसकी बिल्डिंग में एक भारतीय लड़की रहती है और वह बहुत सुंदर है। अब तक वह उठ खड़ा हुआ था और फुटपाथ की तरफ़ आ गया था। जिस तरह से वह लड़खड़ा रहा था, लग रहा था कि उसके पैर में चोट लगी थी।
उसने जानना चाहा कि मैं ताइवान में कितने साल से रह रहा था। उसे यह जानकर नाराज़गी हुई कि मैं इतने साल वहाँ रहने के बावजूद वहाँ की भाषा नहीं बोल सकता था। मतलब, अब तक वह नाराज़ होने के लिए ज़रूरी होश में आ चुका था। मैं अपना पर्स खोलकर उसमें मौजूद सौ न्यू ताइवान डॉलर के दो नोटों में से एक उसे देने लगा और साथ में दस का एक सिक्का भी। इस तरह कुल मिलाकर उसके पास तीन सौ दस ताइवानी डॉलर हो जाते और यदि उसने जो गाड़ी बुलाई थी, वह टैक्सी होती तो उस गाड़ी का किराया देने लायक रकम उसके पास मौजूद होती। लेकिन उसने मुझसे नोट और सिक्का नहीं लिया। अलबत्ता, उसने इच्छा ज़ाहिर की कि वह चाहता है कि हम उसके लिए थोड़ी दूर स्थित चौबीस घंटे खुलने वाले कन्वीनियंस स्टोर से सिगरेट लेकर आएं। मेरे साथी ने उसे डाॅंट कर मना कर दिया— “हम यहां सिर्फ़ तुम्हारी गाड़ी की प्रतीक्षा करने के लिए हैं। तुम्हें सुट्टा लगाने में मदद करने के लिए नहीं।” देखिए, वैसे उस ठंडी रात में उसके सिगरेट पीकर अपने ज़ख़्मों को भुलाने की कोशिश का मैं समर्थन कर सकता था। किंतु मेरा साथी मददगार मुझसे ज़्यादा सख़्त था।
नशेबाजों जैसी हरकतें वह लड़का अब भी कर रहा था। वह बार-बार मुझे धन्यवाद दे रहा था। कभी हाथ मिलाता और कभी गले मिलता। वैसे यह भी संभव है कि कुछ लोग मुसीबत से निकलने पर बिना नशे के भी इस तरह अपनी भावनाओं का प्रदर्शन करते हों। मैं हर बार उसे कहता कि तुम्हारी असली मदद तो इस ताइवानी मित्र ने की है जिसने अपना स्कूटर तुम्हारे लिए इस रास्ते पर रोका, तुम्हारे दिए गए फ़ोन नंबर पर कॉल किया। मैं भाषा न जानने की वजह से कोई भी बड़ी सहायता कर पाने में असमर्थ था।
कुछ देर में वह सफ़ेद गाड़ी आ गई जिसे बुलाने के लिए फ़ोन किया गया था। वह अपने शरीर को ढीला छोड़ता हुआ सा गाड़ी में बैठा। और सच में एक धूमकेतु की तरह ग़ायब भी हो गया। मैं और मेरा अजनबी साथी सड़क पर खड़े उसे जाते हुए देखते रहे।
उसके जाने के बाद मेरे साथी ताइवानी लड़के ने मेरे संदेह की तस्दीक की, “इस लड़के ने शराब पी हुई थी और इसीलिए यह पुलिस को बुलाने से हिचक रहा था।”
मैंने पूछा, “क्या शराब पीकर ड्राइविंग करने के कारण उसे जेल हो सकती थी?”
मेरे साथी को भी इस बारे में कुछ पक्का पता नहीं था। उसने कहा कि जेल तो शायद नहीं, लेकिन भारी जुर्माना हो सकता था।
मुझे नहीं लगता कि कोई क़ानून तोड़ने में मैंने उस लड़के की मदद की थी क्योंकि मैंने उसे बार-बार पुलिस को बुलाने के लिए कहा। भाषाई सीमाओं की वजह से मैं ज़्यादा कुछ कर नहीं सकता था। मेरा यह अंदेशा बना रहा कि उसके पैर में चोट लगी थी जो नशा उतारने के बाद और भी पीड़ादायक होने वाली थी। उसे जल्द से जल्द डॉक्टर को दिखाना चाहिए था। और मुझे डर था कि वह दुर्घटना का कारण बताने से बचने के लिए डॉक्टर के पास जाने से हिचकेगा।
उसे विदा कर जब मैं पैदल अपनी गली की तरफ़ मुड़ने लगा तो मैंने पाया कि मेरा साथी मददगार मेरे घर के पास ही रहता था। यह जानकर तसल्ली हुई कि भले ही मैं दोबारा उससे कभी न मिल पाऊं, फिर भी वह भला मानुष मेरे घर के पास रहता था। वह उन तीन कार वालों से बेहतर था जो एक दुर्घटनाग्रस्त आदमी की मदद के लिए नहीं रुके थे।