विनायक दामोदर सावरकर की किताब ‘1857 का स्वातंत्र्य समर’ का भी अपना इतिहास है। यह पहली किताब है जिसमें 1857 की क्रांति को उन्होंने स्वाधीनता का पहला संग्राम कहा। नहीं तो उसको सिपाही विद्रोह ही कहा जाता था। यह पहली ऐसी किताब थी जिसको भारत में छपने से पहले प्रतिबंधित कर दिया गया। सावरकर ने 1907 में जब यह देखा कि 1857 की क्रांति की अर्धशती को ठीक से नहीं मनाया जा रहा है तो उन्होंने इस किताब के लिए शोध और इसको लिखना शुरू किया। यह मूल रूप से मराठी में लिखी गई लेकिन पहली बार अंग्रेज़ी अनुवाद में…
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कवयित्री पूनम अरोड़ा की पुस्तक आई है ‘परख’, जो प्रसिद्ध कवि-लेखक-संस्कृतिकर्मी अशोक वाजपेयी से बातचीत पर आधारित पुस्तक है। इसी पुस्तक पर यह टिप्पणी लिखी है कवयित्री अमिता मिश्र ने। सेतु प्रकाशन से प्रकाशित इस पुस्तक की समीक्षा आप भी पढ़ सकते हैं- मॉडरेटर ========================= यह साक्षात्कार पुस्तक एक अनकही दास्तान का सघन बिंदु है। जो ख्यातिलब्ध कवि,संस्कृतकर्मी अशोक वाजपेयी के साथ संवादों का सघन जखीरा लेकर आगे बढ़ती है ।यहां प्रश्न हैं और प्रश्नों के समुचित उत्तर भी। मनुष्यता यहां अपने सारे अंतरालों में विद्द्मान है ठिठकी हुई है वह स्वयं को बांट लेना चाहती है। संवाद जो पोस्टट्रथ…
शांति नायर के कविता संग्रह ‘ज्यामिति’ पर यह विस्तृत टिप्पणी लिखी है जानी-मानी कवयित्री सुमन केशरी ने। राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित इस संग्रह पर सुमन जी ने जो लिखा है यह उन कविताओं की व्याख्या भी करती है और यह अपने आप में एक स्वतंत्र पाठ भी है। आप भी पढ़ सकते हैं- मॉडरेटर ====================== अगर मैं कहूँ कि शांति नायर के संकलन- “ज्यामिति” की कविताएँ अच्छी हैं, तो अगला ही सवाल होगा क्यों? यानी कि इन कविताओं या किसी भी कविता को अच्छा कहने के मेरे मानदंड क्या हैं। सबसे पहली बात विषय की विविधता, उसके चयन में कवि…
वाणी त्रिपाठी अभिनेत्री रही हैं, फ़िल्म सेंसर बोर्ड की सदस्य रही हैं। जानकी पुल के लिए वह एक स्तंभ लिखती हैं ‘जनहित में जारी सब पर भारी’। इस स्तंभ में आज उन्होंने फ़्रांस के प्रतिष्ठित कान फ़िल्म फेस्टिवल 2025 पर यह विस्तृत टिप्पणी लिखी है। आप भी पढ़ सकते हैं- मॉडरेटर =========================================== कान फिल्म फेस्टिवल 2025, जो 13 मई से 24 मई तक फ्रांस के कान शहर में आयोजित हुआ, इस समय विश्व सिनेमा का सबसे बड़ा उत्सव बना। इस वर्ष भारतीय सिनेमा की भागीदारी विशेष रूप से उल्लेखनीय रही है। नीरज घेवन की फिल्म Homebound, जिसमें ईशान खट्टर, विशाल…
युवा लेखिका प्रज्ञा विश्नोई की कहानी हम लोगों ने कुछ दिन पहले पढ़ी थी। बहुत ताजगी थी उनकी शैली में। आज पढ़िए उनकी कुछ कविताएँ। उनकी कविताएँ भी अलग शैली की हैं। नौ ग्रहों को आधार बनाकर लिखी गई प्रेम कविताएँ। इनमें भी ताजगी लगी। आप भी पढ़िए- मॉडरेटर =============================== १. सूर्य हर लड़की का प्रथम प्रेम होता है–सूर्य। वह खो देती है अपनी दृष्टि केवल प्रिय-वदन के अवलोकन में। टेरती है प्रेयस का नाम देह में कोयल सी मिठास भर– पर देह से छूटते ही स्वर फट पड़ता है: कांव-कांव-कांव! जिसकी गूंज कस जाती है लड़की के गले के…
हाल में पंकज चतुर्वेदी की एक किताब आई ‘जवाहरलाल हाज़िर हो’। यह किताब आजादी की लड़ाई के दौरान देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की जेल यात्राओं को लेकर है। नेहरू जी ने 3259 दिन जेल में बिताये थे। पेंगुइन स्वदेश से प्रकाशित इस किताब में लेखक ने बहुत विस्तार से उनकी जेल-यात्राओं के बारे में लिखा है। बहुत शोधपूर्ण पुस्तक है। आइये इसका एक अंश पढ़ते हैं- मॉडरेटर ====================================== जवाहरलाल गैर-हाज़िर ही कब थे? आज इलाहाबाद स्थित ‘आनंद भवन’ को ही देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित नेहरू का निवास माना जाता है, लेकिन हकीकत में जवाहरलाल का जन्म हुआ…
आज पढ़िए देवेश पथ सारिया का यह संस्मरण को ताइवान से जुड़ा हुआ है। एक रात के अनुभव को लेकर लिखा है देवेश ने जब वे एक दुर्घटना के गवाह बने थे। देवेश हिन्दी के उन कवियों में हैं जो अच्छा गद्य भी लिखते हैं- मॉडरेटर ================================================ उस रात भी भटक रहा था मैं— रात का वीराना और मैं निशाचर बना हुआ। निशा का निमंत्रण और मैं अनमना-सा उसे स्वीकारता हुआ। कौन सर्द रात में घूमने जाए। पर चिकित्सकीय राय थी। तो बस निकल पड़ा था। रास्ता सूना पड़ा था। कभी-कभार कोई इक्का-दुक्का वाहन सड़क के वीराने को चीरता गुज़र…
ज्ञानी कुमार गया कॉलेज, गया से हिन्दी साहित्य में स्नातकोत्तर की पढ़ाई कर रहे हैं।जानकीपुल पर उनकी कविताओं के प्रकाशन का यह पहला अवसर है। आज उनकी कविताओं से हमारा परिचय करा रही हैं युवा लेखिका ट्विंकल रक्षिता – अनुरंजनी ========================= उम्मीद, उम्मीद,उम्मीद… जब चारों तरफ से हम निराशाजनक ख़बरें सुन-सुन कर थक रहे हैं, और ऐसा लगने लगा है कि क्या कुछ बढ़िया है जो बचेगा? क्या सपने बचेंगे? साथ बचेगा? विश्वास बचेगा? पेड़ बचेंगे? गौरैया बचेगी? पानी बचेगा?बोलने की आज़ादी बचेगी? वैसे शब्द बचेंगे जो सीधे सवालों से प्रयुक्त होते हों? और जब हम यह सब सोचते हुए…
एक किताब में आम, चीन और वहाँ की सांस्कृतिक क्रांति को लेकर यह दिलचस्प क़िस्सा पढ़ा तो आपसे साझा कर रहा हूँ। किताब का नाम पोस्ट में यथास्थान दिया गया है- प्रभात रंजन ==================================================== भारत और पाकिस्तान में तोहफ़े में आम लेने-देने का चलन है। आम के ऐसे ही तोहफ़े की एक कहानी एक ऐसी किताब में पढ़ी जो दुनिया भर में आम को लेकर अलग अलग तरह की कहानियों, संस्कृतियों को लेकर है। क़िस्सा यूँ है कि 1968 में पाकिस्तान के विदेश मंत्री सैयद शरीफुद्दीन पीरज़ादा ने चीन के चेयरमैन माओ को तोहफ़े में आम के टोकरे भिजवाए। चीन…
कन्नड़ भाषा की वरिष्ठ लेखिका बानू मुश्ताक़ की किताब ‘हार्ट लैंप’ को इंटरनेशनल बुकर प्राइज़ देने की घोषणा हुई है। जिसका अनुवाद किया है दीपा भास्ति ने। इसी पुरस्कार पर पढ़िए कोरियन भाषा की विशेषज्ञ कुमारी रोहिणी की यह टिप्पणी। इस लेख के लिए उन्होंने बीबीसी और बुकर प्राइज़ के वेबसाइट के स्रोतों का इस्तेमाल किया है- मॉडरेटर ================= पिछले दिनों अपनी किताब ‘साहित्य के मनोसंधान’ पर आयोजित चर्चा में प्रसिद्ध वरिष्ठ लेखक मृदुला गर्ग ने कहा कि ‘लिखे का ड्राफ्ट क्या होता है मैं समझ नहीं पाती! कहानी-उपन्यास एक बार लिखी जाती है, और आप उसे एक बार ही लिखते…