आज पढ़िए युवा लेखक निहाल पराशर की कहानी ‘कहानी फैक्ट्री’। यह कहानी भोपाल से निकलने वाली पत्रिका ‘वनमाली कथा’ में प्रकाशित हुई है। यह कहानी मुझे कई कारणों से अच्छी लगी इसलिए आप लोगों के लिए प्रस्तुत कर रहा हूँ। कहानी में एक स्तर पर गंभीर और लोकप्रिय साहित्य का विमर्श भी है तो दूसरी तरफ़ आज का समय और लेखन पर उसके दबावों के संकेत भी हैं, लेकिन बिना लाउड हुए। साथ ही, कहानी बहुत रोचक शैली में लिखी गई है। समय निकालकर पढ़ियेगा- मॉडरेटर ============================= जब मैं पहली बार उससे मिला तब भी मैं जानता था मैं एक…
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कुछ समय पहले अंग्रेज़ी के जाने माने लेखक शशि थरूर ने बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर की जीवनी लिखी थी। जिसका हिन्दी अनुवाद लेखक-पत्रकार अमरेश द्विवेदी ने किया है। वाणी प्रकाशन से प्रकाशित ‘अंबेडकर एक जीवन’ नामक उस पुस्तक का एक अंश पढ़िए जो बाबसाहेब के जीवन के शुरुआती दिनों के बारे में है- मॉडरेटर ========================= एक नींव का निर्माण (1891 – 1923) नौ साल का एक बच्चा और उसके दो दोस्त बेहद प्रसन्न थे। एक बच्चे का सगा भाई था और दूसरा चचेरा। दूसरे शहर में नौकरी करने वाले लड़के के पिता ने उन्हें गर्मी की छुट्टियां साथ बिताने के…
कुबेरनाथ राय हिन्दी के प्रसिद्ध निबंधकार रहे हैं। उनकी प्रसिद्ध पुस्तकों ‘रस आखेटक’ और ‘प्रिया नीलकंठी’ के बहाने या लेख लिखा है युवा लेखक प्रचण्ड प्रवीर ने। प्रचण्ड आईआईटी दिल्ली से केमिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के बाद बड़ी कंपनियों की नौकरी में आवाजाही करते रहते हैं और हिन्दी में विविध विधाओं में लिखते हैं। हाल में ही उनका उपन्यास आया है ‘मिटने का अधिकार- मॉडरेटर ================================== कल्पना कीजिए कि आप ‘आत्मा हशमतराय चैनानी’ के प्रशंसक हैँ और उनके स्मृति मेँ आयोजित सङ्गीत कार्यक्रम मेँ बड़े शौक से अपने एक मित्र के साथ जाते हैँ। मान लीजिए आप पाँच हज़ार…
प्रसिद्ध जासूसी उपन्यासकार इब्न-ए-सफ़ी के बारे में उनके पुराने पाठकों को पता होगा कि वे पहले असरार नारवी के नाम से शायरी करते थे और अच्छे शायर थे। कहते हैं कि एक बार उनके प्रकाशक दोस्त ने उनसे कहा कि उर्दू में ऐसी जासूसी उपन्यासों की बाढ़ आ गई है जो अश्लील होते हैं। ऐसे उपन्यास लिखे जाने चाहिये जो मनोरंजक भी हों और अश्लील भी न हों। शायर असरार नारवी ने यह चुनौती स्वीकार की और इब्न-ए-सफ़ी के नाम से उपन्यास लिखना शुरू किया। उसके बाद जो हुआ सब जानते हैं, आइये आज पढ़ते हैं उनकी कुछ ग़ज़लें- मॉडरेटर…
शिरीष कुमार मौर्य की कविताओं का अपना सम्मोहन है। इधर उन्होंने ग़ज़लें लिखी हैं और खूब लिखी हैं। अलग-अलग कैफ़ियत की कुछ ग़ज़लों का आनंद लीजिए- मॉडरेटर ============== 1. थे मगर हम दर-ब-दर ऐसे न थे हम पे राहों के असर ऐसे न थे तुम उधर ख़ुश-बाश थे हर हाल में और ग़मगीं हम इधर ऐसे न थे और भी किरदार थे ख़ुशहाल-से यार क़िस्से मुख़्तसर ऐसे न थे हमको मुस्तकबिल पे था पूरा यक़ीं लोग भी फिर बे-ख़बर ऐसे न थे दिल में सूरज-चाँद थे रौशन सदा गुमशुदा शाम-ओ-सहर ऐसे न थे 2. हर कोई चाहता है आज़ाद हो…
स्त्रियों की लिखी प्रेम कहानियों को आधार बनाकर जाने माने आलोचक राकेश बिहारी ने यह लेख लिखा है। अपनी तरह के इस अनूठे लेख को आप भी पढ़ सकते हैं- मॉडरेटर ================== हिन्दी की कुछ अविस्मरणीय प्रेम कहानियों के बहाने समय के साथ प्रेम के बदलते स्वरूप पर विचार करने की मंशा से जब मैंने कुछ कहानियों की सूची बनाई तो बिना किसी कालक्रम के अनुशासन में बंधे अनायास ही सबसे पहले ध्यान में आने वाली कहानियाँ थीं- ‘तीसरी कसम’, ‘रसप्रिया’, ‘कोसी का घटवार’, ‘परिंदे’, ‘उसने कहा था’, ‘पुरस्कार’, ‘आकाशदीप’… आदि-आदि। इस सूची में शामिल किसी कहानी विशेष के…
समकालीन कविता में ज्योति शोभा की कविताएँ किसी परिचय का मोहताज नहीं हैं। ऐसी प्रेम कविताएँ निस्संग उदासी जिसके पार्श्व संगीत की तरह है। आज पढ़िए उनकी दस कविताएँ- मॉडरेटर ======================= 1) वह कोई जगह है वह कोई जगह है या कोई पुरानी याद जो हमें जकड़े रहती है निरंतर, साल दर साल हमारा इससे निकल कर छत तक जाना ढलते सूर्य में चेहरा गलाना और उसी पिघले मोम से नया चेहरा बनाना सीढियाँ उतर कर बस स्टैण्ड तक जाना छाता बंद करना और रुकना और छटपटाकर नदी का पुल पार करना या फिर और दूर किसी दूसरे शहर किसी…
हिन्दी में इंटरव्यू आमतौर पर सत्ताधीशों के लिए जाते हैं। यह मानकर कि वे बड़े लेखक होते हैं। लेकिन क्या सत्ता के आधार पर ही कोई बड़ा लेखक होता है? 1980 के दशक में ‘सपने में एक औरत से बातचीत’ कविता के लिए भारतभूषण अग्रवाल पुरस्कार प्राप्त कवि विमल कुमार सत्ताधीश नहीं हैं लेकिन हिन्दी की हर सत्ता को आईना दिखाने का काम करते रहे हैं। अपनी बेबाक़ टिप्पणियों के लिए जाते रहे हैं। वे हिन्दी साहित्य के चलते-फिरते इतिहास हैं। उनसे यह बातचीत कठिन ज़रूर थी लेकिन आख़िरकार हो गई। कठिन इसलिए क्योंकि उनको ट्रैक पर रखना आसान काम…
‘संगत’ में काशीनाथ सिंह का इंटरव्यू सुन रहा था। अंजुम शर्मा से हुई इस बातचीत में उन्होंने बताया है कि एक बार उन्होंने नामवर सिंह से पूछा कि कोई ऐसा है जो आपसे भी ज़्यादा पढ़ता हो। जवाब में नामवर सिंह ने दो नाम लिए- राहुल सांकृत्यायन और अज्ञेय। उन्होंने कहा कि ये दोनों मुझसे भी ज़्यादा पढ़ते हैं। आज राहुल सांकृत्यायनन की जयंती है। उनकी जयंती से याद आया कि इतिहासकार अशोक कुमार पांडेय ने उनकी जीवनी लिखी थी- ‘अनात्म बेचैनी का यायावर।’ राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित इस जीवनी का एक अंश पढ़िए और राहुल ============================= वैसे तो राहुल…
जयपुर के पास कनोता कैंप में ‘कथा कहन कार्यशाला’ का यह पाँचवा आयोजन था। देश के अलग अलग हिस्सों से अलग अलग पीढ़ी के लेखक आये। तीन दर्जन से अधिक प्रतिभागी आये और तीन दिन तक सुरम्य माहौल में कहानी और उसकी कला की बातें। प्रसिद्ध लेखिका मनीषा कुलश्रेष्ठ के संयोजन में आयोजित इस आयोजन पर यह टिप्पणी लिखी है अंग्रेज़ी-हिन्दी के जाने-माने लेखक पंकज दुबे ने- मॉडरेटर ============================================ ‘कथा कहन कार्यशाला’ को लेकर पहली बार जिज्ञासा तब उठी थी जब कुछ साल पहले किसी लेखक मित्र की फ़ेसबुक पोस्ट पर नज़र पड़ी थी। ये तो बिलकुल साफ़ था कि…