पत्रकार संतोष सिंह द्वारा लिखित ‘जननायक कर्पूरी ठाकुर’ पढ़ते हुए भारत रत्न कर्पूरी ठाकुर के साहित्य प्रेम के बारे में कई बातें पता चलीं। कर्पूरी ठाकुर के साहित्य प्रेम को लेकर प्रोफ़ेसर गोपेश्वर सिंह जी से भी कई बार बात हुई। उन्होंने बताया था कि जब वे छात्र थे तो समाजवादी युवजन सभा की बैठकों में प्रसिद्ध कवियों की कविताएँ सुनाते थे जिसके कारण कर्पूरी ठाकुर उनसे बहुत प्रभावित हुए थे। उन्होंने ही बताया कि कर्पूरी ठाकुर प्रसिद्ध लेखक-कवि जानकीवल्लभ शास्त्री से बहुत प्रेम करते थे। कर्पूरी जी जब दूसरी बार मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने हिन्दी के तीन लेखकों को…
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आज पढ़िए पल्लवी विनोद की कहानी। यह कहानी समकालीन जीवन स्थितियों में रिश्तों के उतार चढ़ाव को लेकर एक रोचक कहानी है- मॉडरेटर ========================== प्रेम में कितना धँसे हो तुम? सीने तक? नहीं! तो अभी और धँसो। इतना कि साँस घुटने लगे। मृत्यु से ठीक एक क्षण पहले बाहर निकलना। इस प्रक्रिया में बस एक साँस भर का फ़ासला है। साम्य बैठा लिया तो बच जाओगे, कहलाओगे प्रेमी..(कहलाने का क्या है वो तो अपने खून से चिट्ठियाँ लिखने वाले भी कहला जाते हैं) फिर तुम प्रेमी बन जाओगे। पता तो है ना! प्रेम करने की यात्रा बड़ी जटिल है। जैसे…
समकालीन हिन्दी कवियों में सपना भट्ट की कविताएँ बहुत पसंद की जाती हैं। उनकी गहरी संवेदनात्मक कविताओं में भाषा जैसे जीवंत हो उठती है। आज उनकी कुछ चुनी हुई कविताएँ जो इधर-उधर पत्रिकाओं से ली गई हैं- मॉडरेटर ========================================= 1 देजा वू ———– किसी कौतुक के संभावित पूर्व संकेत पर स्मृति भ्रम का दृश्य गिरता है सुधियाँ व्याकुल हो उठती हैं मन स्थगन की चौखट पर बैठ जाता है विगत किसी अर्थकोश में ढूंढे नहीं मिलता वह हेतु जो ठीक ठीक बता सके घटनाओं के पुनरावर्तन के विभ्रम का विज्ञान आँख सब नया देखती है; मन किन्तु नवेली संज्ञाओं को…
इस साल हिन्दी सहित अनेक भारतीय भाषाओं में लिखी स्त्री आत्मकथाओं के पाठ और सैद्धांतिकी को लेकर प्रसिद्ध लेखिका और प्रोफ़ेसर गरिमा श्रीवास्तव की किताब आई है ‘चुप्पियाँ और दरारें’। राजकमल प्रकाशन से आई यह किताब घोर अकादमिक है लेकिन फिर भी इस किताब से अनेक आत्मकथाओं के बारे में पता चलता है। पढ़िए इसी किताब की भूमिका का एक अंश- मॉडरेटर ======================================================== आज लैंगिक, क्षेत्रीय एवं तुलनात्मक अध्ययन में ऐसी रचनाओं की माँग जोर पकड़ रही है जो व्यक्ति और समाज के विविधमुखी अनुभवों को प्रामाणिकता में प्रस्तुत कर सके। ‘चुप्पियाँ और दरारें’- स्त्री-आत्मकथा के भारतीय परिप्रेक्ष्य को समग्रता…
बोधिसत्व के नवीनतम काव्य संग्रह ‘अयोध्या में कालपुरुष’ पर संजय जायसवाल की यह समीक्षा प्रस्तुत है – अनुरंजनी ============================================ लोकतांत्रिक मूल्यों की पक्षधरता का आख्यान: अयोध्या में कालपुरुष ‘अयोध्या में कालपुरुष’ गाथा कविताएं हिंदी के चर्चित कवि बोधिसत्व का नवीनतम काव्य संग्रह है। यह संग्रह मिथकीय एवं ऐतिहासिक कथाओं का एक ऐसा फ्यूजन है, जिसका संबंध इस दौर के यथार्थपरक घटनाओं से है। इस पुस्तक में संग्रहित कविताएं कवि निराला को समर्पित हैं और कवि कुंवर नारायण एवं कैलाश वाजपेयी की स्मृति में अर्पित हैं। इस संग्रह को गाथा कविताओं के…
आज पढ़िए पल्लवी गर्ग की कविताएँ। गहर राग की कुछ कविताएँ- मॉडरेटर ======================================================== पाज़ेब एक दिन दादी का बक्सा सही करते हुए मिल गईं उनकी छुन-छुन करती पाज़ेब जब पूछा दादी से पहन लूँ इसे वे बोलीं हम तो छोड़ चुके इसे पहनना तुमको क्यों पहननी है मैंने कहा दादी, इसकी आवाज़ तो सुनो कितनी मधुर है पैर में बजेगी तो सरगम सी गूँजेगी मैं मयूरी सी थिरकूँगी दादी तुमने उतारा क्यों इनको? अम्मा क्यों नहीं पहनती इनको? मेरे सवालों पर दादी मुस्कुराईं बोली सारा दिन छुन-छुन करती पाज़ेब तब चुप होती थी जब हम आराम करते पर चुप पाज़ेब…
हाल में वेस्टलैंड बुक्स से प्रसिद्ध अभिनेता अमोल पालेकर की संस्मरण-पुस्तक आई है- अमानत- एक स्मृतिकोष। मनोहर श्याम जोशी भारतीय मध्यवर्ग के दुचित्तेपन की बात करते थे यानी ऊपर से कुछ अंदर से कुछ। ऐसे मध्यवर्गीय किरदारों को पर्दे पर अमोल पालेकर ने बखूबी निभाया है। उन्होंने निर्देशन भी किया, पेंटिंग भी की। कहने का मतलब यह है कि वे संपूर्ण कलाकार रहे हैं। आइये पढ़ते हैं उनके संस्मरण-पुस्तक की भूमिका- मॉडरेटर ======================= सिगरेट के बिखरे ठूंठों के बीच…. अपनी ज़िंदगी को समेटकर उस पर लिखना एक बेहद थकाऊ और अनचाहा प्रयास लगता है। ऐसा लगता जैसे मेरे हाथ में…
आज पढ़िए प्रसिद्ध संस्कृतिकर्मी वाणी त्रिपाठी के स्तंभ ‘जनहित में जारी सब पर भारी’ की अगली किस्त- मॉडरेटर ===================== हमारी दुनिया में हर किसी की अपनी कहानी होती है। लेकिन कुछ कहानियाँ ऐसी होती हैं, जो हम सबकी सामूहिक आवाज़ बन जाती हैं। पहलगाम के उस दर्दनाक दिन ने न केवल कश्मीर बल्कि पूरे देश को गहरे तक झंझोर दिया। यह एक ऐसी त्रासदी है, जो सिर्फ आँसुओं से नहीं, सवालों से भी भरी हुई है। यह डायरी उन सवालों का हिस्सा है, जिनका कोई आसान जवाब नहीं हो सकता। यह एक स्त्री की दृष्टि से एक आत्मीयता, गुस्से और…
आज प्रस्तुत है मराठी भाषा के शीर्ष लेखक बल्कि कहना चाहिए कि भारत के शीर्ष लेखक विश्वास पाटिल से बातचीत। अपने ऐतिहासिक उपन्यासों से भारतीय साहित्य में उन्होंने अपना एक अलग मुक़ाम बनाया है। इस बातचीत के केंद्र में है शिवाजी पर लिखा जा रहा उनका उपन्यास त्रयी। जिसका पहला भाग ‘शिवाजी महासम्राट झंझावात’ हिन्दी अनुवाद में राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित हुआ है और अंग्रेज़ी में वेस्टलैंड से। दूसरा भाग मराठी से अनूदित होकर अंग्रेज़ी में वेस्टलैंड से प्रकाशित हुआ है जिसका नाम है ‘Shivaji Mahasamrat: The Wild Warfront’. आइये उनकी बातचीत पढ़ते हैं जो मैंने की है- प्रभात रंजन…
हिन्दी लेखकों की वर्तमान दशा-दिशा पर यह टिप्पणी लिखी है संस्कृतिकर्मी-सामाजिक कार्यकर्ता शुभ्रास्था ने, जो अपना राजनीतिक परामर्श उद्यम चलाती हैं। आप भी पढ़िए- मॉडरेटर ======================== यह लेख समकालीन हिन्दी साहित्य के उस प्रवाह की समीक्षा करता है जो वर्तमान में सर्वाधिक चर्चित, प्रशंसित, पुरस्कृत और विमर्शों में उपस्थित रहा है—वह साहित्य जो प्रतिष्ठानों, अकादमिक संवादों और प्रकाशनों में केंद्रीय स्थान पर है। यह आलोचना सम्पूर्ण हिन्दी साहित्य पर नहीं, बल्कि उस प्रभावशाली और उच्चगामी साहित्यिक वृत्त पर केंद्रित है जो आज साहित्यिक मानदंड और वैचारिक दिशा तय कर रहा है। आज का चर्चित हिन्दी साहित्य दोहरे संकट से जूझ रहा है। एक ओर वह वैचारिक पाखंड और संकीर्णता का शिकार हो गया है, और दूसरी ओर लोकतांत्रिक असंतुलन का वाहक बनता जा…