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स्त्री-मन विद्रोह करना चाहता है लेकिन क्या ऐसा हो पाता है ? अगर होता भी है तो किन परिस्थितियों में ? जीवन के किन क्षणों में? इन सवालों का कोई निश्चित जवाब नहीं। आलोक कुमार मिश्रा की कहानी ‘बुआ चली गई’ ऐसी तमाम स्त्रियों की कहानी है जो अपने जीवन के अंतिम दिनों में आख़िरकार विद्रोह कर ही देती हैं। जो यह यक़ीन दिलाती है कि विद्रोह करने की, विरोध करने की कोई उम्र नहीं होती। आइए, आप भी पढ़िए यह कहानी – अनुरंजनी        ==========================================                        …

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आज गुलज़ार साहब 90 साल के हो गये। उनकी कला यात्रा पर यह लेख लिखा है कवि, प्राध्यापक, लोक संस्कृति के अध्येता पीयूष कुमार ने। आप भी पढ़िए- मॉडरेटर================== ‘वो उम्र कम कर रहा था मेरी, मैं साल अपने बढ़ा रहा था…’ यह लाइन गुलज़ार साहब पर बिल्कुल फिट है। उनकी उम्र के साये जितने लंबे होते जा रहे हैं, वे उतने ही अपने समय में सिमटते जाते हैं। उनकी यह बात पहचानना –  समझना हो तो उनकी भाषा देखिए, उनके कहन की डिक्शनरी देखिए। यह होता है एक अदबी का अपडेटेड होना। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने कबीर को वाणी…

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वियोगिनी ठाकुर कविता व कहानी दोनों के लिए जानी जाती हैं। आज उनकी 18 कविताएँ प्रकाशित हो रही हैं, जो कि संख्या व विषय दोनों के लिहाज़ से समय की माँग करती कविताएँ हैं, जिनमें मनुष्य प्रेम के साथ-साथ प्रकृति प्रेम भी शामिल है, बल्कि इन कविताओं में कई बार प्रकृति प्रेम ही मनुष्य प्रेम से ऊपर दिखता है। आप भी पढ़ सकते हैं- अनुरंजनी =========================================== 1. करौंदे के फूल करौंदे के फूल कभी चखे हैं तुमने पूछना चाहती हूँ इन दिनों तुमसे तुम पूछो तो मैं कहूँगी मैंने चखा है मेरा तुम्हारा संबंध ठीक करौंदे के फूलों जैसाखटास और नरमाई से भरा अपनी अनोखी गंध…

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अभी बीते वर्ष से भारत सरकार की ओर से यह आदेश जारी हुआ है कि प्रत्येक वर्ष 14 अगस्त को ‘विभाजन विभीषिका दिवस’ के रूप में मनाया जाए। विश्विद्यालयों में इस आदेश का पालन भी पिछले वर्ष से ही ज़ोर-शोर से किया जाने लगा है। लेकिन उन कार्यक्रमों में ऐसी बातें अधिक होती हैं जिससे लगता है कि मानो विभाजन का दंश केवल हिंदुओं को झेलना पड़ा। इस संदर्भ में पिछले वर्ष ‘द वायर हिन्दी’ पर प्रकाशित यह लेख पढ़ सकते हैं – https://thewirehindi.com/255587/the-politics-of-dividing-and-observing-partition-horrors-remembrance-day/ ‘खोल दो’ कहानी पढ़ी होगी आप सब ने, यदि नहीं पढ़ी तो ज़रूर पढ़ लीजिए -…

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 कल यानी 13 अगस्त को दिल्ली के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में शशि थरूर की पुस्तक ‘अंबेडकर: एक जीवन’ का लोकार्पण कार्यक्रम था। इसका अनुवाद प्रसिद्ध लेखक-पत्रकार अमरेश द्विवेदी ने किया है और प्रकाशन वाणी प्रकाशन ने। प्रस्तुत है इस कार्यक्रम की रपट-========================= आयोजन में वक्ताओं के रूप में पुस्तक के लेखक डॉ. शशि थरूर, पुस्तक के अनुवादक, पत्रकार और लेखक अमरेश द्विवेदी, दिल्ली विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. श्यौराज सिंह ‘बेचैन’, हिन्दी की वरिष्ठ लेखिका एवम सांसद महुआ माजी, दिल्ली विश्वविद्यालय के लक्ष्मीबाई कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफेसर अदिति पासवान और जामिया मिल्लिया इस्लामिया से प्रो. अरविन्द कुमार मौजूद…

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‘रूप तेरा मस्ताना प्यार तेरा दीवाना, चाँदी जैसा रंग है तेरा सोने जैसे बाल, तेरे चेहरे में वो जादू है, आँखों में तेरी अजब-सी अजब-सी अदाएँ हैं’, हिन्दी में प्रचलित ये सारे गाने आपने सुने होंगे। क्या आपने कोई ऐसा गाना सुना है जिसमें स्त्री की बौद्धिकता की कोई बात आ रही हो? (अगर सुना है तो हम सब ज़रूर जानना चाहेंगे) अमूमन हिन्दी गानों में स्त्री के रूप-रंग, आंखें, होंठ इन्हीं सब पर केंद्रित गाने मिलते हैं। ऐसे असंख्य गीत हैं जो हमारी ज़ुबान पर चढ़ जाते हैं। अनामिका झा का यह लेख ऐसे ही प्रचलित गानों को रेखांकित…

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आज प्रस्तुत है दिव्या श्री की कुछ कविताएँ जिनमें अधिकता प्रेम की है। दिव्या कला संकाय में परास्नातक कर रही हैं।इनकी कविताएँ हंस, वागर्थ, वर्तमान साहित्य, पाखी, कृति बहुमत, समकालीन जनमत, नया पथ, परिंदे, समावर्तन, ककसाड़, कविकुम्भ, उदिता, हिन्दवी, इंद्रधनुष, अमर उजाला, शब्दांकन, जानकीपुल, अनुनाद, समकालीन जनमत, स्त्री दर्पण, पुरवाई, उम्मीदें, पोषम पा, कारवां, साहित्यिक, हिंदी है दिल हमारा, तीखर, हिन्दीनामा, अविसद, सुबह सवेरे ई-पेपर आदि में प्रकाशित हो चुकी हैं। जानकीपुल पर यह इनका दूसरा अवसर है – अनुरंजनी ============================================ यह एक ऐसी जगह हैजो मेरा स्थायी पता रहा है उसके जीवन मेंमैं इसी पते पे रोज चिट्ठियां लिखती हूँजबकि…

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मनोहर श्याम जोशी की जयंती आने वाली है और कल उनकी स्मृति में व्याख्यानमाला का आयोजन किया जा रहा है। इस अवसर पर पढ़िए युवा लेखक प्रचण्ड प्रवीर का लेख-   =========================ओटीटी और उन पर छायी वेबसीरीज के दौर मेँ अक्सर यह ख़्याल आता है कि यदि ‘मनोहर श्याम जोशी’ आज जीवित होते तो क्या सफल होते?  हमने देखा कि किस तरह एक ख्यातिप्राप्त लेखक-कवि ने ‘आदिपुरुष’ फिल्म के लिए निम्न कोटि के संवाद लिखे और ‘पोन्नियन सेल्वन’ जैसे महत्त्वपूर्ण उपन्यास पर बनी फिल्म के हिन्दी संस्करण के संवाद दोयम व दयनीय निकले। सवाल यह उठता है कि क्या हिन्दीभाषियोँ…

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यह बात हम सभी जानते हैं कि एक ही रचना को पढ़ने का अनुभव जीवन के अलग-अलग पड़ाव पर कभी-कभी एक जैसा तो कभी-कभी सर्वथा भिन्न होता है। ऐसी ही कुछ बात वरिष्ठ कथाकार गोपेश्वर सिंह ने मनोहर श्याम जोशी के उपन्यास ‘कसप’ के अपने पाठ को लेकर की है। गोपेश्वर सिंह के इस समीक्षानुमा लेख को आप भी पढ़ सकते हैं – मॉडरेटर ============================================================ मुझे लगता है कि जो प्रेम-कथाएं ‘बेस्ट सेलर’ मानी जाती हैं किशोर वय में या युवाकाल में पढ़ने पर एक तरह का अनुभव देती हैं और पचास पार के वय में पढ़ने पर दूसरे तरह…

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मनोहर श्याम जोशी को याद करते हुए यह लेख लिखा था उदय प्रकाश जी ने। आप फिर से पढ़ सकते हैं-====================== मनोहर श्याम जोशी बड़े लेखक थे। रोलां बर्थ जिसे ‘मेगा ऑथर’ कहा करते थे – ‘महालेखक’। अगर ध्यान से देखते तो हम लोग और बुनियाद भी मनोहर श्याम जोशी द्वारा टेलीविजन के पर्दे पर लिखे गये हिन्दी के महत्त्वपूर्ण उपन्यास ही थे। उनकी सारी बनावट उपन्यास की थी। भले ही रमेश सिप्पी, भास्कर घोष और मनोहर श्याम जोशी पर ये आरोप लगाये गये हों कि उन्होंने दूरदर्शन को लोकप्रिय बनाने के लिए किसी ‘मेक्सिकन’ सोप ऑपेरा से’आइडिया’ लिया था, लेकिन…

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