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आज प्रथम जानकी पुल शशिभूषण द्विवेदी स्मृति सम्मान से सम्मानित लेखिका दिव्या विजय का जन्मदिन है। जानकी पुल की ओर से उनको शुभकामनाओं के साथ पढ़िए उनकी कुछ कविताएँ- =======================================  कुछ वर्ष पहले कोंकणा सेन को कादम्बरी के रूप में देखा था और परमब्रत चटर्जी को टैगोर के रूप में। फ़िल्म थी सुमन घोष द्वारा निर्देशित कादम्बरी। रबीन्द्रनाथ टैगोर और उनकी भाभी के प्रेम संबंधों पर आधारित। न विवाह की लकीर प्रेम को पनपने से रोक सकी न प्रेम की हदबंदी पुरुष को बाँध सकी। मूल्य ठहरा एक स्त्री का जीवन। कला की एक विधा दूसरी विधा को जन्म देती…

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आज प्रस्तुत है रुचि बहुगुणा उनियाल की कविताएँ जिनमें विषय की विभिन्नता तो है लेकिन एक बिंदु सबमें समान रूप से शामिल है, वह है कोमलता। चाहे वे प्रेम की कविता हो, मनुष्य बने रहने के निवेदन की कविता हो, प्रत्येक नागरिक के लिए रोटी का सवाल पूछती कविता हो या फिर पहाड़ी जीवन के बखान की कविता हो, इन सब में कोमलता विशेषत: मौजूद है- अनुरंजनी ===================================== 1) तेरे लिए मेरा प्यार ऊँची-ऊँची अट्टालिकाओं की ठसक के समक्ष फूस की झोपड़ी में बसी सहजता सा सोने की थाल में परोसे गए छप्पन भोग को धता बताता ठेठ देसी बाजरे…

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अंबर पांडेय की ‘प्रेत सरित्सागर’ कई स्तरों पर चलने वाली कहानी है। बिलावल, 42 वर्षीय अकेला युवक, जिसके जीवन में ‘स्त्री’ का आगमन हुआ ही नहीं, और जो परिवार जन थे वे भी एक-एक कर गुजरते गए। वहीं एक पात्र श्रीकण्ठ, विवाहित, एक समय तक रतिसुख में डूबा हुआ लेकिन ‘संयोग’ ऐसा कि उसकी ‘स्त्री’, षोडशी का ही रति से मन विमुख हो गया! यह कहानी का एक पक्ष है। इस संदर्भ में यह भी उल्लेखनीय है कि विधा के तौर पर लेखक ने नयापान लाने की कोशिश की है। कहानी के शुरुआती हिस्से को एकालाप की तरह बरता है और…

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बतौर पाठक यतीन्द्र मिश्र से मेरा पहला परिचय उनकी कविताओं के माध्यम से ही हुआ था। साल था 1999. इससे याद आया कि उनकी कविताएँ पचीस सालों से पढ़ रहा हूँ। लेकिन इस बार उनका संग्रह तेरह साल के अंतराल के बाद आया है ‘बिना कलिंग विजय के’। यह उनकी कविताओं में नये मोड़ की तरह है। इनमें इतिहास, मिथक, संगीत, कला की आवाजाही है, कहीं फ़िल्मों के कलाकार आ जाते हैं। एकदम अलग कलेवर की संवेदनशील कविताएँ। मैंने आप लोगों के लिए संग्रह से ग्यारह कविताएँ चुनी हैं। वाणी प्रकाशन से यह संग्रह शीघ्र प्रकाशित होने वाला है- प्रभात रंजन …

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गरिमा श्रीवास्तव ने बहुत लिखा है। बहुत महत्वपूर्ण अकादमिक लेखन किया है। लेकिन उनकी किताब ‘देह ही देश’ का अलग ही मुक़ाम है। कह सकते हैं कि इस किताब से उनको अकादमिक जगत के बाहर व्यापक पहचान मिली। पहले इस किताब को राजपाल एंड संज ने प्रकाशित किया और बाद में राजकमल प्रकाशन ने प्रकाशित किया। युद्ध और स्त्री के विषय पर लिखी इस किताब से आज भी पाठक जुड़ते रहते हैं। आज पढ़िए इस किताब पर कुमारी रोहिणी की टिप्पणी- प्रभात रंजन  ======================= गरिमा श्रीवास्तव की ‘देह ही देश’ अपने पहले प्रकाशन के समय से ही रीडिंग लिस्ट में…

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मनोज रुपड़ा हमारे दौर के बड़े विजन वाले लेखक हैं। उनके उपन्यास ‘काले अध्याय’ के बारे में हाल में वरिष्ठ लेखक धीरेंद्र अस्थाना ने लिखा था कि भारतीय ज्ञानपीठ से उपन्यास के तीन संस्करण आ गया लेकिन इसकी वैसी चर्चा नहीं हुई जैसी कि होनी चाहिए थे। पिछले दिनों यतीश कुमार ने एक फ़ेसबुक पोस्ट में लिखा था कि एयरपोर्ट पर वह इस उपन्यास में ऐसे डूबे कि उनकी फ़्लाइट छूट गई। बहरहाल, मनोज रुपड़ा के उपन्यास ‘काले अध्याय’ पर पढ़िये यतीश कुमार की टिप्पणी- प्रभात रंजन ================================= किताब को पढ़ते समय बस एक विशुद्ध पाठक बन गया हूँ। जो…

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हाल में ही एक किताब आई है ‘उर्दू शायरी समझें और सराहें’। किताब के लेखक हैं बाल कृष्ण और प्रकाशक हैं राजपाल एंड संज। आज इसी किताब के दो अंश पढ़िए जो शायरों के तख़ल्लुस तथा उर्दू के दीवान यानी कविता संग्रहों को लेकर हैं- जानकी पुल  ================================= तख़ल्लुस उस उपनाम को कहते हैं जिसे शायर अपनी पद्य रचनाओं में अपने असली नाम की बजाय प्रयुक्त करता है। अंग्रेज़ी में इसे pen-name कहते हैं। तख़ल्लुस के आधार पर यह पता चल जाता है कि अमुक रचना किस कवि की है। पद्य-रचनाओं में तख़ल्लुस का प्रयोग (जहाँ तक हमारी जानकारी है)…

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शारदा सिन्हा को याद करते हुए यह परिचयात्मक लेख लिखा है पीयूष प्रिय ने – अनुरंजनी ================================== ‘कोयल बिन बगिया ना सोहे राजा’ एक आवाज जो आप चाहे साल भर में ना सुने मगर दो महीने, चैत और कार्तिक में जरूर सुनेंगे। इन महीनों का तीन-चार दिन कुछ ऐसे गुजरता है जिसमें आप पॉप, रेट्रो, आदि सबसे दूर हो जाएंगे और वह दूर कर देने वाली आवाज है लोक गायिका ‘शारदा सिन्हा’ की बल्कि यों कहूँ कार्तिक महीना तो बिना शारदा सिन्हा के किसी बिहारी के घर में प्रवेश नहीं करता। बिहार के जो भी लोग बिहार से बाहर रहते…

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साल 2024 में प्रकाशित कथा-संग्रहों में जो संग्रह मुझे बहुत पसंद आये उनमें मनीषा कुलश्रेष्ठ का कथा-संग्रह ‘वन्या’ भी है। राजपाल एंड संज से प्रकाशित इस कहानी संग्रह में पर्यावरण प्रेमी की कहानियाँ हैं। उसी संग्रह से पढ़िये एक कहानी ‘नीला घर’- प्रभात रंजन ============= “जानती हो ईश्वर जितने द्वन्द्व आपके जीवन के कथानक में डालता है, उतने दुनिया का कोई लेखक अपनी किसी कहानी में नहीं डाल सकता।“ ज़ीरो म्यूजिक फेस्टिवल में मिले वॉयलनिस्ट नाबोम चाके ने यह ज्ञान देते हुए उसे शेर्गाओं में अपने होमस्टे में आकर ठहरने का न्यौता दिया था। अपने भीतर चट्टान की तरह आ…

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जानकी पुल के सलाहकार संपादक प्रचण्ड प्रवीर ने साहित्यिक साक्षात्कार को लेकर अपने विचार रखे हैं और कुछ सुझाव भी। आप लोग भी पढ़िए और उनके सुझावों पर अपनी प्रक्रिया दें- जानकी पुल ================== पिछले दो सालोँ मेँ हिन्दी साहित्य मेँ एक महत्त्वपूर्ण परिघटना हुयी है, वह है प्रतिष्ठित साहित्यकारोँ का विडियो साक्षात्कार। इस उपक्रम मेँ प्रमुख है – रेख्ता फाउण्डेशन के द्वारा ‘सङ्गत’ शीर्षक से ली जा रही साक्षात्कार शृङ्खला। हालाँकि साक्षात्कार और बातचीत की साहित्य मेँ लम्बी परम्परा रही है, जैसा कि हम हिन्दुस्तान दैनिक के साप्ताहिक स्तम्भ मेँ पुराने कवियोँ और लेखकोँ की बातचीत मेँ देखते हैँ।…

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