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आज प्रस्तुत है वरिष्ठ कवि मृत्युंजय कुमार सिंह के खंड काव्य ‘द्रौपदी’ की डॉ. सुनील कुमार शर्मा द्वारा समीक्षा।  =========================================  सद्य प्रकाशित खंड काव्य – द्रौपदी पाठकों के बीच चर्चा में है। महाभारत की पौराणिक कथा से संदर्भित द्रौपदी के पात्र को कवि मृत्युंजय सिंह ने एक खंड काव्य के रूप में अद्भुत रूप से पुनर्जीवित किया। यह साहित्य ही है जिसने अलक्षित पात्रों को भी मुख्यधारा में स्थान दिया है। दरअसल यह साहित्य का गुणधर्म है कि वह जीवन में हो या काव्य में, सिर्फ केंद्र को ही नहीं देखता वरन परिधि की घटनाएं भी उसकी जद में आती है ।…

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युवा लेखक प्रचण्ड प्रवीर की हर विषय पर अपनी राय होती है, अपना नज़रिया होता है। यहाँ व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी पर उनके सुचिंतित विचार पढ़िए- ============================== आज से तकरीबन २० साल पहले अच्छे प्राध्यापक विकिपीडिया के आलेखों को पढ़ने और उस पर विश्वास करने से मना करते थे। आज भी विकिपीडिया के सारे आलेखों को हम बेहतरीन और सच मान लें, ऐसा कहा नहीं जा सकता। फिर भी हम इस बात से इन्कार नहीं कर सकते कि विकिपीडिया अब कई मायनों में पथ प्रदर्शक है। यह विषय से परिचय कराने की पहली सीढ़ी है। पिछले दस सालों में ह्वाट्सएप पर आती…

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आज पढ़िए सौरभ मिश्र की कुछ कविताएँ। इन कविताओं का फ़लक बहुत विस्तृत है। ‘दिल्ली की हत्या’ पढ़ते हुए कमलेश्वर की ‘दिल्ली में एक मौत’ तुरंत याद आ जाती है। आगे की कविताओं में कवि का कविता प्रेम भी है, प्रेम और संभोग के अंतरसंबंध के सवाल भी हैं, मनुष्य के आपसी सहज संबंध की इच्छा भी है और मानवीय स्वभाव की जटिलताएँ भी हैं। इससे पहले सौरभ की कविताएँ अमर उजाला, हिन्दीनामा, हिन्दवी और वागर्थ पर प्रकाशित हैं। जानकीपुल पर उनका प्रथम प्रकाशन अब आपके समक्ष है।========================= 1. दिल्ली की हत्या बहुत साल बीते इस शहर मेंजिसे दिल्ली कहते…

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ङगोग़ी वा दिओङओ से रीमो वेरडिक्ट और एमील रूतहूफ्ट की बातचीत एल.ए.आर.बी [Los Angeles Review of Books] की वेबस पर 1 सितंबर 2023 को प्रकाशित हुई। इस साक्षात्कार का शीर्षक है “जैल ने मुझे हँसा दिया : ङगोग़ी वा दिओङओ के साथ एक चर्चा”। अंग्रेजी में यह साक्षात्कार यहाँ मिलेगा : https://lareviewofbooks.org/article/prison-left-me-laughing-a-conversation-with-ngugi-wa-thiongo/?fbclid=IwAR24w_nvWLhz_VAf7U2sxFqL7PNo0odYvHwmqvdoAdoAdeMzWlFbymimGz0 इस साक्षात्कार का हिंदी में अनुवाद डॉ. पूजा संचेती ने किया है।  ================================== ** ङगोग़ी वा दिओङओ को अफ्रीकी महाद्वीप के पिछले अर्ध-शतक के सबसे अग्रणी लेखकों में गिना जाता है। केन्याटा तानाशाही के विरोधी होनी की वजह से 31 दिसंबर 1977 को उन्हें गिरफ्तार कर एक…

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आज पढ़िए अर्चना के शंकर की कहानी ‘गुलाबी साड़ी और दाल’। अर्चना स्वतंत्र लेखन के साथ-साथ अनेक डिजिटल मंच के लिये लिखती हैं।उनकी यह कहानी बिल्कुल ही अलग तरह से बुनी हुई, लीक से हटकर है जो देखने में ऐसे तो सामान्य दिनचर्या वाली लगे लेकिन ध्यान से पढ़ने पर मालूम होता है कि कितना कुछ संकेत करती है यह जिसमें निम्नवर्गीय जीवन में जी रहे लोगों के मनोविज्ञान की ओर ध्यान ले जाना एक बड़ी विशेषता है- ====================== कच्ची मिट्टी की दीवार और कच्ची मिट्टी का फर्श.. दीवार पर लगी लकड़ी की खूँटी! लकड़ी की मोटी सी खूँटी, जिसका…

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आज पढ़िए अर्चना के शंकर की कहानी ‘गुलाबी साड़ी और दाल’। अर्चना स्वतंत्र लेखन के साथ-साथ अनेक डिजिटल मंच के लिये लिखती हैं।उनकी यह कहानी बिल्कुल ही अलग तरह से बुनी हुई, लीक से हटकर है जो देखने में ऐसे तो सामान्य दिनचर्या वाली लगे लेकिन ध्यान से पढ़ने पर मालूम होता है कि कितना कुछ संकेत करती है यह जिसमें  निम्नवर्गीय जीवन में जी रहे लोगों के मनोविज्ञान की ओर ध्यान ले जाना एक बड़ी विशेषता है।                                  गुलाबी साड़ी और दाल    कच्ची…

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पिता को याद करते हुए यह कविताएँ लिखी हैं संदीप नाईक ने, जो गहरे मन तक छूती हैं, जिन्हें पढ़ते हुए प्रत्येक व्यक्ति को पिता के साथ अपना संबंध याद हो आए।बहुत संभव आप को भी वह गहन संबंध की अनुभूति हो। संदीप नाईक ने छः विषयों में स्नातकोत्तर किया है, 38 वर्षों तक विभिन्न प्रकार की नौकरियाँ करने के बाद आजकल देवास, मप्र में रहते हैं। इनके ‘नर्मदा किनारे से बेचैनी की कथाएं’ कहानी संग्रह को प्रतिष्ठित वागेश्वरी पुरस्कार प्राप्त है।इन दिनों हिंदी, अंग्रेजी और मराठी में लेखन-अनुवाद और कंसल्टेंसी का काम करते हैं।================================= पिता का होना आकाश के…

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जैसा कि आप सभी जानते हैं कि प्रथम जानकी पुल शशिभूषण द्विवेदी स्मृति सम्मान युवा लेखिका दिव्या विजय को भारतीय ज्ञानपीठ से प्रकाशित उनके कथा संग्रह \’सगबग मन\’ के लिए दिये जाने का निर्णय लिया गया है। आगामी 6 जुलाई को दिल्ली के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में एक समारोह में उन्हें यह सम्मान प्रदान किया जाएगा। इस अवसर पर लेखिका के साथ एक लंबी बातचीत प्रस्तुत है। यह बातचीत की है प्रखर लेखक प्रचण्ड प्रवीर ने। यह बातचीत बहुत अलग तरह की है जो लेखिका की कथा यात्रा के साथ साथ कथा संवेदनाओं को लेकर है। आइये यह विस्तृत बातचीत…

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काव्यात्मक समीक्षा के लिए यतीश कुमार को किताबें चुनती रही हैं। इस बार उनको चुना है जानकी पुल शशिभूषण द्विवेदी स्मृति सम्मान से सम्मानित लेखिका दिव्या विजय की डायरी \’दराज़ों में बंद ज़िंदगी\’ ने। आप भी पढ़ सकते हैं- ========================================= बौराहट की छाजन लिए वे शशोंपंज जो किसी और से सीधे साझा न हो पा रहा हो, जिसे टोंचने में तकलीफ़ हो, ऐसी स्थिति में अपनी अनावृत आत्मा की उलीच को लिख देना सबसे अच्छा माध्यम है और दिव्या ने भी यही किया।मन के गुंजलकों की कुलाँचों को पढ़ते हुए जो भी भाव उभरे उसे यहाँ बस पिरोया गया है…

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आज पढिए संजय लीला भंसाली की वेब सीरीज़ ‘हीरामंडी’ पर जाने माने पत्रकार-चित्रकार रवींद्र व्यास की सम्यक् टिप्पणी। रवींद्र जी ने देर से लिखा है लेकिन दुरुस्त लिखा है- =========================== फ़ानूस और मशाल! नमाज़ गूंजती है। शुरुआत होते ही अंधेरे में एक ख़ूबसूरत फ़ानूस चमकता है। काली-भूरी पहाड़ी पर जैसे शफ़्फ़ाफ़ आबशार। फ़ानूस की चार हिस्सों में नीचे झरती रौशनी में आलीशान महल या कोठी की दीवारें साँस रोके खड़ी हैं। हर बेक़रार करवट में गिरते आंसुओं और इश्क़ की आह और कराह की चुप गवाह। हर षड्यंत्र की बू को सहती-सोखती….आती-जाती और इश्क़ में फ़ना होती रूहों की उठती-गिरती…

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