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यूरी बोत्वींकिन के नाटक \’अंतिम लीला\’ का पहला खंड हम पढ़ चुके हैं। आज पढ़िए दूसरा खंड- ====================================== अंतिम लीला – 2 भूमिका इस नाटक के पात्रों में हिंदू देवी-देवताओं के साथ कुछ स्लाविक पौराणिक ईसाईपूर्व देव-देवता भी हैं, जिनका ऐतिहासिक आधार हिंदू चरित्रों की तुलना में कहीं कम प्रमाणित किया गया है, यहाँ तक कि कुछ वैज्ञानिक इन चरित्रों को नवरचित भी मानते हैं। कारण यह है कि ईसाई धर्म आने के बाद पुराने रूस (जो कि अधिकतर आधुनिक युक्रैन का ही नाम हुआ करता था) में पुराने धर्म-सिद्धांतों का नामोनिशान मिटाने का पूरा प्रयास किया गया था। फिर…

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आज पढ़िए देवेश पथ सारिया की कुछ कविताएँ। देवेश को पिछले वर्ष ही उनके काव्य संग्रह ‘नूह की नाव’ के लिए भारत भूषण अग्रवाल सम्मान मिला है। इनकी कविताओं का अनुवाद विभिन्न भाषाओं में हो चुका है। काव्य के अलावा ‘ छोटी आँखों की पुतलियों में’ शीर्षक से इनकी एक ताइवान डायरी भी प्रकाशित है – अनुरंजनी ============================== 1. गुलबहार (1) मात्र एक तर्जनी तुम्हारी का हिलनादर्शाता था कि वह दृश्य स्थिर नहीं थातीन बार की थाप के बाद फैले होंठबिना चहके खुली एक चिड़िया की चोंचझुककर उठी आँखेंहुज़ूर में बजने लगते साज़हिलती रहती तर्जनीएक बार बल खाई ग्रीवावहीं थिर…

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मशहूर गीतकार मजरूह सुल्तानपुरी को पियूष प्रिय याद कर रहे हैं।पीयूष ज़ाकिर हुसैन दिल्ली कॉलेज, सांध्य में स्नातक तृतीय वर्ष के छात्र हैं। पीयूष जिन गीतों की चर्चा के रहे हैं वे विभिन्न समयों में विभिन्न मिज़ाज के हैं जो बहुत कुछ कहते हैं। उनमें सत्ता का विरोध भी है, निराशाओं के दौर का अंकन भी है और प्रेम तो है ही। आप भी पढ़ सकते हैं – अनुरंजनी ================================ लेखन, क्रांति, जेल, सिनेमा, सहगल से सलमान तक : मजरूह सुल्तानपुरी एक समय जब हमारे घर…

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आज पढ़िए युवा कवि मनीष यादव की कविताएँ।इससे पूर्व मनीष की कविताएँ हिन्दवी पर भी प्रकाशित हो चुकी हैं। प्रस्तुत कविताओं में अधिकांश कविताएँ स्त्री-संघर्ष की सूक्ष्म से सूक्ष्म स्थिति की ओर संकेत करती हैं- अनुरंजनी ============================== १) जो व्यस्त है आजकल धान के ओसौनी से भरे जिस माथे में ललक थी कभी अफसर बनने कीवह व्यस्त है आजकलभात और मन दोनों को सीझाने में! उसने तो नहीं कहा था — बावन बीघा वाले से ब्याह दिया जाए उसे.जहाँ उसका महारानी बनना तय हो सकपका जाती हैनहीं पूछती हैकिंतु एक सवाल जो आत्मा की तह से उठ रही – जो…

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यूक्रेन के लेखक यूरी बोत्वींकिन के नाटक \’अंतिम लीला\’ का आज अंतिम हिस्सा पढ़िए- ====================================== इस नाटक के पात्रों में हिंदू देवी-देवताओं के साथ कुछ स्लाविक पौराणिक ईसाईपूर्व देव-देवता भी हैं, जिनका ऐतिहासिक आधार हिंदू चरित्रों की तुलना में कहीं कम प्रमाणित किया गया है, यहाँ तक कि कुछ वैज्ञानिक इन चरित्रों को नवरचित भी मानते हैं। कारण यह है कि ईसाई धर्म आने के बाद पुराने रूस (जो कि अधिकतर आधुनिक युक्रैन का ही नाम हुआ करता था) में पुराने धर्म-सिद्धांतों का नामोनिशान मिटाने का पूरा प्रयास किया गया था। फिर भी स्लाविक सनातनी परंपराओं की कुछ बची हुई…

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प्रसिद्ध कवि-विचारक अशोक वाजपेयी ने कनौता कैंप में आयोजित ‘कथा कहन’ में उपन्यास की अवधारणा, भारतीय उपन्यास की अवधारणा, हिन्दी उपन्यास की परंपरा, अवधारणा को लेकर एक शानदार व्याख्यान दिया था। आज अशोक जी का व्याख्यान अविकल रूप से प्रस्तुत है- ====================== केसव! कहि न जाइ का कहिये। देखत तव रचना बिचित्र हरि! समुझि मनहिं मन रहिये॥ सून्य भीति पर चित्र, रंग नहिं, तनु बिनु लिखा चितेरे। मिटइ न मरइ भीति, दुख पाइय एहि तनु हेरे॥ रबिकर-नीर बसै अति दारुन मकर रूप तेहि माहीं। बदन-हीन सो ग्रसै चराचर, पान करन जे जाहीं॥ कोउ कह सत्य, झूठ कह कोऊ, जुगल प्रबल…

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लक्ष्मीकांत मुकुल की कविताओं पर यह लेख लिखा है कवि शहंशाह आलम ने। आप भी पढ़ सकते है- घर से लेकर खेत और खेत से लेकरलाल चोंच वाले पंछी के पीछे लगा हुआ कवि कुमार अम्बुज कहते हैं, ‘कवि को केवल एक चीज़ चाहिए और वह यह कि हर चीज़ चाहिए। बल्कि जो कुछ दुनिया में अभी नहीं है, वह भी चाहिए। इसलिए उसे स्वप्नशीलता चाहिए। क्योंकि उसका काम एक दुनिया से नहीं चल सकता।’ ये सारी बातें कवि लक्ष्मीकांत मुकुल के लिए भी कही जा सकती हैं। मुकुल एक आंदोलनकर्ता कवि हैं। मुकुल एक घरेलू कवि हैं। मुकुल…

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जीवन में प्रेम का एहसास होना सबसे सुंदरतम अनुभवों में शामिल है। आज कुछ प्रेम कविताएँ पढ़िए। कवि हैं अंचित। इससे पूर्व भी जानकीपुल पर इनकी कविताएँ प्रकाशित हो चुकी हैं, लेकिन उनकी आवाज़ बिलकुल भिन्न थी। राजनीतिक स्वर लिए उन कविताओं के बाद इन प्रेम कविताओं से गुजरना भी एक सुखद एहसास है, जिनमें साथ की सहज व निःस्वार्थ चाह भी है और यदि लगे कि यह प्रेम साथी स्त्री के लिए नुक़सानदायक है तो बिना देर किए उसे अलग हो जाने के लिए सलाह भी है। यह रही कविताएँ- अनुरंजनी ======================================= कुछ कविताएँ महोदया “श” के लिए 1.…

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इस साल एक महत्वपूर्ण किताब आई यतींद्र मिश्र की लिखी \’गुलज़ार साब: हज़ार राहें मुड़ के देखीं\’। गुलज़ार साहब पर ऐसी विस्तृत किताब दूसरी मेरी निगाह में नहीं है। आज विशेष माँग पर वाणी प्रकाशन से प्रकाशित इस किताब का एक अंश पढ़िए- ====================================== अतीत की बहुत सारी तस्वीरें गुलज़ार के यहाँ जमा हैं। बदलते मौसम के लिए पुराने कपड़े और रज़ाईयाँ सँभालकर बड़े-बड़े टं्रकों में जिस तरह रखी जाती हैं, ठीक उसी तर्ज़ पर न जाने कितनी यादों के इन्दराज़ खुद के भीतर संजोए बैठे हैं गुलज़ार। जहाँ जीवन से जुड़ा हुआ मामला है, जिसमें रिश्तेदार और घर-परिवार के…

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खुर्शीद अनवर बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे. मौलिक दृष्टि रखने वाले साहसिक विद्वान. उन्होंने अंग्रेजी के माध्यम से विदेशी भाषा के अनेक कवियों की महत्वपूर्ण कविता के अनुवाद किये थे. यहाँ प्रस्तुत है पाब्लो नेरुदा की एक लम्बी कविता का खुर्शीद अनवर द्वारा किया गया अनुवाद. ===============================================================लफ्ज़ लफ़्ज़ वारिद हुआ खून में दौड गया परवरिश पाता रहा जिस्म की गहराइयों में और परवाज़ भरी होंटों से और मुँह से निकल दूर से दूर भी नज़दीक बहुत ही नज़दीक लफ़्ज़ बरसा किए पुरखों दर पुरखों भी और नस्लों की मीरास के साथ और वह बस्तियाँ जो पहने थी पत्थर के लिबास थक चुकी थीं जो खुद अपने ही बाशिंदों से दबी क्योंकि…

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