आदित्य रहबर की कविताएँ बेहद प्रभावी हैं। आज प्रत्येक व्यक्ति जिसने अपनी सोचने-समझने की शक्ति को बचाई, बनाई रखी हुई है उन सबकी अभिव्यक्ति है यह कविताएँ। आदित्य बिहार के मुज़फ्फरपुर जिले के एक छोटे से गाँव गंगापुर के निवासी हैं। लंगट सिंह कॉलेज, मुज़फ्फरपुर से इतिहास विषय में स्नातक के बाद वर्तमान में हिन्दी साहित्य से स्नातकोत्तर की पढ़ाई कर रहे हैं और साथ में दिल्ली रहकर यूपीएससी की तैयारी भी। इनकी एक कविता संग्रह ‘नदियाँ नहीं रुकतीं’ प्रकाशित है। शॉर्ट फिल्में भी लिखते हैं। आज उनकी यह बेहद साहसिक एवं अनिवार्य कविताएँ आप सबके समक्ष हैं – अनुरंजनी…
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मनुष्य के मनोविज्ञान पर कब कौन सी बात किस तरह असर करती रहती है इसे समझना बेहद जटिल है। तमाम मानसिक बीमारियों में से एक है ‘ड्यूल पर्सनालिटी’ में जीना। इसी को केंद्र में रख कर गरिमा जोशी पंत ने यह कहानी लिखी है, ‘गुठली’। गरिमा का जन्म एवं शिक्षा जयपुर (राजस्थान) में हुई है। उन्हें अध्ययन और लेखन का शौक है।कई ब्लॉग्स, समाचार पत्र (प्रजातंत्र) जानकीपुल में उनकी कविताएँ, कहानी, और लेख प्रकाशित हुए हैं। आज यह कहानी पढ़िए- अनुरंजनी ====================================== गुठली ‘महिला सुरक्षा एवं विकास’ की उस इमारत से बाहर निकल सीमांतिनी सिंह तेजी से पार्किंग में लगी…
संलग्न कविताएँ इस विचार से प्रेरित हैँ कि हिन्दी कविता का समकालीन युग ख़राब कविता के दौर से गुज़र रहा है। इस सम्बन्ध मेँ एक सुविचारित लेख भी है , जिसे कोई गम्भीरता से नहीँ लेता। किन्तु इसमेँ कुछ महत्त्वपूर्ण बातें हैं जो विचारणीय है।लिहाज़ा हम ख़राब कविताएँ लिख कर इस युग की प्रतिनिधि कविताओँ की ऐसी प्रवृत्ति को रेखाङ्कित करना चाहते हैँ। इस उपक्रम का एक विधान है – वह एक सूत्र वाक्य जो सारी ख़राब कविताओँ को एक साथ जोड़ता है।प्रार्थना उजाले मेँ हो रही थी और दिल भादो की तरह रोए जा रहा था। [१] प्रार्थना हर…
आज महेश कुमार का यह शोध अलेख पढिए जिसमें उन्होंने मेक्सिको के आदिवासियों के जापटिस्ट आन्दोलन का भारत के समकालीन आदिवासी आंदोलन और आदिवासी उपन्यासों में समानता की पड़ताल की है और उसका परिणाम क्या हुआ क्या हो सकता था/ है इसे भी रेखांकित किया है। महेश काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में शोधार्थी हैं । उनके कई शोध-आलेख, समीक्षाएँ पक्षधर, वागर्थ, आलोचना, सबलोग, जानकीपुल, समकालीन जनमत, पोषम पा, सुचेता, फॉरवर्ड प्रेस आदि पत्रिकाओं में प्रकाशित हैं – अनुरंजनी ==================================== जापटिस्ट आंदोलन के जनक एमिलियानो जापाटा थे। वे जिस समय में हुए उस दौर में मेक्सिको के आदिवासी हेसिंडा (hacienda) से अपनी…
आज पढ़िए युवा लेखक शहादत के कहानी संग्रह ‘कर्फ़्यू की रात’ की समीक्षा। लिखा है वैभव शर्मा ने। संग्रह का प्रकाशन लोकभारती प्रकाशन से हुआ है- मॉडरेटर======================= युवा लेखक शहादत की कहानियों पर दिल्ली यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर और वरिष्ठ हिंदी लेखिका प्रज्ञा रोहिणी का कहना है कि शहादत की कहानियां हिंदुस्तान के ज़मीनी यथार्थ का वो चेहरा पेश करती हैं, जो निरंतर बदल रहा है। उनके इस कथन को सुनकर मुझे हैरानी के साथ-साथ बेयकीनी का अहसास भी हुआ। मगर यह अहसास शायद इसलिए था कि क्योंकि उस वक्त तक न तो मैं शहादत से मिला था और न ही मैंने…
ललन चतुर्वेदी की यह कविताएँ स्त्रियों के संघर्ष के विभिन्न पहलुओं की ओर ध्यान ले जाती हैं। आइए, उनकी यह कविताएँ पढ़ते हैं- अनुरंजनी =======================================रोशनी ढोती औरतें * उसने हजारों बार देखा हैबहारों को फूल बरसाते हुएपर उसकी जिंदगी में कभी बहार नहीं आईउसने हजारों बार पाँवों को थिरकते देखा हैजब किसी का पिया घर आयापर उसके पाँव कभी थिरक नहीं पाएउसने हजारों बार सुनी हैशहनाई की मादक-मधुर धुनपर उसके लिए कभी बजी नहीं शहनाईयहाँ तक कि उसके जन्म परकिसी ने थाली नहीं बजाईइस दुनिया में उसके आने काकोई अर्थ नहीं थादुनिया से उसके कूच कर जाने कीकहीं कोई चर्चा…
यह सवाल बहुत वाजिब है कि क्या स्त्रीवादी होने का मतलब केवल स्त्री हक़ तक ही सीमित है या इसमें सभी मनुष्य शामिल होते हैं। इसके जवाब सबके पास अलग-अलग हो सकते हैं। इसी विषय पर होती दुविधाओं को आज हमारे समक्ष शिवानी प्रिया रख रही हैं। शिवानी हिन्दी साहित्य की विद्यार्थी रह चुकी हैं और अब दिल्ली विश्वविद्यालय से लॉ की पढ़ाई कर रही हैं तथा इग्नू से जेंडर डेवलपमेंट से स्नातकोत्तर की पढ़ाई भी कर रही हैं। इन्होंने ‘टेस्ट ऑफ़ फेमिनिज्म’ के तहत कई लड़कियों के संघर्ष को हमारे सामने लाया है। आज उनका यह संक्षिप्त लेकिन ठोस…
यतीन्द्र मिश्र की किताब ‘गुलज़ार सा’ब: हज़ार राहें मुड़ के देखीं’ पर यह टिप्पणी लिखी है कवि-लेखक यतीश कुमार ने। आप भी पढ़ सकते हैं- मॉडरेटर========================= इक इक याद उठाओ और पलकों से पोंछ के वापस रख दो … गुलज़ार दूध की ख़ाली बोतल की तरह आपके दरवाज़े पर खड़ा हूँ, जैसा हास्यबोध गुलज़ार का हो सकता है, एक आम पाठक या सिनेमा प्रेमी नहीं जानता, वो तो जानता है एक धीर-गंभीर शायर को, एक बेहद संवेदनशील पटकथाकार को, समुद्र की गहराई लिए पंक्तियों के रचयिता को, तो कभी प्रतिबद्ध फ़िल्मकार को! लेकिन इस किताब ने हम जैसे आम पाठक…
आज पढ़िए अरविंद कुमार मिश्र की कविताएँ। वे दिल्ली विश्वविद्यालय में राजनीति शास्त्र पढ़ाते हैं और कविताएँ लिखते हैं। जानकी पुल पर उनकी कविताएँ पहली बार प्रकाशित हो रही हैं- मॉडरेटर =========================1तुम इस काल का पटाक्षेप होआंखों में फैल रहा आकाशऔर गुज़रे हुए कारवों की यादमन के हर कोने में काबिजदरख़्तों की छांवऔररातों में हर तरफ फैल जाने वालाबेला और जूही का तिलिस्मयह कोई कविता है?या सुदूर कहीं जमीन में अंकित हो गईतुम्हारे पावों की छापउन पुरातन चट्टानों की तमाम गाथाओं मेंतारों और ताराधीश से होने वाली मुलाकातों के दर्ज किस्सेऔर दूर कहीं अलसायी हुई नीलगायों का तुमको निहारनाअरे रुको…….क्या…
आज पढ़िए संध्या नवोदिता की कहानी ‘विष खोपरा’। एक छोटी सी घटना कितने बड़े संदर्भों से जुड़ सकती है इस कहानी में देखा जा सकता है- मॉडरेटर ======================== पहली बार जब वह अजब-गजब जानवर दिखा तो भौंचक कर गया. बहुत देर तक समझ में ही नहीं आया कि यह अजूबा था क्या ! पांच फुट लम्बी, खूब तंदुरुस्त छिपकली, अपने चारों पैरों पर ठसक से बलखाती, कालोनी की सड़क क्रास कर रही थी. मंत्रमुग्ध कर देने वाली चाल. बस कुछ ही पल का नज़ारा. लगा यह तो डायनासोर छिपकली है. इतनी बड़ी छिपकली ज़िंदगी में कभी नहीं देखी. फिर दिमाग…