साहित्य का जीवन में समावेश सांस्कृतिक मूल्य है। इसमें गीत-कविता बहुधा आते हैं। यह पुस्तक अंश लगभग छ: साल पुरानी एक सच्ची घटना पर आधारित है। कथा की नायिका निशा वर्मा के जन्मदिन के उपलक्ष्य मेँ प्रचण्ड प्रवीर की पुस्तक कल की बात – गान्धार से पाठकोँ के लिए विशेष प्रस्तुति–************कल की बात है। जैसे ही मैँने दफ़्तर मेँ कदम रखा, मेरी नज़र जमीन पर गिरे चमकते-झिलमिलाते झुमके पर जा पड़ी। मैँने झुक कर उसे उठा कर घुमा कर देखा। ‘सोने मेँ जड़े रत्न कहीँ हीरे-मोती न हो!’ मैँने सोचा। ‘क्या करूँ? दफ़्तर मेँ ज़मा कर दूँ? किसी नीयत बुरी…
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हमसे बहुधा बाल साहित्य की उपेक्षा हो जाती है। समय पंख लगा कर उड़ जाता है। यदि हम यह तथ्य न भूलें कि हम बच्चों में पढ़ने की आदत विकसित कर पाने में असफल रहे तो आने वाली पीढ़ियाँ संस्कृतिविहीन होगी और हिन्दी के प्रति अनुदार। जानकीपुल यह घोषणा करते हुए हर्षित हो रहा है कि हम अब बाल साहित्य को अपनी पत्रिका में महत्त्वपूर्ण स्थान देंगे। इस क्रम का आरम्भ हम कवि, लेखक और बाल साहित्यकार नवनीत नीरव की इस प्यारी कहानी से कर रहे हैं। यह आकर्षक चित्र भी नवनीत नीरव का ही बनाया हुआ है।आजकल मैं…
अम्बुज पाण्डेय अपनी आलोचना और टिप्पणियों के लिए जाने जाते हैं। गगन गिल की कविताओं पर उनका आलेख पाठकों के लिए विशेष *************** ‘गगन गिल’ की काव्य यात्रा में पिछले चार दशकों से अधिक का समय स्पंदित हो रहा है। इस दीर्घावधि में हिन्दी साहित्य में अभिव्यक्ति, अनुभूति और काव्य संवेदना के धरातल पर बहुत कुछ परिवर्तित हुआ है। स्त्री लेखन अपनी स्वानुभूति, विषयों की विविधता और आत्मबल से पहले की तुलना में अधिक समर्थ सिद्ध हुआ है। संकोच और वर्जनाओं की तमाम सीमाओं को अतिक्रमित करता स्त्री लेखन गुण और परिमाण दोनों दृष्टियों से परिशंसन पा रहा है। जो…
वागीश शुक्ल अपने अद्वितीय निबन्धों, टीकाओं और अपने लिखे जा रहे उपन्यास के लिए प्रसिद्ध हैं। वे सम्भवतः हिन्दी के अकेले ऐसे लेखक हैं जो हिन्दी के अलावा अंग्रेज़ी, संस्कृत, फ़ारसी और उर्दू पर समानाधिकार रखते हैं। यही कारण है कि उनकी भाषा में बहुकोणीय समृद्धि अनुभव होती है। उनकी नवीन पुस्तक ‘आहोपुरुषिका’ सनातन धर्म में विवाह पर विस्तृत चर्चा है।पुस्तक की परिचयात्मक टिप्पणी मृदुला गर्ग के शब्दोँ मेँ :आहोपुरुषिका की विषाद झंझा उसका एक तिहाई हिस्सा है। बाकी दो तिहाई में, विवाह सूक्त का शास्त्र सम्मत और अत्यन्त विद्वत्तापूर्ण विवेचन है। सनातन धर्म में जहाँ वह देवानुप्राणित कौटुम्बिक कर्म…
जानकी पुल पर कल युवा लेखक आलोक रंजन की कहानी ‘स्वाँग से बाहर’ प्रकाशित हुई थी। कहानी समकालीन जीवन के बेहद जटिल और बारीक समस्या यानी कि रिश्तों के असंख्य विकल्प के बीच जीने के बावजूद भी कोई मन-माफ़िक़ रिश्ता नहीं मिल पाने को रेखांकित करती है। इस संवेदनशील कहानी पर पढ़िए कुमारी रोहिणी की टिप्पणी- ===================================== संडे को अख़बार पढ़ने या ख़ख़ोरने की आदत बचपन के दिनों में विकसित हुई कुछेक ऐसी आदतों में से एक है जो आज भी बरकरार है। ऐसे में ही आज के हिंदुस्तान टाइम्स के सप्लीमेंट में एक लेखनुमा खबर पर नज़र गई। आद्रिजा…
आज पढ़िए युवा लेखक आलोक रंजन की कहानी ‘स्वाँग से बाहर’। आलोक रंजन को हम उनके यात्रा वृत्तांत ‘सियाहत’ से जानते हैं लेकिन उनकी कहानियों की भी अपनी अलग जमीन है। बिना किसी शोर-शराबे के जीवन की जटिलताओं को अपनी कहानियों में वे दर्ज करते हैं। प्रस्तुत कहानी इसका अच्छा उदाहरण है। कहानी पढ़कर बताइएगा- प्रभात रंजन ===================== ‘मुझे तुमसे बात करनी है … खाना खाने के बाद बाहर आ जाना।‘ उस वक़्त कमरे में अंधेरा था लेकिन बाहर अंधेरे की सीमा में प्रकाश की ख़ासी मिलावट! मोरों की आवाज़ की असीम निरंतरता उसे भली लगती थी और इस…
कुछ कृतियों की प्रासंगिकता लंबे समय तक बनी रहती है। ऐसी ही एक कृति मंज़ूर एहतेशाम का उपन्यास ‘सूखा बरगद’ भी है। आज इस उपन्यास की समीक्षा कर रही हैं राखी कुमारी। राखी ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से हिंदी विषय में स्नातकोत्तर किया है, वर्तमान में बिहार के एक स्कूल में हिंदी पढ़ाती हैं- अनुरंजनी ================================ सूखा बरगद : धार्मिक कट्टरता के बीच उम्मीद की एक किरण भारत के इतिहास के पन्नों में विभाजन विभीषिका एक बहुत ही अमानवीय घटना के रूप में दर्ज है| इस विभाजन की त्रासदी को इतिहास के साथ-साथ साहित्य में भी…
आज 26 नवंबर 2008 मुंबई हमले की 16वीं बरसी है. आजाद भारत के इतिहास में देश पर हुआ यह सबसे बड़े आतंकी हमलों में से एक था. इस हमले में 18 सुरक्षाकर्मियों सहित 166 लोग मारे गए थे और 300 से ज्यादा लोग घायल हुए थे. भारत की आर्थिक राजधानी पर हुए इस हमले की कड़वी स्मृतियां आज भी देश के मन में एक घाव है. एक शहर को बंधक बनाकर उसे दहशत और आतंक के साए में कैद करने के यह काले दिन देश के स्मृति पटल पर भी गहरे घाव की तरह अंकित है. सारंग उपाध्याय न केवल…
कल साहित्य आजतक में यतीन्द्र मिश्र के कविता संग्रह ‘बिना कलिंग विजय के’ का लोकार्पण हुआ। वाणी प्रकाशन से प्रकाशित इस संग्रह की एक कविता ‘भामती’ पर यह लेख लिखा है कुमारी रोहिणी ने। रोहिणी कोरियन भाषा पढ़ाती हैं तथा हिन्दी में लिखती हैं- मॉडरेटर ============================ आज तक हम कलिंग विजय की गाथा गाते आ रहे हैं। कलिंग अब केवल इतिहास नहीं बल्कि हमारी भाषा और संस्कृति के लिए उपमा की तरह है। ऐसे समय में जब हासिल का अर्थ केवल और केवल जीत होकर रह गया है, हमारे सामने ‘बिना कलिंग विजय के’ नाम से किताब आ जाती है।…
दीपा मिश्रा की कविताएँ उन स्त्रियों का प्रतिनिधित्व करती हैं जिनके मन में कई ऐसे सवाल हैं जिनका उत्तर वह इस समाज से चाहती हैं लेकिन वे उत्तर भी उन्हें नहीं मिलते हैं। साथ ही उनकी कविताएँ में यह स्पष्टता भी है कि स्त्रियों के लिए प्रेम, जो कि सबसे सहज अनुभूति है, उसकी ही अभिव्यक्ति कर पाना उनके लिए सहज नहीं है। प्रस्तुत हैं उनकी सात कविताएँ- अनुरंजनी 1. माँ नदी बन गई यह मेरा दुर्भाग्य ही था कि मेरे पहुँचने तक न माँ का देह बचा था और न ही कोई अवशेष देह को पिता अग्नि को समर्पित…