Author: admin

महेश वर्मा की ताजा कविताएँ यहाँ प्रस्तुत हैं. हिंदी के इस शानदार कवि की कविताओं से अपनी तो संवेदना का तार जुड़ गया. पढ़कर देखिये कहीं न कहीं आपका भी जुड़ेगा- प्रभात रंजन ==========================================================पिता बारिश में आएंगेरात में जब बारिश हो रही होगी वे आएंगेटार्च से छप्पर के टपकने की जगहों को देखेगें औरअपनी छड़ी से खपरैल को हिलाकर थोड़ी देर कोटपकना रोक देंगेओरी से गिरते पानी के नीचे बर्तन रखने को हम अपने बचपन में दौड़ पड़ेंगेपुराना घर तोड़कर लेकिन पक्की छत बनाई जा चुकी हमारे बच्चे खपरैल की बनावट भूल जायेंगेपिता को मालूम होगी एक एक शहतीर की उम्रवे चुपचाप…

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महेश वर्मा की ताजा कविताएँ यहाँ प्रस्तुत हैं. हिंदी के इस शानदार कवि की कविताओं से अपनी तो संवेदना का तार जुड़ गया. पढ़कर देखिये कहीं न कहीं आपका भी जुड़ेगा- प्रभात रंजन ==========================================================पिता बारिश में आएंगेरात में जब बारिश हो रही होगी वे आएंगेटार्च से छप्पर के टपकने की जगहों को देखेगें औरअपनी छड़ी से खपरैल को हिलाकर थोड़ी देर कोटपकना रोक देंगेओरी से गिरते पानी के नीचे बर्तन रखने को हम अपने बचपन में दौड़ पड़ेंगेपुराना घर तोड़कर लेकिन पक्की छत बनाई जा चुकी हमारे बच्चे खपरैल की बनावट भूल जायेंगेपिता को मालूम होगी एक एक शहतीर की उम्रवे चुपचाप…

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युवा लेखक प्रचंड प्रवीर को हम \’अल्पाहारी गृहत्यागी\’ के प्रतिभाशाली उपन्यासकार के रूप में जानते हैं. लेकिन कविताओं की भी न केवल वे गहरी समझ रखते हैं बल्कि अच्छी कविताएँ लिखते भी हैं. एक तरह का लिरिसिज्म है उनमें जो समकालीन कविता में मिसिंग है. चार कविताएँ- जानकी पुल. ===========================================================    कलकत्ता पीपल का पत्ता, काला कुकुरमुत्ता, निशा, जायेंगे हम गाड़ी से कलकत्ता आसिन की बरखा, कातिक में बरसा, निशा, आओगी तुम? पूना से कलकत्ता आरती की थाली, चंदन और रोली, निशा, देखोगी तुम? पूजा में कलकत्ता छोटा सा बच्चा खट्टा आम कच्चा, निशा, तुमको ढूँढेगा सारा शहर कलकत्ता छोटी ​सी​…

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युवा लेखक प्रचंड प्रवीर को हम \’अल्पाहारी गृहत्यागी\’ के प्रतिभाशाली उपन्यासकार के रूप में जानते हैं. लेकिन कविताओं की भी न केवल वे गहरी समझ रखते हैं बल्कि अच्छी कविताएँ लिखते भी हैं. एक तरह का लिरिसिज्म है उनमें जो समकालीन कविता में मिसिंग है. चार कविताएँ- जानकी पुल. ===========================================================    कलकत्ता पीपल का पत्ता, काला कुकुरमुत्ता, निशा, जायेंगे हम गाड़ी से कलकत्ता आसिन की बरखा, कातिक में बरसा, निशा, आओगी तुम? पूना से कलकत्ता आरती की थाली, चंदन और रोली, निशा, देखोगी तुम? पूजा में कलकत्ता छोटा सा बच्चा खट्टा आम कच्चा, निशा, तुमको ढूँढेगा सारा शहर कलकत्ता छोटी ​सी​…

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कुमार अनुपम की कविताएँ समकालीन कविता में अपना एक अलग स्पेस रचती है- \’अपने समय की शर्ट में एक्स्ट्रा बटन की तरह\’. हिंदी कविताओं की अनेक धाराओं के स्वर उनकी कविताओं में दिखाई देते हैं जो उनकी एक अलग आवाज बनाते हैं. यहं उनकी कुछ कविताएँ- जानकी पुल.=============================================================अशीर्षक बेहया उदासी मेरी नागरिकता की रखैल मुझसे बेसाख्ता मज़ाक करती है मुझे घिन आती है और यह छद्म है मुझे दया आती है और यह परोपकार का भ्रम मुझे नशा है आदमी होने का यही पश्चात्ताप अपने समय का ज़ाहिर खिलवाड़ हूँ आइस-पाइस, एक्ख्खट-दुख्खट, पोशम्पा और खो-खो मुझे ढूँढना आसान नहीं मेरे लिए…

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कुमार अनुपम की कविताएँ समकालीन कविता में अपना एक अलग स्पेस रचती है- \’अपने समय की शर्ट में एक्स्ट्रा बटन की तरह\’. हिंदी कविताओं की अनेक धाराओं के स्वर उनकी कविताओं में दिखाई देते हैं जो उनकी एक अलग आवाज बनाते हैं. यहं उनकी कुछ कविताएँ- जानकी पुल.=============================================================अशीर्षक बेहया उदासी मेरी नागरिकता की रखैल मुझसे बेसाख्ता मज़ाक करती है मुझे घिन आती है और यह छद्म है मुझे दया आती है और यह परोपकार का भ्रम मुझे नशा है आदमी होने का यही पश्चात्ताप अपने समय का ज़ाहिर खिलवाड़ हूँ आइस-पाइस, एक्ख्खट-दुख्खट, पोशम्पा और खो-खो मुझे ढूँढना आसान नहीं मेरे लिए…

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दूरदर्शन की नई पहल है ‘दृश्यांतर’. \’मीडिया, साहित्य,संस्कृति और विचार\’ पर एकाग्र इस पत्रिका का प्रवेशांक आया है. जिसमें सबसे उल्लेखनीय है श्याम बेनेगल से त्रिपुरारी शरण से बातचीत. ‘मोहल्ला अस्सी वाया पिंजर’ में सिनेमा के अपने अनुभवों पर चंद्रप्रकाश द्विवेदी ने अच्छा संस्मरणात्मक लेख लिखा है. यतीन्द्र मिश्र लोकप्रिय सिनेमा पर ऐसी लिखते हैं जैसे कोई गंभीर विमर्श कर रहे हों और उनसे पहले किसी ने वैसा लिखा ही न हो. ‘अनारकली’ फिल्म और संगीतकार सी. रामचंद्र पर उनका लेख कुछ इसी तरह का है. यतीन्द्र ने \’गिरिजा\’ के बाद बहुत संभावनाएं जगाई थी, लगता है उनके लेखन की…

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