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आज पढिए संजय लीला भंसाली की वेब सीरीज़ ‘हीरामंडी’ पर जाने माने पत्रकार-चित्रकार रवींद्र व्यास की सम्यक् टिप्पणी। रवींद्र जी ने देर से लिखा है लेकिन दुरुस्त लिखा है- =========================== फ़ानूस और मशाल! नमाज़ गूंजती है। शुरुआत होते ही अंधेरे में एक ख़ूबसूरत फ़ानूस चमकता है। काली-भूरी पहाड़ी पर जैसे शफ़्फ़ाफ़ आबशार। फ़ानूस की चार हिस्सों में नीचे झरती रौशनी में आलीशान महल या कोठी की दीवारें साँस रोके खड़ी हैं। हर बेक़रार करवट में गिरते आंसुओं और इश्क़ की आह और कराह की चुप गवाह। हर षड्यंत्र की बू को सहती-सोखती….आती-जाती और इश्क़ में फ़ना होती रूहों की उठती-गिरती…

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सिमोन द बोउआर का प्रसिद्ध कथन है “स्त्री पैदा नहीं होती, बनाई जाती है”। ठीक इसी तरह पुरुषों के लिए भी यह कहा जा सकता है कि पुरुष पैदा नहीं होते, बनाए जाते हैं। शालू शुक्ल की यह कविताएँ विविध स्वर वाली कविताएँ हैं जिनमें से एक पुरुष निर्मिति की ओर ही ध्यान दिलाती है। इसके साथ किसी अपने की पुकार पर लौट आने, ठहरने का निवेदन भी है, देवताओं की पूजा-अर्चना करने के बनिस्पत अपने आस-पास के लोगों की सहायता करना भी है, हाउसवाइफ का दुख भी है और ‘जहाँ न पहुँचे रवि वहाँ पहुँचे कवि’ जैसे कहावतों पर…

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‘उमस के समीकरण’ कहानी लिखी है ज्योत्स्ना मिश्रा ने। ज्योत्स्ना मिश्रा पेशे से चिकित्सक हैं और कथाओं के रंगमंच की कलाकार भी। उनकी यह कहानी कई स्तरों की ओर इशारा करती है चाहे वो आज के जमाने में सोशल मीडिया का प्रभाव हो, विवाहेतर संबंध हो, प्रेम के नाम पर दिया जा रहा भ्रम हो या स्त्री को एक शरीर से इतर कुछ भी न देख पाने का मनोविज्ञान हो। आप भी पढ़ सकते हैं – अनुरंजनी ============================= खिड़की खुली रखना मजबूरी थी, साँकल लगती ही नहीं थी। जून का महीना था पूरी-पूरी दोपहरी उमस ठिठकी खड़ी कुछ सोचती रहती।…

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आज जानकी पुल की विशेष प्रस्तुति मनीषा कुलश्रेष्ठ द्वारा- ============================== यूरी बोत्वींकिन मेरे फ़ेसबुक मित्र काफी समय से रहे हैं, मगर वैयक्तिक परिचय वातायन के एक लाइव के दौरान हुआ। बातों-बातों में तब उनके लेखन से परिचय हुआ तो मैं चकित रह गई, भारतीय दर्शन को में उनकी गहरी पैठ देखकर। विदेशी होने के कारण किसी की अच्छी हिन्दी पर चौंकना मैंने बहुत पहले बंद कर दिया था जब विश्वहिंदी सम्मेलनों में मेरा परिचय विश्व-भर के हिन्दी मर्मज्ञों से हुआ। लेकिन किसी ने असंख्य हिन्दी कविताएं लिखी हों और एक अनूठा नाटक ‘अंतिम लीला’ भी यह अभिभूत करने वाली बात…

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आज जब हर व्यक्ति एक दूसरे से आगे निकलने की होड़ में लगा हुआ है तब कोई अपने साथ के व्यक्ति को ( ख़ास कर एक ही पेशे में होने के बावजूद) भरपूर प्रेम और सम्मान से याद करे तो यह निश्चित ही मनुष्यता की ओर आश्वस्ति का भाव पैदा करता है। यह भी तभी संभव होता है जब प्रेम और सम्मान परस्पर हों। पल्लव जी, एक शिक्षक और बनास जन के संपादक अपने समकालीन आशीष त्रिपाठी के प्रति इसी तरह का अनुभव हमसे साझा कर रहे हैं ।आप भी पढ़ सकते हैं – अनुरंजनी =================================================== …

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हिन्दी के सबसे प्रयोगशील लेखकों में प्रचण्ड प्रवीर का नाम प्रमुखता से आएगा। कभी भूतनाथ के नाम से लिखने वाले प्रचण्ड ने आईआईटी से इंजीनियरिंग की पढ़ाई की। उपन्यास, कहानियों में तो अपने प्रयोग के लिए जाने ही गये, रस सिद्धांत और विश्व सिनेमा पर उनकी किताब अपने ढंग की इकलौती किताब है। संस्कृत-परंपरा हो या विश्व साहित्य की परंपराएँ प्रचण्ड उन सबके ऊपर पूरे अधिकार के साथ बोल और लिख सकते हैं। जिस दौर में सब कैरियर के पीछे भागते हैं प्रचण्ड ने साहित्य के लिए अपने कैरियर को लगातार दांव पर लगाया है। उनसे यह बातचीत कई लंबी…

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किसी भी लड़की के लिए एक छोटे शहर से चलकर देश की राजधानी तक पहुँचना, सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालय में नामांकन पाना बेहद संघर्षपूर्ण होता है। मुझे ‘वर्षा वशिष्ठ’ बार-बार याद आती है, बहुत याद आती है। उसका संघर्ष सभी लड़कियों के संघर्ष का प्रतीक बन कर आता है।वह भी अपने छोटे से शहर शाहजहाँपुर से निकल कर, दिल्ली पहुँचती है और धीरे-धीरे अपनी पहचान हासिल करती है। कुछ इसी तरह के अनुभव से हमें रूबरू करा रही हैं प्रीति कुमारी। यह अनुभव गया से निकल कर जेएनयू तक पहुँचने और वहाँ अब तक की सीख-समझ के बारे में है। प्रीति गया…

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आज पढ़िए शिक्षाविद, मोटिवेटर द्वारिका प्रसाद उनियाल की कविताएँ। इसी साल पुस्तक मेले में द्वारिका का कविता संग्रह आया है \’मेरे आसान झूठ\’। उनकी कुछ चुनिंदा कविताएँ पढ़िए- =============================== 1 अम्मा का पल्लू हम अपना बचपन दो बार जीते हैंपहले खेल-खेल मेंऔर फिर उनकी स्मृतियों में बार-बारविस्मृतियों के किसी कोनें मेंअम्मा का पल्लू छुपा होता हैजिस से लिपट कर हम रोते थेहंसते थेछुपते थेछुपाते थे पल्लू जिसकी ओट में हमअपनी एक अलग दुनिया बनाते थेपहले हमारी ढालफिर हमारी हक़ीक़तअंत में एक स्मृति भर रह जाती है फिर धीरे-धीरेवक्त के साथ वे साड़ियाँ भी संदूक़ों में क़ैद हो गयींअवचेतन में विस्मृत…

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बहुत लंबे समय बाद कथाकार प्रभात रंजन ने एक कहानी लिखी है। विषय प्रेम, विरह, डिजिटल दुनिया है। प्रसंगवश, जानकीपुल के लिए उन्होंने पहली बार कोई कहानी लिखी है। आज आप सबके सामने प्रस्तुत है। पढ़कर राय दीजियेगा- अनुरंजनी ==================================== तुझ से जुदा होने के बाद का पहला हफ़्ता एक तरफ़ मेरे नाना बहुत बड़े ज़मींदार थे। मेरे ननिहाल में पुरुषों में एक शौक़ आम था। शाम होते ही अक्सर सब शिकार पर चले जाते। चिड़िया, जंगली जानवर जो मिल जाता उसी का शिकार हो जाता। मैं सबसे बड़ा नाती था नाना का इसलिए यह ज़रूरी समझा गया कि शिकार…

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