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शैलप्रिया स्मृति सम्मानएक दिसंबर 1994 को झारखंड की सुख्यात कवयित्री और स्त्री-संगठनों से जुड़ी सामाजिक कार्यकर्ता शैलप्रिया का कैंसर की वजह से देहांत हो गया। तब वे 48 साल की थीं। उनके अपनों, और उनके साथ सक्रिय समानधर्मा मित्रों और परिचितों का एक विशाल परिवार है जो यह महसूस करता रहा कि अपने समय, समाज और महिलाओं के लिए वे जो कुछ करना चाहती थीं, वह अधूरा छूट गया है। उस दिशा में अब एक क़दम बढ़ाने की कोशिश हो रही है। उनके नाम पर बने शैलप्रिया स्मृति न्यास ने महिला लेखन के लिए 15,000 रुपये का एक सम्मान देने…
शैलप्रिया स्मृति सम्मानएक दिसंबर 1994 को झारखंड की सुख्यात कवयित्री और स्त्री-संगठनों से जुड़ी सामाजिक कार्यकर्ता शैलप्रिया का कैंसर की वजह से देहांत हो गया। तब वे 48 साल की थीं। उनके अपनों, और उनके साथ सक्रिय समानधर्मा मित्रों और परिचितों का एक विशाल परिवार है जो यह महसूस करता रहा कि अपने समय, समाज और महिलाओं के लिए वे जो कुछ करना चाहती थीं, वह अधूरा छूट गया है। उस दिशा में अब एक क़दम बढ़ाने की कोशिश हो रही है। उनके नाम पर बने शैलप्रिया स्मृति न्यास ने महिला लेखन के लिए 15,000 रुपये का एक सम्मान देने…
हाल में नैरोबी में हुए आतंकी हमले में घाना के कवि कोफ़ी अवूनोर भी मरने वालों में थे. उनकी एक लम्बी कविता का हिंदी अनुवाद किया है युवा कवि त्रिपुरारि कुमार शर्मा ने. जानकी पुल की तरफ से उस कवि को श्रद्धांजलि स्वरुप- जानकी पुल.================================कोफी अवूनोर की कविता यह पृथ्वी, मेरा भाई एक पहचानी हुई आवाज़ में सुबह चटकती है हवाओं को चीरती हुई हमारे मंदिरों को गिरा चकनाचूर करती हमारी आशा के चर्च की परवरिश करती उन वेदियों पर हमारी जान की पेशकश करती बहुत पहले की गई सफाई के लिए। वायुतरंगों के भीतर जो हम अंतड़ियों में ढोते हैं…
हाल में नैरोबी में हुए आतंकी हमले में घाना के कवि कोफ़ी अवूनोर भी मरने वालों में थे. उनकी एक लम्बी कविता का हिंदी अनुवाद किया है युवा कवि त्रिपुरारि कुमार शर्मा ने. जानकी पुल की तरफ से उस कवि को श्रद्धांजलि स्वरुप- जानकी पुल.================================कोफी अवूनोर की कविता यह पृथ्वी, मेरा भाई एक पहचानी हुई आवाज़ में सुबह चटकती है हवाओं को चीरती हुई हमारे मंदिरों को गिरा चकनाचूर करती हमारी आशा के चर्च की परवरिश करती उन वेदियों पर हमारी जान की पेशकश करती बहुत पहले की गई सफाई के लिए। वायुतरंगों के भीतर जो हम अंतड़ियों में ढोते हैं…
आज युवा कवयित्री प्रकृति करगेती की कविताएँ. इनको पढ़ते हुए लगता है कि समकालीन कविता की संवेदना ही नहीं भाषा भी कुछ-कुछ बदल रही है-जानकी पुल.==========================================कंकालएक कंकाल लिएचल देते हैंहर ऑफिस में।कंकाल है रिज्यूमे का।हड्डियों के सफ़ेद पन्नों पेकुछ ख़ास दर्ज है नहींन ख़ूनन धमनियाँकुछ भी तो नहीं….दर्ज है बस खोखली सी खोपड़ीदो छेदों सेसपने लटकते हैंनाक नाकारा हैसूंघती नहीं है मौकों कोज़बान नदारद हैकाले जर्जर दांत हैं बसकपकपाते।पलट के देखोगे पन्नेतो नज़र आयेंगेपसलियों की सलाखों को पकड़ेकुछ कैद ख्याल,टुकटुकी लगाये, बहार देखते।ये पन्नों का कंकाल हैइसमें कोई हरकत नहींकई दफ़ा मर चुका है येपर न जाने क्यूँ, कूड़ेदान के कब्रिस्तान सेबार बार उठ…
आज युवा कवयित्री प्रकृति करगेती की कविताएँ. इनको पढ़ते हुए लगता है कि समकालीन कविता की संवेदना ही नहीं भाषा भी कुछ-कुछ बदल रही है-जानकी पुल.==========================================कंकालएक कंकाल लिएचल देते हैंहर ऑफिस में।कंकाल है रिज्यूमे का।हड्डियों के सफ़ेद पन्नों पेकुछ ख़ास दर्ज है नहींन ख़ूनन धमनियाँकुछ भी तो नहीं….दर्ज है बस खोखली सी खोपड़ीदो छेदों सेसपने लटकते हैंनाक नाकारा हैसूंघती नहीं है मौकों कोज़बान नदारद हैकाले जर्जर दांत हैं बसकपकपाते।पलट के देखोगे पन्नेतो नज़र आयेंगेपसलियों की सलाखों को पकड़ेकुछ कैद ख्याल,टुकटुकी लगाये, बहार देखते।ये पन्नों का कंकाल हैइसमें कोई हरकत नहींकई दफ़ा मर चुका है येपर न जाने क्यूँ, कूड़ेदान के कब्रिस्तान सेबार बार उठ…
निजार कब्बानी की कुछ कविताओं के बहुत आत्मीय अनुवाद कवयित्री-कथाकार अपर्णा मनोज ने किये हैं. कुछ चुने हुए अनुवाद आपके लिए- मॉडरेटर.============================= निज़ार को पढ़ना केवल डैमस्कस को पढना नहीं है या एक देश की त्रासदी को पढना भी नहीं -यह हर अकेले व्यक्ति की मुक्ति की जिजीविषा का संघर्ष है जिसका पूर्वदृश्य कट्टर परम्पराओं,अलंघनीय यौन वर्जनाओं और राजनैतिक दबाओं से तैयार हुआ .औरत के लिए कब्बानी की कविता गॉस्पेल के साथ खुद की तलाश भी है .उनकी पुस्तक \”ओन एंटरिंग द सी \”से मैंने इस लम्बी कविता को लिया है.आठ में से चार अंश यहाँ हैं.मूल से अंग्रेजी अनुवाद लेना…
निजार कब्बानी की कुछ कविताओं के बहुत आत्मीय अनुवाद कवयित्री-कथाकार अपर्णा मनोज ने किये हैं. कुछ चुने हुए अनुवाद आपके लिए- मॉडरेटर.============================= निज़ार को पढ़ना केवल डैमस्कस को पढना नहीं है या एक देश की त्रासदी को पढना भी नहीं -यह हर अकेले व्यक्ति की मुक्ति की जिजीविषा का संघर्ष है जिसका पूर्वदृश्य कट्टर परम्पराओं,अलंघनीय यौन वर्जनाओं और राजनैतिक दबाओं से तैयार हुआ .औरत के लिए कब्बानी की कविता गॉस्पेल के साथ खुद की तलाश भी है .उनकी पुस्तक \”ओन एंटरिंग द सी \”से मैंने इस लम्बी कविता को लिया है.आठ में से चार अंश यहाँ हैं.मूल से अंग्रेजी अनुवाद लेना…
मैथिली भाषा के प्रसिद्ध कवि, कथाकार, आलोचक जीवकांत जी का निधन हो गया. सहज भाषा के इस महान लेखक को अविनाश दास ने बहुत आत्मीयता के साथ याद किया है अपने इस जीवन से भरे लेख में. उनके लेख के साथ जीवकांत जी की स्मृति को प्रणाम- मॉडरेटर.==============पिछले दस सालों में जीवकांत जी के दस पोस्टकार्ड आये होंगे। मैंने शायद एक भी नहीं भेजा होगा। यह कर्तव्य निबाहने और कर्तव्य से चूकने का अंतर नहीं है। जीवकांत जी जैसे कुछ लोग हमेशा रिश्तों को लेकर सच्चे होते हैं और हम जैसे लोग मिट्टी के छूटने के साथ ही मिजाज से…