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यतीश कुमार की किताब ‘बोरसी भर आँच – अतीत का सैरबीन’ के प्रकाशन का एक वर्ष पूरा हो चुका है। पूरे साल इसकी चर्चा बनी रही।  अब भी हो रही है। पढ़िए इसके ऊपर नई टिप्पणी जो लिखी है डॉ सुशीला ओझा ने- मॉडरेटर ============================ संघर्ष माँजता है, परिष्कार करता है, निखारता है। साहित्य की बोरसी में आग का रहना आवश्यक है। बोरसी मिट्टी की बनी होती है, सहिष्णुता के भाव से सराबोर रहती है और एक मौन साधक की तरह दूसरों को ऊष्मा देने के लिए स्वयं जलती रहती है। बोरसी की एक छोटी सी चिंगारी, राख में दबी…

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आज से हम एक नया स्तंभ शुरू कर रहे हैं- जन हित में जारी, सब पर भारी! स्तंभ की लेखिका हैं वाणी त्रिपाठी। वाणी ने थियेटर, फ़िल्मों, टीवी धारावाहिकों में अभिनय किया। साथ ही, अंग्रेज़ी में ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ में नियमित स्तंभ लिखा। वह संस्कृति के क्षेत्र की एक मुखर आवाज़ हैं। इस स्तंभ में वह संस्कृति, भाषा से जुड़े विषयों पर लिखेंगी। आज प्रस्तुत है स्तंभ की पहली कड़ी- मॉडरटेटर ============= आज के सोशल मीडिया के युग में, जहां हर ट्वीट, जोक या पोस्ट एक बवंडर का रूप ले सकता है, हास्य अब किसी भी खाली स्थान में नहीं…

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आज पढ़िए पूनम सोनछात्रा की दुःख की नौ कविताएँ – अनुरंजनी ============== 1. लड़की मुस्कुराती है न सिर्फ़ तस्वीरों में बल्कि आमने-सामने भी लेकिन उसके मुस्कुराने से नहीं बजता जलतरंग कोई इंद्रधनुष आसमान पर नहीं सजता कहीं फूल नहीं खिलते पक्षी चहचहाते नहीं हैं और न ही हवा कोई गीत गुनगुनाती है मुस्कुराहट के साथ सुखी दिखने की चेष्टा लड़की का उद्यम है और दुःख… लड़की का भाग्य 2. दुःख छाती पर पड़ा वह बोझ है जिसके भार तले दबा हुआ है समूचा अस्तित्व दुःख तो यह भी है कि इस भार को उतारने के लिए न कोई कुंभ है…

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रज़ा न्यास द्वारा आयोजित दो दिवसीय आयोजन ‘युवा’ की यह रपट लिखी है जानकी पुल की युवा संपादक अनुरंजनी ने-  ================== 18 फरवरी को कृष्णा सोबती का जन्मशती पूरा हुआ। इस अवसर पर रज़ा न्यास द्वारा दिनांक 19-20 फरवरी को उन पर एकाग्र दो दिवसीय कार्यक्रम हुआ – ‘युवा-2025’, जिसमें विभिन्न विषयों पर कुल 9 सत्र हुए। यह ‘युवा’ का सातवाँ आयोजन था। जो इस आयोजन की रूपरेखा से परिचित हैं वे जानते हैं कि हर सत्र में युवा लेखकों के वक्तव्यों के बाद एक वरिष्ठ लेखक उन पर टिप्पणी करते हैं। ज़ाहिर है इस बार भी यह होना था।…

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आज पढ़िए ज्योत्स्ना मिश्र की कहानी। ज्योत्स्ना जी की कहानियों की अपनी अलग ज़मीन है और उनकी शैली भी बहुत अलग है। जैसे यह कहानी पढ़कर देखिए- मॉडरेटर ============== कैसा अजीब दिन है! कैसा होता है अजीब दिन? क्या अजीब है इसमें? दिन सा दिन है अभी कुछ घंटों बाद रात सी रात हो जायेगी बोलो न सुमी अजीब क्या? सुमी ने कोई जवाब नही दिया। दरअसल दिन नहीं सुमी अजीब है। कभी बोलती तो इतना बोलती की मुझे नींद आ जाती पर वो बोलती ही रहती, बोलती ही रहती। पूरे दिन बोलती रात हो जाती तो रात भर बोलती।…

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आज पढ़िए अम्बर पाण्डेय के उपन्यास ‘मतलब हिन्दू’ पर यह टिप्पणी। लिखा है डॉ कुमारी रोहिणी ने। वाणी प्रकाशन से प्रकाशित यह उपन्यास जबसे प्रकाशित हुआ है तब से लगातार चर्चा में बना हुआ है। आप यह टिप्पणी पढ़िए- प्रभात रंजन ====================== किसी भी विषय पर लिखने से पहले उसकी मौलिकता, प्रासंगिकता और इतिहास की समझ बहुत जरूरी होती है। आप चाहे फ़िक्शन पढ़ें या नॉन-फ़िक्शन, दोनों ही विधा में इन तीनों बिंदुओं की महत्ता को कम नहीं आंका जा सकता है। इसके इतर किसी भी प्रकार और श्रेणी की रचना का एक अन्य महत्त्वपूर्ण कैरेक्टरिस्टिक होता है जिसका नाम…

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बाल साहित्य मेँ आज हम पढ़ते हैँ सुप्रसिद्ध कवि प्रभात की कहानी ‘अनवर’- ******************** अनवर ‘अनवर इतनी देर से निशान्त के साथ क्या खुसुर-फुसुर कर रहे हो।’ मास्टर जी ने पूछा। ‘पढ़ाई की ही बात कर रहे हैं साब जी, फालतू की बातें करने को तो घर पर ही काफी टैम रहता है।’ अनवर ने मास्टर जी की तरफ झाँकते हुए कहा। ‘क्या बात कर रहे हो पढ़ाई की?’ माटसाब रामविलास जी ने कड़क आवाज में पूछा। ‘पढ़ाई की बात इतनी जल्दी समझ में आ जाती तो हम रोज-रोज स्कूल क्यों आते साब जी।’ अनवर ने मास्टर जी की तरफ…

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आज पढ़िए मनीषा कुमारी की कविताएँ। मनीषा दौलत राम महाविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय में हिंदी विशेष द्वितीय वर्ष की छात्रा हैं। यह देखना सुखद है कि इतनी कम उम्र में विचारों की इतनी गहनता, परिपक्वता उनके पास है – अनुरंजनी =============================== 1. मूर्ति समाज में सरस्वती की मूर्तियाँ गढ़ते हैं अनेकों कुम्हार, स्त्रियाँ भी हाथ बँटाती हैं उनका किंतु सोच एवं मेहनताने पर जबरन अधिकार रहता है सिर्फ पुरुषों का ही। वे बनाते हैं सुंदर एवं श्रृंगार में लिपटी हुई देह, सजी-सँवरी दुर्गा की हाथों में तलवार और तलवार के तले असुर, जो उजागर करती है जातीय विभिन्नता से उत्पन्न…

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इधर हर वर्ष अमृता प्रीतम की जन्म-तिथि पर या उनकी मृत्यु-तिथि पर उनके प्रेम-कहानी का ज़िक्र चलने लगता है। लेकिन क्या यह ज़रूरी है कि उनके प्रेम-जीवन पर बात करने के लिए अगस्त या अक्टूबर का इंतज़ार किया जाए! यह फ़रवरी का महीना है, जिसे लोग प्रेम का महीना भी मानते हैं, और इसी महीने में अनामिका झा ने उमा त्रिलोक की किताब ‘अमृता इमरोज़’ के बहाने प्रेम पर लिखा है, सबको प्रेम के महीने की मुबारकबाद के साथ, इस कामना के साथ कि सबके जीवन में प्रेम बना रहे, यह लिखा प्रस्तुत है- अनुरंजनी ========================================= प्रेम में एक-दूसरे के…

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बच्चोँ के साहित्य का दायरा इतना तंग नहीँ होता कि वे बड़ोँ की चिन्ताएँ न समझ सके। श्रद्धा थवाईत की कहानी ‘असर’ 9 साल से बड़े बच्चोँ के लिए है। जानकीपुल पर अपनी टिप्पणी ज़रूर दर्ज करेँ- मॉडरेटर  ******************** उस शाम रिया ऑफिस से थकी-हारी घर पहुँची। उसने पाया कि बैठक की खिड़की में, नेटलॉन की जाली और रॉड के बीच कुछ मोटे-मोटे तिनके जमा हैं। घर के आस-पास पड़की, कबूतर और गौरेया बहुत थे। जिस अनगढ़ तरीके से वे तिनके पड़े थे, यह किसी पड़की का ही काम हो सकता था। रिया उत्साहित हो उठी। कुछ पल जीवन में…

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