समकालीन लेखकों में निहाल पराशर की कहानियों का मिज़ाज सबसे जुदा है। गहरे व्यंग्य-बोध के साथ लिखते हैं। उदाहरण के लिए यही कहानी लीजिए- मॉडरेटर
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चून्नू उत्साही चुनाव के मैदान में कूद गया! कोई सोच सकता था? बाकी देस का चुनाव अपना जगह, बिहार का चुनाव अपना जगह। आग का दरिया है महाराज! लेकिन चुन्नू उत्साही कोई बुतरू है? चुन्नू उत्साही मैदान में कूदा तो पता चला कि मैदान में धुल-धक्कर बहुत है। ई भी चुनाव का एक मुद्दा बना। चुनावी मैदान में एक से एक धुरंधर सब खड़ा था। सब पलट कर देखने लगा कि साला ई चुन्नू उत्साही, जो रील पर वीडियो बना-बना कर आँख-कान से खून निकाल दिया है, चुनाव लड़ने कैसे कूदा? चुन्नू खड़ा हुआ। अपने पिछवाड़े से धूल झाड़ने से पहले चश्मा ठीक किया। फिर अपना हेयरस्टाइल पर एक हाथ मारा। उसके बाद चलते हुए पिछवाड़ा से धूल झाड़ा। जलवा था चुन्नू उत्साही का!
पर ई कहानी यहाँ से शुरू ही नहीं होता है। थोड़ा पीछे से भैयवा!
1.
चुन्नू उत्साही हमेशा से ही उत्साही बालक था। शुरुआत में पारिवारिक माहौल ने थोड़ा सा हतोत्साहित करने की कोशिश की। इस माहौल को ग़रीबी भी कह सकते हैं। किसान परिवार। देश में किसानों के लिए क्या ही है? कोई भी किसानी करने वाला हतोत्साहित हो ही जाएगा। लेकिन चुन्नू ऐसा नहीं था। चुन्नू कुछ अलग करना चाहता था। लेकिन क्या, ये सोच ही नहीं पा रहा था। पर कुछ अलग करने का उत्साह उसके अंदर हमेशा से था।
ऐसा भी नहीं है कि हीरो टाइप का लड़का था। पहले तो नेता जी के भीड़ का ही हिस्सा था। नेता जी मतलब विधायक नितिन कुशवाहा। ई अभी तक विधायक बने नहीं थे। लेकिन फिर भी इनके नाम के साथ ‘विधायक जी’ का संबोधन जुड़ गया था। कुछ लोग का पर्सनालिटी ऐसा होता है कि आसपास के लोग उनको उनके सपने से ही संबोधित करने लगता है। नरकटिया गाँव में ही देखिए तो कितना हीरो, विधायक या सांसद घूम रहा है! कोई लड़का-लड़की पढ़ाई करते दिख जाये तो उसको ‘रे डॉक्टरवा’ का संबोधन भी मिल जाता है। ये गाँव वालों के आत्मीयता दिखाने का तरीका है।
ई पूरा का पूरा कहानी जो है ढोलकपुर विधानसभा क्षेत्र का है। नक़्शा में खोजियेगा तो पूरा भारत में ढोलकपुर मिल जाएगा, उसका नाम कुछ भी हो- लेकिन है ढोलकपुर ही। सबलोग मिलकर इस जगह को खूब बजाया है। पटना से चार घंटा का रास्ता, लेकिन सालों पीछे। आप चले जाइए एक बार, लगेगा टाइम ट्रैवल करके 1970 में पहुँच गये हैं। सबके हाथ से मोबाइल छीन लीजिए और एक फोटो निकालिए। आपको कुछ करने का ज़रूरत ही नहीं है। हो गया विंटेज फोटो तैयाए। मोबाइल का भी लोग क्या ही करता है? झुनझुना की तरह हाथ में लिए हुए है। नेटवर्क के नाम पर कुछ भी नहीं। सबको मालूम है क्षेत्र में कहाँ-कहाँ रहने पर मोबाइल का नेटवर्क आएगा। जहाँ नेटवर्क आता है वहाँ पर कोई दूरदर्शी आदमी एक चाय का दुकान खोल लेता है। नेटवर्क के साथ-साथ दुकान भी चल पड़ता है।
ऐसे ही परिवेश में चुन्नू बाबू रह रहे थे। कॉलेज गये। लेकिन मन नहीं लगा। क्षेत्र में कॉलेज था ही नहीं। कॉलेज के लिए जाना पड़ता था तीस किलोमीटर दूर। पहले-पहले तो गये। अपना घर से पहला आदमी हुए जो कॉलेज तक गया। लेकिन चुन्नू बाबू थोड़ा सा अलग मिजाज के थे। राजा टाइप आदमी। साला रोज सुबह साइकिल पर पैडल मारते हुए कॉलेज जाएँगे? भक! कभी नहीं। दूसरा बात, दोस्त सब तो नरकटिया में ही रह रहा था। कॉलेज में शहर टाइप का लड़का-लड़की था। ई लोग चुन्नू बाबू को थोड़ा गँवार टाइप समझता था। अरे भाई, गाँव का आदमी गँवार ही लगेगा। इसमें गलत क्या है? लेकिन चुन्नू बाबू को शहर का हवा ठीक नहीं लगा। इसलिए कॉलेज जाना छोड़ दिये।
“त तू कॉलेज ना जइब?”
“ना, हम ना जायेम।”
बाबूजी ने बस इतना ही पूछा। चुन्नू बाबू ने इतना ही जवाब दिया। बाबूजी को लगा था बेटा कॉलेज जाकर पढ़ेगा तो परिवार के लिए अच्छा होगा। लेकिन बेटा का परिवार का नाम बड़ा करने का कोई इरादा नहीं था… फ़िलहाल।
गाँव में हल्ला हुआ कि विधायक रामा पांडे का गाड़ी आ रहा है। ई असली वाले विधायक जी थे। क्षेत्र में कम ही दिखते थे। लेकिन जब दिखते थे तो सर्कस के हाथी की तरह पूरा करतब दिखा कर जाते। ऐसे ही थोड़े ना पच्चीस साल से विधायक थे। रामा पांडे भूमिहार थे और क्षेत्र में भूमिहार आबादी बहुत कम थी। फिर भी मजाल है कि चुनाव हार जायें! इसका एक और कारण था कि रामा पांडे लोकगीत बहुत बढ़िया गाते थे। लोग कैसेट के जमाने से इनको जानता था। अभी भी यूट्यूब पर ये जलवा बरकरार था। सेलिब्रिटी वाला बात तो था रामा पांडे में।
रामा पांडे का गाड़ी आया। आगे तीन गाड़ी, पीछे तीन गाड़ी। बीच में विधायक जी का गाड़ी। गाँव में स्कूल का बड़ा मैदान था। वहीं पर सब कार्यक्रम होता था। रामा पांडे का काफिला वहीं लग गया। गाड़ी से रामा पांडे उतरे, और तब तक तो पूरा गाँव आ चुका था। जलवा इसको कहते हैं! कोई सोचेगा कि आदमी जान-माल का नुकसान करके भी चुनाव क्यों लड़ता है? ग्लैमर के लिए। ई सब झूठ बात है कि चुनाव लोकतंत्र की रक्षा के लिए हो रहा है। एक बार ढोलकपुर आइये। लोकतंत्र आपको इंस्टाग्राम और फेसबुक पर ही भूल कर आना होगा। आप समझ जाएँगे कि पूरा खेल ग्लैमर का है। रामा पांडे काला चश्मा, सफ़ेद शर्ट, सफ़ेद पैंट और सफ़ेद स्पोर्ट्स शू पहने हुए उतरे। चेहरा पर मुस्कान और मूँछ पर ताव देते हुए हाथ हिलाये। इनका समर्थक सब भीड़ को उत्साहित किया। सब लोग नारा लगाने लगा, “रामा पांडे ज़िंदाबाद। ज़िंदाबाद, ज़िंदाबाद।”
फिर राम सिंह का ड्राइवर बिसलेरी का बोतल लेकर आया। रामा सिंह बिसलेरी के पानी से मुँह धोये। कुल्ला किए। तब तक उनका दो समर्थक माइक और स्पीकर लेकर उनके पास खड़ा हो चुका था।
“हेलो, हेलो! माइक टेस्टिंग।” एक समर्थक माइक टेस्टिंग किया और फिर रामा पांडे की तरफ़ माइक बढ़ाया।
रामा पांडे माइक पकड़े। पकड़ कर दस सेकंड भीड़ को देखते रहे। चेहरा पर मुस्कान बरकरार। भीड़ को तुरंत समझ आ गया कि अभी और चिल्लाने का समय है। भीड़ लगा ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाने। “रामा पांडे ज़िंदाबाद। ज़िंदाबाद, ज़िंदाबाद।”
हाथ से चुप रहने का इशारा करते हुए रामा पांडे माइक को मुँह के पास लाये। “इतना ज़िंदाबाद बोलिएगा आपलोग तो हम अमर ही हो जाएँगे।” भीड़ पूरा जोश में।
“अगले साल चुनाव है। उसका तैयारी देखने पूरा ढोलकपुर में निकले हुए हैं इसलिए नरकटिया गाँव में भी आ गये। ई मत समझियेगा कि कम आते हैं तो ध्यान नहीं रहता। पूरा ध्यान रहता है। अभी कल ही मुख्यमंत्री जी को हम बोले कि भाई आप बाकी काम बाद में कीजिए लेकिन नरकटिया गाँव का सड़क पहले बनवाइये। मुख्यमंत्री जी सारा काम छोड़ कर पहले अपना सेक्रेट्री को बुलाये। हमारे सामने सेक्रेटरी को डाँट लगाये और आदेश दिया, ‘नरकटिया गाँव का सड़क बनवाइये’। तो बस समझिए कि बन ही गया। चुनाव से पहले ही बनवा देंगे। बहुत हुआ तो चुनाव के तुरंत बाद। इसका कोई बात ही नहीं है।” भीड़ को बस आश्वासन ही चाहिए था। सड़क का मुद्दा सालों पुराना है। इसी मुद्दा पर पहली बार रामा पांडे विधायक बना था। शहर से जोड़ने वाली सड़क कच्ची है। किसी को भी शहर जाना हो तो कच्ची सड़क से ही जाना पड़ता है। अब कोई अस्पताल जाये या शादी में, सालों-साल से ये चल ही रहा है।
रामा पांडे आगे बोले, “चुनाव का तो हमको टेन्सन ही नहीं है। आपलोग माई-बाप हैं। आपलोग ही हमको बनाये हैं।” इसके बाद अचानक से रामा पांडे एक भोजपुरी गाना गा दिये, “तोहरा चोलिया के हुक बड़ा नीक लागेला”। सुपरहिट गाना। जिस साल ये गाना आया था उसी साल रामा पांडे को पटना में MLA फ्लैट मिल गया था। उसके बाद से आज तक उनका निवास स्थान बदला ही नहीं। भले ही पढ़े-लिखे लोग इसको अश्लील बोले, लेकिन “चोलिया के हुक” गाना ही रामा पांडे को बनाया। पहले भोजपुरी गानों का बेताज बादशाह, फिर भोजपुरी सिनेमा का सुपरस्टार, फिर विधायक। मन में सांसद और भविष्य में बिहार का मुख्य मंत्री बनने का सपना तो था ही।
चुन्नू भी भीड़ में रामा पांडे का सब हरकत देख रहा था। भीड़ में ही नितिन कुशवाहा का लड़का सब भी था। उसी में से कोई रामा पांडे पर पत्थर मार दिया। बाप रे बाप! रामा पांडे पर पत्थर! ई कोई सोच ही नहीं सकता था। लेकिन नरकटिया गाँव था तो अंत में नितिन विधायक का गाँव!
कांड हो गया।
रामा पांडे को पत्थर लगा। ‘चोलिया के हुक’ गाना रुका। पहले तो रामा पांडे को समझ ही नहीं आया कि हुआ क्या। फिर वो माइक पर ही बोले, “आसमान से पत्थर गिरा क्या?” समर्थक बोला, “नहीं विधायक जी। पब्लिक में से कोई मारा है।”
रामा पांडे का चेहरा लाल। साला, ई नरकटिया गाँव जो असल में छोट जात वाला सबका गाँव है, उसमें सबको इतना हिम्मत हो गया कि रामा पांडे, भूमिहार ज़मींदार को पत्थर मार दे! “रे रे! केकरा में इतना हिम्मत हुआ कि हमको पत्थर मारा? मार के मुआ देंगे! रामा पांडे हैं हम!” लेकिन भीड़ के माहौल में कभी कोई मुजरिम पकड़ा गया है? हल्ला हो गया। माहौल बिगड़ने लगा। उसी में कुछ लोग चिल्लाने लगा, “रामा पांडे मुर्दाबाद! मुर्दाबाद, मुर्दाबाद।” रामा पांडे समर्थक सब माहौल को समझा और रामा भैया को तुरंत गाड़ी में बैठाया। असली विधायक जी निकल गये।
लेकिन नरकटिया गाँव के विधायक जी तुरंत आगे आ गये! नितिन कुशवाहा का समर्थक सब चिल्लाने लगा, “नितिन भैया ज़िंदाबाद! ज़िंदाबाद, ज़िंदाबाद।” नितिन भैया का समर्थक भी पोर्टेबल माइक और स्पीकर लेकर घूम रहा था। नितिन कुशवाहा तुरंत माइक पर आया और बोला, “बहुत हुआ रामा पांडे का अत्याचार। साला, पच्चीस साल से एक ही गाना पर हमलोग को नचा रहा है। हमलोग ससुर नाच भी रहे हैं। एक सड़क नहीं बनवा पाया और फिर से बोलता है कि चुनाव बाद बनेगा। इस बार कोई भी रामा पांडे को वोट नहीं देगा!” समर्थक सब चिल्लाया, “नितिन भैया ज़िंदाबाद! ज़िंदाबाद, ज़िंदाबाद।”
नरकटिया की तरफ़ से चुनाव का एजेंडा सेट हो गया था। माहौल गरम था। इस बार पक्का खेल होने वाला था। इसी माहौल में चुन्नू बाबू भी खूब उत्साह में नितिन भैया के लिए नारा लगा रहे थे। “नितिन भैया ज़िंदाबाद! ज़िंदाबाद, ज़िंदाबाद।”
2.
चुन्नू बाबू का पारिवारिक परिवेश समझते हैं। परिवार में पिताजी और माता जी। बड़ी दो बहनों का पड़ोस के गाँव में ब्याह हो गया था। दोनों जीजा जी दिल्ली और मुंबई में रहते थे। दिल्ली वाले जीजाजी सिक्योरिटी कंपनी में काम करते थे। मुंबई वाले तो अंबानी के घर एंटीला में कुक थे। मुंबई वाले जीजा का बहुत इज़्ज़त था। साल में एक बार बिहार आते- महीना भर रहते। सबलोग उनके पास जाता, दुनिया भर का कहानी सुनाते। बताते कि उनके हाथ का खाना कौन-कौन खाया हुआ है। मुकेश अंबानी, शाहरुख़ ख़ान, राहुल गांधी से लेकर मोदी जी- सबको एक लिस्ट में ले आते। देश में एकता हो ना हो, जीजा जी के लिस्ट में ज़रूर थी। चुन्नू मुंबई वाले जीजाजी से बहुत प्रभावित था। पूरा जुगाड़ किया हुआ था कि किसी तरह जीजाजी मुंबई बुला लें। चुन्नू को मुंबई का आकर्षण था। एक शहर जहाँ सारे के सारे सिनेमा सितारे रहते हैं! कैसा होता हो ऐसे शहर में रहना? सड़क पर चलो तो कभी शाहरुख़ टकरा रहा है तो कभी सलमान! जीजाजी ने भी बताया था, “सड़क पर ही सब हीरो सब दिख जाता है। कोई बड़ा बात नहीं है। तुम मुंबई कभी आओगे तो सबसे मिल लेना।”
लेकिन एक अकेले जीजाजी कितने लोगों को मुंबई बुलाएँगे? कम से कम दस लोग को एंटीला में काम पर लगवा चुके थे और कम से कम पच्चीस-तीस लोग लाइन में थे। सब चाहते थे किसी तरह जीजाजी मुंबई का टिकट करवा दें। जीजाजी चुन्नू को बोले, “तुम थोड़ा बहुत अंग्रेज़ी सीख लो। एंटीला में सिक्योरिटी वाला को अच्छा पैसा मिलता है। हम कुछ जुगाड़ करवा देंगे। सिक्योरिटी टीम का हेड भी बिहार का ही है ना, मुजफ्फरपुर साइड का। लेकिन अंग्रेज़ी सीखे के पड़ी। समझला?” “जी जीजा जी। यूट्यूब पर अंग्रेज़ी का प्रैक्टिस कर रहे हैं। आप बताइएगा ना कब आना है। हम आ जायेम।” जीजाजी सांत्वना दिये। बोले बहुत जल्द बुलायेंगे।
चुन्नू बाबू के पिताजी खेती करते थे। किसान आदमी। थोड़ा बहुत खेत था अपना। लेकिन किसानी में पैसा कहाँ है? बोलने वाला तो बोल देता है कि किसान देश का पेट भर रहा है। लेकिन ई नहीं बताता कि अपना ही पेट काट कर पेट भर रहा है। इसलिए किसानी में बहुत मन कभी नहीं लगा। पिताजी एक मंदिर के पास जाते, वहीं पर अपने पुराने दोस्तों के साथ शराब पीते। शराब रोज़ का आदत था। शराबबंदी वैसे तो बिहार में थी लेकिन इतनी भी नहीं थी कि आदमी पी ना सके। जिसको पीना होता वो पी ही लेता। कोई बोलने वाला नहीं था। अरे भाई, पचासों साल का आदत सरकार के एक फ़ैसला से बदल जाएगा? पुलिस ख़ुद ई पूरा बात समझती है। इसलिए बिहार में सबसे सुरक्षित तरीक़ा पुलिस से ही शराब ख़रीदने का होता है। इसमें क्वालिटी का गारंटी भी मिल जाता है। पर पिताजी भेदभाव नहीं करते। जहाँ शराब मिलता, वहीं पी लेते। गारंटी का बहुत फ़िक्र नहीं था।
वैसे देखा जाये तो घर में चुन्नू बाबू की माँ का ही चलता था। लेकिन घर था ही कितना बड़ा? घर का दोनों मर्द बाहर ही रहता था। तो चले भी तो किसपर? माता जी भी पता नहीं कौन सी बात पर हमेशा ग़ुस्सा में रहती। कोई बात जरुर होगा, लेकिन किसी को पता नहीं चला। कोई पूछा भी नहीं। सब यही बोलता, “भक महाराज! चुन्नू की माई गाली बहुत देती है।” बात भी सही था। जब ना तब गाली दे देती थी। जिसका जैसा व्यवहार! इसलिए गाँव के लोग चुन्नू की माई से थोड़ा बच के ही रहते।
छब्बीस की उमर में चुन्नू ऐसा कुछ भी नहीं किया था जिसके कारण लोग उसको इज़्ज़त दे। नरकटिया गाँव के लोग का इज़्ज़त जीतने के लिए मेहनत बहुत करना पड़ता था। वैसे चुन्नू जिस उमर में था उस उमर के किसी भी नरकटिया के लड़का का इज़्ज़त नहीं के बराबर ही था। इज़्ज़त बस उसी लड़का का था जो गाँव से शहर निकल गया। गाँव में रहने वाले को बेवक़ूफ़ कहा गया। चुन्नू बाबू के जितने दोस्त थे उनका भी क्या ही इज़्ज़त था? सब बस अपने टाइम का इंतज़ार कर रहे थे कि कब गाँव से बाहर निकलें।
इसी माहौल में नितिन कुशवाहा वापस नरकटिया आया था। नितिन को छोटा-मोटा आदमी नहीं समझा जाये। कुशवाहा समाज से ही था। पहले इसका नाम नितिन सिंह था। पटना यूनिवर्सिटी के छात्रसंघ का प्रेसिडेंट बना। नाम हुआ। पॉलिटिक्स का तारा चमक गया। बोलने में एक नंबर। पटना यूनिवर्सिटी में कहाँ-कहाँ से लोग आता है? उसमें ढोलकपुर विधानसभा क्षेत्र के एक छोटे से गाँव नरकटिया का नितिन सिंह अगर अपनी पहचान बनाता है तो छोटा आदमी तो नहीं ना होगा! नितिन सिंह के परिवार के पास बहुत ज़मीन थी। बड़ा ज़मींदार तो नहीं था लेकिन फिर भी इज़्ज़तदार परिवार। इज़्ज़तदार परिवार का मतलब पैसा वाला परिवार। हर इज़्ज़तदार परिवार में एकाध ऐसा कांड तो होता ही है जिससे किसी का बहुत इज़्ज़त नहीं बढ़ता। लेकिन पैसा अकेले ऐसा चीज़ है जो परिवार का इज़्ज़त बढ़ा सकता है। इसमें कास्ट का समीकरण भी है। ज़रूरी नहीं पैसे के कारण ऊँचे जात के परिवार आपको इज़्ज़त देने लगें। लेकिन अगर परिवार से कोई पॉलिटिक्स में बड़ा खेला कर दिया हो तो इज़्ज़त आना निश्चित है। पॉलिटिक्स का अपना एक जात है जो समाज के सभी समीकरण को तोड़ देता है। पोलिटिकल क्लास में अपर कास्ट और लोअर कास्ट नहीं होता। होता है तो बस पोलिटिकल कास्ट।
नितिन बाबू जब पटना यूनिवर्सिटी में चुनाव जीते तो बिहार के बड़े-बड़े पॉलिटिशियन से मिलने लगे। इनके पोलिटिकल मेंटर बने बिहार के दिग्गज नेता और पूर्व मुख्य मंत्री रामलखन यादव। रामलखन जी समझाये, “नितिन बउआ, आप अपने विधान सभा क्षेत्र जाइए। अपने क्षेत्र का राजनीति कीजिए। वहाँ साला रामा पांडे जैसा लफुआ बाईस साल से विधायक बना हुआ है। क्षेत्र को नये खून की ज़रूरत है। हमलोग का सपोर्ट है। और अपना कास्ट का प्रयोग करो यार। कुशवाहा समाज से हो और सिंह लिखते हो। आज से आप नितिन कुशवाहा के नाम से जाने जाएँगे।”
बस एक वो दिन था और एक आज का दिन है। रामलखन यादव का हाथ सिर पर हो तो नितिन कुशवाहा रामा पांडे पर भी पत्थर फेंकवा सकता है।
चुन्नू नितिन कुशवाहा को बचपन से जानता था। अड़ोस-पड़ोस का घर। बचपन से नीतू भैया-नीतू भैया कहता आया था। लेकिन जबसे छात्रनेता के रूप में नितिन कुशवाहा वापस आये थे, चुन्नू भी इनको विधायक जी कहने लगा था। असल में नितिन कुशवाहा को विधायक शब्द का संबोधन बहुत पसंद था। विधायकी का सम्मोहन है ही ऐसा कि क्या कहा जाये!
नितिन ढोलकपुर में अपना टीम बनाने लगा। इसके सहयोग में ज़्यादातर लड़का सब नरकटिया गाँव का ही था। रामलखन यादव की पार्टी, राष्ट्रीय विकास मोर्चा, का अपना जनाधार भी इनके साथ जुड़ गया। हर किसी को दिख रहा था कि रामा पांडे और उसकी पार्टी, बिहार विकास पार्टी, को पहली बार कोई टक्कर देने की तैयारी कर रहा है।
चुन्नू भी नितिन कुशवाहा के साथ रहने लगा। “देखो चुन्नू, तुम छोटा भाई हो।” एक दिन नितिन कुशवाहा ने चुन्नू बाबू को समझाया। “इसलिए तुमको समझाना ज़रूरी है। हम इंस्टाग्राम पर देखे हैं तुम्हारा रील सब। इसमें कुछ नहीं रखा है। मऊगा जैसा नाचते रहते हो। हमारे साथ लगे रहो। सोशल मीडिया ताकतवर चीज़ है। लेकिन वहाँ पर मुजरा मत करो यार। अभी तुम्हारा कितना फॉलोवर है?”
“अभी तो भैया कहाँ ही है। बस तीन हज़ार।”
“साला तीन हज़ार कम होता है? तीन हज़ार आदमी जुटा देगा नरकटिया में तो विधायकी का चुनाव लड़ जाएगा! लेकिन मेहनत का काम करो। कुछ बढ़िया कंटेंट बनाओ यार। पॉलिटिक्स खेलो इंस्टाग्राम पे, समझे?”
चुन्नू को हँसी आयी। आसपास के लोग भी हँसे। बात सही है। तीन हज़ार कम लोग थोड़े ही ना होते हैं! लेकिन फ़िलहाल विधायक जी चुन्नू का उत्साहवर्धन कर रहे थे। “इंटरनेट पर कुछ भी चल जाता है। अभी तीन हज़ार है। कल को तीन लाख भी हो सकता है। बस काम बढ़िया करो।”
विधायक जी ने अपने बाक़ी समर्थकों को भी समझाया, “साला इंटरनेट बहुत पावरफुल है। पुतिन, मोदी, ट्रंप- सब इसका ताक़त समझता है। इस बार का चुनाव इंटरनेट पर लड़ा जाएगा। रील से हरायेंगे रामा पांडे को। सबलोग मेरे नाम का रील बनाओ। तुम भी समझ लो चुन्नू। लौंडिया की तरह नाचना छोड़ो और मेरे लिए रील बनाओ।”
चुन्नू को एक काम मिल गया। चुनाव में अभी साल भर से ऊपर का समय था। लेकिन तैयारी तो अभी से ही करनी होगी। कार्यकर्ता की ज़िम्मेदारी एक आम वोटर से बहुत अधिक होती है। आम वोटर को तो बस चुनाव के दिन वोट करना होता है। किसको वोट करना है इस बात पर डिपेंड करता है कि कौन कितना पैसा दिया, कौन दारू पिलाया। सड़क का मुद्दा, स्कूल-कॉलेज का मुद्दा बहुत पीछे का बात है। इंसान वर्तमान में जीता है। दूसरा बात, स्कूल-कॉलेज का करना क्या है? जो बूढ़ा हो चुका है, ऊ तो कॉलेज जाएगा नहीं। उसको तो दारू चाहिए! तो ईहे है वोट की ताकत। कार्यकर्ता को पानी की तरह कभी भी बह सकने वाले वोट को अपने नेता के लिए सम्भाल के रखना है। बहुत ज़िम्मेदारी का काम है।
3.
चुन्नू के अंदर एक उत्साह आ गया था। नेता का हाथ सिर पर पड़ते ही इंसान में उत्साह आ ही जाता है।
लेकिन चुन्नू अपने पसंद का रील नहीं बना पाने से थोड़ा व्याकुल भी हो रहा था। चुन्नू बाबू के रील की ख़ासियत थी। ये पुराने गाने को लेता और उस पर ‘लीप्सिंग’ करता। माने गाने के बोल के ऊपर अपने होठ हिलाता, जैसे सिनेमा में हीरो करता है। जब चुन्नू बाबू ऐसा करते तो ख़ुद को हीरो समझते। ये अपने रील में इमोशन डालते। सिर्फ़ इमोशन नहीं, जान भी डाल देते। जो भी देखता ज़रूर कहता ‘साला इतना मेहनत तो शाहरुख़ ख़ान नहीं किया होगा जितना ई चुन्नू उत्साही कर रहा है।’
चुन्नू बाबू को पहले पहल लोगों ने ही चुन्नू उत्साही कहना शुरू किया। गाँव के लोगों ने नहीं, इंटरनेट के लोगों ने। किसी ने उनके वीडियो पर कमेंट किया था, “अपना नाम चुन्नू उत्साही रख लो! ज़रूरत से ज़्यादा उत्साह है भाई तुम में!” आशय जो भी रहा हो, ये नाम चुन्नू बाबू को जँच गया। फटाफट इंस्टाग्राम पर अपना नाम चेंज किया- ‘चुन्नू उत्साही’। महीना भर में लोगों को ये नाम याद हो गया। इंटरनेट पर लोग पूरा नाम लेकर कॉमेंट करने लगा। गाँव में ऐसा नहीं था। गाँव के लोग अभी भी उसको चुन्नू या चुन्नुआ के नाम से बुलाते। इंटरनेट पर एक समानांतर जीवन चलने लगा था। चुन्नू बाबू उसमें पूरा खुश थे। ऐसा लगता था जैसे उसके मज़बूत कंधों पर पूरे इंस्टाग्राम का बोझ है। भले ही तीन हज़ार लोग हों, लेकिन चुन्नू उसे अपना परिवार मानता था। इंस्टा-फैम।
पर विधायक जी के कहने पर चुन्नू ने अपना इंस्टाग्राम का मोह छोड़ा और नितिन कुशवाहा के संदेश को प्रसारित करने लगा। नितिन कुशवाहा कहीं भी जनसभा करते तो बीच में चुन्नू घुस कर एक रील भी बना देता।
धीरे-धीरे रील का खेल होने लगा। किसी ने सच ही कहा है, अगर इंसान लगातार कुछ भी करे तो उसमें सबसे बड़ा बन सकता है। वो चाहे बेवकूफ़ी हो या इंस्टाग्राम पर रील। नितिन कुशवाहा का नाम होने लगा। सभी लोग चुन्नू को भूल गये और नेताजी पर ध्यान देने लगा। कहना ग़लत ना होगा कि चुन्नू के पास सोशल मीडिया मार्केटिंग का जन्मजात टैलेंट था। वो अपने प्रोफाइल पर नितिन कुशवाहा को वायरल कर दिया।
हुआ ये कि चुन्नू उत्साही जब भी रील बनाता तो लगातार बनाता। एक ही कपड़े में बीस-पच्चीस रील; उसी समय अपलोड। नितिन कुशवाहा विधानसभा क्षेत्र में कोई सभा कर रहा था। चुन्नू भी उसके साथ ही था। बीस रील उस दिन भी अपलोड हुआ। सभी रील नितिन कुशवाहा के लिए थे। लेकिन चुन्नू का मूड किया कि एक रील अपने लिए भी बनाये। अंदर का इंफ्ल्यूएंसर अभी भी जगा हुआ था।
तो हुआ ऐसा कि एक रील जिसमें चुन्नू बाबू गाँव की एक गाय के साथ नृत्य करते हुए देखे गये, वायरल हो गया। गाना था सुपरस्टार गोविन्दा का अमर गीत “सोना कितना सोना है, सोने जैसा तेरा रंग / सुन ज़रा सुन क्या कहती है दीवाने दिल की धड़कन / तू मेरा, तू मेरा, तू मेरा, तू मेरा, तू मेरा हीरो नंबर वन!” इस रील में ऐसा लग रहा था जैसे गाय चुन्नू बाबू के लिए गीत गा रही हो। चुन्नू बाबू का डांस भी इसमें इतना बढ़िया था कि लोग शेयर पर शेयर करते गये। रील के वायरल होने से पहले जहाँ सिर्फ़ तीन-चार हज़ार फॉलोवर थे, रील के वायरल होते ही दिन भर में अस्सी हज़ार फॉलोवर हो गये। चुन्नू बाबू के उत्साह को देश के विभिन्न इलाक़ों से समर्थन मिल चुका था।
चुन्नू उत्साही को समझ ही नहीं आया कि ये क्या हुआ! वायरल होना कोई छोटी बात थोड़े ही है। लोग आपको जानना चाहते हैं। आपके बारे में पता करना चाहते हैं। आपके जीवन में क्या चल रहा है, क्या नहीं चल रहा है। देखते ही देखते इस रील के व्यू पच्चीस मिलियन पार! समय नहीं लगा और रील ने पचास मिलियन का आँकड़ा छू दिया।
चुन्नू अपना साँस रोके हुए ये सब लगातार देख रहा था। उसको लगा कि अभी घर से बाहर निकलेगा और जनता उसके प्रेम में खड़ी होगी। पचास मिलियन व्यू के घमंड के साथ चुन्नू जैसे ही बाहर निकला एक पुराना दोस्त मोनू दौड़ते हुए चुन्नू की तरफ़ आ रहा था। चुन्नू को देखते ही मोनू चिल्लाया, “चल दौड़ चुन्नू। क्षेत्र में लड़ाई हो गया है। विधायक जी पे असली विधायक का आदमी सब अटैक कर दिया है।”
चुन्नू भी दौड़ने लगा। एक फेमस इंस्टाग्रामर से पहले चुन्नू एक कार्यकर्ता था। कार्यकर्ता के कुछ धर्म होते हैं जिसमें सबसे ऊपर है अपने नेता के लिए हमेशा दौड़ते रहना। चुन्नू दौड़ते हुए अपने इंस्टाग्राम परिवार के बारे में सोचता रहा। क्या कोई उसके लिए भी ऐसे दौड़ लगा पाएगा? नहीं यार! कहाँ विधायक जी, और कहाँ हम। हमलोग का फॉलोवर कार्यकर्ता नहीं है। बस फॉलो बटन दबा दिया है।
सही बात है। गाँव में किसी को पता भी नहीं चला कि चुन्नू के एक रील का व्यू पचास मिलियन पार कर गया है। मिलियन का आँकड़ा ही लोगों को नहीं पता था। तो पचास मिलियन का महत्व कैसे पता चलता। विधायक जी को भी इस बात की जानकारी नहीं पहुँची थी।
दौड़ते हुए चुन्नू और मोनू गाँव के चौक पर पहुँचे। लड़ाई अब तक चल रही थी। रामा पांडे का पार्टी कार्यकर्ता सब संख्या में अधिक था। और नितिन कुशवाहा के लड़कों को बहुत मज़ेदार ढंग से पीट रहा था। नितिन कुशवाहा दूर-दूर तक नहीं दिख रहा था। मोनू और चुन्नू लड़ाई से थोड़ी दूरी पर ही रुक गये। मोनू अपने जेब से सिगरेट निकाल कर जलाया और बोला, “अभी अंदर जाएँगे तो हमलोग भी पिट जाएँगे। विधायक जी भी कहीं नहीं दिख रहे हैं। ज़बरदस्ती का क्या पिटाई खाना। मार भी खाओ, इज़्ज़त भी ना बने।” चुन्नू भी इस बात से सहमत था।
मोनू और चुन्नू वहीं बैठ गये। मोनू बोलता रहा, “ई कार्यकर्ता का जीवन बहुत बेकार है। साला नेता सब कहीं नहीं है। फिर भी पिटाई खाते रहो। ना रामा पांडे दिख रहा है ना नितिन कुशवाहा। अब हम काम पर ध्यान लगायेंगे। तुम भी कुछ करो यार चुन्नू।”
“हम तो कर ही रहे हैं। रील बनाते हैं।”
“मारेंगे ना यहीं ठीक हो जाएगा! रील बनाना कोई काम है? पूरा नरकटिया तुम पर हँसता है। जोकर बना हुआ है तुम। ऊपर से विधायक जी के चमचागिरी में रील पे रील पेले हुए हो। काम-धाम पर ध्यान दो। वरना जीवन बर्बाद हो जाएगा।”
चुन्नू का सारा उत्साह ख़त्म हो गया। सामने लड़ाई भी ख़त्म हुई। दोनों तरफ़ के लोग थकने के बाद अपने-अपने रास्ते निकल गये। जैसे ही रामा पांडे के समर्थक वहाँ से गये, नितिन कुशवाहा प्रकट हो गया। मोनू ने दूर से ही देखा, “साला! विधायक जी भी यहीं था? लगता है हमलोग की तरह ई भी कहीं छुप कर लड़ाई देख रहीस था! चल चल, दिखावल जाये कि हमनी सन भी ईहें थे।” ये कहते ही मोनू दौड़ गया। चुन्नू भी पीछे-पीछे।
नितिन कुशवाहा भाषण की मुद्रा में आ चुका था- “साला रामा पांडे का लड़का सब क्या समझता है? हमलोग से लड़ाई करेगा! अभी नितिन कुशवाहा और नरकटिया गाँव का ताकत नहीं देखा है रामा पांडे। अब समय आ गया है कि हम सब इकट्ठा हो जायें। इसको छोटा-मोटा झड़प नहीं समझना है। ये हमलोग पर आतंकी हमला था। ढोलकपुर से रामा पांडे के आतंक को हमलोग ख़त्म करेंगे, चाहे कुछ भी हो जाये।” पिटे हुए समर्थकों में फिर से जान आया। वो चिल्ला उठे, “नितिन भैया ज़िंदाबाद! ज़िंदाबाद, ज़िंदाबाद!”
चुन्नू के दिमाग में एक ही बात चल रहा था कि अच्छा हुआ लड़ाई से बच गये। साला, कोई मार के मुँह का नक़्शा ख़राब कर देता तो रील कैसे बनाते? नया-नया फ़ॉलोवर सब जुड़ा है, उन सबको क्या मुँह दिखलाते! हीरो आदमी हैं यार।
4.
मोनू के अंदर एक वैराग्य आ गया था। उसको लगने लगा कि सब नेता मिल कर बुड़बक बना रहा है। वहीं चुन्नू के दिमाग़ में बस एक ही बात चल रही थी कि नये-नये फॉलोवर जुड़े हैं, इनका मनोरंजन ज़रूरी है नहीं तो तुरंत अनफोलो कर देगा सब। मोनू को देख कर ये तो समझ आ ही चुका था कि फॉलोवर सब का कोई दीन-ईमान तो होता नहीं है।
तो खेत में चुन्नू रील बना रहा था। मोनू सिगरेट पीते हुए चुन्नू की मदद कर रहा था। एक हाथ में सिगरेट, एक में मोबाइल। बहुत मान-मनोअल के बास मोनू मदद के लिए तैयार हुआ था। चुन्नू आज विनोद राठौड़ के अमर गीतों पर लीप्सिंग कर रहा था। अलग-अलग गानों के बाद अब समय था कल्ट क्लासिक ‘नायक नहीं खलनायक हूँ मैं’ पर लीप्सिंग करके दुनिया जीत जाने का। जैसे ही चुन्नू ने एक्टिंग शुरू किया, मोनू का मन उखड़ गया। “साला, तुम ख़ुद को ही खलनायक बोल रहे हो? पब्लिक में क्या इमेज जाएगा?”
“इसी गाना के बाद संजय दत्त का करियर चला था।”
“उसके पहले ऊ जेल भी गया था। ऊ तो खलनायक ही था। अपने दिमाग़ में नायक बनो चुन्नू। इस गाना पर मत बनाओ।”
चुन्नू भी दोपहर से रील बना-बना कर थक गया था। वो रुका। मोनू जब सिगरेट पीता था तो बस एक सिगरेट नहीं पीता था। सिगरेट पीते-पीते वो चुन्नू से दिल की बातें करने लगा। “रामा पांडे हो या नितिन कुशवाहा, नेता सब एक जैसा ही होता है।”
चुन्नू ने भी बातचीत में सहयोग दिया, “एक जैसा कहाँ है यार। दोनों में इतना अंतर है। रामा पांडे गाना गाता है। नितिन भैया गा नहीं पाते।”
“लेकिन दोनों अपने समर्थक सब को पिटवा देते हैं। साला, इतना बड़ा मैटर हुआ। वहाँ पर नितिन कुशवाहा भाषण देकर निकल गया। जब उसका लड़का सब पिट रहा था तब कहाँ था? कोई ये सवाल नहीं पूछेगा? लेकिन हम पूछेंगे।”
“तुम भी तो हम ही से पूछ रहे हो। नितिन भैया से पूछो तो जवाब मिलेगा।”
मोनू ने सिगरेट का एक लंबा कश लेते हुए कुछ सोचा। “उससे पूछने का फ़ायदा नहीं है। ऊ नेता आदमी है। गोलमोल जवाब दे देगा। हम अपना मूड बना लिए हैं।”
“क्या मूड बनाया है?”
“हम जा रहे हैं पटना। यहाँ रहने का मतलब है कभी इस नेता का झंडा उठाओ, कभी उस नेता का। अपना काम करना होगा। अपना झंडा हमलोग को ख़ुद ही उठाना होगा। तुम भी अपने रील में जो नितिन भैया का गुणगान करते हो, उनके लिए वीडियो बनाते हो, ई सब बंद करो। समझे? अगर रील का ही काम करना है तो ठीक से करो। अब तुम्हारा ऑडियंस बढ़ रहा है। पूरा देश से लोग तुमको फॉलो किया है। उन लोग को ढेला फरक नहीं पड़ता कि ढोलकपुर विधान सभा क्षेत्र में कौन नितिन भैया कितने बढ़िया आदमी हैं और कौन रामा पांडे कितना बुड़बक आदमी है।”
इसके बाद मोनू को बहुत बात करने का मन नहीं था। वो गाँव में पैदल यात्रा पर निकल गया।
अगले कुछ दिनों तक मोनू गाँव में दिखा। फिर दिखना बंद हो गया। सीधा बात है, वो पटना निकल चुका था। पटना उसके सपनों का शहर था, जहाँ जाकर कुछ हो सकता था। चुन्नू को लग रहा था कि वो नरकटिया से ही खेल कर देगा और सीधे मुंबई पहुँच जाएगा। मुंबई चुन्नू बाबू के सपनों का शहर था।
5.
रामा पांडे का ज़्यादा समय मुंबई में बीता करता। वो सिर्फ़ गायक आदमी नहीं थे। ऊ थे स्टार। भोजपुरी सिनेमा के चमकते सितारे। भोजपुरी सिनेमा भी मुंबई में ही बनती है। बिहार में इसका कोई इंडस्ट्री नहीं है। उनका गाना जितना फेमस था, उतना ही फेमस उनका सिनेमा भी था। जब “लाहौर के लइकी, पटना के लइका” सिनेमा आया था तो भोजपुरी समाज ने उनको भयंकर बिज़नेस करके दिया। सिनेमा अब भी यूट्यूब पर है और डेढ़ सौ मिलियन व्यू के ऊपर है। पूरे देश में जहाँ भी सिक्योरिटी गार्ड रात के ड्यूटी में खड़े रहते हैं, समझिए रामा पांडे का सिनेमा देख रहे होते हैं। इसको कहते हैं जलवा।
इस कारणवश विधायक जी अपने क्षेत्र में नहीं दिखते थे। लेकिन ये बात कि उनको नरकटिया गाँव में पत्थर मारा गया है, फैल चुका था। ऐसा तो था नहीं कि उनके पार्टी के अंदर सबलोग उनको पसंद ही करते थे। बिहार विकास पार्टी सत्ता में थी। रामा पांडे इनके सेलिब्रिटी विधायक।
पटना में मीटिंग चल रही थी। रामा पांडे सुबह का फ़्लाइट लेकर मुंबई से सीधे मुख्य मंत्री आवास पर पहुँचे थे। मुख्य मंत्री की उमर अस्सी छूने ही वाली थी। इसलिए लोगों को लग रहा था कि आने वाले चुनाव में कोई नया मुख्य मंत्री का चेहरा हो सकता है। बोलने का बात नहीं है कि रामा पांडे ख़ुद को भी एक दावेदार मान रहे थे। लेकिन मुख्य मंत्री जी को भी ऐसा लग रहा था कि अभी बहुत कुछ करना बाक़ी रह गया है। अगले टर्म में कर के दिखायेंगे। सत्ता का मोह उम्र के साथ बढ़ता ही जाता है।
रामा पांडे पहुँचे। मुख्य मंत्री जी को पैर छू कर प्रणाम किया। मुख्य मंत्री जी के मुँह से अमृत वाणी निकली, “का हो रामा पांडे? क्षेत्र में एकदम कंट्रोल छूट गया है? क्षेत्र में पत्थर और अंडा मार रहा है लोग तुम पर?”
“अंडा कहाँ मारा है कोई? कोई मारा ही नहीं है!” रामा पांडे बचाव की मुद्रा में आ गये।
कैबिनेट मंत्री और युवा नेता कान्हा प्रसाद बोले, “दो-तीन अंडा भी फेंका था। वीडियो आया है मेरे पास। आपको लगा नहीं। पत्थर लगा था। अंडा पास में ही गिर गया था। वीडियो नहीं देखे क्या? रुकिए ह्वाट्सऐप पे भेजते हैं।”
मुख्य मंत्री जी बोले, “अरे जो है! इतना साल से राजनीति कर रहे हैं। हमलोग के क्षेत्र में तो ऐसा कभी नहीं हुआ। क्षेत्र सम्भालो यार। सांसद बनना चाहते हो। और विधायकी का क्षेत्र संभल नहीं पा रहा है। बिहार में भी रहा करो। क्षेत्र में रहो। तुमलोग को खाली मुंबई में लौंडिया नचाना है। विधायक पे ई सब शोभा देता है?”
रामा पांडे को मुख्य मंत्री का ये बयान ठीक नहीं लगा, “सीएम सर, लौंडिया नचाते थे इसलिए तो आप विधायक बनाये हैं। जो काम इतना इज़्ज़त दिलवाया है ऊ कैसे छोड़ दें?”
“मत छोड़ो। लेकिन चुनाव तक तो अपने क्षेत्र में रहो? हमको देखो। साढ़े चार साल पटना रहते हैं। लेकिन चुनाव से छः महीना पहिले क्षेत्र में रहना शुरू कर देते हैं। कुछ करो यार, नहीं तो ढोलकपुर का कुछ अलग इंतज़ाम करना पड़ेगा। हमलोग ई सब मैटर हल्के में नहीं ले सकते।” इसके बाद मुख्य मंत्री जी अपने विधायकों और वरिष्ठ नेताओं के साथ चुनाव की रणनीति बनाने लगे।
रामा पांडे के मन में बहुत सी बातें चलने लगीं। सबसे ज़रूरी बात तो यही थी- क्षेत्र में समय बिताना होगा।
6.
एक कुरुक्षेत्र था जहाँ महाभारत की लड़ाई हुई। परिवार आपस में लड़-भिड़ गया। एक कुरुक्षेत्र था ढोलकपुर विधानसभा क्षेत्र। वैसे तो देखा जाये तो पूरे बिहार में सभी विधान सभा क्षेत्रों की यही कहानी थी। अलग अलग दलों के जितने भी उम्मीदवार थे सबके अंदर एक कुलबुलाहट थी। वर्तमान विधायकों की एक बड़ी दिक़्क़त ये है कि हर पाँच साल में साला चुनाव लड़ना पड़ता है। और जो विधायक नहीं बने हैं उनको बनने के लिए लड़ना पड़ता है।
कुछ अच्छे हृदय वाले भी चुनाव के मैदान में थे जो समाज में बदलाव लाना चाहते थे। इन्हें पता था कि राज्य में क्या दिक़्क़तें हैं। और ये भी पता था कि ये दिक़्क़तें कैसे दूर होंगी। ये पढ़े-लिखे लोग थे। लेकिन इनकी एक बड़ी दिक़्क़त ये थी कि ये हिन्दी भी बोलते तो अंग्रेज़ी ऐक्सेंट में बोलते। भोजपुरी, मगही तो बहुत दूर की बात थी। और आम जनमानस का दिल ‘चोलिया के हुक बड़ा नीक लागेला’ पर अटका हुआ था। आम जनमानस कहना ग़लत होगा। कहिए पुरुषों का दिल ‘चोलिया के हुक’ पर अटका हुआ था। घर की औरतें तो वहीं करती जो ये पुरुष कहते।
इस तरह की सभी जानकारी के साथ नितिन कुशवाहा चुनाव की तैयारी कर रहा है। घूम-घूम कर क्षेत्र में भाषण। जनमानस को जोड़ने का काम। विधायकी की तैयारी बहुत मेहनत का काम है। जान लगाना पड़ता है। इससे कम में कुछ नहीं मिलता है।
नितिन बाबू पढ़े-लिखे उम्मीदवार थे। पार्टी को भरोसा था कि जो लड़का पटना यूनिवर्सिटी में अपना वर्चस्व साबित कर चुका है वो विधानसभा भी जीत जाएगा। नितिन को भी ऐसा ही लग रहा था। लेकिन पटना यूनिवर्सिटी और बिहार विधान सभा के रास्ते बहुत अलग हैं।
चुनाव के माहौल में नितिन कुशवाहा ने नरकटिया में अपना वॉर रूम बनाया। वॉर रूम का मतलब असल में ऑफिस होता है जहाँ कार्यकर्ता मिलते हैं, तीन-चार कंप्यूटर होता है, एक टीवी होता है जिसपर चौबीस घंटे न्यूज़ चलता रहता है। लेकिन ‘वॉर रूम’ जैसे शब्द के प्रयोग से कार्यकर्ताओं को लगता है कि वो एक युद्ध में उतरे हुए हैं। इन कार्यकर्ताओं को रोज़ मोटिवेशन चाहिए। नितिन बाबू जान लगाये हुए थे अपने कार्यकर्ताओं को मोटीवेट करने में।
एक मीटिंग चल रही थी। पटना से पार्टी के बड़े नेता आये हुए थे, अंसारी जी। ये सच में पढ़े-लिखे नेता थे। दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर। पूर्व मुख्य मंत्री रामलखन यादव के मुख्य सलाहकार और राज्य सभा सांसद। ये ढोलकपुर विधानसभा में तैयारी देखने आये थे। और साथ ही साथ प्लानिंग भी करने। इस मीटिंग में सिर्फ़ ज़रूरी लोग मौजूद थे। अंसारी जी, नितिन कुशवाहा और बस एक-दो और लोग जो नितिन बाबू के पुराने साथी थे।
“तैयारी कैसी चल रही है नितिन जी?” अंसारी जी ख़ुद से क्षेत्र का मुआयना कर चुके थे। अब नितिन जी के साथ बातचीत करने का समय था।
“हमलोग जनमानस को जोड़ने का काम कर रहे हैं। कुछ नहीं तो डेढ़ सौ से दो सौ कार्यकर्ता काम पर लगा हुआ है।”
“जनमानस को जोड़िए। लेकिन किस मुद्दा पे जोड़ रहे हो? सड़क खराब है, नौकरी नहीं है, ये अपने आप में कोई मुद्दा नहीं हुआ। सीधे रामा पांडे पर अटैक करो कि लौंडियाबाज है। लड़की लोग के बारे में उसके विचार कैसे हैं बताओ। कैसा-कैसा तो गाना बनाया है। लोगों के दिमाग में डालो कि भाई तुम्हारी माँ-बहन के बारे में ही इस तरह का गान लिखता है। पर्सनल अटैक करो।”
“जी, जी अंसारी सर। वो सब भी हमलोग कर रहे हैं।” कार्यकर्ता रॉबिन बोला।
अंसारी जी का गर्दन रॉबिन की तरफ़ मुड़ा। “ऐसा लग तो नहीं रहा है। विधायक के ऊपर पत्थर और अंडा फेंकवा रहे हो। फिर मोहल्ला के गुंडा की तरह लड़ाई कर रहे हो। गली-मोहल्ला का लड़ाई नहीं है। विधान सभा का चुनाव है। दिमाग से लड़ो। शरीर से नहीं। अभी नॉमिनेशन का टाइम आएगा। तुमलोग डमी कैंडिडेट का इंतज़ाम किए?”
नितिन बाबू थोड़ा सोचने लगे। अंसारी जी ने फिर पूछा, “अरे भाई, चुनाव में डमी कैंडिडेट उतारना है कि नहीं? रामा पांडे तो उतारेगा ही उतारेगा। हर बार उतारता है।”
“हाँ, हाँ। वो तो हमलोग समझ ही रहे हैं। लेकिन कितना कैंडिडेट उतारना ठीक रहेगा? ये बस समझना चाह रहे थे। आदमी तो तुरंत मिल जाएगा।” नितिन बाबू ने बताया।
“दो-तीन कैंडिडेट तो होना ही चाहिए। हो सकता है किसी का नॉमिनेशन कैंसिल भी हो जाये। अगर रामा पांडे या मिलता जुलता नाम का कोई मिल जाये तो और अच्छा।” अंसारी जी ने एक अनुभवी नेता की तरह बोला।
डमी कैंडिडेट। मतलब नकली उम्मीदवार। ये भारत के चुनावों का एक बहुत बड़ा सच है जिसके ऊपर कोई भी नेता कुछ भी नहीं बोलता। कारण ये कि इसका फ़ायदा सबको है। डमी कैंडिडेट दो तरह के होते हैं। एक वोट काटने के लिए। दूसरा गाड़ी का इंतज़ाम करने के लिए। पहले तरीके में आप ऐसे निर्दलीय उम्मीदवार को चुनाव में खड़ा करवाते हो जिसका नाम आपके प्रतिद्वंदी से मिलता-जुलता हो या वही हो। कम पढ़े-लिखों का देश है। लोग गलती से डमी कैंडिडेट को वोट दे आते हैं। तो आप अपने प्रतिद्वंदी का वोट कटवा देते हैं।
दूसरे तरीके में आप डमी कैंडिडेट खड़ा करते हो जिसको कोई नहीं जानता। हर विधान सभा उम्मीदवार को प्रचार के लिए दो गाड़ी की अनुमति है। अगर आपका दो डमी कैंडिडेट खड़ा है तो उसके नाम की गाड़ी भी आप प्रचार में प्रयोग कर लेते हैं। चुनाव आयोग का काम यही है कि इस तरह के तरीक़ों का पता लगाये और नकली उम्मीदवारों का पता चले तो उस पर कार्यवाही करे। लेकिन और भी बहुत काम होता है चुनाव में। चुनाव आयोग के पास स्टाफ़ हमेशा कम ही पड़ जाता है। चुनाव आयोग करे भी तो क्या करे?
तो ये फ़ैसला हुआ कि भाई डमी कैंडिडेट का इंतज़ाम किया जाये। ई भारी काम है! नितिन बाबू सोचने लगे किसको-किसको खड़ा किया जाये?
7.
भविष्य में घटने वाली सभी घटनायें घट ही जातीं हैं। हमें लगता है नहीं घटेंगी, फिर भी वो अपनी धीमी या तेज़ गति से वर्तमान में पहुँच जाती हैं। चुनाव नज़दीक आ रहे थे। डेढ़ महीने का समय बचा था। अगले कुछ दिनों में चुनाव आयोग से नोटिफिकेशन जारी होने वाला था। इसके बाद लोकतंत्र का अमृत महोत्सव!
रामा पांडे ने समय से पहले क्षेत्र में रहने लगे थे। ढोलकपुर के लोगों को अपने विधायक को इतने दिनों तक लगातार क्षेत्र में देखने की आदत नहीं थी। रामा पांडे ने भी जोर लगा दिया था। बात साफ़ थी, पहली बार नितिन कुशवाहा के रूप में एक प्रतिद्वंदी तैयार हुआ था। नितिन को रामा पांडे हल्के में नहीं ले सकता था। पटना विश्वविद्यालय का चुनाव जीत चुका है। बहुत कम उम्र में राष्ट्रीय विकास मोर्चा पार्टी का महासचिव बन चुका है। कास्ट का राजनीति जानता है। क्षेत्र में कुशवाहा समाज की बड़ी आबादी है। हर चीज़ पैसे से तो नहीं ख़रीदी जा सकती। जाती का लड़का अगर चमक जाएगा, तो लोग ज़रूर वोट करेंगे। अपने जाती का आदमी विधायक बनेगा तो क्या दिक़्क़त है? कोई दिक़्क़त नहीं है!
रामा पांडे रोज़ सुबह क्षेत्र का चक्कर लगाने लगे। विधायक जी पैदल ही पूरा क्षेत्र नाप रहे थे। क्षेत्र में कुछ नहीं तो सौ गाँव होंगे। कुछ छोटे, कुछ बड़े। रामा पांडे ने सोचा नया इमेज गढ़ा जाये कि नेता जी ज़मीन से जुड़े आदमी हैं। लेकिन इतना आसान थोड़े ही होता है इमेज बदलना! पच्चीस साल में अगर विधायक विकास कार्य नहीं करेंगे तो पब्लिक कब तक चोलिया के हुक पर नाचते रहेगी?
रामा पांडे को विश्वास था कि ज़्यादातर जनता उनके कंट्रोल में ही है, बस थोड़े-बहुत लोगों को ही सम्भालने की ज़रूरत है। बगिया नाम का एक गाँव था जो क्षेत्र के ज़रूरी इलाक़े में आता था काहे से कि ईहाँ पर बड़ा बाज़ार था। व्यापारी समाज रहता था। रामा पांडे पहुँचे बगिया बाज़ार। इस बार कोई पत्थर ना मारे इस लिए कार्यकर्ता सब पहले से छाता लेकर तैयार था। रामा पांडे कार्यकर्ताओं को समझा दिये थे, “साला क्षेत्र में अराजकता फैल गया है। जैसे ही देखो कि कोई पत्थर, अंडा फेंका है, तुरंत से छाता खोल लेना। और कोशिश करना फेंकने वाले को पकड़ने का। इज़्ज़त का फालूदा बन जाता है क्षेत्र में। सतर्क रहना है!” कार्यकर्ता सतर्क हो गये।
रामा पांडे ने सभा जमा दी। व्यापारी आये, अपनी परेशानी बताने लगे। सबको आश्चर्य तो हो ही रहा था कि विधायक जी उनकी परेशानियों को सुनने के लिए आतुर हैं। “देखिए ना विधायक जी, इधर झगड़ा बहुत हो रहा है। क्राइम बढ़ गया है। शाम के बाद लोग निकलता ही नहीं है। शाम के बाद का धंधा एकदम चौपट है। क्राइम कम होगा तो हम लोगों का आमदनी बढ़ जाएगा।”
विधायक जी सोच में चले गये। “अच्छा, अच्छा। तो पुलिस कुछ नहीं कर रहा है?”
“चोट्टा है सब! कहाँ कुछ किया है!”
विधायक जी की मुद्रा बदल गई। “हमलोग पुलिस प्रशासन के ख़िलाफ़ मोर्चा निकालेंगे!”
व्यापारी समाज दंग रह गया। एक व्यापारी ने हिम्मत कर के बोला, “लेकिन आप ही का सरकार है विधायक जी। आप तो बस ऊपर से आदेश दिलवा दीजिए।”
विधायक जी फिर सोच में पड़ गये। कुछ देर बाद अपने कार्यकर्ताओं को बोला, “अरे, माइक लाओ यार। हमारे व्यापारी भाई लोग धूप में परेशान हो रहे होंगे। इनको गाना सुनाया जाये।” इसके बाद विधायक जी ने अपने गानों का रंगारंग कार्यक्रम शुरू कर दिया। व्यापारियों पर इसका कोई असर नहीं हुआ। गाना तो आदमी यूट्यूब पर भी सुन लेता है। लेकिन धंधा यूट्यूब पर नहीं कर सकता! ई चोलिया छाप विधायक को समझाये तो समझाये कौन?
इधर नितिन बाबू का प्रचार भी पूरा स्पीड पकड़ लिया था। नितिन क्षेत्र के अलग-अलग बाज़ार में जाकर व्यापारी समाज की दिक़्क़तों पर बात कर रहे थे। उन्होंने सबको समझाया कि किस तरह से सभी मिलकर एक साथ बढ़ सकते हैं। “देखिए, विधायक के पास इतना ही ताक़त होता है जितना वो समझता है कि उसके पास है। हम समझते हैं बहुत ताक़त होता है। मुख्य मंत्री कोई भी हो, प्रधान मंत्री कोई भी हो। हमलोग यहाँ पर हैं। साथ चलेंगे तो अपना विकास होगा। हमलोग को साथ आना पड़ेगा। हम जाती का राजनीति करने नहीं आये हैं। जिसको हमरे पॉलिटिक्स में जाती दिखता है, देख ले। लेकिन हम यहाँ पर काम करने आये हैं। हम ढोलकपुर विधान सभा को देश का सबसे विकसित विधान सभा बनाना चाहते हैं।”
नितिन बाबू छात्र राजनीति से आये हुए आदमी थे। बात करना जानते थे। लोग पूरा खुश था। सबको लगा पहली बार कोई नेता टाइप आदमी मैदान में उतरा है। इससे पहले कोई असली नेता मैदान में नहीं उतर रहा था। अब हुआ असली खेल!
नितिन बाबू अपने समर्थकों का भी पूरा ख़्याल रखे हुए थे। नेता को सिर्फ़ बातचीत में आगे नहीं होना होता है। पैसा भी बहाना आना चाहिए। भारत की लोकतंत्र में पैसा का खूब खेल है। जिसको पैसा बहाने आ गया, वही असल में वोट बटोरने के खेल में आगे बढ़ सकता है। इसमें सही-ग़लत जैसे सुंदर सवालों की जगह नहीं है। जब आम वोटर अथाह ग़रीबी से घिरा हो तो उसके सामने नैतिकता का पाठ किताबी हो जाता है।
रोज़ प्रचार के बाद नितिन बाबू अपने समर्थकों को नरकटिया गाँव में पार्टी करवा रहे थे। पार्टी मतलब दारू पार्टी। ऐसे ही पार्टी के बीच में नितिन बाबू ने चुन्नू उत्साही को अलग बुलाया। चुन्नू किसी आम कार्यकर्ता की तरह पार्टी में व्यस्त था। नितिन भैया ने बुलाया तो दौड़ते हुए उनके पास गया।
नितिन भैया सिगरेट पी रहे थे। “बोलिये विधायक जी, क्या आदेश? एक रील बना दें क्या?”
नितिन बाबू हँसे। “दिन का कितना रील बना लेता है चुन्नू?”
“भैया, बीस से तीस रील रोज़ का।”
“मेरा तारीफ़ करता है ना? हम प्रचार के बीच में इंस्टाग्राम देख नहीं पा रहे हैं।”
चुन्नू राहत का साँस लिया। इधर चुन्नू अपने मन का रील भी खूब बना रहा था। गाँव में चुनावी माहौल के बीच किसी का ध्यान नहीं गया, लेकिन चुन्नू का इंस्टाग्राम का खेल बड़ा हो गया था।
“हाँ भैया। आपका तो तारीफ़ करते ही हैं। आपका नहीं करेंगे तो रामा पांडे का थोड़े ना कर देंगे!” चुन्नू ने हँस कर अपना उत्साह दिखाने की कोशिश की। नितिन बाबू भी मुस्करा रहे थे।
“एक और बात है चुन्नू। अपने लोग में से दो-तीन लोग को डमी कैंडिडेट बना कर चुनाव में उतारना है। प्रचार में ज़्यादा गाड़ी का ज़रूरत पड़ने लगा है। एक उम्मीदवार को बस दो गाड़ी का परमिशन है। हमलोग को अब छः गाड़ी लगेगा। नियम का पालन करना पड़ता है यार। तुम्हारा नॉमिनेशन डलवा देते हैं चुनाव में। ठीक है ना?”
नितिन कुशवाहा ने चुन्नू उत्साही को चुनाव के मैदान में खड़ा होने के लिए कहा था। और साथ में ये भी इशारा था कि चुनाव में बस खड़ा भर होना है। लड़ना नहीं हैं। चुन्नू ने ख़ुद को ख़ास महसूस किया। विधायक जी किसी को भी चुनाव में खड़ा होने के लिए बोल सकते थे। लेकिन उन्होंने चुन्नू से ख़ास पूछा। ये बड़ी बात थी।
“हाँ भैया, जैसा आपको ठीक लगे।” चुन्नू के अंदर उत्साह आ गया था।
“साला, उत्साह में अपना अलग से प्रचार मत शुरू कर देना!” इस बात पर चुन्नू और नितिन दोनों खूब हँसे।
8.
चुनाव के दिन नज़दीक आ रहे थे। प्रचार अपने चरम पर पहुँच चुका था। रामा पांडे बनाम नितिन कुशवाहा की लड़ाई में पूरा ढोलकपुर चुनावी तांडव देख रहा था। नामांकन के दिन नितिन कुशवाहा पूरे गाजा-बाजा के साथ गये। नामांकन किया। रामा पांडे के नामांकन के दिन उनके समर्थकों ने रैली निकाली। लेकिन लोगों ने महसूस किया कि अब पहले वाली बात नहीं रही। रामा पांडे के समर्थकों में पहले की तरह उत्साह नहीं था। रामा पांडे ने भी महसूस किया। अपने समर्थकों का उत्साहवर्धन करते रहे। पर अपने पैर के नीचे से खिसकती ज़मीन का एहसास भी होता रहा।
रामा पांडे ने पैसा बहाना शुरू किया। पॉलिटिक्स में पैसा ईंधन होता है। पच्चीस साल की विधायकी में सत्ता बचाने के तरीक़े तो समझ आ गये थे। विधायक जी ने उन तरीक़ों को आज़माना शुरू कर दिया।
इधर क्षेत्र में नितिन कुशवाहा का बोलबाला दिख रहा था। लोग अब बदलाव चाहते थे।
चुन्नू उत्साही ने भी अपना निर्दलीय नामांकन भरा। किसी को पता भी नहीं चला। नामांकन भरने चुन्नू बाबू बस काम भर लोगों के साथ गये थे। नामांकन भरते हुए ख़ुद को ख़ास महसूस भी किया। चुन्नू बाबू के साथ उनके तीन-चार मित्र भी थे। बाक़ी डमी उम्मीदवारों ने भी अपना नामांकन भर दिया। रामा पांडे के तीन नक़ली उम्मीदवार थे। एक का तो नाम नितिन सिंह था। ये नितिन कुशवाहा की पुरानी पहचान के वोट काटने के लिए था। नितिन कुशवाहा की तरफ़ से सिर्फ़ दो नकली उम्मीदवार थे। नामांकन तो चार लोगों ने किया था लेकिन दो का नामांकन रद्द हो गया। एक चुन्नू उत्साही थे, दूसरे राम प्रसाद नाम के व्यक्ति थे। नाम रामा पांडे से मिलता जुलता था। रामा पांडे के कुछ वोट कटेंगे, ऐसी उम्मीद थी।
नामांकन प्रक्रिया से लौटते हुए चुन्नू उत्साही के दोस्तों ने पार्टी देने के लिए कहा। चुन्नू उत्साही ने उत्साह में पार्टी के लिए हाँ भी कहा। जो भी है, आप चुनाव लड़ रहे है। अंदर का दबा नेता जाग रहा था। लोग गलती से ही सही, लेकिन चुन्नू का नाम भी पढ़ने वाले थे। चुन्नू का असली नाम यानी सुशील कुमार कुशवाहा।
नितिन कुशवाहा के साथ लोगों की फ़ौज थी। क्षेत्र में पूरा माहौल बन चुका था कि अगला विधायक नितिन कुशवाहा ही होने वाले हैं। जो शब्द बस लोग संबोधन के लिए प्रयोग करते थे, अब उसके सही होने का समय आने वाला था। व्यापारी समाज ने भी नितिन कुशवाहा पर दाव लगाया था और पैसे दिये थे। चुनाव प्रचार के दौरान दाव लगाना सबसे लाभकारी काम है भारतीय लोकतंत्र में। इसका रिटर्न किसी भी शेयर मार्केट से कई गुणा ज़्यादा होता है।
चुनाव प्रचार के दौरान ही नितिन कुशवाहा भाँति-भाँति प्रकार के व्यापारियों से मीटिंग करने लगे। ऐसे ही एक मीटिंग के लिए इलाक़े के बाहुबली व्यापारी फैज़ल ख़ान के पास पहुँचे। इस मीटिंग में नितिन कुशवाहा के बीस-पच्चीस समर्थक भी साथ गये थे। अब असली बाहुबली के घर जाना है तो अपना शक्ति प्रदर्शन भी करना ही पड़ेगा! चुन्नू बाबू भी साथ ही गये थे। चुन्नू बाबू ने नोटिस किया था कि जबसे चुनाव में उनका नामांकन हुआ है विधायक जी उस पर बहुत ध्यान नहीं दे रहे। बस अपने पीछे-पीछे रखते हैं ताकि गाड़ी का इंतज़ाम सही तरीक़े से होता रहे।
फैज़ल ख़ान कोई छोटा-मोटा व्यापारी नहीं था। इलाक़े का बहुत ही महत्वपूर्ण आदमी। हर इलाक़े में कुछ लोग होते हैं जो जानते हैं कि पार्टी कोई भी हो, सभी विधायक-सांसद उनके लिए ही काम कर रहे हैं। ये ख़ुद चुनाव नहीं लड़ सकते थे क्योंकि इनपर कुछ ऐसे मुक़दमे थे जो इनके चुनाव लड़ने के रास्ते में बाधा की तरह पड़े हुए थे। दूसरा, इनको चुनाव लड़ने का मूड भी नहीं था। बिना चुनाव लड़े मंत्री-मुख्य मंत्री इनको जानता है। चुनाव क्यों लड़ेंगे?
बगिया बाज़ार के पास ही इनकी विशाल हवेली थी। नितिन कुशवाहा हवेली के बाहर पहुँचे। दरवाज़ा खुला। नितिन जी इससे पहले फैज़ल ख़ान से नहीं मिले थे। ये इनकी पहली मुलाक़ात थी। कुछ नहीं तो सौ-डेढ़ सौ लोग हवेली के बाहर सुरक्षा व्यवस्था में थे। कुछ तो बस फैज़ल भैया के पास पड़े रहने में ही जीवन की सार्थकता को मानते थे।
जब नितिन जी सभी लोगों के साथ अंदर पहुँचे तो उनसे कहा गया कि सिर्फ़ चार-पाँच लोग ही अंदर जा सकते हैं। नितिन जी को थोड़ा बुरा लगा। लेकिन फैज़ल ख़ान के साम्राज्य में क्या बुरा, क्या भला। उसने पलट के देखा। और जो भी चार लोग उसके क़रीब थे, उनको लेकर हवेली के अंदर गये। इसमें चुन्नू बाबू भी थे।
जैसे ही नितिन बाबू अंदर गये, फैज़ल ख़ान पहले से ही सोफा पर इनका इंतज़ार कर रहे थे। फैज़ल ख़ान समय के पाबंद आदमी थे। उम्र क़रीब पचास के आसपास। इन्हें भी सफ़ेद कपड़ों से बेहद प्रेम था। लंबा-चौड़ा शरीर। नब्बे के दशक में एक बाहुबली के रूप में जाने जाते थे। कहा जाता है बिहार के पूर्व मुख्य मंत्री रामलखन यादव का हाथ इनके ऊपर था इसलिए कभी प्रशासन की तरफ़ से कोई असुविधा नहीं हुई। इसके बाद की सरकारों की तरफ़ से भी कोई असुविधा नहीं हुई क्योंकि पैसा ही इतना ज़्यादा था। तरह-तरह का व्यापार। लेकिन रेलवे लाइन में पटरी बिछाने का काम सबसे ज़्यादा पैसा दिलवाया था। इसके अलावे झारखंड में कोयले खदान का काम भी था। कहने वाले कहते हैं कि नोएडा-ग्रेटर नोएडा में कंस्ट्रक्शन का काम भी है। किसी को भरपूर जानकारी तो नहीं थी। फिर भी पैसा बोलता है।
नितिन कुशवाहा ने फैज़ल ख़ान को पैर छू कर प्रणाम किया। “प्रणाम दद्दा।” फैज़ल ख़ान को इलाक़े में सब दद्दा ही कहते हैं। दद्दा ने आशीर्वाद दिया। “खूब जीयो, और चुनाव जीतो।”
इसके बाद औपचारिक बातचीत। चुनावी माहौल में चुनाव की ही बातचीत होगी। लेकिन आम जानता की तरह। “देखो नितिन बाबू, हमलोग तो डायरेक्टली किसी पार्टी के साथ नहीं हैं। लेकिन इतना है कि ये ज़रूर चाहते हैं हमारे इलाक़े में पढ़ा-लिखा विधायक सांसद आये। रामा पांडे मेरा छोटा भाई की तरह है। लेकिन फिर भी कुछ नया होना चाहिए। तुमसे बहुत उम्मीद है। और माहौल भी तुम्हारे पक्ष में दिख रहा है, मेरा लड़का सब बोला।”
नितिन इस बात पर खुश हुआ। “दद्दा, आप हमारे बड़े हैं। आपका आशीर्वाद लेने आये हैं। जब पहली बार हम रामलखन जी से पटना में मिले थे, तब ही आपका ज़िक्र आया था। आपके बारे में बहुत अच्छा बोल रहे थे।”
फैज़ल ख़ान कुटिल मुस्कान के साथ बोले, “रामलखन बाबू हमारा तारीफ़ नहीं करेंगे तो किसका करेंगे यार? बहुत पैसा बना कर दिये हैं। तुम विधायक बन जाओ, तो तुमको भी देंगे। हमारा तो काम ही यही है।” इस बात पर सब हँस पड़े।
अचानक से फैज़ल ख़ान की नज़र चुन्नू पर गई। “एक मिनट, एक मिनट… ये कौन हैं?”
सभी आश्चर्य में आ गये। फैज़ल ख़ान ने चुन्नू की तरफ़ इशारा किया। नितिन को कुछ समझ नहीं आया। चुन्नू थोड़ा आगे बढ़े। “जी दद्दा, क्या हुआ?” चुन्नू ने बहुत ही आश्चर्य के साथ पूछा।
नितिन ने कहा, “ये हमारा आदमी है। हमारे गाँव नरकटिया से ही।डमी कैंडिडेट है मेरा…”
“चुन्नू उत्साही हो क्या?” फैज़ल ख़ान ने नितिन को काटते हुए कहा। चुन्नू की साँस रुक गई। फैज़ल ख़ान को उसका नाम पता है!
“जी दद्दा, हम चुन्नू उत्साही।”
“अरे, साला! हम तुमको फ़ेसबुक पर देखे हैं यार। तुम्हारा रील बहुत आता है। तुम वही हो ना?”
नितिन के आश्चर्य की सीमा ही नहीं रही। चुन्नू के शरीर में हिम्मत आया। “जी, जी। हम वही चुन्नू हैं।”
“अरे हम तुम्हारा बहुत रील देखे हैं। तुम बहुत बढ़िया डांस करते हो। थोड़ा यहीं पर दिखाओ ना?” फैज़ल ख़ान चुन्नू उत्साही के फैन निकल आये। लेकिन एक बाहुबली आदमी आपका फैन हो तो सामने ही नाच करवा देता है। दद्दा का डिमांड ऐसा ही था। चुन्नू को समझ नहीं आया कि करे तो क्या करे?
नितिन के चहरे का भाव बदल चुका था। दद्दा के सामने तो कुछ बोल नहीं सकता था। लेकिन चुनाव जैसे गंभीर बातचीत के बीच में अगर सामने वाला फ़ेसबुक रील के बारे में ज़्यादा बातचीत करने लगे तो कैसा लगेगा? समय की बर्बादी लगेगी। वही नितिन बाबू को लग रहा था। लेकिन दद्दा को थोड़े ही ना चुप करा सकता था। तो उसने चुन्नू को ही बोला, “हाँ-हाँ। अपना हरकत दिखाओ थोड़ा। दद्दा का मनोरंजन हो जाएगा। चुनाव का क्या है, होता रहेगा।” नितिन के बोलने के लहज़े में कटाक्ष था। लेकिन ये कटाक्ष किसी तक पहुँचा नहीं।
फैज़ल ख़ान ने नितिन की बात को आगे बढ़ाते हुए कहा, “हाँ साला। पूरा बिहार में भावी विधायक घूम रहा है। कोई इज़्ज़त है ई सबका। पाँच विधायक हमेशा मेरे जेब में रहता है। लेकिन कलाकार का इज़्ज़त करना चाहिए। चुन्नू तुम कलाकार हो। बहुत पसंद हो हमको। थोड़ा दिखाओ कुछ यार।”
पहली बार किसी ने चुन्नू उत्साही को कलाकार कहा था। चुन्नू उत्साही ने पहली बार ख़ुद को कलाकार की तरह देखा था! अंदर से उत्साह का ज्वालामुखी फूटा। पर नितिन कुशवाहा को दद्दा की बात से अपमान महसूस हुआ। लेकिन उसने एक सफल राजनीतिज्ञ की तरह कुछ नहीं कहा और अपमान का घूँट पी कर रहा गया।
संगीत सम्राट उदित नारायण का अमर प्रेम गीत, ‘सुहाग’ फ़िल्म का ‘गोरे-गोरे मुखड़े पे काला-काला चश्मा’ पर चुन्नू उत्साही का अभिनय प्रदर्शन शुरू हुआ। चुन्नू ने जान डाल दी। अक्षय कुमार फेल! क्या खूब लीप्सिंग किया। फैज़ल ख़ान दद्दा हो गये अभिभूत। उन्होंने इसी गाने पर पर तीन बार चुन्नू का प्रदर्शन देखा। ऐसा लग रहा था जैसे वो रील ही देख रहे हैं। इसलिए चुन्नू को बार-बार रिप्ले कर दे रहे थे।
“चुन्नू, तुम बहुत आगे बढ़ोगे। हमारा आशीर्वाद तुम्हारे साथ है।” मीटिंग ख़त्म होने पर दद्दा ने चुन्नू को कहा। “नितिन, तुम्हारे साथ भी आशीर्वाद है। विधायक बन कर आओ। ख़ुशी होगा।” नितिन ने दद्दा को पैर छूकर प्रणाम किया। दद्दा ने आशीर्वाद दिया। चुन्नू जब पैर छूने के लिए बढ़ा तो दद्दा ने उसे गले लगा लिया, “कलाकार किसी का पैर नहीं छूता। तुम गले लगो!”
नितिन कुशवाहा तुरंत वहाँ से निकल गया। सभी साथी भी निकल गये। चुन्नू पीछे से दौड़ते हुए हवेली के बाहर आया। नितिन कुशवाहा और बाक़ी लोग गाड़ी में बैठ चुके थे।
जैसे ही चुन्नू ने गाड़ी में बैठने के लिए गेट खोला, नितिन ने कहा, “कलाकार जी के लिए अलग से गाड़ी मँगवाओ यार। हमलोग के साथ जाएँगे तो इनका औक़ात घट जाएगा।”
चुन्नू को नितिन कुशवाहा का व्यंग्य थोड़ा कड़वा लगा। अभी-अभी एक आदमी इतना इज़्ज़त देखकर आया हो और तुरंत से कोई बेइज़्ज़ती करना चाहे, तो कैसे ठीक लगेगा? विधान सभा क्षेत्र में कोई कुछ भी समझे, चुन्नू बाबू भी आगामी चुनाव में एक उम्मीदवार थे! इंटरनेट पर फैन फॉलोइंग हो चुका था। और नितिन कुशवाहा इनका बेइज़्ज़ती करना चाह रहा है।
चुन्नू बाबू बोले, “ऐसे काहे बोल रहे हैं विधायक जी? साथ आये हैं तो साथ ही ना जाएँगे।”
“तुम साला दो कौड़ी का आदमी को हम बोले थे कि मुजरा टाइप का रील मत डालो। सिर्फ़ मेरे बारे में रील बनाओ। प्रचार होगा। पर तुमको नाच से फ़ुरसत मिले तब तो? तुमको हम इज़्ज़त दिये। अपना डमी कैंडिडेट बनाये। साथ में घुमाये। पार्टी करवाये। और दद्दा के सामने तुम अकड़ के बोलता है ‘जी दद्दा हम चुन्नू उत्साही!’ कौन है रे तुम? तू है चुन्नुआ! गाँव भर में जिसका एक पैसा औक़ात नहीं है। समझा! चुन्नुआ?”
चुन्नू के पैर के नीचे से ज़मीन खिसक गई। नितिन कुशवाहा उसके नेता थे। बचपन से इनको नीतू भैया बोलते आया। फिर जब सबने बोला विधायक जी बोलने के लिए, तो इन्हें विधायक जी बोला। इनके लिए चुनाव में डमी कैंडिडेट बनने को तैयार हुआ जिसपर जान का ख़तरा भी हो सकता था। अरे, सामने वाला डमी कैंडिडेट को मरवा सकता है। बिहार का चुनाव है महाराज! और उसी नितिन कुशवाहा के अहंकार को ठेस पहुँचा तो चुन्नू को सभी समर्थकों के सामने बेइज़्ज़त कर दिया!
चुन्नू के आँखों से आँसू निकल पड़े। उसने पूरी कोशिश की कि कोई उसके आँसू को ना देखे। उसने सिर नीचे किया। बहुत ही धीरे से अपने आँख पोछे और फिर सिर उठा कर नितिन कुशवाहा से आँख में आँख मिला कर बोला, “भैया, अपका इज़्ज़त करते हैं। इसका मतलब ये नहीं है कि अपना इज़्ज़त नहीं करते। कुछ ग़लत किए हों तो उसके लिए माफ़ी, लेकिन कुछ ग़लत किए नहीं हैं। हम ख़ुद से आ जाएँगे। आप जाइए।”
नितिन कुशवाहा के दो-तीन समर्थक चुन्नू के पास पहुँच चुके थे। वो समझाने की मुद्रा में थे। लेकिन तब तक नितिन कुशवाहा की गाड़ी स्टार्ट हो चुकी थी। और वो आगे बढ़ गये। समर्थकों में इतनी हिम्मत नहीं थी कि नितिन कुशवाहा के सामने चुन्नू उत्साही का साथ दें। इसलिए सभी नितिन कुशवाहा के क़ाफ़िले के साथ ही निकल गये। चुन्नू अकेले फैज़ल ख़ान के घर के बाहर खड़े रह गये। चुन्नू के मन में एक बार आया कि फैज़ल ख़ान से जाकर बताये कि नितिन कुशवाहा ने उसके साथ क्या किया है। लेकिन इससे क्या होता? फैज़ल ख़ान से रील का रिश्ता था- मोबाइल के छोटे से स्क्रीन का रिश्ता। इतनी जानकारी तो चुन्नू को भी थी कि फैज़ल के लिए वो बस एक हँसी का पात्र बनकर रह जाएगा। और एक फैन से क्या ही मदद माँगना?
चुन्नू पैदल चलने लगा। अकेले। बगिया बाज़ार से नरकटिया गाँव बारह किलोमीटर की दूरी पर था। शाम का समय। चलते-चलते ऐसा लग रहा था जैसे उसका सिर उबल रहा हो। उसको अपने अपमान का एहसास हो रहा था। चुन्नू को नितिन कुशवाहा के कहे एक-एक शब्द सुनाई दे रहे थे। ‘औक़ात’, ‘डमी कैंडिडेट’, ‘इज़्ज़त’, ‘चुन्नुआ’… नितिन की बातें किसी भी गाली से बड़ी थीं।
चुन्नू चलते-चलते एक सुनसान जगह पहुँचा। एक खंभे से लटकी हुई बल्ब जल रही थी। चुन्नू ने अपना मोबाइल निकाला और कैमरा ऑन किया। मोहम्मद रफ़ी की आवाज़ में अमर गीत “मेरे दुश्मन तू मेरी दोस्ती को तरसे / मुझे ग़म देने वाले तू ख़ुशी को तरसे” पर एक बेहद मार्मिक रील का निर्माण किया।
सबसे पहला कमेंट फैज़ल ख़ान दद्दा का था, “अरे ग़ज़ब! क्या एक्टिंग है।” अब दद्दा को कौन बताये कि ये एक्टिंग नहीं, ऐलान-ऐ-जंग था!
9.
अपमान से ताकतवर शायद ही कुछ हो जो इंसान को अंदर से बदल सकता है। आप किसी का लाख प्रोत्साहन कीजिए, कुछ नहीं होगा। लेकिन एक बार बोल दीजिए ‘अरे, तुमसे होगा ही नहीं!’, सामने वाला जान लगा देगा आपको ग़लत साबित करने के लिए। अपमान का घूँट पीना ज़हर पीने जैसे है। अगर आप मर गये तब तो कोई बात नहीं। राम नाम सत्य है ही! लेकिन अगर आप अपमान का घूँट पीने के बाद भी जीवित रह जाते हैं, और आपके अंदर स्वाभिमान और आत्म-सम्मान जैसे शब्दों का खेला है, तब आप मृत्यु को गले लगाकर लौटने वाले इंसान बन चुके होंगे। बस सही रास्ते पर बढ़ने की देरी है, आपके अंदर इतिहास में दर्ज होने का फार्मूला आ चुका है।
चुन्नू बाबू ने भी इस अपमान को बहुत गंभीरता से लिया।
अपमान को गंभीरता से लेने के अपने परिणाम होते हैं। फ़िलहाल तो परिणाम ये निकला की सुबह-सुबह चुन्नू बाबू अकेले ही माइक और भारी भरकम स्पीकर लेकर ढोलकपुर विधान सभा क्षेत्र में निकल गये। बाहर चुनाव का माहौल और अंदर अपमान की ज्वाला से धधकता हुआ दिल।
तो चून्नू उत्साही चुनाव के मैदान में कूद ही गया! इससे पहले गाँव वालों को पता भी नहीं था कि चुन्नू भी एक उम्मीदवार है। पूरा ढोलकपुर रामा पांडे और नितिन कुशवाहा की लड़ाई में व्यस्त था। ई सुशील कुशवाहा उर्फ़ चुन्नू उत्साही कहाँ से मैदान में आ गया? कोई सोच सकता था? लेकिन चुन्नू अपना दावेदारी पेश करने उतर गया। अपमान जो ना करवा दे!
चुन्नू उत्साही एक टैम्पू पर अकेले ही चुनाव लड़ने निकला हुआ था। “ढोलकपुर विधान सभा चुनाव में सुशील कुशवाहा उर्फ़ आपका अपना चुन्नू उत्साही को भारी मतों से विजयी बनायें!” पहले तो लोगों ने इसे मज़ाक़ की तरह लिया। लेकिन चुन्नू के उत्साह से साफ़ लग चुका था कि चुन्नू फ़िलहाल तो मज़ाक़ के मूड में नहीं है। “सबको देखे बारी-बारी, चुन्नू उत्साही अबकी बारी!” जहाँ से चुन्नू गुज़रता ये नारा भी गूँज जाता। चुन्नू ख़ुद ही अपना नारा लगा रहा था।
खबर फैलने में समय नहीं लगा। चुनाव के समय अफ़वाह और मसालेदार खबर, दोनों ही प्रकाश की गति से फैलते हैं। नितिन कुशवाहा को पता चला। “साला चुन्नू! हमसे लड़ेगा? बताते हैं इसको।” नितिन कुशवाहा के ग़ुस्से का पारा चढ़ चुका था। नितिन कुशवाहा को कभी नहीं लगा था कि एक मामूली सा कार्यकर्ता, इंस्टाग्राम और फ़ेसबुक पर रील बनाने वाला, उसी के गाँव-मोहल्ले का लड़का चुन्नू उत्साही के अंदर कभी इतनी ताक़त आ जाएगी कि वो नितिन कुशवाहा को चुनौती देने का सोचे।
लेकिन चुनौती सिर्फ़ नितिन कुशवाहा को तो नहीं दी गई थी। चुनौती तो रामा पांडे को भी दी गई थी। रामा पांडे तक भी खबर पहुँची। “भैया, नितिन कुशवाहा का एक डमी कैंडिडेट बिदक गया है और अपना ख़ुद का चुनाव प्रचार शुरू कर दिया है।” रामा पांडे को इस खबर में मसाला दिखा। “जितना भी चुनाव लड़ लो, हर चुनाव में कुछ नया हो ही जाता है। क्या नाम है इस उम्मीदवार का?”
“सुशील कुशवाहा उर्फ़ चुन्नू उत्साही। रील बनाता है। अभी ठीक ठाक फॉलोइंग भी चल रहा है। देखिए ना, आपके भी एकाध गाने पे रील बनाये हुए है।” कार्यकर्ता ने रामा पांडे की तरफ़ मोबाइल बढ़ाते हुए बताया। रामा पांडे ने एक साथ चुन्नू उत्साही के चार-पाँच रील देखे। “रील तो अच्छा बनाता है यार। लड़का में दम तो है। क्या लगता है, ढोलकपुर का अगला विधायक यही है क्या?” रामा पांडे के इस सवाल पर सभी हँस पड़े। रामा पांडे भी ज़ोर से हँसा। “इस लड़का का समर्थन करो। कुछ लोग को इसके पास भेज दो। इसको हमारे समर्थन का ज़रूरत है।” रामा पांडे की इस बात को कार्यकर्ता समझ नहीं पाये। कार्यकर्ताओं के चेहरे पर प्रश्नवाचक चिन्ह देख कर रामा पांडे बोले, “हमारे क्षेत्र में कोई आगे बढ़ना चाहता है तो क्या मैं उसको रोकूँगा? बताओ? अपना ही बच्चा है। जीवन में कुछ करना चाहता है। हमारा कर्तव्य है कि एक अच्छे गार्जियन की तरह इसका मनोबल बढ़ायें।” कार्यकर्ताओं को अभी भी कुछ समझ नहीं आया। तो रामा पांडे अपनी कुटिल मुस्कान के साथ बोले, “राजनीति है बेटा। फ़िलहाल वही करो जो हम कह रहे हैं।”
चुन्नू उत्साही ने रील की दुनिया में भी तहलका ला दिया था। आचार संहिता के कारण सीधे-सीधे तो रील पर वोट नहीं माँग सकता था। लेकिन उदित नारायण और विनोद कुमार राठौड़ के गीतों पर लीप्सिंग तो कर ही सकता था। जहाँ पहले दिन के बीस रील बनते थे, वहाँ अब चुन्नू उत्साही ने दिन के सौ रील बनाना शुरू कर दिया! क्षेत्र में चुन्नू उत्साही के नाम का हल्ला हो गया। हल्ला मतलब ऐसा नहीं कह सकते कि पूरी जानता सपोर्ट में आ गई। लेकिन सबको पता तो चल ही चुका था कि नरकटिया का चुन्नू चुनाव में उतरा है। चौक-चौराहे पर लोग इसके बारे में बात करने लगे। कोई मज़ाक़ उड़ाता, तो कोई कहता- “रामा पांडे औ नितिन कुशवाहा के लड़ाई के बीच कूदे लागी भी हिम्मत चाहीं।”
चुनाव जनता के लिए महोत्सव है। उत्सव-महोत्सव में आपको मनोरंजन भी चाहिये। चुन्नू उत्साही चुनाव का मनोरंजन बन चुका था। सबसे पहले लोकल मीडिया ने चुन्नू उत्साही के प्रचार के तरीक़े पर ध्यान दिया। एक निर्दलीय उम्मीदवार क्षेत्र में टैम्पू पर घूम-घूम कर, गाने गा कर, नाच कर, रील पर लगातार वीडियो बना कर अपना प्रचार कर रहा है। खलिहर बैठे पत्रकारों के लिए इससे अच्छा मसाला चुनाव के समय क्या ही होगा?
पत्रकार चुन्नू को पकड़ने लगे। “चुन्नू जी, आप चुनाव में क्या करने उतरे हैं?”
“हम ढोलकपुर के लोगों को उनका हक़ दिलवाना चाहते हैं। उसके लिए हमको नाचना पड़ेगा तो नाचेंगे। लड़ना पड़ेगा तो लड़ेंगे। लेकिन किसी का अपमान नहीं होने देंगे। सालों साल से हमारा अपमान हो रहा है। इस अपमान का बदला लेने उतरे हैं।” चुन्नू ने भी नेताओं की तरह बड़ी बातें करना शुरू कर दिया था।
एक पत्रकार ने इंटरव्यू के बाद चुन्नू को समझाया, “भाई हो, सब बढ़िया बोल रहे हो। थोड़ा मुद्दा भी उठाओ। सड़क, खेत, किसानी, MSP भी बोलो। तब ना साला सबका ध्यान तुम पर जाएगा। नहीं तो टैम्पू पर घूम-घूम कर ख़ाली प्रवचन ही देते रह जाओगे।” पत्रकार उम्रदराज़ थे। कई चुनाव और कई नेताओं को देखा हुआ था। चुन्नू ने हाँ में सिर हिलाया। सामने से कोई कुछ सिखाने आये तो आदमी क्यों नहीं सीखेगा।
रील पर ज़्यादा लोगों तक बात पहुँचने लगी। अब बात क्षेत्र से बाहर निकल चुकी थी। बिहार की मीडिया ने भी इस पर ध्यान दिया। फिर देश की मीडिया ने। बात साफ़ था- एक इंस्टाग्रामर रील बनाने वाला चुनाव लड़ रहा है। ऐसा इंसान जो हर किसी के मोबाइल स्क्रीन पर रहता है। लगातार वायरल पर वायरल रील दिये जा रहा है। अब चुन्नू उत्साही हर चुनावी बातचीत का हिस्सा बन गया था। धीरे-धीरे चुन्नू के समर्थक भी जुट गये थे। उसके प्रचार में भी दस से पंद्रह उत्साही लड़के लगातार साथ रहने लगे थे। ये उत्साही लड़के कहाँ से आये थे, क्यों आये थे, इसकी कोई जानकारी चुन्नू उत्साही को नहीं थी। लेकिन एक निर्दलीय उम्मीदवार के समर्थन में कोई आ रहा है और जम कर प्रचार करने को तैयार है, तो कोई किसी को कैसे मना कर सकता है? चुन्नू के समर्थक भी इंस्टाग्राम के शौक़ीन लड़के थे। इनको भी कंटेंट की भूख थी। पंद्रह मिनट के प्रचार में बीस मिनट का कंटेंट निकाल लेते। मतलब स्लो-मोशन रील भी खूब बना।
नितिन कुशवाहा इस मामले को ध्यान से देख रहा था। जहाँ शुरुआत में उसे लगा था कि चुन्नू बस बिदक गया है, अब उसे भी मालूम था कि उसी की कास्ट का निर्दलीय उम्मीदवार उसके लिए परेशानी का कारण भी बन सकता है। कुशवाहा समाज का वोट बँट गया तो नितिन बाबू को दिक़्क़त भी हो सकती है।
एक चुनाव प्रचार के दौरान चुन्नू उत्साही और नितिन कुशवाहा आमने सामने आ गये। चुन्नू उत्साही ने जैसे ही नितिन कुशवाहा के क़ाफ़िले को देखा, वो ख़ुद विधायक जी के पास पहुँचा। “प्रणाम विधायक जी।” हाथ जोड़े, चेहरे पर मुस्कराहट लिए, चुन्नू नितिन कुशवाहा के सामने खड़ा था। नितिन इस मुस्कराहट का आशय समझता था। एक अच्छे नेता की तरह नितिन ने भी हाथ जोड़ कर चुन्नू का अभिवादन किया। “प्रणाम चुन्नू। हमारा कैंडिडेट होकर हमको ही हराने की तैयारी में लगे हुए हो! बढ़िया है।”
“आपके कैंडिडेट तो तब तक थे भैया जब तक आप इज़्ज़त देते थे। अब तो आप और हम बराबरी पर हैं। देखते हैं क्षेत्र की सेवा कौन करता है।” नितिन को ये बात तीर की तरह चुभी। आँख में आँख डाल कर चुन्नू नितिन को जवाब दे रहा था। फिर चुन्नू प्रचार करने निकल गया।
उम्रदराज़ पत्रकार महोदय की बात समझ कर अब चुन्नू अपने प्रचार में एक और काम करने लगा था। वो जनता को महत्वपूर्ण मुद्दों पर बात करने के लिए उकसाने लगा। भले ही उसका तरीक़ा मनोरंजक था, लेकिन माइक लेकर वो ज़रूरी सवाल पूछने लगा। ये फार्मूला बहुत हिट हुआ। किसी को उम्मीद ही नहीं थी कि चुन्नू रोज़गार, MSP, सड़क के मुद्दों पर सवाल उठाएगा। “मुद्दा ये नहीं है कि रामा पांडे जीतेंगे या नितिन कुशवाहा। मुद्दा ये है कि आपका काम कौन करेगा? ऐसा तो नहीं कि रामा पांडे के ग़ुस्सा में आपलोग नितिन कुशवाहा को वोट देने वाले हैं? अगर ऐसा है तो आप एक और कामचोर राजा तैयार कर रहे हैं। और इसमें फिर से आपका ही नुकसान है। आप सही सवाल पूछिये।” इसके बाद चुन्नू सुप्रसिद्ध गानों पर लीप्सिंग करके भी लोगों को ज़रूर दिखाता। लोग हर तरह से खुश होते।
चुनाव प्रचार अपने अंतिम दौर में पहुँच गया। पूरे बिहार में बदलाव का माहौल बन चुका था। हवा मुख्य मंत्री के ख़िलाफ़ थी। ऐसे में रामा पांडे का प्रचार तंत्र भी हिला हुआ था। समर्थकों को पता था कि रामा भैया पहली बार चुनाव हार सकते हैं। और इसका फ़ायदा नितिन कुशवाहा को होना ही था। वहीं नितिन भी जानता था कि राज्य की हवा अपनी जगह, लेकिन एक बूथ भी आपको चुनाव हरा सकता है। इसलिए किसी भी चीज़ को हल्के में नहीं ले सकते।
चुनाव से ठीक पाँच दिन पहले, जब चुन्नू अपने घर वापस लौट रहा था, तब रात के घुप्प अंधेरे में पाँच-छः लड़के उसके पास आये। “चुन्नू भैया! अरे हमारा बात सुनिए ना। आपको हमलोग वोट काहे दें?” चुन्नू जैसे ही इस सवाल का जवाब देने के लिए पलटा, लड़कों ने उस पर हमला कर दिया। चुन्नू को समझ ही नहीं आया कि हुआ क्या! शरीर पर जब मुक्के पड़ते हैं, थप्पड़ पड़ता है, तब इंसान अपने बारे में बहुत कुछ नया जानता है। चुन्नू को आज पता चला कि उसके शरीर में डर नाम की चीज़ है ही नहीं। जब लड़के उसे पीट रहे थे तब चुन्नू को ऐसा लग रहा था जैसे उसके साथ ये हो ही नहीं रहा। किसी और का शरीर है। चुन्नू बस ये मना रहा था कि कोई उसके चेहरे पर मुक्का ना मार दे। हीरो आदमी था चुन्नू।
लड़कों ने चुन्नू को अधमरा करके छोड़ा। चुन्नू सड़क पर बेहोश पड़ा था। गाँव के लोगों ने देखा। उसके कुछ समर्थकों ने देखा। “रे! ई तो चुन्नू उत्साही को कोई मुआ दिया है! हॉस्पिटल लेकर चलो!” रातों-रात खबर फैल गई कि चुन्नू मर गया। सभी के पैरों के नीचे से ज़मीन खिसक गई। क्या नितिन कुशवाहा, क्या रामा पांडे, क्या बिहार मीडिया और क्या नेशनल मीडिया! सब जगह खबर फैल चुकी थी!
लेकिन चुन्नू अभी जीवित था। अस्पताल के बेड पर। अधमरा। बची-खुची साँस लेता हुआ।
जैसे ही चुन्नू की उँगलियों में इतना दम आया कि वो हरकत कर सकें, उसने अपना मोबाइल उठाया और इंस्टाग्राम की खिड़की से अपनी जनता की तरफ़ हाथ हिलाता हुआ बोला, “आपलोग का प्यार ही है जो आज हम ज़िंदा हैं।” ये बिल्कुल ऐसा था जैसे शाहरुख़ ख़ान मन्नत की छत से अपने फैन्स को देख कर अभिवादन करता है। ये खबर कि चुन्नू मर गया है, झूठ साबित हुआ। पर इस पूरे प्रकरण का फ़ायदा ये हुआ कि चुन्नू को भयंकर सिम्पथी मिल चुकी थी।
10.
हर बड़े दिन की तरह चुनाव का दिन भी आ ही गया। ढोलकपुर विधान सभा क्षेत्र में हर बार से ज़्यादा लोगों ने वोट दिया। इस भारी वोटर टर्नआउट का श्रेय तीन कारणों को माना जा सकता है। एक तो बिहार में बदलाव का माहौल। दूसरा, नितिन कुशवाहा जैसे पढ़े-लिखे कैंडिडेट जब चुनाव में उतरते हैं तब भी एक नया तबका वोट देने घर से ज़रूर निकलता है। तीसरा, चुन्नू उत्साही। चुन्नू ने ऐसे लोगों को चुनाव में वोट डालने के लिए प्रेरित किया था जो कभी वोट नहीं डालते। इसका फ़ायदा किसे होना था, ये किसी को पता नहीं था।
शांतिपूर्ण चुनाव हुआ। चुनाव से दो दिन पहले सभी तरह के प्रचार बंद हो जाते हैं। इन दो दिनों में उम्मीदवारों का बस एक काम होता है- क्षेत्र में दिखते रहने का। सभी ने यही किया। लेकिन चुनाव इतना सरल भी नहीं होता। चुनाव से एक रात पहले सारा खेल होता है। दारू बाँटी जाती है। मोहल्ले में पैसे बँटते हैं। रामा पांडे कई सालों से ये सब हथकंडे अपना रहे थे। नितिन कुशवाहा ने भी ये सब किया। चुन्नू उत्साही तो ये सब नहीं कर सकता था इसलिए वो बस बैसाखी के सहारे क्षेत्र में चलता-फिरता नज़र आया।
चुनाव ख़त्म।
ढोलकपुर के लोगों के साथ-साथ सभी उम्मीदवारों की क़िस्मत EVM मशीन में बंद हो चुकी थी। सभी कह रहे थे बिहार ने बदलाव के लिए वोट दिया है। रामा पांडे ने भी यही कहा, “बिहार की जनता बदलाव चाहती है। अगर वो कहेगी तो मुख्य मंत्री भी बदला जाएँगे। मैं इस ज़िम्मेदारी के लिए तैयार हूँ। ये कोई राजशाही का ताज नहीं है। ये काँटों भरा ताज है। लेकिन अपने राज्य के लिए ये भी सही।”
दिन बीते। ढोलकपुर चुनाव के सप्ताह भर के अंदर ही नतीजे आने वाले थे। माहौल में गर्मी बनी रही। और अंततः हर दिन की तरह नतीजों का दिन भी आ गया। सभी उम्मीवार सुबह छः बजे ही काउंटिंग सेंटर पर पहुँच चुके थे। सभी समर्थक काउंटिंग सेंटर के बाहर।
नतीजों के रुझान आने शुरू हुए। नितिन कुशवाहा की राष्ट्रीय विकास मोर्चा और रामा पांडे की बिहार विकास पार्टी इस चुनाव में आमने-सामने थी। बिहार विकास पार्टी कई सालों से सत्ताधीश थी। रुझान के साथ ही लोगों को समझ आ गया कि राष्ट्रीय विकास मोर्चा की लहर की खबर झूठ नहीं थी। बिहार की 243 सीट पर लड़ाई थी। अलग-अलग पार्टियों का अपना गठबंधन। सभी तरह के समीकरण। शुरुआत के तीन घंटों में ही राष्ट्रीय विकास मोर्चा ने अपना वर्चस्व स्थापित कर दिया था। 180 सीट पर वो आगे चल रही थी। अगला मुख्य मंत्री रामलखान यादव होने वाले थे, इस बात को अब सभी मान चुके थे। अंसारी जी सभी टीवी चैनल पर चाणक्य साबित किए जा चुके थे।
पर ढोलकपुर विधान सभा सीट पर एक अलग संग्राम हुआ था। रामा पांडे को जहाँ पिछले चुनाव में क़रीब एक लाख के आसपास वोट मिले थे, इस चुनाव में सिर्फ़ सत्तर हज़ार मिले। नितिन कुशवाहा, जिसके जीत की उम्मीद सब कर रहे थे, उसे रामा पांडे से बस पंद्रह सौ कम वोट मिले। वहीं चुन्नू उत्साही को चौबीस सौ वोट मिले। चुन्नू की ज़मानत भी ज़ब्त हो गई।
लेकिन बड़ी बात ये थी कि अगर चुन्नू को वोट नहीं मिले होते तो नितिन कुशवाहा ये चुनाव जीत जाता। पहली बार चुनाव में खड़े होकर पच्चीस साल से विधायक रामा पांडे के बराबर वोट लाना भी कम बात नहीं है। लेकिन चुनाव यही है। यहाँ एक वोट से जीत भी जीत ही है। और रामा पांडे तो तब चुनाव जीता जब पूरा का पूरा माहौल उसके ख़िलाफ़ था!
नितिन कुशवाहा की सारी मेहनत पर पानी फिर चुका था। नितिन के ख़ेमे में सन्नाटा था। नितिन कुशवाहा बदहवास था। अगर पूरी पार्टी जीत रही है और आप अकेले हार रहे हों, तो आपका राजनैतिक भविष्य समाप्त समझिए।
सभी उम्मीदवार काउंटिंग सेंटर से बाहर निकले। सभी ओर एक ही नारा था। “रामा पांडे ज़िंदाबाद। ज़िंदाबाद, ज़िंदाबाद।”
रामा पांडे अपने समर्थकों के बीच आये। एक समर्थक माइक लेकर आया। किसी ने स्पीकर बजाया। रामा पांडे ने माइक लिया। उनके होटों से सबसे पहले जो शब्द निकले वो ये थे, “तोहरा चोलिया के हुक बड़ा नीक लागेला!” समर्थकों में भयंकर उत्साह। पार्टी। डांस। डेढ़ घंटे तक रामा पांडे ने परफॉरमेंस दे दिया!
नितिन कुशवाहा जब काउंटिंग सेंटर से बाहर निकल रहे थे तब पीछे से किसी ने आवाज़ दी, “विधायक जी!” इस संबोधन से नितिन कुशवाहा को इतना लगाव था कि अभी-अभी विधायकी का चुनाव हारने के बावजूद इस संबोधन पर वो पलट गया। चुन्नू उत्साही मुस्कुरा रहा था।
“क्या मिला तुमको चुन्नू हमको चुनाव हरा कर?”
चुन्नू के चेहरे पर मुस्कुराहट हँसी में बदल गई। “नीतू भैया, हम चुनाव जीतने के लिए लड़ ही नहीं रहे थे। हम सम्मान के लिए लड़ रहे थे। हम बस आपके डमी कैंडिडेट भर नहीं थे। लोग हमको भी जानता है और हमारा सम्मान भी करता है। आप बोले थे ना कि हमारा औक़ात क्या है? ये था हमारा औक़ात। आज आप और हम एक ही है- रामा पांडे से हारे हुए उम्मीदवार।” नितिन कुशवाहा के शरीर में आग लग गया। मन तो हुआ कि इस चुन्नुआ को पटक कर पीट दे। लेकिन आसपास के CISF के जवान को देखकर कुछ भी नहीं कर पाया।
अपमान का बदला लेने से बड़ा सुख मानव जाती नहीं जानती। इस बदले के चक्कर में देश जले तो जले, लोग मरें तो मरें। चुन्नू का बदला पूरा हुआ था। आज चुन्नू चुनाव में हारा था, लेकिन जीवन में जीत गया था। रामा पांडे जैसे दिग्गज नेता चुन्नू जैसे उत्साही बालकों का अच्छे से प्रयोग करना जानते हैं। इनको राजनीति के कठोर नियम पता हैं। आज भी वही नियम सही साबित हुए थे।
जैसे ही चुन्नू काउंटिंग सेंटर से बाहर निकला, उसके जेब में मोबाइल बजा। “हेलो, हम फैज़ल ख़ान बोल रहे हैं चुन्नू।”
“प्रणाम दद्दा।”
“तुम बहुत अच्छा चुनाव लड़े। हार-जीत तो चलता रहता है। हम तुमको ही वोट दिये थे। जो आदमी चुनाव नहीं जीतना चाहता, उसी को जीतना चाहिए। हमारा आशीर्वाद तुम्हारे साथ है। बढ़िया करोगे।”
चुन्नू के अंदर उत्साह का संचार हो गया। और उस दिन चुन्नू पचास गानों पर लीप्सिंग कर के रील बनाया। जनता का भरपूर मनोरंजन हुआ।