आज पढ़िए उज़्मा कलाम की कहानी ‘आधा अधूरा’। कहानी पहले ‘हंस’ में प्रकाशित हो चुकी है लेकिन कहानी का परिवेश, विषय, भाषा सब इतनी अलग है कि लगा इसको साझा करना चाहिये- ============================ आख़िरकार फ़रख़न्दा को उठना ही पड़ा। जब तक वे सब मिलकर सिर दर्द की नसों को झकझोर ना दे, मानती ही नहीं। सिर दर्द से फट पड़ा और वह दुपट्टा सिर पर बाँधे हुए ड्योढ़ी लांघकर उसके घर में घुसी। ‘कोई तो करम ख़राब किये होंगे, जो आज यहां फिर रही हूँ। इन्होंने थोड़े बुलाया था। अपनी मर्ज़ी की मालिक हूँ, खुद ही आयी थी। अब इसमें…
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‘वर्षावास’ अविनाश मिश्र का नवीनतम उपन्यास है । नवीनतम कहते हुए प्रकाशन वर्ष का ही ध्यान रहता है (2022 ई.) लेकिन साथ ही तुरंत उपन्यास के शिल्प पर ध्यान चला जाता है जो अपने आप में बिल्कुल ही नया है । अब तक हिंदी उपन्यासों में डायरी (नदी के द्वीप), पत्र (आईनासाज़) के इस्तेमाल संबंधी प्रयोग तो मिलते रहे हैं लेकिन वर्षावास में हुए प्रयोग अपने तरह का संभवत: पहला प्रयोग है जहाँ पूरी किताब ही विभिन्न माध्यमों के कथन से आगे बढ़ती है और पूरी होती है । शुरुआत ही है ‘लेखिका’ से जिसे पढ़ते हुए सबसे पहली अड़चन तो…
आज पढ़िए यतीश कुमार की मार्मिक संस्मरण पुस्तक ‘बोरसी भर आँच’ की यह समीक्षा जिसे लिखा है कवि-तकनीकविद सुनील कुमार शर्मा ने। यह पुस्तक राधाकृष्ण प्रकाशन से प्रकाशित है- ============================ कवि-कथाकार यतीश कुमार की सद्य प्रकाशित संस्मरण की किताब ‘बोरसी भर आँच’ पढ़ते हुए बशीर बद्र साहब का यह मानीखेज शेर याद आ गया- “जिस दिन से चला हूँ मिरी मंज़िल पे नज़र है, आँखों ने कभी मील का पत्थर नहीं देखा / ये फूल मुझे कोई विरासत में मिले हैं, तुम ने मिरा काँटों भरा बिस्तर नहीं देखा।’ चीकू से यतीश कुमार बनने की यात्रा में कई वर्षों का…
वरिष्ठ लेखिका मृदुला गर्ग के प्रसिद्ध उपन्यास ‘चित्तकोबरा’ को पढ़कर कवि यतीश कुमार ने काव्यात्मक टिप्पणी की है। आप भी पढ़िए- ============================= 1. कमाल की कविता है स्मृति जिसकी परिधि में गुलाब के बचे ओस कण और पराग भी हैं जिसने बचाए रखा तन में मन और आत्मा में स्पंदन जिसने ताप को संताप और प्रेम को अधिकार होने से बचा लिया 2. ढहती रात उदास स्मृतियाँ हैं जो इस उलझन में है कि उदास रात्रि है या यात्री सड़क है या सफ़र एक फ़व्वारा है स्मृतियों का जिसमें साल में एक बार पानी आता है और वह पूरे…
आज पढ़िए उज़्मा कलाम की कहानी। उज़्मा ने जामिया मिल्लिया इस्लामिया और दिल्ली विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त की है और जोधपुर में एक संस्था के लिए काम करती हैं। लिखने के अलावा चित्रकारी का शौक़ रखती हैं। इनकी कहानी पढ़िए- ================================== सुबह सवेरे ऐसी धमा-चौकड़ी मची कि मेरी आँख खुल गयी। मैंने कलाई घड़ी पर निगाह डाली तो साढ़े छः बज रहे थे। सुस्ती पूरे जिस्म में पानी की तरह बह रही थी। अभी पाँच -साढ़े पाँच बजे ही तो मैं सोई थी। उफ़! लोगो की तीखी आवाज़ मेरे कानो में चुभने लगी। इस तरह नींद खुलने से गुस्सा आया…
यतीश कुमार ने काव्यात्मक समीक्षा की अपनी विशेष शैली विकसित की और इस शैली में वे अनेक पुस्तकों की समीक्षाएँ लिख चुके हैं। इसी कड़ी में आज पढ़िए अलका सरावगी के उपन्यास ‘कलि कथा वाया बाइपास’(राजकमल प्रकाशन) की समीक्षा। 1990 के दशक के आख़िरी सालों में जिस उपन्यास ने बड़े पैमाने पर लोगों का ध्यान खींचा था वह कलिकथा था। कई प्रमुख यूरोपीय भाषाओं में अनूदित और समादृत इस उपन्यास को आज की पीढ़ी से जोड़ने का काम करती है यह समीक्षा। आप भी पढ़ें- =================== कलि कथा वाया बाइपास -अलका सरावगी 1) कहानियाँ तहों में लिपटी होती हैं…
मैत्रेयी देवी के उपन्यास ‘न हन्यते’ और मीरचा इल्याडे के उपन्यास ‘बंगाल नाइट्स’ के बारे में एक बार राजेंद्र यादव ने हंस के संपादकीय में लिखा था। किस तरह पहले बंगाल नाइट्स लिखा गया और बाद में उसके जवाब में न हन्यते। निधि अग्रवाल के इस लेख से यह पता चला कि ‘हम दिल दे चुके सनम’ फ़िल्म भी इन्हीं दो उपन्यासों पर आधारित थी। इन दोनों उपन्यासों की जो कथा है उसकी भी अपनी कथा है। उपन्यास की कथा और उसके पीछे की कथा को जानने के लिए यह दिलचस्प लेख पढ़िए। लेख लिखने वाली निधि अग्रवाल पेशे…
मुझे याद है बीसवीं शताब्दी के आख़िरी वर्षों में सुरेन्द्र वर्मा का उपन्यास ‘मुझे चाँद चाहिए’ प्रकाशित हुआ था। नाटकों-फ़िल्मों की दुनिया के संघर्ष, संबंधों, सफलता-असफलता की कहानियों में गुँथे इस उपन्यास को लेकर तब बहुत बहस हुई थी। याद आता है सुधीश पचौरी ने इसकी समीक्षा लिखते हुए उसका शीर्षक दिया था ‘यही है राइट चॉइस’। दो दशक से अधिक हो गए। कवि यतीश कुमार ने मुझे चाँद चाहिए पढ़ा तो उसके सम्मोहन में यह कविता ऋंखला लिख दी। एक ही कृति हर दौर के लेखक-पाठक से अलग तरह से जुड़ती है, इसी में उसकी रचनात्मक सार्थकता है।…
कमलेश्वर का उपन्यास ‘कितने पाकिस्तान’ सन 2000 में प्रकाशित हुआ था। इस उपन्यास के अभी तक 18 संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं और हिंदी के आलोचकों द्वारा नज़रअन्दाज़ किए गए इस उपन्यास को पाठकों का भरपूर प्यार मिला। उपन्यास में एक अदीब है जो जैसे सभ्यता समीक्षा कर रहा है। इतिहास का मंथन कर रहा है।इसी उपन्यास पर एक काव्यात्मक टिप्पणी की है यतीश कुमार ने, जो अपनी काव्यात्मक समीक्षाओं से अपनी विशिष्ट पहचान बना चुके हैं। आप भी पढ़िए- मॉडरेटर ========== 1. समय की उल्टी दिशा में दशकों से भटक रहा है अतीत.. और मानव-सभ्यता की तहक़ीक़ात अभी…
भारती दीक्षित प्रशिक्षित कलाकार हैं। इनका अपना यूट्यूब चैनल है जहाँ वह कहानियों के पाठ करती हैं और हजारों- लाखों लोग उन्हें सुनते भी हैं। कुछ कहानियों का व्यू तो चार लाख तक गया है।यह उनकी अजंता-एलोरा की यात्रा का संस्मरण है। छुट्टियों के मौसम में, घूमने के मौसम में एक और यात्रा संस्मरण— अमृत रंजन ——————— अजंता चित्रकला, वास्तुकला और शिल्पकला का बेजोड़ उदहारण लिए हमारे समक्ष बरसों बरस से मौजूद है। अजंता को देखने समझने का सपना अमूमन हर कलाकार देखता है, मेरे भी कुछ छोटे बड़े सपनो में से एक सपना – अजंता। साल दर साल बीतते रहे और आज मेरा…