निर्मल वर्मा के लिए उनके समकालीन लेखक मनोहर श्याम जोशी ने यह कविता 1950 के दशक के आखिरी वर्षों में लिखी थी जब दोनों लेखक के रूप में पहचान बनाने में लगे थे. मनोहर श्याम जोशी तब ‘कूर्मांचली’ के नाम से कविताएँ लिखते थे. आज निर्मल वर्मा की पुण्यतिथि है. इस मौके पर विशेष- मॉडरेटर ================================================= निर्मल के नाम (1) ओ बंधु मेरे! क्या तुमने नहीं देखा राह चलते नागरिकों के नियोन नयनों में उनके लडखडाते क़दमों का लेखा? नहीं, ऐसा नहीं हो सकता! बंधु, मैं तुम्हारे माथे पर देखा है एक सलीब चमकता. —— दिन-दिन क्षुब्ध क्षणों के…
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आज हिंदी कहानियों को नया मोड़ देने वाले निर्मल वर्मा की पुण्यतिथि है. प्रस्तुत है उनके मरणोपरांत प्रकाशित पुस्तक ‘प्रिय राम’ से एक पत्र. यह पुस्तक उनके और उनके भाई प्रसिद्ध चित्रकार रामकुमार के बीच पत्राचार का संकलन है. वैसे यह पत्र रामकुमार ने निर्मल जी के मरने के बाद उनके नाम लिखा था. निर्मल जी की स्मृति को प्रणाम के साथ- प्रभात रंजन ——————————————- (25.12.2005) प्रिय निर्मल, इस बार इतनी लंबी यात्रा पर जाने से पहले तुम अपना पता भी नहीं दे गए. यह सोच कर मुझे आश्चर्य होता है कि तुम्हारे पैदा होना का दिन भी मुझे बहुत…
खुर्शीद अनवर बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे. मौलिक दृष्टि रखने वाले साहसिक विद्वान. उन्होंने अंग्रेजी के माध्यम से विदेशी भाषा के अनेक कवियों की महत्वपूर्ण कविता के अनुवाद किये थे. यहाँ प्रस्तुत है पाब्लो नेरुदा की एक लम्बी कविता का खुर्शीद अनवर द्वारा किया गया अनुवाद. ===============================================================लफ्ज़ लफ़्ज़ वारिद हुआ खून में दौड गया परवरिश पाता रहा जिस्म की गहराइयों में और परवाज़ भरी होंटों से और मुँह से निकल दूर से दूर भी नज़दीक बहुत ही नज़दीक लफ़्ज़ बरसा किए पुरखों दर पुरखों भी और नस्लों की मीरास के साथ और वह बस्तियाँ जो पहने थी पत्थर के लिबास थक चुकी थीं जो खुद अपने ही बाशिंदों से दबी क्योंकि…
खुर्शीद अनवर बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे. मौलिक दृष्टि रखने वाले साहसिक विद्वान. उन्होंने अंग्रेजी के माध्यम से विदेशी भाषा के अनेक कवियों की महत्वपूर्ण कविता के अनुवाद किये थे. यहाँ प्रस्तुत है पाब्लो नेरुदा की एक लम्बी कविता का खुर्शीद अनवर द्वारा किया गया अनुवाद. ===============================================================लफ्ज़ लफ़्ज़ वारिद हुआ खून में दौड गया परवरिश पाता रहा जिस्म की गहराइयों में और परवाज़ भरी होंटों से और मुँह से निकल दूर से दूर भी नज़दीक बहुत ही नज़दीक लफ़्ज़ बरसा किए पुरखों दर पुरखों भी और नस्लों की मीरास के साथ और वह बस्तियाँ जो पहने थी पत्थर के लिबास थक चुकी थीं जो खुद अपने ही बाशिंदों से दबी क्योंकि…
श्यामनारायण पांडे की पत्नी के साथ लेखक \’वीर तुम बढे चलो\’ और \’हल्दी घाटी\’ के कवि श्याम नारायण पांडे की कविताओं की एक जमाने में मंचों पर धूम थी. उनके गाँव जाकर उनको याद करते हुए एक बेहद आत्मीय लेख लिखा है प्रसिद्द कवि बुद्धिनाथ मिश्र ने- जानकी पुल.=======================मऊ नाथ भंजन नगर जब आजमगढ़ जनपद का हिस्सा था, तब अनेकों बार यहाँ मैं आया था । आज इसका स्टेशन बहुत बदल चुका है । सुना है कि अब यह जंक्शनटर्मिनल बननेवाला है,जहाँ से नई गाड़ियाँ चला करेंगी । वस्त्र निर्माण की दृष्टि से यह नगर पहले भी नामी था, आज भी । वीर रस के महाकवि पंडित श्याम नारायण पाण्डेय इसी नगर के पास डुमराँव गाँव के थे । उनके जीते जी कभी उनके गाँव-घर को देखने का मौका नहीं मिला । कवि सम्मेलनों में जानेवाले कवियों की जमात केबारे में प्रसिद्धि थी कि वह डाकुओं की भाँति शाम के धुंधलके में वारदात की जगह पहुँचती है और सुबह होने से पहले नगर छोड़ देती है । लोगों को कवियों के उस नगर मेंआने की सूचना अखबार की खबरों से ही मिलती थी । मैं भी उसी जमात का हिस्सा हुआ करता था, इसलिए जहाँ और जब सभी जाते, मैं भी जाता । उसमें कभी डुमरॉवजाने का प्रोग्राम नहीं बना , जबकि बनारस में महाकवि श्याम नारायण पाण्डेय , सूंड फैजाबादी, रूप नारायण त्रिपाठी, विकल साकेती आदि प्रायः मेरे घर आते रहते थे,क्योंकि बनारस कहीं भी जाने के लिए केन्द्र में हुआ करता था। सो, कई वर्षों से , बल्कि यों कहें कि पाण्डेय जी के 1991 में निधन के बाद से ही मेरे मन मेंडुमराँव जाने की दृढ़ इच्छा थी ,जो गत 4 दिसंबर को फलीभूत हुई । उस दिन सबेरे जब मैं ट्रेन से मऊ नाथ भंजन स्टेशन पर उतरा, तो मेरे साथ गीतकार राघवेन्द्र प्रताप सिंह थे, जो मऊ नगर के सीमावर्ती गाँव ताजोपुर के निवासीहैं और विभिन्न साहित्यिक समारोहों के माध्यम से उस क्षेत्र में पाण्डेय जी के नाम को जीवित रखने के लिए प्रयासरत हैं । स्टेशन से बाहर निकलते ही साहित्यिक पत्रिका `अभिनव कदम\’ के सम्पादक श्री जय प्रकाश `धूमकेतु\’ मिल गए । वे आजकल वर्धा विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं और गाहेबगाहे अपने घर आ जाया करते हैं। उन्होंने अपनी
श्यामनारायण पांडे की पत्नी के साथ लेखक \’वीर तुम बढे चलो\’ और \’हल्दी घाटी\’ के कवि श्याम नारायण पांडे की कविताओं की एक जमाने में मंचों पर धूम थी. उनके गाँव जाकर उनको याद करते हुए एक बेहद आत्मीय लेख लिखा है प्रसिद्द कवि बुद्धिनाथ मिश्र ने- जानकी पुल.=======================मऊ नाथ भंजन नगर जब आजमगढ़ जनपद का हिस्सा था, तब अनेकों बार यहाँ मैं आया था । आज इसका स्टेशन बहुत बदल चुका है । सुना है कि अब यह जंक्शनटर्मिनल बननेवाला है,जहाँ से नई गाड़ियाँ चला करेंगी । वस्त्र निर्माण की दृष्टि से यह नगर पहले भी नामी था, आज भी । वीर रस के महाकवि पंडित श्याम नारायण पाण्डेय इसी नगर के पास डुमराँव गाँव के थे । उनके जीते जी कभी उनके गाँव-घर को देखने का मौका नहीं मिला । कवि सम्मेलनों में जानेवाले कवियों की जमात केबारे में प्रसिद्धि थी कि वह डाकुओं की भाँति शाम के धुंधलके में वारदात की जगह पहुँचती है और सुबह होने से पहले नगर छोड़ देती है । लोगों को कवियों के उस नगर मेंआने की सूचना अखबार की खबरों से ही मिलती थी । मैं भी उसी जमात का हिस्सा हुआ करता था, इसलिए जहाँ और जब सभी जाते, मैं भी जाता । उसमें कभी डुमरॉवजाने का प्रोग्राम नहीं बना , जबकि बनारस में महाकवि श्याम नारायण पाण्डेय , सूंड फैजाबादी, रूप नारायण त्रिपाठी, विकल साकेती आदि प्रायः मेरे घर आते रहते थे,क्योंकि बनारस कहीं भी जाने के लिए केन्द्र में हुआ करता था। सो, कई वर्षों से , बल्कि यों कहें कि पाण्डेय जी के 1991 में निधन के बाद से ही मेरे मन मेंडुमराँव जाने की दृढ़ इच्छा थी ,जो गत 4 दिसंबर को फलीभूत हुई । उस दिन सबेरे जब मैं ट्रेन से मऊ नाथ भंजन स्टेशन पर उतरा, तो मेरे साथ गीतकार राघवेन्द्र प्रताप सिंह थे, जो मऊ नगर के सीमावर्ती गाँव ताजोपुर के निवासीहैं और विभिन्न साहित्यिक समारोहों के माध्यम से उस क्षेत्र में पाण्डेय जी के नाम को जीवित रखने के लिए प्रयासरत हैं । स्टेशन से बाहर निकलते ही साहित्यिक पत्रिका `अभिनव कदम\’ के सम्पादक श्री जय प्रकाश `धूमकेतु\’ मिल गए । वे आजकल वर्धा विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं और गाहेबगाहे अपने घर आ जाया करते हैं। उन्होंने अपनी
देश में चुनावी रैलियों और भाषणों का माहौल है। राजनीति को हम जिस प्रकार २१ वीं सदी के उत्तर आधुनिक काल में, मात्र बाहुबल और विज्ञापन के द्वितीयक उत्पाद के रूप में देख रहे हैं, उसे एक समर्पित वैज्ञानिक लगभग 90 वर्ष पूर्व भी ठीक इसी रूप में देख रहा था। यह व्यक्तिगत पत्र “आइन्स्टीन” द्वारा सन १९३१ या १९३२ की शुरुआत में “सिगमंड फ़्रायड” को लिखा गया था। जो कि “Mein Wettbild, Amsterdam: Quarido Verlag” में सन १९३४ में प्रकाशित हुआ था। मनोविज्ञान के क्षेत्र में अविस्मरणीय योगदान देने वाले प्रोफ़ेसर सिगमंड फ़्रायड को लिखे गये इस पत्र में,…
देश में चुनावी रैलियों और भाषणों का माहौल है। राजनीति को हम जिस प्रकार २१ वीं सदी के उत्तर आधुनिक काल में, मात्र बाहुबल और विज्ञापन के द्वितीयक उत्पाद के रूप में देख रहे हैं, उसे एक समर्पित वैज्ञानिक लगभग 90 वर्ष पूर्व भी ठीक इसी रूप में देख रहा था। यह व्यक्तिगत पत्र “आइन्स्टीन” द्वारा सन १९३१ या १९३२ की शुरुआत में “सिगमंड फ़्रायड” को लिखा गया था। जो कि “Mein Wettbild, Amsterdam: Quarido Verlag” में सन १९३४ में प्रकाशित हुआ था। मनोविज्ञान के क्षेत्र में अविस्मरणीय योगदान देने वाले प्रोफ़ेसर सिगमंड फ़्रायड को लिखे गये इस पत्र में,…