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आज शैलजा पाठक की कविताएँ. इनकी कविताएँ में छोटे-छोटे कस्बों के बड़े बड़े सवाल हैं. इन कविताओं का कस्बाई मन बार-बार ध्यान खींचता है. आपके लिए ११ कविताएँ- मॉडरेटर.==========================================================१नदियाँ इन सूखी नदियों का क्या करें उम्मीदों से भरी होती है किनारों को कुरेदती हैं अपने तेज इच्छा शक्ति वाले नाखूनों से निकाल लेती हैं अपने हिस्से की नमी सोखती है दर्द उदासी हताशा हमारी यादों में मुस्कराती है पिछले साल कैसी भरी थी उमड़ते बादलों में खोजती हैं अपना जीवन बरसेगा तो भर जाउंगी बंटी हुई भी बांटती हैं अपना अकेलापन किनारों से पिछले साल अपने उपर बंधी पीली चुनरी…

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आज शैलजा पाठक की कविताएँ. इनकी कविताएँ में छोटे-छोटे कस्बों के बड़े बड़े सवाल हैं. इन कविताओं का कस्बाई मन बार-बार ध्यान खींचता है. आपके लिए ११ कविताएँ- मॉडरेटर.==========================================================१नदियाँ इन सूखी नदियों का क्या करें उम्मीदों से भरी होती है किनारों को कुरेदती हैं अपने तेज इच्छा शक्ति वाले नाखूनों से निकाल लेती हैं अपने हिस्से की नमी सोखती है दर्द उदासी हताशा हमारी यादों में मुस्कराती है पिछले साल कैसी भरी थी उमड़ते बादलों में खोजती हैं अपना जीवन बरसेगा तो भर जाउंगी बंटी हुई भी बांटती हैं अपना अकेलापन किनारों से पिछले साल अपने उपर बंधी पीली चुनरी…

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आज मुख्यधारा की मीडिया में प्रेमचंद की जयंती पर उनको याद करते हुए कुछ अच्छे लेख प्रकाशित हुए हैं. \’जनसत्ता\’ में शम्भुनाथ ने अच्छा लेख लिखा है. लेकिन वह हमें इतनी सुबह-सुबह उपलब्ध नहीं हो पाया. फिलहाल यह लेख पढ़िए- सदानंद शाही ने लिखा है और यह लेख छपा है \’दैनिक हिन्दुस्तान\’ में- जानकी पुल. ======================================================================= कुछ तारीखें कैलेंडरों पर दर्ज होती हैं और याद रखी जाती हैं, पर कुछ तारीखें ऐसी भी होती हैं, जो दिल के कैलेंडर में दर्ज होती हैं और अनायास याद आ जाती हैं। प्रेमचंद की जन्मतिथि 31 जुलाई ऐसी ही एक तारीख है। काशी…

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आज मुख्यधारा की मीडिया में प्रेमचंद की जयंती पर उनको याद करते हुए कुछ अच्छे लेख प्रकाशित हुए हैं. \’जनसत्ता\’ में शम्भुनाथ ने अच्छा लेख लिखा है. लेकिन वह हमें इतनी सुबह-सुबह उपलब्ध नहीं हो पाया. फिलहाल यह लेख पढ़िए- सदानंद शाही ने लिखा है और यह लेख छपा है \’दैनिक हिन्दुस्तान\’ में- जानकी पुल. ======================================================================= कुछ तारीखें कैलेंडरों पर दर्ज होती हैं और याद रखी जाती हैं, पर कुछ तारीखें ऐसी भी होती हैं, जो दिल के कैलेंडर में दर्ज होती हैं और अनायास याद आ जाती हैं। प्रेमचंद की जन्मतिथि 31 जुलाई ऐसी ही एक तारीख है। काशी…

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कुछ दिनों पहले वरिष्ठ कवयित्री सुमन केसरी ने मोनालिसा को लेकर कुछ कवितायेँ लिखी थी. आज समकालीन कवयित्री कलावंती की कुछ कवितायेँ, एकदम अलग रंग-ढंग में- जानकी पुल. ———————————————————————————————++++++++++++++++++++++++++++ मोनालिसा (सात चित्र)एकमोनालिसालोग सदियों से ढूंढ रहे हैंतुम्हारी मुस्कान का अर्थ!मुस्कान में ख़ुशी है या क्लेशकिसी की प्रषंसा है या द्वेषमुग्धा नायिका हो मोनालिसा या विरहिन अशेषतुम्हारी मुस्कान का अर्थ क्या है मोनालिसा?दोमोनालिसा किसी बहुतगहरे भाव में डूबी होक्या अपने प्रिय को देख लिया हैकिसी दूसरी प्रिया के साथदुःख में हो मोनालिसा?तीनमोनालिसाक्या बहुत गहरे दुःख में हो!या यह दुःख किसी सुन्दर सृजन सेपहले का दुःख हैजोसुख से भी ज्यादा सुन्दर होता…

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कुछ दिनों पहले वरिष्ठ कवयित्री सुमन केसरी ने मोनालिसा को लेकर कुछ कवितायेँ लिखी थी. आज समकालीन कवयित्री कलावंती की कुछ कवितायेँ, एकदम अलग रंग-ढंग में- जानकी पुल. ———————————————————————————————++++++++++++++++++++++++++++ मोनालिसा (सात चित्र)एकमोनालिसालोग सदियों से ढूंढ रहे हैंतुम्हारी मुस्कान का अर्थ!मुस्कान में ख़ुशी है या क्लेशकिसी की प्रषंसा है या द्वेषमुग्धा नायिका हो मोनालिसा या विरहिन अशेषतुम्हारी मुस्कान का अर्थ क्या है मोनालिसा?दोमोनालिसा किसी बहुतगहरे भाव में डूबी होक्या अपने प्रिय को देख लिया हैकिसी दूसरी प्रिया के साथदुःख में हो मोनालिसा?तीनमोनालिसाक्या बहुत गहरे दुःख में हो!या यह दुःख किसी सुन्दर सृजन सेपहले का दुःख हैजोसुख से भी ज्यादा सुन्दर होता…

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युवा लेखक कुणाल सिंह सिनेमा की गहरी समझ रखते हैं. हाल में ही दिवंगत हुए फिल्मकार ऋतुपर्णो घोष पर उनका यह लेख रेखांकित किये जाने लायक है. ऋतुपर्णो घोष पर इस लेख में अनेक नई जानकारियां हैं, बंगला सिनेमा परंपरा में उनके योगदान का सम्यक मूल्यांकन भी. एक अवश्य पठनीय लेख- मॉडरेटर  =============================================================== 13 अगस्त, 1963 को कलकत्ते में जनमे ऋतुपर्णो अर्थशास्त्र से स्नातक थे। पिता श्री सुनील घोष का सम्बन्ध फिल्मी जगत से था, सम्भवतः मां का भी, इसलिए ऋतुपर्णो बचपन से ही फिल्म-निर्माण की प्रक्रियाओं से वाकफियत रखते थे। अपने समकालीन अंजन दत्ता की तरह ही उन्होंने अपने करियर की शुरुआत विज्ञापन…

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युवा लेखक कुणाल सिंह सिनेमा की गहरी समझ रखते हैं. हाल में ही दिवंगत हुए फिल्मकार ऋतुपर्णो घोष पर उनका यह लेख रेखांकित किये जाने लायक है. ऋतुपर्णो घोष पर इस लेख में अनेक नई जानकारियां हैं, बंगला सिनेमा परंपरा में उनके योगदान का सम्यक मूल्यांकन भी. एक अवश्य पठनीय लेख- मॉडरेटर  =============================================================== 13 अगस्त, 1963 को कलकत्ते में जनमे ऋतुपर्णो अर्थशास्त्र से स्नातक थे। पिता श्री सुनील घोष का सम्बन्ध फिल्मी जगत से था, सम्भवतः मां का भी, इसलिए ऋतुपर्णो बचपन से ही फिल्म-निर्माण की प्रक्रियाओं से वाकफियत रखते थे। अपने समकालीन अंजन दत्ता की तरह ही उन्होंने अपने करियर की शुरुआत विज्ञापन…

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स्वाति अर्जुन को हम एक सजग पत्रकार के रूप में जानते रहे हैं, वह एक संवेदनशील कवयित्री भी हैं इसका पता इन कविताओं को पढ़कर चला. घर-परिवार, आस-पड़ोस के प्रति संवेदनशील दृष्टि, भाषा के सहज प्रयोग, सहज जिज्ञासाएं, भावना और बुद्धि का संतुलन- स्वाति अर्जुन की कवितायेँ हमें पढने के लिए विवश करती हैं और बहुत कुछ सोचने के लिए भी. आप भी पढ़िए- मॉडरेटर.=====घरघर…मैं…घर, मैं और प्लंबर! घर…. कारपेंटर, मिस्त्री और हॉकर…गैस वाला, बिजली मिस्त्री… धोबी…कभी-कभी धोबन भी…सबसे अहम….कूड़े वाला !गृहस्थी…वैन ड्राईवर, ट्यूशन टीचर, आर्ट इंस्ट्रक्टर…सीटी बजाता रात-बिरात, चौकीदार..टूटी सीढ़ियों को चढ़ने लायक बनाता—ईंट-गारे वाला मिस्त्री…प्रॉपर्टी डीलर, सोसायटी इंचार्ज…कभी-कभी…

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