‘नक़्श’ लायलपुरी एक ऐसे शायर हैं जिन्होंने फिल्मों में भी कई अर्थपूर्ण गीत लिखे. आज उनकी कुछ चुनिन्दा ग़ज़लें- मॉडरेटर.===================1.तुझको सोचा तो खो गईं आँखेंदिल का आईना हो गईं आँखेंख़त का पढ़ना भी हो गया मुश्किलसारा काग़ज़ भिगो गईं आँखेंकितना गहरा है इश्क़ का दरियाउसकी तह में डुबो गईं आँखेंकोई जुगनू नहीं तसव्वुर काकितनी वीरान हो गईं आँखेंदो दिलों को नज़र के धागे सेइक लड़ी में पिरो गईं आँखेंरात कितनी उदास बैठी हैचाँद निकला तो सो गईं आँखें\’नक़्श\’ आबाद क्या हुए सपनेऔर बरबाद हो गईं आँखें2.वो आएगा दिल से दुआ तो करोनमाज़े-मुहब्बत अदा तो करोमिलेगा कोई बन के उनवान भीकहानी…
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अलका सरावगी के उपन्यासों में बतकही के अंदाज में हमारे समय का जटिल यथार्थ बहुत सहजता से आता है. मेरे जैसे पाठक उनके उपन्यास का इंतज़ार करते हैं. आज अगर हिंदी उपन्यासों की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चा होती है तो उसमें अलका जी के उपन्यासों का भी योगदान है. आपके लिए उनके नए लिखे जा रहे उपन्यास का अंश- प्रभात रंजन.=====================जानकीदास तेजपाल हाऊस‘चलते रहो। चलते रहो। पीछे मुड़कर मत देखो। तेज मत चलो। ऐसे चलो जैसे कुछ हुआ ही न हो। हाँफ क्यों रहे हो? चलते जाओ’- अपने से बात करता जयदीप उसी तरह चलता रहा। न उसने रुककर पीछे…
अलका सरावगी के उपन्यासों में बतकही के अंदाज में हमारे समय का जटिल यथार्थ बहुत सहजता से आता है. मेरे जैसे पाठक उनके उपन्यास का इंतज़ार करते हैं. आज अगर हिंदी उपन्यासों की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चा होती है तो उसमें अलका जी के उपन्यासों का भी योगदान है. आपके लिए उनके नए लिखे जा रहे उपन्यास का अंश- प्रभात रंजन.=====================जानकीदास तेजपाल हाऊस‘चलते रहो। चलते रहो। पीछे मुड़कर मत देखो। तेज मत चलो। ऐसे चलो जैसे कुछ हुआ ही न हो। हाँफ क्यों रहे हो? चलते जाओ’- अपने से बात करता जयदीप उसी तरह चलता रहा। न उसने रुककर पीछे…
हाल के दिनों में आभासी दुनिया में सबसे लम्बी बहस जो चली वह कवि कमलेश के उस बातचीत को लेकर चली जो \’समास\’ पत्रिका में प्रकाशित हुई थी. उसी बातचीत के आधार पर उनको साहित्य में दाखिल-ख़ारिज किया जाता रहा, लेकिन उनकी कविताओं को लेकर कोई बहस नहीं हुई. मुझे लगता है कि आभासी दुनिया की बहसें व्यक्ति-केन्द्रित अधिक होती गई हैं, वे बहसें रचनाओं के आधार पर नहीं होती. यह दुर्भाग्य की बात है कि उदयप्रकाश का मूल्यांकन हम उनकी कहानियों के आधार पर नहीं करते उन्होंने किसके हाथ से पुरस्कार ले लिए इसके आधार पर करने लगते हैं.…
हाल के दिनों में आभासी दुनिया में सबसे लम्बी बहस जो चली वह कवि कमलेश के उस बातचीत को लेकर चली जो \’समास\’ पत्रिका में प्रकाशित हुई थी. उसी बातचीत के आधार पर उनको साहित्य में दाखिल-ख़ारिज किया जाता रहा, लेकिन उनकी कविताओं को लेकर कोई बहस नहीं हुई. मुझे लगता है कि आभासी दुनिया की बहसें व्यक्ति-केन्द्रित अधिक होती गई हैं, वे बहसें रचनाओं के आधार पर नहीं होती. यह दुर्भाग्य की बात है कि उदयप्रकाश का मूल्यांकन हम उनकी कहानियों के आधार पर नहीं करते उन्होंने किसके हाथ से पुरस्कार ले लिए इसके आधार पर करने लगते हैं.…
पिछले दिनों एक खबर आई कि एक प्रसिद्ध फिल्म निर्देशक ने दशरथ माझी के जीवन पर आधारित फिल्म बनाई है. दशरथ माझी सचमुच एक यादगार चरित्र है, जिसने पहाड़ का सीना चीरकर रास्ता बना दिया था. फिल्म के बारे में पढ़ा ही था कि वरिष्ठ कवि-लेखक निलय उपाध्याय ने दशरथ मांझी के जीवन पर लिखा उपन्यास भेज दिया. उपन्यास अभी छपा नहीं है. लेकिन कह सकता हूँ कि दशरथ मांझी के बहाने बिहार के जीवन, समाज, राजनीति को लेकर एक शानदार उपन्यास है. मैं प्रकाशक तो हूँ नहीं कि छापकर आपके लिए उपन्यास पेश कर सकूँ. लेकिन आपके लिए उसका…
पिछले दिनों एक खबर आई कि एक प्रसिद्ध फिल्म निर्देशक ने दशरथ माझी के जीवन पर आधारित फिल्म बनाई है. दशरथ माझी सचमुच एक यादगार चरित्र है, जिसने पहाड़ का सीना चीरकर रास्ता बना दिया था. फिल्म के बारे में पढ़ा ही था कि वरिष्ठ कवि-लेखक निलय उपाध्याय ने दशरथ मांझी के जीवन पर लिखा उपन्यास भेज दिया. उपन्यास अभी छपा नहीं है. लेकिन कह सकता हूँ कि दशरथ मांझी के बहाने बिहार के जीवन, समाज, राजनीति को लेकर एक शानदार उपन्यास है. मैं प्रकाशक तो हूँ नहीं कि छापकर आपके लिए उपन्यास पेश कर सकूँ. लेकिन आपके लिए उसका…
कल श्री गिरिराज किराडू ने हमारी भाषा के वरिष्ठ कवि-आलोचक-संपादक श्री अशोक वाजपेयी को उनकी बातों के सन्दर्भ में स्पष्टीकरण देते हुए पत्र लिखा था. आज अशोक जी ने उस पत्र का जवाब देते हुए बहुत गरिमापूर्ण ढंग से अपनी बातों को रखा है, लेकिन इस छोटे से पत्र में उन्होंने कुछ गंभीर सवाल उठाये हैं जिनके सन्दर्भ में समकालीन बहसों को एक बार फिर देखा जाना चाहिए, कम से कम मुझे ऐसा लगता है. अशोक जी के इस पत्र के बाद मुझे नहीं लगता है इस बहस को आगे चलाये रखने का कोई औचित्य रह गया है. आपके लिए…
श्री अशोक वाजपेयी का यह ईमेल हमें प्राप्त हुआ है जिसमें उन्होंने \’प्रतिलिपि बुक्स\’ को लेकर कुछ बातों को स्पष्ट किया है. प्रतिलिपि के निदेशक युवा कवि-कल्पनाशील संपादक गिरिराज किराडू हैं. यह लोकतांत्रिकता का तकाजा है कि हम वरिष्ठ कवि-आलोचक-संपादक अशोक वाजपेयी के उस ईमेल को अविकल रूप से सार्वजनिक करें. पिछले इतवार को \’जनसत्ता\’ संपादक ओम थानवी ने रजा फाउंडेशन से वित्तीय मदद को लेकर कुछ बातें लिखी थी. यह मेल एक तरह से उन बातों की पुष्टि करता है. फिलहाल अशोक वाजपेयी का ईमेल- जानकी पुल. ===========================================श्री ओम थानवी से सुनने-समझने में चूक हुई है. श्री गिरिराज किराडू ने…
समकालीन हिंदी कविता की एक मुश्किल यह है कि वह ‘पोलिटिकली करेक्ट’ होने के प्रयास में अधिक रहती है, लेकिन कुछ कवि ‘करेक्ट’ होने के लिए भी लिखते हैं, मनुष्यता के इतिहास में करेक्ट होने के लिए. छत्तीसगढ़ के सुकमा में हाल की हत्याओं के बाद प्रियदर्शन की यह कविता श्रृंखला बार-बार यह सवाल उठाती है कि क्या हिंसा का समर्थन किया जाना चाहिए? कल दिल्ली के हैबिटेट सेंटर में शाम सात बजे ‘कवि के साथ’ कार्यक्रम में कविता पाठ करने वाले तीन कवियों में एक कवि प्रियदर्शन भी हैं. अन्य दो कवि हैं विमल कुमार और अच्युतानंद मिश्र. फिलहाल…