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कुमार अनुपम की कविताएँ समकालीन कविता में अपना एक अलग स्पेस रचती है- \’अपने समय की शर्ट में एक्स्ट्रा बटन की तरह\’. हिंदी कविताओं की अनेक धाराओं के स्वर उनकी कविताओं में दिखाई देते हैं जो उनकी एक अलग आवाज बनाते हैं. यहं उनकी कुछ कविताएँ- जानकी पुल.=============================================================अशीर्षक बेहया उदासी मेरी नागरिकता की रखैल मुझसे बेसाख्ता मज़ाक करती है मुझे घिन आती है और यह छद्म है मुझे दया आती है और यह परोपकार का भ्रम मुझे नशा है आदमी होने का यही पश्चात्ताप अपने समय का ज़ाहिर खिलवाड़ हूँ आइस-पाइस, एक्ख्खट-दुख्खट, पोशम्पा और खो-खो मुझे ढूँढना आसान नहीं मेरे लिए…

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कुमार अनुपम की कविताएँ समकालीन कविता में अपना एक अलग स्पेस रचती है- \’अपने समय की शर्ट में एक्स्ट्रा बटन की तरह\’. हिंदी कविताओं की अनेक धाराओं के स्वर उनकी कविताओं में दिखाई देते हैं जो उनकी एक अलग आवाज बनाते हैं. यहं उनकी कुछ कविताएँ- जानकी पुल.=============================================================अशीर्षक बेहया उदासी मेरी नागरिकता की रखैल मुझसे बेसाख्ता मज़ाक करती है मुझे घिन आती है और यह छद्म है मुझे दया आती है और यह परोपकार का भ्रम मुझे नशा है आदमी होने का यही पश्चात्ताप अपने समय का ज़ाहिर खिलवाड़ हूँ आइस-पाइस, एक्ख्खट-दुख्खट, पोशम्पा और खो-खो मुझे ढूँढना आसान नहीं मेरे लिए…

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दूरदर्शन की नई पहल है ‘दृश्यांतर’. \’मीडिया, साहित्य,संस्कृति और विचार\’ पर एकाग्र इस पत्रिका का प्रवेशांक आया है. जिसमें सबसे उल्लेखनीय है श्याम बेनेगल से त्रिपुरारी शरण से बातचीत. ‘मोहल्ला अस्सी वाया पिंजर’ में सिनेमा के अपने अनुभवों पर चंद्रप्रकाश द्विवेदी ने अच्छा संस्मरणात्मक लेख लिखा है. यतीन्द्र मिश्र लोकप्रिय सिनेमा पर ऐसी लिखते हैं जैसे कोई गंभीर विमर्श कर रहे हों और उनसे पहले किसी ने वैसा लिखा ही न हो. ‘अनारकली’ फिल्म और संगीतकार सी. रामचंद्र पर उनका लेख कुछ इसी तरह का है. यतीन्द्र ने \’गिरिजा\’ के बाद बहुत संभावनाएं जगाई थी, लगता है उनके लेखन की…

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दूरदर्शन की नई पहल है ‘दृश्यांतर’. \’मीडिया, साहित्य,संस्कृति और विचार\’ पर एकाग्र इस पत्रिका का प्रवेशांक आया है. जिसमें सबसे उल्लेखनीय है श्याम बेनेगल से त्रिपुरारी शरण से बातचीत. ‘मोहल्ला अस्सी वाया पिंजर’ में सिनेमा के अपने अनुभवों पर चंद्रप्रकाश द्विवेदी ने अच्छा संस्मरणात्मक लेख लिखा है. यतीन्द्र मिश्र लोकप्रिय सिनेमा पर ऐसी लिखते हैं जैसे कोई गंभीर विमर्श कर रहे हों और उनसे पहले किसी ने वैसा लिखा ही न हो. ‘अनारकली’ फिल्म और संगीतकार सी. रामचंद्र पर उनका लेख कुछ इसी तरह का है. यतीन्द्र ने \’गिरिजा\’ के बाद बहुत संभावनाएं जगाई थी, लगता है उनके लेखन की…

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दुर्गा के बहाने कुछ कविताएँ लिखी हैं युवा कवयित्री विपिन चौधरी ने. एक अलग भावबोध, समकालीन दृष्टि के साथ. कुछ पढ़ी जाने वाली कविताएँ- जानकी पुल.==================================1 एक युग में ब्रह्मा, विष्णु, शिव थमाते है तुम्हारे अठारह हाथों में अस्त्र शस्त्र राक्षस वध की अपूर्व सफलता के लिये सौंपते हैं शेर की नायाब सवारी कलयुग में पुरुष थमाते हैस्त्री के दोनों हाथों में अठारह तरह के दुःख स्त्री, क्या तुम दुःख को तेज़ हथियार बना किसी लिजलिजे सीने में नश्तर की तरह उतार सकती हो इस वक़्त तुम्हें इसकी ही जरुरत है 2 अपने काम को अंजाम देने के लिये दुर्गा अपना एक-एक सिंगार उतार साक्षात् चंडी बनती है ठीक वैसे ही एक समय के बाद सोलह सिंगार में लिपटी स्त्री को किसी दूसरे वक़्त रणचंडी बनने की जरुरत भी पड़ सकती है 3 बेतरह…

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दुर्गा के बहाने कुछ कविताएँ लिखी हैं युवा कवयित्री विपिन चौधरी ने. एक अलग भावबोध, समकालीन दृष्टि के साथ. कुछ पढ़ी जाने वाली कविताएँ- जानकी पुल.==================================1 एक युग में ब्रह्मा, विष्णु, शिव थमाते है तुम्हारे अठारह हाथों में अस्त्र शस्त्र राक्षस वध की अपूर्व सफलता के लिये सौंपते हैं शेर की नायाब सवारी कलयुग में पुरुष थमाते हैस्त्री के दोनों हाथों में अठारह तरह के दुःख स्त्री, क्या तुम दुःख को तेज़ हथियार बना किसी लिजलिजे सीने में नश्तर की तरह उतार सकती हो इस वक़्त तुम्हें इसकी ही जरुरत है 2 अपने काम को अंजाम देने के लिये दुर्गा अपना एक-एक सिंगार उतार साक्षात् चंडी बनती है ठीक वैसे ही एक समय के बाद सोलह सिंगार में लिपटी स्त्री को किसी दूसरे वक़्त रणचंडी बनने की जरुरत भी पड़ सकती है 3 बेतरह…

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संजय गौतम कम लिखते हैं लेकिन मानीखेज लिखते हैं. उदाहरण के लिए यही लेख जिसमें इब्ने इंशा की किताब \’उर्दू की आखिरी किताब\’ के बहाने उर्दू व्यंग्य की परम्परा का दिलचस्प जायजा लिया गया है- जानकी पुल.==================व्यंग्य विधा में समकालीनता एवं उपयोगिता का प्रश्न(‘उर्दू की आख़िरी किताब’ के विशेष संदर्भ में)व्यंग्यविधा पर विचार करने के लिए मैंने हिन्दी के स्थान पर उर्दू गद्य को आधार क्यूँ बनाया, इससे पहले कि आप पूछें मैं ही बता देता हूँ। एक तो विद्वजनों ने निरंतर दोनों भाषाओं को बहन ही बताया है, सो एक एक-आध दिन मौसी के घर भी चले जाना चाहिए।…

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संजय गौतम कम लिखते हैं लेकिन मानीखेज लिखते हैं. उदाहरण के लिए यही लेख जिसमें इब्ने इंशा की किताब \’उर्दू की आखिरी किताब\’ के बहाने उर्दू व्यंग्य की परम्परा का दिलचस्प जायजा लिया गया है- जानकी पुल.==================व्यंग्य विधा में समकालीनता एवं उपयोगिता का प्रश्न(‘उर्दू की आख़िरी किताब’ के विशेष संदर्भ में)व्यंग्यविधा पर विचार करने के लिए मैंने हिन्दी के स्थान पर उर्दू गद्य को आधार क्यूँ बनाया, इससे पहले कि आप पूछें मैं ही बता देता हूँ। एक तो विद्वजनों ने निरंतर दोनों भाषाओं को बहन ही बताया है, सो एक एक-आध दिन मौसी के घर भी चले जाना चाहिए।…

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\’लमही सम्मान\’ के सम्बन्ध में सम्मान के संयोजक और \’लमही\’ पत्रिका के संपादक विजय राय द्वारा यह कहे जाने पर कि 2012 के सम्मान के निर्णय में निर्णायक मंडल से चूक हुई, सम्मानित लेखिका मनीषा कुलश्रेष्ठ ने अपना सम्मान वापस कर दिया. अब उस सम्मान के संबंध में महेश भारद्वाज, प्रबंध निदेशक, सामयिक प्रकाशन ने एक खुला पत्र लिखा है. श्री भारद्वाज इस सम्मान के निर्णायक मंडल के सदस्य भी थे. प्रस्तुत है वह पत्र- जानकी पुल.==================== श्री विजय राय के नाम खुला पत्रआदरणीय विजय राय जी, नमस्कार. लमही सम्मान 2012 के विषय में आपके कहे कथन कि ‘निर्णायक मंडल से…

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\’लमही सम्मान\’ के सम्बन्ध में सम्मान के संयोजक और \’लमही\’ पत्रिका के संपादक विजय राय द्वारा यह कहे जाने पर कि 2012 के सम्मान के निर्णय में निर्णायक मंडल से चूक हुई, सम्मानित लेखिका मनीषा कुलश्रेष्ठ ने अपना सम्मान वापस कर दिया. अब उस सम्मान के संबंध में महेश भारद्वाज, प्रबंध निदेशक, सामयिक प्रकाशन ने एक खुला पत्र लिखा है. श्री भारद्वाज इस सम्मान के निर्णायक मंडल के सदस्य भी थे. प्रस्तुत है वह पत्र- जानकी पुल.==================== श्री विजय राय के नाम खुला पत्रआदरणीय विजय राय जी, नमस्कार. लमही सम्मान 2012 के विषय में आपके कहे कथन कि ‘निर्णायक मंडल से…

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