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शायक आलोक का नाम आते ही कई विवाद याद आते हैं. शायद उसे विवादों में रहना पसंद है. लेकिन असल में वह एक संजीदा कवि का नाम है. आज उसकी कुछ कवितायेँ- जानकी पुल.=============================================================1.दुनिया की तमाम भाषाओं से इतर तुम्हारे रुदन के विस्फोट को तारी कर आओ मेरे पिता के छोटे पड़ गए बनियान पर वह जो एक सुराख है उसमें सूई में पिरोते जाते धागे की तरह उस सुराख में पइसा दो मेरी मासूम ऊँगली की छुअन कहो पिता को उतरने दे मुझे उसके पेट के पैशाचिक कसाव के भीतर .. कहो, उसे इन्कार है ?! हत मा !…

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आज लाल्टू की कविताएँ. वे हमारे दौर के ऐसे कवि हैं जो बेहद ख़ामोशी से सृजनरत रहते हैं. प्रतिबद्ध हैं लेकिन अपनी प्रतिबद्धता का नगाड़ा नहीं पीटते. एक विनम्र कवि की कुछ चुनी हुई कविताएँ आज आपके लिए- जानकी पुल.======= क कथाक कवित्त क कुत्ता क कंकड़ क कुकुरमुत्ता. कल भी क था क कल होगा.क क्या था क क्या होगा.कोमल ? कर्कश ?(पश्यन्ती – 2003 )ख खेलेंखराब खख खुलेखेले राजाखाएँ खाजा.खराब खकी खटिया खड़ीखिटपिट हर ओरखड़िया की चाकखेमे रही बाँट.खैर खैरदिन खैरशब ब खैर.(पश्यन्ती – 2003)मैं तुमसे क्या ले सकता हूँ?मैं तुमसे क्या ले सकता हूँ?अगर ऐसा पूछो तो मैं क्या कहूँगा.बीता हुआ वक्त तुमसे ले सकता हूँ क्या?शायद ढलती शाम तुम्हारे साथ…

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हाल में ही राजकमल प्रकाशन से एक किताब आई है \’प्रारंभिक रचनाएं\’, जिसमें नामवर सिंह की कुछ शुरूआती रचनाओं को संकलित किया गया है. संपादन भारत यायावर ने किया है. उसमें नामवर जी की कुछ आरंभिक कविताएँ भी हैं. उसी में से कुछ चुनी हुई कविताएँ आपके लिए- जानकी पुल.================================================== १.कभी जब याद आ जाते कभी जब याद आ जाते नयन को घेर लेते घन, स्वयं में रह न पाता मनलहर से मूक अधरों पर व्यथा बनती मधुर सिहरन न दुःख मिलता न सुख मिलता न जाने प्रान क्या पाते. तुम्हारा प्यार बन सावन, बरसता याद के रसकनकि पाकर मोतियों का धन…

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महान गद्यकार फणीश्वर नाथ रेणु जी का यह दुर्लभ रिपोर्ताज जय गंगा   प्रस्तुत है- जो रेणु रचनावली में भी उपलब्ध नहीं है- रेणु साहित्य के अध्येता श्री अनंत ने अपनी साईट www.phanishwarnathrenu.com पर इसे  प्रस्तुत किया है- इसकी ओर हमारा ध्यान दिलाया पुष्पराज जी ने- सबका आभार—– जानकी पुल   —————————————————————————————————————                                                                                                       जै…

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निलय उपाध्याय ठेठ हिंदी के कवि हैं. उनकी कविताओं में वह जीवन्तता है जिससे पता चलता है कि वे जीवन के कितने करीब धडकती हैं. मुंबई की लोकल को लेकर उन्होंने एक कविता श्रृंखला लिखी है, उसकी कुछ कवितायें आपके लिए- जानकी पुल.======================= लोकल के डब्बे में हिरोईन लोकल का डब्बा सवारियों से भरा थाजब एक औरत घुसी लोगो पर गहरी नजर डालजैसे रोते हुए कहा – मेरा बच्चाऔर अजीब सी बदहवासी में निकल गई बाहर जाते ही किसी ने कहा अरे पहिचाना उसेकौन थी वहसबको लग रहा था चेहरा उसकाजाना पहिचानानाम आते ही पहचान गए सबवह थी बालीवुड फ़िल्मों की हिरोइनकई…

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प्रियदर्शन मूलतः कवि हैं और हाल के दिनों में कविता में जितने प्रयोग उन्होंने किए हैं शायद ही किसी समकालीन कवि ने किए हों. प्रचार-प्रसार से दूर रहने वाले इस कवि की कुछ नई कविताएँ मनोभावों को लेकर हैं. आपके लिए- जानकी पुल.=======================================कुछ मनोभावप्रेम और घृणाप्रेम पर सब लिखते हैं,घृणा पर कोई नहीं लिखता,जबकि कई बार प्रेम से ज्यादा तीव्र होती है घृणाप्रेम के लिए दी जाती है शाश्वत बने रहने की शुभकामना,लेकिन प्रेम टिके न टिके, घृणा बची रहती है।कई बार ऐसा भी होता हैकि पहली नज़र में जिनसे प्रेम होता हैदूसरी नज़र में उनसे ईर्ष्या होती हैऔरअंत में…

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हमारे प्रिय लेखक असगर वजाहत ने पटना लिटरेचर फेस्टिवल के बहाने साहित्य और सत्ता के संबंधों को लेकर एक महत्वपूर्ण टिप्पणी की है. आप भी देखिये- जानकी पुल.===========================================पिछले महीने बाईस से चौबीस मार्च तक चले पटना साहित्य समारोह के संबंध में रपटें और समाचार प्रकाशित हो चुके हैं और लगता है कि अब उसके बारे में लिखने का कोई मतलब नहीं है। लेकिन इस साहित्य समारोह के एक-दो ऐसे महत्त्वपूर्ण और सारगर्भित प्रसंग हैं जिन पर लिखा जाना चाहिए। इस आयोजन में कई परंपराएं टूटी हैं और कई बुनियादी सवाल उठे हैं।बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा समारोह का उद्घाटन…

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महान लेखक चिनुआ अचीबे को श्रद्धांजलि देते हुए यह लेख मैंने यह लेख लिखा था, जो कल \’दैनिक हिन्दुस्तान\’ में प्रकाशित हुआ था. आप लोगों से साझा कर रहा हूँ- प्रभात रंजन ===================================================चिनुआ अचीबे के उपन्यास ‘थिंग्स फॉल अपार्ट’ का नायक पर ओकोनक्वो पूछता है- ‘क्या गोरा आदमी ज़मीन के बारे में हमारे रिवाज़ जानता है?’ जवाब मिलता है- ‘कैसे जान सकता है जब वह हमारी भाषा भी नहीं बोलता? लेकिन वह कहता है हमारे रिवाज़ खराब हैं, और हमारे अपने भाई भी, जिन्होंने उसका धर्म अपना लिया, यही कहते हैं कि हमारे रिवाज़ बुरे हैं.’ 1958 में प्रकाशित चिनुआ अचीबे…

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पटना लिटरेचर फेस्टिवल में जो लोग शामिल हुए उनके लिए शायर कलीम आजिज़ को सुनना भी एक यादगार अनुभव रहा. शाद अज़ीमाबादी की परंपरा के इस शायर ने उर्दू के पारंपरिक छंदों में कई ग़ज़लें कही हैं और वे बेहद मशहूर भी हुई हैं. उनकी कुछ ग़ज़लें इमरजेंसी के दौरान भी प्रसिद्ध हुई थी. यहां प्रस्तुत हैं वे चार ग़ज़लें जो उन्होंने पटना लिटरेचर फेस्टिवल में सुनाई थी- जानकी पुल.===================================1.दिन एक सितम, एक सितम रात करो हो वो दोस्त हो, दुश्मन को भी जो मात करो हो मेरे ही लहू पर गुज़र औकात करो हो मुझसे ही अमीरों की तरह…

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गुलजार के गीतों पर केंद्रित विनोद खेतान की पुस्तक आई है \’उम्र से लंबी सड़कों पर\’. इस पुस्तक के बहाने गुलजार के गीतों पर प्रियदर्शन का एक सधा हुआ लेख- जानकी पुल. =============================================  क्या फिल्मी गीतों को हम कविता या कला की श्रेणी में रख सकते हैं? प्रचलित तर्क कहता है कि जो गीत व्यावसायिकता के तकाज़ों पर लिखे जाते हों और जिनमें किसी ख़ास ‘सिचुएशन’ का ख़याल रखने की मजबूरी हो, जिनके साथ पहले से तय धुन में बंधे रहने की शर्त जुड़ी हुई हों, उन्हें हम वैसी शुद्ध कलात्मक अभिव्यक्ति का दर्जा नहीं दे सकते जैसी कविता या ऐसी ही किसी…

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