साहित्य का जीवन में समावेश सांस्कृतिक मूल्य है। इसमें गीत-कविता बहुधा आते हैं। यह पुस्तक अंश नौ साल पुरानी घटना है, जो कि एक विवाह का सच्चा निमंत्रण पत्र है। पाठकों के लिए ‘प्रचण्ड प्रवीर’ का विशेष –
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भइया का ‘सादी’ : सच्ची घटना
हम सच बोलने वाले आदमी हैं जैसा कि तुमको बचपन से ही मालूम है। इसमें कोई ‘नमक-मिर्च’, ‘काला पाचक’ या ‘मसाला मिक्स’ नहीं लगा है। जैसा हुआ है हम सुरू से बताते हैं तुमको।
हमरे भइया पहले अमरीका में रहते थे। एक दिन उनको ‘जोस’आ गया कि अब हिन्दुस्तान में आकर रहेंगे। हम को बोले तो हम बोले कि हम यही सोचे थे कि तुम अमरीकी दुल्हन लेकर आओगे। खाली हाथ कैसे आ रहे हो?
क्या है कि भइया मेरा बात नहीं सुनते हैं। बोले कि अब बस आ रहे हैं तो आ रहे है! मेरा दोस्त लोग जब इ सुना तो बोला कि अरे यार, अब क्या होगा? अब तो तुमको ही भइया के लिए लडक़ी देखना होगा। हम बोले, सो तो है। मम्मी हमको बोली—‘‘हाय रे बिटवा,अब तो तुम को ही भइया के लिए लडक़ी ढूँढऩा होगा।’’
बगल वाला पड़ोसी सब हमसे बोला, ‘‘का जी, बहुत बोलते थे कि ‘अमड़ीकी’ भाभी आएगी। क्या हुआ?’’ सुन के हमरा मन कटकटा गया। जइसन भाभी आए, तुमको मतलब? ऐसे घूमते-घूमते मिसर जी मिल गये, हमको टोक दिये कि भारतीय दुलहिन ही आनी चाहिए। संस्कारी होनी चाहिए। हमको इसलिए बताया जा रहा है क्योंकि लडक़ी जो है, वो हम को ही ढूँढऩा होगा!
हम सब का बात सुन लिये और बोले कि ठीक है। बताते हैं हम सबको।
हम लडक़ी देखना सुरू किये। इधर देखे, उधर देखे। ‘कनाट प्लेसे’ पर खड़े रहे। दिल्ली हाट गये। इसी बीच हमारी चचेरी-ममेरी बहन सब भी जबरदस्त डिमांड रखी कि भइया, आप ऐसे खड़े रहकर ‘रशियन लडक़ी’ मत पसंद कर लीजिएगा। अमड़ीकन ही होनी चाहिए। यही बात हम को लग गया। हम सोचे कि ऐसे तो लडक़ी नहीं मिलेगी। फिर हमको लगा कि सब ‘ग्यान’ का बात किताब में लिखा होता है। तो हम किताब पढऩे लगे। भूगोलशास्त्र पढ़े। खगोलशास्त्र पढ़े। जब इन दोनों का गहन अध्ययन कर लिये तो हमको समझ में आ गया कि अब ‘ज्योतिस’ पढऩा चाहिए।
फिर हम ज्योतिस पढ़े। ज्योतिस पढ़ के समझ आया कि जो हम ढूँढ़ रहे हैं, वो हमरे पड़ोसे में मिलेगा।
हम अकबका गये कि यही बतवा तो ‘अलकेमिस्ट’ नाम का ‘विस्व परसिद्ध’ किताबो में लिखल था। सो हम सावधान हो गये कि मंजिल पासे में है।
अब हम रोज ‘चौघडिय़ा मुहूर्त’ निकाले लगे।
ले लोट्टा, सारा मुहूर्त निकले भोरे छ बजे का। हम परेसान, कि साला भोर में कहाँ लडक़ी मिलेगी?
लेकिन ज्योतिस का ग्यान सच्चा ग्यान होता है। यही भरोसा से हम जौगिंग करे ल निकले। अब जब हम दौड़े तो हम को प्यास लगा। सुबह-सुबह ‘मदर डेयरी’ दुकान के अलावा कुछ खुला नहीं रहता है। सो हम वहाँ चले गये कि यहीं डाभ का पानी पी कर तंदुरुस्त हो जाएँगे।
वहाँ गये तो क्या देखते हैं? एगो बहुते सुंदर लडक़ी ‘हरियर’ सब्जी खरीद रही है। हम उसको देखे तो देखते रह गये। सब्जीवाला को जब पैसा दी, तो हम उसका आवाजो सुने। सुन के एकदम बढ़िया आवाज लगा।
हम को मने-मन लगा कि इ तो सही लडक़ी है। लगता है यही है। उ जब सब्जी खरीद के जावे लगी तो हम बोले, सुनिए।
उ पलट के बोली—‘‘क्या है जी?’’
हम बोले, ‘‘देवी जी, आपमें हमको बहुत ‘गुन’ बुझाता है। हमरे भइया सादी ‘जोग्य’ हैं। आप उनके लिए ठीक रहिएगा। बोलिए,आपको रिस्ता कुबूल है?’’
त उ लडक़ी थोड़ा सिटपिटा गयी। फिर बोली कि एतना पसंदे आ गये हैं तो आप मेरे बाबू जी से काहे नहीं बात करते हैं?
हमको लगा कि बोल तो ठीक रही है। जरूर संस्कारी है। इस तरह संस्कारी वाला परीच्छा उ तो हमरे नज़र में पास कर गयी। उनके पीछे-पीछे जा के उनका घरो देख आए।
फिर जो है हम उसी दिन गये उनके बाबू जी के पास, नहाने-धोने के बाद, कपड़ा बदल के, सेंट लगा के, पाउडर लगा के। उनके बाबूजी हमको देखकर पहले हडक़ गये कि कौन हो जी? क्या हो जी? ऐसे करके हमसे पूछने लगे।
लेकिन हम घबराये क्या?
एकदम नहीं! वहीं उनके पास का कुर्सिया खींच के सट से बैठ गये। फिर उनके बाबू जी को बोले कि देखिए, अइसा है कि हमरे भइया जो हैं, उ विवाह ‘जोग्य’ हैं। आज हम सुबह सैर के लिए निकले तो आपकी बेटी को धनिया और मिरचाई खरीदते हुए देखें। उनका मिरचाई और सब्जी चुनने के ‘इसटाइल’ से लगा कि आपकी लडक़ी में भी बहुते ‘गुन’ है। यही सोच-विचार कर के हम आपके पास आए हैं ‘सादी’ का प्रस्ताव ले कर। हमरे हिसाब से दोनों का जोड़ी ठीक लगेगा। आपको रिस्ता कुबूल है?
त इ सुनकर उनके बाबू जी उत्तर दिये, ‘‘आप भी हम को इंटिलेजेंट आदमी मालूम पड़ते हैं। सब्जी चुनने के इसटाइल से आप गुन बूझ गये, मामूली बात नहीं है। आपका विचार सही लगता है एकदम। लेकिन आपके भइया से जरा बतवा हो जाता तो ठीक न रहता?’’
हम बोले कि इसमें का है। हम उनको साक्षात् बुलवा देते हैं। इ बात हम मम्मी को सुना दियें। मम्मी से पूछे, तुमको रिस्ता कुबूल है? मम्मी बोली—‘‘हम को क्या है? जहाँ उ हाँ बोले। कहीं हाँ बोलवे नहीं करता है। हम तो सोचे थे कि अमरीकी बहू लाएगा। कुछ करबे नहीं करता है। तुम मनाओ उसको।’’
फिर यही बात हम भइया को टेलीफोन लगा के बोले कि हम सुबह-सुबह भोरे-भोर ‘मदर डेयरी’ के दुकान पर लडक़ी देखें हैं तुम्हारे लिए। उसके बाबू जी से भी हम रिस्ता का बात चला दिये हैं। तुमको रिस्ता कुबूल है?
भइया इ सुन के पहले एकदम ‘बमक’ गये। बोले कि, बात न चीत, सीधे तुम रिस्ता कुबूल है, पूछ रहे हो।
हम बोले कि गोसाइये नहीं। हम चौघड़िया मुहूर्त ले के उस लडक़ी से मिले हैं, इहे खातिर बोल रहे हैं। बात विचार से हमको संस्कारी लगी है। भइया औरो बमक गये कि हम ठहरे ‘वैग्यानिक’,और तुम हमसे ‘ज्योतिस’ बतियाते हो? हम बोले कि आप ‘गोस्साइए’ एकदम नहीं। अपनी प्रयोगशाला से बाहर निकलकर संसार की मधुशाला पर भी गौर फरमाइए। उसके बाबू जी हमको लडक़ी का बल्ड ग्रुप बतायें हैं। वहू ठीक है। नछत्र से हम कुंडलियो मिला लिये हैं। हम बोलते जा रहे थे और भइया बमकते जा रहे थे। हम सोचे कि एके बार में सब बता देते हैं, सोच-विचार के बताएँगे पसंद आता है त।
‘साम’ में जब भइया का गुस्सा ‘सांत’ हुआ तो बोले कि ऐ सुनो, हम को तुम पर पूरा बिस्वास है। तुम किसी को पसंद किये होगे तो ठीके होगी। एतना आगे जाकर बात कर आए तो लडक़ी के बाबू जी से हम बात कर लेते हैं।
त फिर भइया हवाई जहजवा से हमरे घर पधारे। फिर उनको हम लडक़ी के घर ले चले। घर का नाम था मधुशाला। भइया बोले कि आँय जी, इ तो बगले में हैं। हम बोले कि हम बोलवे किये थे कि हमरी पड़ोसन है।
जब घर में घुसे त लडक़ी के बाबू जी फिरो ‘अंठिया’ के पूछे—‘‘कौन हो जी? क्या हो जी?’’
बुढ़ापा में दिखाई-सुझाई कम पड़ता है। हम बताये कि हम आए हैं जो उस दिन आकर बात किये थे, जिस दिन आपकी लडक़ी मिरचाई चुन के खरीद रही थी। जैसे बोले उनको एकदमे याद आगया। बोलने लगे, ‘बैठिए-बैठिए’। परनाम-सलाम हुआ, फिर भइया बोले लडक़ी के बाबू जी से उनको रिस्ता कुबूल है। उ बहुते खुस हो गये। ‘आसिरवादी’ में कुर्ता के पाकिट से पाँच गो रूपइय्या, पाँच एक टकिया वाला सिक्का में निकाल कर दिये और बोले कि खुस रहो। हम ‘इसारा’ से भइया को बोले कि अब ‘गोड़’ लगो, त भइया फिरो ‘गोड़’ लगा।
त उसके बाद लडक़ी की दोस्त सब आयी भइया का इंटरव्यू लेने। सब के सब दिल्ली वाली, एकदम टीप-टॉप में। मर लिपस्टिक घिसे हुए, झकाझक मेकअप किये हुए। मर सेंट मारे हुए,गमगम महक रही थी। और गला में जो है, महँगा-महँगा सोना का ये मोटा-मोटा ‘चैन’ पहने हुए थी। उ सब पहले हमको देखी। हम इसारा किये कि ‘लरका’ उधर है। एगो छोकरी बोली—‘‘त का हुआ, आपो से बात कर लेते हैं।’’
हम बोले पहले बियहवा फाइनल कीजिए न देवी जी, फिर देखिए हम क्या ‘सेर-ओ-सायरी’ करते हैं। अभी मौका नहीं आया है। त उनको बुझाया कि मौका का नजाकत क्या है। त जा के उ सब भइया से बतियावे लगी।
उनमें से एक, जो एकदमे टीप-टॉप थी, बात कर के भइया को इसारा से बुलाकर एक कोनवा में ले गयी। अ ले जा के धीरे से बोले लगी, ‘‘एजी सुनिए न, आप मधुमिता को छोड़ के हमरा से बियाह कर लीजिए।’ ’
भइया बोले कि हटिए, हम वहीं बियाह करेंगे जहाँ हमरा ज्योतिस भाई बोलेगा। त उ सब सुन के एकदम से चुप हो गयी।
उसके बाद लडक़ी की माय आयी। हम लोग गोड़ लगे तो बोले लगी कि आप लोग जो है, भारतीय संस्कारी लडक़ी ढूँढ़ रहे हैं ‘सादी’ के लिए। इसलिए ये राज बताना एकदम जरूरी हो गया है।
भइया सुन के ‘टेंसन’ में आ गये। हम भी टेंसनिया गये कि अन्तिम में क्या राज का बात होने लगा। फिर हम बेधडक़ बोले कि घबराइए नहीं, खुल के बोलिए। हम सब ‘पिराबलम’ का इलाज कर देंगे।
उनको भी थोड़ा हिम्मत आया। तब जा के उ राज का पर्दाफाश की—‘‘मधुमिता जनम से अमरीकी है। वहीं का पासपोर्ट है। लेकिन हम लोग सारा संस्कार भारत का दिये हैं। आप लोग को कोयो दिक्कत नहीं होगा।’
हम सुन के बहुते खुस हुए कि अब मिसर जी का बोलती बन्द। बगल वाला का बोलती बन्द। चचेरी ममेरी बहन को भी ठेंगा दिखादेंगे कि देखो रशियन नहीं ‘अमड़ीकन लरकी’ लाये हैं। इधर भइया उनसे बोले कि ठीक है। इससे कोई दिक्कत नहीं है। वैसे भी हमरे भइया बहुत खुले विचार वाले आदमी हैं।
उसके बाद भइया लडक़ी से मिलने के लिए उसके बाबू जी से परमिसन माँगे। पता चला कि लडक़ी घर के पीछे अपने आम के बाग में अकेली बैठी हुई है।
भइया को वहाँ अकेले भेज दिये। इधर हम लडक़ी की सहेलिया सबको ‘आसिकी वाला सेर-ओ-सायरी’ में लटपटा लिये ताकि उ दोनों लोग आराम से बात कर सकें।
उधर बाग में मधुमिता अपने डलिया में फूल तोड़ के रख रही थी। आम के पेड़ पर बौर आए हुए थे। दोनों की नज़रें मिलीं। मदमाती खुसबू में भइया सकुचा के बोले, ‘‘देखिए हमरा भाई आपको मेरे लिये पसन्द किया है। हमको भी आप में बहुते गुन नज़र आता है। आपको रिस्ता कुबूल है?’’
इ सुनते ही मधुमिता ने ‘सरमा’ कर नज़रें झुका लीं।
जी हमें मंज़ूर है, आपका ये फैसला १
जी हमें मंज़ूर है, आपका ये फैसला
कह रही है हर नज़र, बन्दा परवर ‘सुक्रिया’
हँस के अपनी जि़न्दगी में,
कर लिया ‘सामिल’ मुझे
दिल की ऐ ‘धरकन’ ठहर जा,
मिल गयी ‘मंज़ील’ मुझे
आपकी ‘नज़रों’ ने समझा…
आप सभी गुनी जनों को भइया का ‘सादी’ में आमन्त्रित किया जाता है—
दिन : बुधवार 17 फरवरी, 2016
स्थान : नयी दिल्ली
ये थी कल की बात !
दिनांक: 22/10/2015
सन्दर्भ
1. गीतकार : राजा मेहदी अली खान, फिल्म—अनपढ़ (1962)
सेतु प्रकाशन से प्रकाशित – ‘कल की बात : ऋषभ ‘से साभार
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प्रचण्ड प्रवीर की लघुकथा शृङ्खला ‘कल की बात‘ एक विशिष्ट विधा में है, जिसके हर अंक में ठीक पिछले दिन की घटनाओं का मनोरंजक वर्णन है। आपबीती शैली में लिखी गयी ये कहानियाँ कभी गल्प, कभी हास्य, कभी उदासी को छूती हुयी आज के दौर की साक्षी है। कहानीकार, उसके खुशमिजाज सहकर्मी, आस-पड़ोस में रहने वाले चुलबुले बच्चे, भारतीय समाज में रचे-बसे गीत और कविताएँ पारम्परिक मूल्यों के साथ विविधता में बने रहते हैं। कई बार छोटी-छोटी बातों में गहरी बात छुपी होती है, ऐसी ही है कल की बात ! इसे पढ़ कर आप भी कह उठेंगे कि यह मेरी भी कहानी है। कल की बात हमारी ही तो बात है!
इस शृङ्खला की तीन प्रकाशित पुस्तकेँ नीचे दिए गए लिङ्क से खरीदी जा सकती हैँ –
- कल की बात : षड्ज (Kal Ki Baat : Shadj – 2021)
- कल की बात : ऋषभ (Kal Ki Baat : Rishabh- 2021)
- कल की बात : गान्धार (Kal Ki Baat : Gandhar – 2021)