आज पढ़िए दक्षिण कोरिया के कवि को उन की कविताएँ। को उन कोरिया के प्रमुख कवि और राजनीतिक कार्यकर्ता रहे हैं। दक्षिण कोरिया में लोकतंत्र के आंदोलन में अपनी भूमिका के लिए उनको याद किया जाता है। उनकी कविताओं का अनुवाद पंद्रह से अधिक भाषाओं में हो चुका है। आप पढ़िए उनकी छह कविताएँ जिनका मूल कोरियन भाषा से अनुवाद किया है कुमारी रोहिणी ने- मॉडरेटर
=======================
1. उस लड़के का गीत
वह समुंदर बिना पुरखों के
इस तरह लहरों में क्यों टूट रहा है, रोज़-रोज़, हर रोज़
क्योंकि चाहता है आसमान हो जाना
जो यूँ तो वह हो नहीं सकता!
क्यों वह आसमान
बेवक़ूफ़ी में
दिन और रात
बनाता-मिटाता रहता है बादलों को
क्योंकि उसे चाह है नीचे धरती पर फैले विशाल समुंदर हो जाने की
जो यूँ तो वह हो नहीं सकता!
क्यों मैं नहीं मैं जी सकता अपना जीवन एक ख़ाली बोतल की तरह,
क्यों नहीं मैं रह सकता केवल अपने दोस्तों और अहबाबों के साथ
क्योंकि मैं बनना चाहता हूँ कुछ और ही, कोई और ही, एक बार….
वरना
मुझे बिताना होगा अपना पूरा जीवन अनगिनत अनजाने लोगों के बीच
जिनके बीच मैं जीता आ रहा हूँ इस दुनिया में
तुम सभी!
हैरान हो इस लड़के पर! हैरान हो इस लड़के के गीत पर!
===================
2. जगहें जहाँ जाना चाहता हूँ
तीस साल पहले तक
मेरे ज़हन में थी वे जगहें
जहां मैं जाना चाहता था
दस लाख के क्षेत्रफल वाले उस नक़्शे पर
यत्र-तत्र मैं था बिखरा हुआ: एक।
बीस साल पहले तक
थीं कुछ ऐसी जगहें
जहां मैं वास्तव में मेरी इच्छा थी जाने की।
मेरी खिड़की की सींकचों से मेरे तक पहुँचने वाला वह नीला आसमान
था मेरा रास्ता।
इस तरह बहुत दूर तक इधर-उधर जाने में रहा मिलती रही मुझे कामयाबी।
लेकिन मैंने कुछ जगहों को परे कर दिया।
वे जगहें जहां मैं
इस दुनिया को छोड़ने के बाद
जाना चाहता हूँ
जहां कोई कर रहा होगा मेरे आने का इंतज़ार।
कुछ ऐसी जगहें थीं जहां मैं जाना चाहता था
जब फूल झड़े,
जब शाम में पेड़ से फूल झड़े,
मैं सीधा खड़ा हो गया
और मूँद लीं अपनी आँखें।
================
3. मेरा अगला जीवन
आख़िर, मैं आ ही गया स-उन की पहाड़ियों के जंगल में!
मैंने एक लंबी आह भरी।
परछाइयों की ढेर बनने लगी
अपने साथ लाई कुछ मदहोश किरणों को
मैंने आज़ाद कर दिया अपनी गिरफ़्त से। रात चढ़ने लगी।
तय था हर देश की आज़ादी का अंत।
मैं भी आज़ाद हो रहा था, थोड़ा-थोड़ा करके
पिछले सौ वर्षों में जमा किए अपने कूड़े के ढेर से।
अगली सुबह
ख़ाली पड़े मकड़ी के उस जाले पर पड़ी थी एक बूँद ओस की।
दुनिया में कितने तरह के अतीत हैं। भविष्य सिकुड़ कर रह गया है।
हवा के कण विलीन हो गये हैं इन्हीं जंगलों में।
बलूत के पत्ते ऐसे चहक रहे मानो पंछी लौट रहे हों अपने घोंसलों की ओर।
पीछे मुड़कर देखने पर
मैं पाता हूँ कि मैं आया हूँ निरक्षरों की पीढ़ी से।
ना जाने कैसे
ना जाने कैसे
मैं उलझ सा गया इस जटिल भाषा के अपरिहार्य अक्षरों के जाल में।
अगले जन्म में मैं बनूँगा एक प्राणहीन पत्थर
जो गहरे धँसा होगा ज़मीन में
एक मूक विधवा के कंकाल के नीचे
और लकड़ी के बंडलों में बंधी अनाथों की नई और शांत पड़ी अनगिनत लाशों के बीच
==================
4. बसंत बीत रहा है
त्याग दो सब कुछ ऐसे:
जैसे फूल झड़ रहे हैं।
जाने दो सब कुछ को ऐसे ही:
शाम की लहरें किसी को भी अपने पास नहीं रहने देतीं।
समंदर में लहरें:
जेली मछली,
फ़िली मछली,
समुद्री स्क्वर्ट
रॉक मछली
चपटी मछली, समुद्री बैस
बैराकुडा
नानी के हाथ वाले पंखों जैसी दिखने वाली चपटी मछली,
और उसके ठीक नीचे तल में: समुंद्री रत्नज्योतियाँ।
कहना जरूरी नहीं रह गया कि
जीवन, मृत्यु के बाद भी अनवरत चलाती रहती है।
इस पृथ्वी पर और अधिक पाप होने चाहिए।
बसंत बीत रहा है।
================
5. अवशेष
जब मैं केवल बीस का था
जहां भी जिस ओर भी गया
खंडहर ही खंडहर, अवशेष ही अवशेष थे।
रात में लगने वाले कर्फ़्यू के दिनों में
बिना नींद के, मैं अक्सर पाता था ख़ुद को जीवन से ज़्यादा मौत के क़रीब।
वे किसी अन्य चीज में नहीं बदले थे,
और न ही उनका जन्म हुआ था एक नवजात शिशु की तरह रोने के लिए।
मेरे सीने में चल रहा युद्ध समाप्त नहीं हुआ था।
पचास साल बाद,
मैंने शहर में देखे खंडहर।
आज भी मेरा वजूद
इस दिखावटी शहर के खंडहर में पड़ी ईंट के एक टुकड़े जैसा ही था।
उन दिनों तेल से जलने वाले लालटेन अब कहीं नहीं दिखाई पड़ते,
लेकिन अवशेषों के बाद वाले सुनहरे दिन नहीं पहुँच सके हैं मुझ तक।
================
6. शांति
जब हम कहते हैं
‘शांति’
मुझे दिखतीं हैं
खून से लथपथ लाशें
जब कोई कहता है
‘शांति’
मुझे दिखाई पड़ते हैं
गहरी रातों में
धधकते गोलों वाले मंज़र।
क्या नहीं देखा और सराहा उन्होंने इसे
क्रिसमस की पूर्वसंध्या पर की जाने वाली आतिशबाजी की तरह?
जब कोई कहता है शब्द
‘शांति’
मुझे याद आते हैं
हमले और शोषण।
‘शांति’ शब्द में
मुझे दिखता है तेल।
‘शांति‘
पर्याय हो चुकी है मेरे लिए मध्य एशिया में स्थित अमरीकी एयरबेस का।
हमें तलाशना होगा कोई दूसरा शब्द,
जो नहीं है लंबे समय प्रचलन में
या फिर
गढ़ना होगा एक नया शब्द
जिसका कोई नहीं करता प्रयोग।
शायद यह शब्द हो सकता है,
संस्कृत जैसी लगभग मृत हो चुकी भाषा का शब्द ‘शांति’
या मलय भाषा का शब्द ‘किटा’
एक शांत-सुकून पैदा करने वाली शांति,
जो सही मायने में होगी
हम सब के लिए शांति