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ऋतुपर्णो घोष का जाना सचमुच अवाक कर गया. साहित्य और सिनेमा के खोये हुए रिश्ते को जोड़ने वाले इस महान निर्देशक को आज दीप्ति नवल ने बहुत आत्मीयता से याद किया है. पढ़ा तो साझा करने से खुद को रोक नहीं पाया- जानकी पुल.===================जाने क्या दिक्कत थी कि उनकी तबीयत अक्सर ऊपर-नीचे होती रहती। शायद उस दिन भी उनकी तबीयत ठीक नहीं थी, जब वह अपनी निर्देशित फिल्म चित्रंगदा: द क्राउनिंग विश के लिए नेशनल फिल्म स्पेशल ज्यूरी अवॉर्ड ले रहे थे। यकीनन, राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों से उनका अटूट रिश्ता था। बधाई देने के लिए मैंने उन्हें फोन किया। बताया गया…

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वर्तिका नंदा की कविताओं में स्त्री के रोजमर्रा के जीवन का एक नया अर्थ मुखरित होता है. कवितायेँ उनके लिए दैनंदिन को अर्थ देने की तरह है. आज उनकी कुछ नई कविताएँ, कुछ नए मुहावरों में- जानकी पुल================शर्मोहया आंखों का पानीपठारों की नमी को बचाए रखता हैइस पानी सेरचा जा सकता है युद्धपसरी रह सकती हैओर से छोर तककिसी मठ की-सी शांतिपल्लू को छूने वालाआंखों का पोरइस पानी की छुअन सेहर बार होता है महात्मासमय की रेत सेयह पानी सूखेगा नहींयह समाज की उस खुरचन का पानी हैजिससे बची रहती हैमेरे-तेरे उसके देश कीशर्म…..जो वापसी कभी न हुईगाना गाते हुएघर लौटी…

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आज \’इण्डिया टुडे\’ में \’मैं, स्टीव: मेरा जीवन, मेरी जुबानी\’ पुस्तक की मेरे द्वारा लिखी गई समीक्षा प्रकाशित हुई है. आप उसे चाहें तो यहाँ भी पढ़ सकते हैं. उनका व्यक्तित्व मुझे बहुत प्रेरणादायी लगता रहा है. फिलहाल पुस्तक की समीक्षा- प्रभात रंजन =====================================स्टीव जॉब्स के बारे में कहा जाता है कि तकनीकी के साथ रचनात्मकता के सम्मिलन से उन्होंने जो प्रयोग किए उसने २१ वीं सदी में उद्योग-जगत के कम से कम छह क्षेत्रों को युगान्तकारी ढंग से प्रभावित किया- पर्सनल कंप्यूटर, एनिमेशन फिल्म, संगीत, फोन, कंप्यूटर टेबलेट्स और डिजिटल प्रकाशन. १० अक्टूबर १९९९ को ‘टाइम’ पत्रिका में प्रकाशित एक…

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एक अच्छी खबर है कि युवा लेखिका ज्योति कुमारी के पहले कहानी संग्रह \’दस्तखत और अन्य कहानियाँ\’ की एक हजार प्रतियाँ महज दो महीने के अन्दर बिक गईं. यह युवा लेखकों का उत्साह बढाने वाला है. आज इसको लेकर वाणी प्रकाशन ने इण्डिया इंटरनेश्नल सेंटर में एक कार्यक्रम का आयोजन किया जिसमें युवा लेखन और बेस्टसेलर को लेकर एक परिचर्चा का आयोजन भी किया. प्रस्तुत है युवा लेखन और बेस्टसेलर को लेकर मेरा लेख- जानकी पुल.====================हिंदी के साहित्यिक परिदृश्य के लिए यह एक घटना है. युवा लेखिका ज्योति कुमारी के पहले कहानी संग्रह ‘दस्तखत और अन्य कहानियां’ की १००० प्रतियाँ सिर्फ…

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हिंदी के वरिष्ठ लेखक बटरोही की यह चिंता उनके फेसबुक वाल से टीप कर आपसे साझा कर रहा हूँ. आप भी पढ़िए उनकी चिंताओं से दो-चार होइए- प्रभात रंजन.==========================================मुझे नहीं मालूम की कितने लोग इन बातों में रूचि लेंगे? कल रात भर ठीक से सो नहीं पाया, बेचैनी में ही सुबह उठकर मेल खोलते ही अभिषेक श्रीवास्तव का मराठवाड़ा पर यात्रा वृतांत पढ़ा तो कुछ हद तक तनावपूर्ण मनःस्थिति से निजात मिली. हालाँकि इस विवरण में मन को शांत करने वाला ऐसा कुछ नहीं था, उलटे वह हमारे समाज का ही बेहद मार्मिक स्याह पक्ष था, मगर उसे पढ़ते हुए…

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कवि-लेखक प्रेमचंद गाँधी ने अपने इस लेख में यह सवाल उठाया है कि लेखिकाएं साहित्य में अपने प्रेम साहित्य के आलंबन का नाम क्यों नहीं लेती हैं? एक विचारोत्तेजक लेख- जानकी पुल.======================मीरा ने जब पांच शताब्‍दी पहले अपने प्रेमी यानी कृष्‍ण का नाम पुकारा था तो वह संभवत: भारत की पहली कवयित्री थी, जिसने ढोल बजाकर अपने प्रेमी के नाम की घोषणा की, उसके साथ ब्‍याह रचाने की बात कही, फिर वह प्रेमी चाहे भगवान ही क्‍यों न हो। एक स्‍त्री अपने समय के सत्‍ता केंद्रों से टकराती है और कविता में खुद के साथ अपने प्रिय को अमरता का…

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प्रसिद्ध आलोचक सुधीश पचौरी ने इस व्यंग्य लेख में हिंदी आलोचना की(जिसे मनोहर श्याम जोशी ने अपने उपन्यास \’कुरु कुरु स्वाहा\’ में खलीक नामक पात्र के मुंह से \’आलू-चना\’ कहलवाया है) अच्छी पोल-पट्टी खोली है. वास्तव में रचनात्मक साहित्य की जमीन इतनी बदल चुकी है कि हिंदी आलोचना की जमीन ही खिसक चुकी है. आलोचक न कुछ नया कहना चाहते हैं न कुछ नया देखना चाहते हैं. कुल मिलाकर अध्यापकों का अध्यापकों के लिए विमर्श बन कर रह गई आलोचना. बहरहाल, जिन्होंने आज \’दैनिक हिन्दुस्तन\’ में सुधीश पचौरी का यह लेख न पढ़ा हो उनके लिए- जानकी पुल. =====================================  …

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