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  यह सिर्फ ‘लंचबॉक्स’ फिल्म की समीक्षा नहीं है. उसके बहाने समकालीन मनुष्य के एकांत को समझने का एक प्रयास भी है. युवा लेखिका सुदीप्ति ने इस फिल्म की संवेदना को समकालीन जीवन के उलझे हुए तारों से जोड़ने का बहुत सुन्दर प्रयास किया है. आपके लिए- जानकी पुल. =========================================== पहली बात: इसे‘लंचबॉक्स’ की समीक्षा कतई न समझें. यह तो बस उतनी भर बात है जो फिल्म देखने के बाद मेरे मन में आई.   अंतिमबात यानी कि महानगरीय आपाधापी में फंसे लोगों से निवेदन:इससे पहले कि ज़िंदगी उस मोड़ पर लाकर खड़ा कर दे, जहाँ खुशियों का टिकट वाया…

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शैलप्रिया स्मृति सम्मानएक दिसंबर 1994 को झारखंड की सुख्यात कवयित्री और स्त्री-संगठनों से जुड़ी सामाजिक कार्यकर्ता शैलप्रिया का कैंसर की वजह से देहांत हो गया। तब वे 48 साल की थीं। उनके अपनों, और उनके साथ सक्रिय समानधर्मा मित्रों और परिचितों का एक विशाल परिवार है जो यह महसूस करता रहा कि अपने समय, समाज और महिलाओं के लिए वे जो कुछ करना चाहती थीं, वह अधूरा छूट गया है। उस दिशा में अब एक क़दम बढ़ाने की कोशिश हो रही है। उनके नाम पर बने शैलप्रिया स्मृति न्यास ने महिला लेखन के लिए 15,000 रुपये का एक सम्मान देने…

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शैलप्रिया स्मृति सम्मानएक दिसंबर 1994 को झारखंड की सुख्यात कवयित्री और स्त्री-संगठनों से जुड़ी सामाजिक कार्यकर्ता शैलप्रिया का कैंसर की वजह से देहांत हो गया। तब वे 48 साल की थीं। उनके अपनों, और उनके साथ सक्रिय समानधर्मा मित्रों और परिचितों का एक विशाल परिवार है जो यह महसूस करता रहा कि अपने समय, समाज और महिलाओं के लिए वे जो कुछ करना चाहती थीं, वह अधूरा छूट गया है। उस दिशा में अब एक क़दम बढ़ाने की कोशिश हो रही है। उनके नाम पर बने शैलप्रिया स्मृति न्यास ने महिला लेखन के लिए 15,000 रुपये का एक सम्मान देने…

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हाल में नैरोबी में हुए आतंकी हमले में घाना के कवि कोफ़ी अवूनोर भी मरने वालों में थे. उनकी एक लम्बी कविता का हिंदी अनुवाद किया है युवा कवि त्रिपुरारि कुमार शर्मा ने. जानकी पुल की तरफ से उस कवि को श्रद्धांजलि स्वरुप- जानकी पुल.================================कोफी अवूनोर की कविता यह पृथ्वी, मेरा भाई एक पहचानी हुई आवाज़ में सुबह चटकती है हवाओं को चीरती हुई हमारे मंदिरों को गिरा चकनाचूर करती हमारी आशा के चर्च की परवरिश करती उन वेदियों पर हमारी जान की पेशकश करती बहुत पहले की गई सफाई के लिए। वायुतरंगों के भीतर जो हम अंतड़ियों में ढोते हैं…

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हाल में नैरोबी में हुए आतंकी हमले में घाना के कवि कोफ़ी अवूनोर भी मरने वालों में थे. उनकी एक लम्बी कविता का हिंदी अनुवाद किया है युवा कवि त्रिपुरारि कुमार शर्मा ने. जानकी पुल की तरफ से उस कवि को श्रद्धांजलि स्वरुप- जानकी पुल.================================कोफी अवूनोर की कविता यह पृथ्वी, मेरा भाई एक पहचानी हुई आवाज़ में सुबह चटकती है हवाओं को चीरती हुई हमारे मंदिरों को गिरा चकनाचूर करती हमारी आशा के चर्च की परवरिश करती उन वेदियों पर हमारी जान की पेशकश करती बहुत पहले की गई सफाई के लिए। वायुतरंगों के भीतर जो हम अंतड़ियों में ढोते हैं…

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आज युवा कवयित्री प्रकृति करगेती की कविताएँ. इनको पढ़ते हुए लगता है कि समकालीन कविता की संवेदना ही नहीं भाषा भी कुछ-कुछ बदल रही है-जानकी पुल.==========================================कंकालएक कंकाल लिएचल देते हैंहर ऑफिस में।कंकाल है रिज्यूमे का।हड्डियों के सफ़ेद पन्नों पेकुछ ख़ास दर्ज है नहींन ख़ूनन धमनियाँकुछ भी तो नहीं….दर्ज है बस खोखली सी खोपड़ीदो छेदों सेसपने लटकते हैंनाक नाकारा हैसूंघती नहीं है मौकों कोज़बान नदारद हैकाले जर्जर दांत हैं बसकपकपाते।पलट के देखोगे पन्नेतो नज़र आयेंगेपसलियों की सलाखों को पकड़ेकुछ कैद ख्याल,टुकटुकी लगाये, बहार देखते।ये पन्नों का कंकाल हैइसमें कोई हरकत नहींकई दफ़ा मर चुका है येपर न जाने क्यूँ, कूड़ेदान के कब्रिस्तान सेबार बार उठ…

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