ध्यान सिंह जी डोगरी भाषा के प्रतिष्ठित कवि हैँ। कवि कमल जीत चौधरी लगातार डोगरी भाषा की कविताओँ को हिन्दी मेँ अनूदित कर के दोनोँ भाषाओँ को समृद्ध कर रहे हैँ। जानकीपुल पर कुछ कविताएँ पाठकोँ के लिए विशेष-
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| किताबें भी अंधी होती हैं |
हवा का स्वभाव अंधा होता है
अंधे का रुख हवा होता है
लौ भी अंधी होती है
यह अँधेरों में दौड़ती है
प्यार भी अंधा होता है
इसकी परछाई पकड़ी नहीं जाती
सपना भी अंधा होता है
अँधेरे में इसके डग तेज़ हो जाते हैं
किताबें भी अंधी होती हैं
मगर यह खुद पढ़ नहीं सकतीं।
××
| अंत से पहले |
सोच रहा कुछ
हो रहा कुछ…
आशा का सार मुझसे
लिखा नहीं जा रहा
हो रहा कुछ…
आशा का सार मुझसे
लिखा नहीं जा रहा
ऐन जीभ पर जो है, बोला नहीं जा रहा
जीवन-मरण का भेद भी
खुल नहीं रहा
कोई तत्व भी हाथ नहीं लग रहा
कोई सत साथ नहीं जा रहा
इसका अता-पता
कोई भी, पता नहीं कर रहा
यह बड़ा जीवन-दोष ही
शेष बच रहा
जीवन-मरण का भेद भी
खुल नहीं रहा
कोई तत्व भी हाथ नहीं लग रहा
कोई सत साथ नहीं जा रहा
इसका अता-पता
कोई भी, पता नहीं कर रहा
यह बड़ा जीवन-दोष ही
शेष बच रहा
दुविधा की आशा में मर नहीं रहा
अंत से पहले
दुख सहन कर रहा
अंत का अनंत भी; हो नहीं रहा।
दुख सहन कर रहा
अंत का अनंत भी; हो नहीं रहा।
××
| ऐनक-कथा |
उसके पास दो ऐनक थीं :
एक दूर वाली
एक नज़दीक वाली
…
उसका विवाह हुआ
तो उसे एक और ऐनक लगानी पड़ी…
एक दूर वाली
एक नज़दीक वाली
…
उसका विवाह हुआ
तो उसे एक और ऐनक लगानी पड़ी…
××
।बाकी आपकी इच्छा।
पैरों की ज़मीन
उसके तलवे भी हो सकते हैं।
अगर कोई तलवे को ही ज़मीन समझे
तो हो सकता है
कि उसकी उछाल के लिए उसका पैंटा^
एकदम आसान हो जाए
आकाश तक पहुँचने
उसे झाँवने^ के लिए…
मेरी यह अर्ज़ी खुदग़र्ज़ी नहीं है,
बाकी आपकी इच्छा…
उसके तलवे भी हो सकते हैं।
अगर कोई तलवे को ही ज़मीन समझे
तो हो सकता है
कि उसकी उछाल के लिए उसका पैंटा^
एकदम आसान हो जाए
आकाश तक पहुँचने
उसे झाँवने^ के लिए…
मेरी यह अर्ज़ी खुदग़र्ज़ी नहीं है,
बाकी आपकी इच्छा…
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पैंटा^-खेल में नियत एक हद
झाँवना^- पेड़ को हिलाकर फल गिराने की प्रक्रिया
झाँवना^- पेड़ को हिलाकर फल गिराने की प्रक्रिया
| चिंतन को भूषित करता हूँ |
खिड़की से बाहर झाँकता रहता हूँ
जब बारिश होती है
पक्षियों को घोंसले ढूँढ़ते देखता हूँ
तड़पते-शोक मनाते
अफसोस करते हुए भी
कुछ खुशी महसूस करता हूँ…
जब बारिश होती है
पक्षियों को घोंसले ढूँढ़ते देखता हूँ
तड़पते-शोक मनाते
अफसोस करते हुए भी
कुछ खुशी महसूस करता हूँ…
मन अनेक दृश्यों में लगा रहता है
पथिकों को चलते देखता हूँ
पेड़ों को हवा में झूमते हेरता हूँ
झरने झर-झर बहते देखता हूँ…
अँधेरे में, रोशनी में अपना प्रतिरूप गढ़ता हूँ
कुदरत को सत्कारता हूँ
मिलन-संजोगी आँखों से
खुला दरवाज़ा देखता हूँ
चिंतन को भूषित करता हूँ
खिड़की से बाहर झाँकता हूँ…
पथिकों को चलते देखता हूँ
पेड़ों को हवा में झूमते हेरता हूँ
झरने झर-झर बहते देखता हूँ…
अँधेरे में, रोशनी में अपना प्रतिरूप गढ़ता हूँ
कुदरत को सत्कारता हूँ
मिलन-संजोगी आँखों से
खुला दरवाज़ा देखता हूँ
चिंतन को भूषित करता हूँ
खिड़की से बाहर झाँकता हूँ…
××
| समझा जाए तो |
देखा जाए तो
हीरा कोयला ही है
जो जल जलकर पक्का होता है
देखा जाए तो
शिलाजीत भी कोयला ही है
जो रिस रिसकर पिघलता है
देखा जाए तो
पेट्रोल भी कोयला ही है
जो तैरता बहता है
देखा जाए तो
हर जीव में कोयला होता है
मनुष्य में यह जलता-बलता रहता है
अंततः राख बनकर उड़ता है
समझा जाए तो
इसका भी कोई अभिप्राय निकलता है।
हीरा कोयला ही है
जो जल जलकर पक्का होता है
देखा जाए तो
शिलाजीत भी कोयला ही है
जो रिस रिसकर पिघलता है
देखा जाए तो
पेट्रोल भी कोयला ही है
जो तैरता बहता है
देखा जाए तो
हर जीव में कोयला होता है
मनुष्य में यह जलता-बलता रहता है
अंततः राख बनकर उड़ता है
समझा जाए तो
इसका भी कोई अभिप्राय निकलता है।
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| लौ का सृजन |
सूरज की परछाई लौ है
लौ की परछाई रंग।
रंग अलंकृत बोल हैं
बोल अक्खर हैं।
अक्खर ही भावों के प्रतीक हैं
भाव ही संवाद हैं।
संवाद प्रतिक्रिया हैं होने के
होना समाज की चेतना है।
चेतना साहित्यिक चिंतन है
चिंतन ही मंथन है।
मंथन ही
सतरंगी लौ का सृजन है।
लौ की परछाई रंग।
रंग अलंकृत बोल हैं
बोल अक्खर हैं।
अक्खर ही भावों के प्रतीक हैं
भाव ही संवाद हैं।
संवाद प्रतिक्रिया हैं होने के
होना समाज की चेतना है।
चेतना साहित्यिक चिंतन है
चिंतन ही मंथन है।
मंथन ही
सतरंगी लौ का सृजन है।
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| साथ |
बस-रेल में यात्रा करते हुए
सीट पर साथ बैठे यात्री का स्टेशन
भले अलग हो
अलग-अलग उतरने से पहले
एक दूसरे के लिए
शीशा-खिड़की खोलना
कुछ बात करना
या नहीं करना
और एक के उतरने पर
दूसरे का उसे कुछ बोलकर
या कुछ न बोलकर विदा कहना
आज की बात है
पहले भी ऐसे रिश्ते बनते थे
जैसे गंगा-स्नान गए हुए कोई
किसी न किसी को
अपना मित्र बनाकर लौटता था…
सीट पर साथ बैठे यात्री का स्टेशन
भले अलग हो
अलग-अलग उतरने से पहले
एक दूसरे के लिए
शीशा-खिड़की खोलना
कुछ बात करना
या नहीं करना
और एक के उतरने पर
दूसरे का उसे कुछ बोलकर
या कुछ न बोलकर विदा कहना
आज की बात है
पहले भी ऐसे रिश्ते बनते थे
जैसे गंगा-स्नान गए हुए कोई
किसी न किसी को
अपना मित्र बनाकर लौटता था…
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★ ध्यान सिंह जी का परिचय:
ध्यान सिंह जी का जन्म 2 मार्च, 1939 ई को जम्मू के घरोटा नामक गाँव में हुआ। वे डोगरी के वरिष्ठ कवि-कथाकार-लेखक व अनुवादक हैं। विभिन्न विधाओं में इनकी लगभग 60 किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं। इनकी कविताई में राजनैतिक और सामाजिक चेतना का स्वर प्रमुख है। लेखन में ही नहीं; बल्कि इनकी जनपक्षधरता इनके व्यवहार में भी देखी जा सकती है। वे श्रमिक संघ के कार्यकर्ता हैं। आज भी गाँव में रहते हैं। सक्रिय हैं, और संस्कृति-संरक्षण हेतु कार्य करते हैं। इन्होंने साहित्यिक कार्यक्रमों के अलावा खेलकूद- आयोजनों भी करवाएँ हैं। 2009 में इन्हें ‘परछावें दी लो’ शीर्षक कविता संग्रह पर ‘साहित्य अकादमी’, 2014 में ‘बाल साहित्य’ पुरस्कार, 2022 में ‘दीनू भाई पंत सम्मान’ के अलावा डोगरी साहित्य सेवा के लिए 2023 में स्टेट अवॉर्ड मिला है। ‘कल्हण’ का डोगरी अनुवाद भी इनकी एक उपलब्धि है।
ध्यान सिंह जी का सम्पर्क:
गाँव व डाक- बटैहड़ा
तहसील व जिला- जम्मू, पिन कोड- 181206
जम्मू-कश्मीर
फोन नम्बर- 9419259879
अनुवादक का परिचय:
कमल जीत चौधरी हिन्दी के सुपरिचित कवि-लेखक व अनुवादक हैं। अब तक लगभग साठ साहित्यिक पत्रिकाओं में इनकी कविताएँ, आलेख, अनुवाद और लघु कथाएँ छप चुकी हैं। इनके तीन कविता संग्रह- ‘हिन्दी का नमक’ (2016), ‘दुनिया का अंतिम घोषणापत्र’ (2023) और ‘समकाल की आवाज़: चयनित कविताएँ’ (2022) प्रकाशित हैं। इसके अलावा इन्होंने जम्मू-कश्मीर की कविताई को रेखांकित करते हुए; ‘मुझे आई डी कार्ड दिलाओ’ (2018) नामक एक कविता-संग्रह संपादित किया है। इनकी कविताएँ विभिन्न भारतीय भाषाओं और अंग्रेज़ी में अनूदित व प्रकाशित हैं। इन्होंने अनेक डोगरी कविताओं का हिन्दी अनुवाद भी किया है। हिन्दवी, सदानीरा, कविता कोश, पहली बार, पोएम इंडिया, खुलते किवाड़, अनुनाद, जानकी पुल, सिताब दियारा, तत्सम, बिजूका, आओ हाथ उठाएं हम भी आदि वेबसाईट्स/पोर्टल/ब्लॉग्स पर भी इनका लेखन लाइव है। विभिन्न राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय मंचों से कविता-पाठ कर चुके हैं। इनका लेखन ‘अनुनाद सम्मान’ और ‘पाखी : शब्द साधक सम्मान’ से रेखांकित किया गया हैं।
सम्पर्क:
कमल जीत चौधरी
गाँव व डाक- काली बड़ी
(रेलवे क्रॉसिंग साम्बा के नज़दीक)
तहसील व जिला- साम्बा- 184121 (जे.&के.)
मेल आई. डी. – kamal.j.choudhary@gmail.com
1 Comment
वाह! सुन्दर। प्रिय जानकी पुल, हार्दिक धन्यवाद! प्यारे पाठको, आभार!
शुभेच्छु,
कमल जीत चौधरी