आज पढ़िए पूनम सोनछात्रा की दुःख की नौ कविताएँ – अनुरंजनी
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1.
लड़की मुस्कुराती है
न सिर्फ़ तस्वीरों में बल्कि आमने-सामने भी
लेकिन उसके मुस्कुराने से नहीं बजता जलतरंग
कोई इंद्रधनुष आसमान पर नहीं सजता
कहीं फूल नहीं खिलते
पक्षी चहचहाते नहीं हैं
और न ही हवा कोई गीत गुनगुनाती है
मुस्कुराहट के साथ
सुखी दिखने की चेष्टा लड़की का उद्यम है
और दुःख… लड़की का भाग्य
2.
दुःख
छाती पर पड़ा वह बोझ है
जिसके भार तले दबा हुआ है समूचा अस्तित्व
दुःख तो यह भी है
कि इस भार को उतारने के लिए
न कोई कुंभ है
न ही कोई गंगा
3.
रोने से ख़त्म होता है… सिर्फ़ जीवन
नहीं ख़त्म होते आँसू
न ही ख़त्म होता है
दुःख
4.
आँख में पड़े तिनके सा है जीवन
जब तक रहता है
तब तक चुभता है
इतना छोटा
कि न कोई ओर मिलता है न ही कोई छोर
खप जाती है सारी ऊर्जा, सारा समय
इसे छोड़ने या इस से छूट जाने में
और जब यह छूटता है तो कुछ नहीं बचता
सिवाय….. धुंध और आँसुओं के
5.
लौटती आस के साथ
नहीं लौटता वही समय
समय बीत जाता है
बनी रहती है आस
ताकि बीतता रहे समय
आस… नियति की असीम संभावनाओं का कुचक्र मात्र है
6.
दुःख और अकेलापन सहोदर हैं
किस ने पहले जन्म लिया
यह ठीक-ठीक नहीं कहा जा सकता
लेकिन वे साथ-साथ चलते हैं
एक-दूसरे के पूरक बन
स्वार्थी संसार को सहभागिता का पाठ पढ़ाते !
ख़ुशियाँ कम थीं और छोटी भी
दुःख अनादि, अनंत और अशेष
सुख आता-जाता रहा
लेकिन दुःख अनवरत रहा
हमेशा साथ
बावजूद इसके
हम इंसानों ने कभी दुःख की कदर नहीं की
7.
‘समय सारे घाव भर देता है’
चिरकाल से लोक प्रचलित यह मिथ्या उक्ति
प्रत्येक दुःखी व्यक्ति का सब से बड़ा संबल रही है
किन्तु समय का उद्देश्य है… सिर्फ़ बीतना
उसे किसी के दुःख से
क्या और भला कैसा प्रयोजन
बीतते वक़्त के साथ दुःख नहीं रीतता
केवल उसकी आदत पड़ जाती है!
8.
गीता में श्री कृष्ण कहते हैं,
“दुःख से मुक्ति का सर्वश्रेष्ठ उपाय
दुःख की दीवारों से लड़ने में रस अनुभव करना है।”
दुःख के विरुद्ध
इस अंतहीन अँधेरे युद्ध में
जहाँ
सारी इंद्रियाँ, मन, बुद्धि एवं अहंकार
किसी विक्षिप्त सैनिक की भाँति अचैतन्य होकर
निरंतर युद्धरत हैं
तुम ही कहो, हे मधुसूदन
ऐसे युद्ध में लड़ते हुए रस कैसा
और जहाँ रस मिले… वहाँ मुक्ति की क्या आवश्यकता है?
9.
ब्रह्मांड की अनंत गतियों के मध्य
मेरे मन की अपनी गति है
मेरा दुःख और मेरे आँसू
किसी बिग बैंग सरीखी घटना की प्रतीक्षा में
इस समय केवल मुझ तक सीमित हैं
दसों दिशाओं में वक्रीय गति से
मुझे खींचता है दुःख
किन्तु मैं आँखें बंद किए, मुस्कुराते हुए
क्षितिज पर टिमटिमाते प्रकाश की दिशा में रेखीय चल रही हूँ
जानती हूँ
चाहे स्थिति कैसी भी हो,
‘द शो मस्ट गो ऑन’
परिचय
नाम – पूनम सोनछात्रा
जन्म तिथि – 7 अप्रैल 1982
जन्म स्थान –भिलाई, छत्तीसगढ़
शिक्षा – एम.एस.सी (गणित)
संप्रति – अध्यापन
संपर्क – poonamsonchhatra@gmail.com
प्रकाशन – कविता संग्रह ‘एक फूल का शोकगीत’
अनेक पत्र-पत्रिकाओं में कविताओं एवं ग़ज़लों का प्रकाशन