आज पढ़िए ज्योत्स्ना मिश्र की कहानी। ज्योत्स्ना जी की कहानियों की अपनी अलग ज़मीन है और उनकी शैली भी बहुत अलग है। जैसे यह कहानी पढ़कर देखिए- मॉडरेटर
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कैसा अजीब दिन है!
कैसा होता है अजीब दिन? क्या अजीब है इसमें? दिन सा दिन है अभी कुछ घंटों बाद रात सी रात हो जायेगी बोलो न सुमी अजीब क्या?
सुमी ने कोई जवाब नही दिया। दरअसल दिन नहीं सुमी अजीब है। कभी बोलती तो इतना बोलती की मुझे नींद आ जाती पर वो बोलती ही रहती, बोलती ही रहती। पूरे दिन बोलती रात हो जाती तो रात भर बोलती। नहीं रात भर कैसे बोल सकता कोई इंसान! वो सो भी तो जाती है पर मुझे कई बार लगा वो रात भर बोलती रही और मैं सुनती रही।
बाहर धुंधलका सा है बदली है शायद, चाय बना लूं पियोगी सुमी?
अब जवाब नही देगी जब बोलना होता है तो बोलती नहीं।
मैंने पर्दा जरा सा हटाया तो सलेटी सी रोशनी अंदर आने लगी।तिरछी पड़ती रोशनी की पट्टी सुमी के बिस्तर के पावे तक आ कर रुक गई।पावे से खिड़की की दूरी बारह कदम थी मैं बिना देखे ही बिस्तर से उठ कर खिड़की तक जा सकती हूंl
हिश्श मैं अंधी नहीं हूं वो तो बस यूँ ही आदतन कदम गिन लेती हूँ। बिस्तर से किचन चौबीस कदम,बाथ रूम अठारह कदम मां का कमरा दस कदम वो भी तब दरवाज़े से जाओ।दोनो कमरे सटे थे। दूरी के नाम पर बीच की दीवार ही थी।कितनी मोटी होगी,कोई एक फीट? दीवार के उस तरफ मां का बेड,इस तरफ मेरा और सुमी का। दोनों बिस्तरों का सिरहाना दीवार की तरफ। कान लगाओ दीवार में तो मां की सांसों की आवाज़ सुन लो!
मां के लिए भी चाय बना लूं क्या? नहीं हमेशा मुझे ही पीनी पड़ती है कितने बरस हुए मां ने चाय छोड़ दी जिद करो तो भी नही पीती।तब पीती थी जब पाराशर अंकल आते थे… पराशर अंकल दूध साथ लेते आते थे अक्सर .आज दूध है या नही?
तिरछी पट्टी और चटख रोशन हो गई थी,बिलकुल रैंप लग रही है न सुमी?
कॉलेज के सालाना जलसे में तू करती थी रैंप वॉक। पीछे से वो गाना बजता था जलवा वाला,फैशन का है ये जलवा! अब तू कैसी सी तो हो गई तुझे तो याद भी नहीं होगा कॉलेज की ब्यूटी क्वीन होती थी तू। क्या तो तेरी आंखें! बिल्कुल मां जैसी बड़ी बड़ी,किनारों से तिरछी उठी हुई! तू काजल की लाइन से और ऊपर खींच देती दुर्गा पूजा की मूर्ति की आंखों जैसी और उनपर रेशमी झालर जैसी बरौनियां। अब काजल लगाना तो छोड़ बाल भी नहीं संवारती तू! इतने सुन्दर बाल तेरे सब बरबाद हो गए उलझ कर।
ओहो सुमी उठ न! आँखें खोल, दिखा न अपनी आँखें! अच्छा गुस्से में ही देख ले सुमी दीदी! देख अब तो दीदी बोला,अब तो उठ न!याद है कितने दिन हो गए तूने नहाया भी नहीं।
नींद में मुस्कुरा रही है सुमी! आज भी बिना नहाए धोए भी कितनी प्यारी लगती है मरी। फिर सो गई क्या? सुन चाय बना रही उठ कर मुंह धो ले।
हां दूध है या नहीं? दूधवाला बाहर रख गया होगा उठा लूँ नहीं तो बिल्ली मुंह मार देगी। बिल्लियां कितनी मजे में रहती हैं कहीं भी चली जातीं, किसी की भी रसोई में से दूध पी लेती पर मां कहती हैं, ये अपनी जगह मुश्किल से छोड़ती, इनकी जगह बदल दो तो ये या तो किसी तरह वापस आ जाती या मर जाती।
दरवाज़े के बाहर दूध मिल गया, चाय बना लाई पर सुमी को न उठना था न उठी। चलो यार सो लो छुट्टी का दिन है।
रोशनी की पट्टी धीरे धीरे रुख बदलने लगी।आज परदे धो दूंगी गंदे हो गए हैं, मां तो अब कुछ भी नहीं करती।
जब पराशर अंकल आते थे तब घर कितना जग मग चमका कर रखती थी।
घंटी बजी क्या? कितनी तीखी आवाज है। घंटियां इतनी तीखा शोर क्यों करतीं हैं आखिर? बजने दो मैं नहीं खोलती मां कुछ तो करे या सुमी ही उठे मैं ही क्यों हर बार दरवाजा खोलूं?
कुछ देर बाद, जो बहुत देर बाद हुई,घंटी बंद हो गई।
मुझे क्या? मैंने तो इयर फोन लगा लिए थे।इयरफोन बढ़िया चीज होती है।ये आए कब थे? सुमी के हैं वही लाई थी एक दिन बहुत दिन पहले या पराशर अंकल लाए थे सुमी के लिए? आना बंद करने के पहले?
सुमी हर समय इयर फोन लगाए रहती थी। नहाते,तैयार होते, खाना बनाते हर समय। गाने सुनती थी यू ट्यूब से।बाहर सुनाई तो नही पड़ता पर साथ में गुन गुनाती तो पता चल जाता कौन सा गाना सुन रही।
ये घंटी बंद नहीं हुई या फिर कोई बजा रहा?ये इस कॉलोनी वालों को चैन क्यों नहीं है?
उस दिन मां के कमरे से ऊंची ऊंची आवाजें आ रही थीं। तेज आवाजें भी कभी कभी होती रहें तो अच्छा ही है, घंटी की तीखी आवाज़ दब जाती इसमें।
मां रोने लगी थी बीच बीच में सुबकियां लेती बोलती तुमने जिंदगी बर्बाद कर दी मेरी।
ये बात सुनकर पाराशर अंकल बोलते थे हां!आं! पहले बहुत शानदार ज़िंदगी थी तुम्हारी, जूतों से बात करते थे ससुराल वाले तुमसे! मैं उस नर्क से निकाल कर लाया। इतने सालों से तुम्हें और तुम्हारी बेटियों को पाल रहा हूं ये घर खरीदवाया।
घर? घर की बात मत करना ये तुमने नहीं दिया मुझे! मेरे पास पैसे थे मुआवजे के,उससे लिया था मैंने, मेरा है ये घर।
आनंदम अपार्टमेंट का ये दो कमरे का फ्लैट मेरे पिता की मौत पर मिले मुआवजे से खरीदा गया था।
पापा की शक्ल कैसी थी मेरे जैसी या सुमी जैसी?मुझे याद क्यों नहीं आता?इतनी छोटी तो नही थी मैं, जब वो खबर आई थी। कभी कभी आँखें याद आतीं हैं,जोर से हँसते तो सिकुड़ जाती, सिकुड़ी आँखो की झिरी से भी एक किरण आती।जितना जोर से हँसते उतना वो किरण ज्यादा चमकती।मैं ने कितनी बार शीशे के सामने खड़े होकर जोर से हँस कर देखा पर किरण नही दिखी न जाने मेरी आंखों से निकलती नही या मुझे दिखती नहीं? थोड़ा सुमी के जैसे थे,थोड़ा दादी जैसे शायद! शायद क्या होंगें ही!उनके बेटे थे उनके जैसे ही होंगे।
मेरे चेहरे में क्या है पापा जैसा? कोई बताता क्यों नहीं?
पराशर अंकल ने मां को गाली दी,रण्डी साली! वो अक्सर गुस्से में मां को रण्डी कहते। बहुत पहले ऐसा नहीं कहते थे। प्यार से बोलते थे मां से। तब मां को ये गाली दादी देती थी और चाचू भी।कहां होंगे वो लोग? न जाने कब से नहीं देखा उन्हें।
सुमी गई थी एक दिन उन सबों से मिलने, फटकार के भगा दिया चाचा ने।रोती घर लौटी तो मां ने भी डांटा,क्यों गई थी वहाँ? अब वो हमारे कोई नहीं।
ऐसे कैसे कोई अचानक अपने से बेगाना हो जाता है कल जो था! बिल्कुल सामने छू सकने लायक पास,आज ऐसे कैसे दूर हो जाता जैसे गायब!
झिमिर झिमिर बारिश खिड़की की सिल पर थपकी देने लगी।बहुत दिनों बाद मन किया खिड़की से नीचे झांकने का।न जाने नीचे ग्राउंड में इतने लोग क्यों जमा हैं। खिड़की फिर बंद करके बारह कदम पीछे बिस्तर तक आ गई मैं।
मां अब भी पराशर अंकल से बात कर रही थी तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मेरी बेटी को छूने की बोलो!
तुम गलत समझ रही हो वो मेरी बेटी जैसी है,मैंने तो प्यार में उसे गालों पर किस किया था बस…
मां उस दिन बहुत देर रोई थी फिर चुप हो गई पाराशर अंकल उन्हें बाहों में लेकर दिलासा देते रहे। फिर जब वो गए तो मां मुस्कुरा रही थी। मां मुस्कुराते सुन्दर लगती।जब मुस्कुराती देर तक ड्रेसिंग टेबल के सामने बैठी बाल संवारती रहती, कभी जूड़ा बनाती कभी खोल कर कन्धों पर आगे पीछे करती रहती।
मुझे लगता मां को रोज मुस्कुराना चाहिए,रोज काम पर जाना चाहिए मेरा सुमी का पापा का टिफिन बनाना चाहिए। पापा को रोज़ शाम छह बजे घर आ जाना चाहिए..
मुझे और सुमी को पुराने घर में अपने कमरे में ही रहना चाहिए था।मेरी किताबें वहीं छूट गईं शायद और कैरम बोर्ड भी।
फिर भी सब ठीक रहे अगर मां मुस्कुराती रहे, खाना बनाती रहे ड्राइंग रूम का सोफा ठीक करे वास में फूल सजाए।
फिर चाहे पाराशर अंकल की कंजी भूरी आँखें घर की दीवारों से चिपकी रहें मैं उन आँखों के परे माँ को देख लूंगी।
ये सुमी भी न! बिल्लियों की तरह कितना रोती है!
मां ने सुमी से कहा तुझे गलतफहमी हुई थी वो तुझे अपनी बेटी की तरह मानता है।
सुमी फिर भी रोती रही,अब मैं उसे बाहों में लेकर तसल्ली देती रही वो हिचकियों के बीच बड़बड़ाती रही कोई अपनी बेटी की छातियां छूता है?कोई ऐसे अपनी बेटी के तन पर चढ़ जाता है कि उसका दम ही घुट जाए? मां ने उसकी बात मान ली मेरी नहीं मैं दादी के पास जाऊंगी उनको बोलूंगी।
दादी के पास जाने की बात पर मां बौखला गई सुमी को कमरे में बंद कर दिया उसने,चीखने लगी चीखती ही रही घंटों तक।
मेरी औलाद ही मेरी दुश्मन बन गई है!मेरी सौत बन गई है ये।
समझती नहीं जब किसी ने साथ नहीं दिया तब पराशर ने साथ दिया था। वो न होता तो कौन ऑफिस ऑफिस चक्कर काटता?मुझे ले ले कर दौड़ता?तुम्हारे पापा तो बीच रास्ते छोड़ गए।पराशर न होता तो एक पैसा हमारे हाथ न पड़ता।मुआवजे का सारा पैसा हड़प लेते तुम्हारे दादे चाचे। ये फ्लैट खरीदवाया। उसका दोस्त था डीलर नहीं तो दुनिया लूट लेती हमें!अब फंड का पैसा भी इन्वेस्ट कर रहा, दस गुना हो कर मिलेगा तो किसके काम आएगा तुम्हीं लोगों के न?
मेरी नौकरी के लिए भी उसी ने जुगाड किया।तुम लोगों की आवारा गर्दी पर पाबंदी करता है,इस लिए तुम लोग उल्टा सीधा बोल कर उसका आना बंद कराना चाहती हो।
इन्ही बातों में दादी का ज़िक्र भी आ जाता।कैसे उसने मां को कभी अपनी मर्जी से सांस भी लेने नहीं दिया!कैसे उसने उसे नौकरी नहीं करने दी।वही नौकरी जारी होती तो आज अफसर होती मां!दादी ही नहीं दादा और चाचा भी मां के दुश्मन हैं।
मां बोलती रही,रोती रही और रोते रोते बोलती रही।रोते रोते, बोलते बोलते,f उसने अपने कमरे का दरवाजा बंद कर लिया।सुमी भी रोते रोते सो गई। इसी बीच दरवाजे के बाहर बिल्ली रोने लगी और इन सब के रोने के बीच मैंने तय किया मैं कभी सुमी या मां को ये नहीं बताऊंगी कि पराशर अंकल ने दो बार मेरी छाती भी मसल दी थी और मुझे दर्द हुआ था
हम चाहते पराशर अंकल कभी घर न आएं पर मां चाहती वो आते रहें पर मां का चाहा हुआ नहीं। एक दिन उनका आना बंद हो गया।फंड के पैसों से जो बिजनेस शुरू किया था वो चला नहीं,पैसे डूब गए यहीं पर सोफे पर पराशर अंकल बैठे थे दूसरी तरफ मां!
बीच की टेबल के वास के फूल जो आज ही मां ने बदले थे, न जाने क्यों अचानक मुरझाए लगने लगे थे।
तो कुछ भी नहीं मिलेगा?
नहीं कुछ भी रिकवर नहीं हुआ।
ऐसे कैसे?तुमने तो कहा था?
हां कहा था तो? मैं खा गया क्या?बिजनेस में लगाए थे घाटा हो गया,होता है नफा नुकसान बिजनेस में।
प्लीज धीरे बोलो न!
तुम बात ही ऐसी करती हो, जैसे मैने जानबूझ कर तुम्हारा पैसा डुबा दिया।पराशर अंकल की आँखें और भी भूरी हो गई, मैने पढ़ा था आँखो का भूरा होना रंग से नहीं रंग कम होने से होता है। रंग कम होने से भाव भी कम हो जाता है।पराशर अंकल की आँखें कुछ नहीं कहतीं बस एक चुप है वहां। उन आँखों को कितना भी कितनी देर भी देखो कुछ समझ नहीं आता।कुछ न समझ आना डराता है मुझे।
अब करें क्या ये तो बताओ?
सब्र!
मां को सब्र करने को कह कर पराशर अंकल ऐसे घर से निकले जैसे रोज़ निकलते थे, रैक से बाइक की चाभी उठा कर जेब में रख, उसी जेब से मसाले की पुड़िया निकाल कर फाड़ कर मुंह में डाल,खाली रैपर वहीं फेंक कर, बिना दरवाज़ा भेड़े निकल गए।
सुमी कॉलेज गई थी, होती तो बड़बड़ाती, कितनी गंदगी फैलाता है ये आदमी!
पर मां बस रोने लगी बिल्लियों के जैसी।
पराशर अंकल मां को बाहों में लेकर दिलासा दिलाने फिर कभी नहीं लौटे।
बिल्ली फिर रो रही है, मुझे पापा का चेहरा याद करना है मुझे पराशर अंकल का चेहरा नहीं याद करना। सुमी का चेहरा इन दिनों पापा जैसा लगने लगा है, आँखें बिल्कुल मां जैसी होने के अलावा।
मुझे भूख लग रही है। सुमी सो रही है। ये गलत बात है वो मेरी बड़ी बहन है उसे मेरा खयाल रखना चाहिए। वो अब कॉलेज भी नही जाती, काम भी नहीं करती सिर्फ सोती रहती है। मां बीमार नहीं पड़ी थी तब तक सुमी कॉलेज जाती थी और मैं स्कूल दयावती गवर्नमेंट हायर सेकंडरी स्कूल मेरी किताबें कहां गईं यहीं तो रखें थीं सुमी ने बेच दीं होंगी कबाड़ी को,अब मैं कैसे पढूंगी।
घंटी फिर बजी!नहीं खोलूंगी नही, नहीं बिल्कुल नहीं!कभी नहीं!ये रुक क्यों नहीं जाती! घंटियां नहीं रुकती कभी भी। मुझे घंटियों से डर लगता है।ये बिल्लियों जैसी होती हैं रोती तो रोती ही चली जाती बिना वजह।
अब मैं दरवाजा नहीं खोलती,पहले खोल देती थी। एक दिन ऐसे ही लगातार घंटी बज रही थी तो मैंने दरवाजा खोल दिया था। सुमी चीख रही थी दरवाजा मत खोलना मुझे लगा सुमी तो पागल हो गई है, मां बीमार हैं आंखें भी नही खोलती और वो उन्हें अस्पताल नही ले जाती न किसी को बुलाती।मैंने ही उस दिन मामा को फोन किया था मां को देखने आने के लिए।
कब की बात है ये? कितने बरस बीते? इन दिनों, दिनों महीनों का पता ही नहीं चलता पर ये याद है कि पराशर अंकल को गए तीन महीने बारह दिन हो गए थे उस दिन जिस दिन मामा मां को अस्पताल ले गए थे।
मेरे और सुमी के लिए मामी ने खाना परोसा आह कितना स्वादिष्ट था उस दिन खाना। बस उस एक दिन सुमी रोई नहीं चीखी नही।अगले दिन सब रोए,मां अब कभी नही लौटेगी। न जाने क्यों मुझे कुछ बुरा नही लगा।सुमी न रोती तो मुझे मां के कहीं चले जाने और अब कभी न लौटने के दुख से ज्यादा इतमीनान इस बात का था कि इस घर में बिल्लियां रोती नहीं पर वो रोई और सबको पता चल गया कि उसे माहवारी आए चार महीने से ऊपर हो गए।
मामा दो दिन बाद उसे कहीं ले कर गए वो लौटी तो भक सफेद जैसे कपड़े धोने के साबुन से रगड़ रगड़ के धो दी गई हो। गिर गिर पड़ती सुमी को मामी ने संभाला भी नहीं ऐसे ही बाहर की खाट पर ढेर हो जाने दिया।चाय भी मेरे हाथों भिजवा दी। बिल्लियां चुप थीं पर जैसे ही पड़ोस की सुमन आंटी ने कहा ये तो जच्चा जैसी सफेद पड़ गई,बच्चा गिरवाया है क्या? बिल्लियां जोर जोर से आवाज करके रोने लगीं।
हम घर वापस आ गए थे, मैं नहीं आना चाहती थी उस फ्लैट में वापस जहां टॉयलेट के वॉश बेसिन में पराशर के मसाला थूकने के निशान थे।
मामा ने हाथ जोड़ दिए सुमी के आगे, कुछ दिन चली जाओ, दुनिया की याददाश्त बहुत नहीं होती इनके भूलते ही तुम दोनों को ले आऊंगा।
सुमी मुझसे बोली चल घर चलते हैं मां है वहां।
मुझे बेहद ताज्जुब था कैसी बातें करती है सुमी? मां वहां कैसे कब पहुंच गई, सुमी पागल है।
सुमी मां के कमरे का दरवाजा बाहर से बंद कर रखती मुंह पर उंगली रख कर कहती, बोलना मत वो सो रही हैं। मुझे शुरू मे इस बात से डर लगता था पर न जाने कब मुझे भी यक़ीन हो गया कि मां है, उसके कमरे में सोई हुई। शायद कभी कभी आइने के सामने बैठ कर बाल भी संवारती हो, शायद कभी हँसती भी हो पर ज्यादातर उस कमरे से रोने की आवाज़ आतीं। पहले मुझे लगता बिल्ली रो रही पर सुमी कहती मां रो रही तो मैं मान जाती।
मां का रोना और बिल्लियों का रोना एक सा क्यों है? किससे पूछूं क्या सारी माएं कुछ समय बाद बिल्लियों सी रोने लगती हैं या बिल्लियां मांओं सी? कौन जाने!
घर लौटने के बाद से सुमी कॉलेज नहीं है मामा ने किसी से कहकर कुछ वर्क फ्रॉम होम दिला दिया था।मैं भी स्कूल नहीं जाती। ठीक है सुमी कहती,वो पैसे कमा रही है तो मेरी ड्यूटी घर संभालना है।
मैं आखिरी कौन सी क्लास में थी? शायद ग्यारहवीं के इम्तहान होने वाले थे मामा के घर से लौट, बहुत दिनों बाद मैं स्कूल गई थी मुझे सब ऐसे देख रहे थे जैसे मेरे सर पे सींग निकल आए हों। टीचरें मुझे अलग ले जा कर पूछतीं कितने महीने थे? किसका था? तुम्हारी मां का दोस्त था न वो पराशर? तुमने भी बच्चा गिरवाया? महीना कब आया था?
सुमी ने तभी कहा मत जाओ स्कूल मैं पैसे कमा रही हूं न तुम घर संभालो।
वो भी अच्छा था सुमी पैसे कमाती वो उसके बैंक में आ जाते।सुमी मुझे चेक दे कर बैंक भेजती मैं पैसे ले आती। लौटते समय मैं राशन सब्जी और बाकी घर का जरूरी सामान लेती आती। सब ठीक चल रहा था हर इतवार हम कपड़े धोते बालकनी में सुखाते।सुमी इयर फोन लगा कर गाने सुनती।
कितने साल बीत गए उन दिनों को बीते? कितने?
घंटी फिर बजने लगी पहले से ज्यादा तेज और बार बार .फिर वो दरवाजे की भड़ भड़ में बदल गई कोई दरवाजा जोर जोर से पीट रहा है
सुमी! सुमी उठो न कोई दरवाजा तोड़ दे रहा है,उठो सुमी ई ई ई…..
मुझे बहुत डर लग रहा,कितना अच्छा था न जब सुमी रोज उठ कर कंप्यूटर के सामने बैठ जाती थी शनिवार इतवार छुट्टी होती उन दो दिनों हम कितना मजा करते।मामा भी आते थे ढेर सारा सामान लेकर। सुमी के पास फोन था हम दादी से बात करते, मां चुपचाप कमरे में रहती कुछ कहती नहीं।
फिर एक दिन दादी मर गई हमें फोन पर ही पता चला। उसके कई दिन बाद एक दिन चाचू आए थे ढ़ेर सारे कागज लेकर। सुमी से साइन करने को बोला, मना करने पर इतना चिल्लाए कि सुमी रोने लगी। मुझे लग रहा था कि सुमी को साइन कर देना था, क्या ही हो जाता साइन करने पर?
सुमी बोली हमे घर से निकाल देंगे। पता नहीं सुमी को ऐसा क्यों लगता था? चाचू मुझसे कहते दीदी को समझाओ ये फ्लैट बेच कर वहीं बड़े घर में रहो।सुमी अड़ गई,मैं ये घर नहीं छोडूंगी नहीं छोडूंगी .. यहां मां है वहां मां नहीं है।
सुमी ठीक कहती थी पापा के घर में मां नहीं थी और पापा भी नही।
चाचू फिर कभी नहीं आए। मामा आते कभी कभी, कहते तुम्हारे चाचा को सुमी की शादी का सोचना चाहिए अब तो तुम भी शादी लायक हो गईं। मुझे नहीं पता शादी होने लायक होना कैसा होता! बस न जाने कैसे इतना पता है शादी हो जाने लायक होने से घर छोड़ना पड़ता है।
घर की दीवारें सीलन से झरने लगीं थीं पर फिर भी घर था।एप्पल ग्रीन रंग से पुती दीवारें थीं। सफेद छत थी।छत पर पंखा था। खिड़की में बदरंग परदों के पीछे एक खराब कूलर था।बंद पड़ा टीवी भुतहा लगता, लगता किसी रात अंधेरे में ये अचानक चल जाएगा और रोशनी के पंख लगा कर सपने नाचने लगेगें। सपनों के डर से कई रातों को मैं सोती नहीं।
क्रीम कलर का सोफा जो भूरा होने लगा था।रैक,रैक पर रखी मां की शादी के फोटो गोल्डन फ्रेम में। और ये सेंटर टेबल मैं और मां लाए थे बड़े बाजार से रिक्शे पर।
बस वास टूट गया था अच्छा ही था फूल कौन सजाता? मां को सोने और रोने से फुरसत कहां?
सुमी इधर कुछ दिनों से बिल्ली की तरह हो गई थी घर में दबे पांव घूमती, कंप्यूटर पर काम करना बंद कर दिया।
मैं कहती सुमी चेक दो पैसे ले आऊं तो बस रोती।
रोती रहती थक जाती तो सो जाती। गाने सुनना छोड़ दिया।कहीं बाहर निकलना छोड़ दिया।मुझे भी कहीं नहीं जाने देती। सुमी का मोबाइल बजना बंद हो गया था। मामा ने एक दो बार कहा भी फ्लैट बेचकर उनके साथ चलने को पर सुमी तो सुमी ही है न साफ मना कर दिया।
मामा कई दिन से नहीं आए, नाराज़ होंगे कि उनके आने पर हम दरवाज़ा नहीं खोलते पर मैं क्या करूं सुमी मना करती है दरवाज़ा खोलने को। वो बाहर समान रख कर चले जाते मैं मामा को खिड़की से अपार्टमेंट के बाहर जाते देखती, सुमी को पता चलता तो परदा खींच देती फिर भी मुझे सुमी अच्छी लगती है।अब भी जब वो कोई काम नही करती खाना भी नहीं बनाती सोई पड़ी रहती है नहाती भी नही फिर भी अच्छी लगती है और कुछ अच्छा नहीं लगता और कुछ अच्छा लगे ऐसा है भी क्या?
भूख लगी है, किचेन में कुछ भी नहीं कितने दिनों से मामा भी नहीं आए। दरवाज़े के बाहर कुछ रख कर भी नहीं गए।सुमी भी तो भूखी होगी? भूखी होगी तो उठे न!
उफ्फ ये घंटी!कितना भी जोर से कानों को दबाओ, सुनाई पड़ती ही रहती है।अब रुकी। हां रुक गई …..अब दरवाजा पीटने लगे वो लोग नही तोड़ रहे है वो दरवाजा तोड़ रहे हैं। मैने दरवाज़े को घूर कर देखा इतना देखा कि उसका उखड़ा पेंट मेरे नाखूनों में भर गया।
सुमी आओ बेड के नीचे आ जाओ यहां वो हमें नहीं देख पाएंगे …..
उम्र क्या है?
बताओ मैडम उम्र क्या है आपकी?
उम्र क्या है??
अरे एक कोई था न इसकी पहचान का मामा चाचा कोई था न? बुलाओ उसे!
मामा थे सर पर हाथ फेरा फिर कहने लगे तुमने फोन क्यों नही किया? राशन रखने जाता था तो तुम लोग दरवाजा ही नही खोलती थीं।
उम्र क्या है? ये प्रश्न पूरे कमरे में गोल गोल घूमने लगा।
देखिए ये लड़की बिलकुल पागल है,किसी बात का ठीक से जवाब नही देती।पता नहीं क्या बीमारी भी है इसे, कितनी बास आ रही कितनी दुबली हड्डियों का ढांचा। एक पुलिस वाला मामा से बात कर रहा था।
हद देखिए पूछ रही है,सुमी कहां है? मां कहां है?
लेडी कॉन्स्टेबल के कानों में से टॉप्स लटक रहा था,मन किया कहूं संभाल ले कहीं गिर ही न जाए पर नहीं मैं क्यों बताऊं? पहले ये बताए सुमी कहां है? मां को तो मामा वहीं ले गए होंगे जहां उस दिन ले गए थे!
इससे पूछो क्या हुआ था बहन को? कड़ाई से पूछो सब उगल देगी।
प्रश्न कमरे के एक सिरे से दूसरे तक जाते टकरा कर वापस लौटते फिर ऐसे ही चक्कर काटते काटते मामा तक पहुंच कर रुक जाते।
नहीं ये बच्ची तो बहुत भोली है
शातिर है लेडी कॉन्स्टेबल ने मुंह बिचकाया था
देखिए अव्वल तो ये बच्ची नहीं है,मान लीजिए है भी तो इसकी जिम्मेदारी किसकी थी?आप खोज खबर क्यों नहीं लेते थे इन लोगों की? पिछले महीने भर से आप राशन रखने भी नहीं आए! सामने के फ्लैट वाले बता रहे थे ये उनकी बिल्ली का दूध पी जाती है।
देखिए मेरा भी परिवार है! मेरी पत्नी की तबियत खराब थी। ये लोग घर से निकलने को तैयार नहीं होती। मैंने तो बड़ी को घर से करने वाला काम भी दिलवाया था वो भी छोड़ कर बैठ गई!वो लोग कंप्यूटर उठा ले गए, ये बात मुझे महीने बाद छोटी ने बताई।
मैं ही राशन भर रहा,बिजली पानी का बिल भर रहा,बस पिछले एक महीने से नही आया। आप बताइए इसके चाचा की भी तो कुछ जिम्मेदारी है कि नहीं?फिर अभी तो ग्रैंड फादर भी जिंदा हैं। मैंने खबर भिजवाई थी उन लोगों को पर अब कुछ है नहीं इनके पास इसलिए उन्हें कोई मतलब नहीं सारा फंड का पैसा तो वो कमबख्त पराशर खा गया!
वो कौन? थानेदार की आंखे मुस्कुरा दी थीं।
अब साब आप लोगों को पता तो है ही न! थी तो बहन मेरी मगर बेराह हो गई थी इतनी बदनामी करा गई थी कि चाह कर भी भतीजियों को घर नहीं रख सका फिर अगर मैं इन्हें वहां रखता तो इसके दादके दो दिन न लगाते फ्लैट पर कब्जा करने में।
तो आपने सोचा लड़कियों को समझा कर फ्लैट अपने नाम कर लूं?
अरे साब आप कैसी बात करते हैं मैं इनकी देखभाल न कर रहा होता तो कब की मर गई होती दोनों।
हां आपकी देख भाल तो दिख ही रही है सामने हा हा हा
चलिए आप इसकी उम्र बताइए?
होगी कोई चौबीस पच्चीस की!
गोल गोल घूमता प्रश्न टेबल पर रखी फाइल में आकर रुक गया
नाम?? मीनू
पिता का नाम: स्वर्गवासी नरेंद्र
मां का नाम: स्वर्गवासी नीलम
भक्क! कैसी बातें करते हैं ये लोग?मां कब से स्वर्गवासी हो गई? सोई है अपने कमरे में! सुमी को पता है। सुमी से पूछो न उसे सब पता है, सुमी कहां है?
मेरे सवाल को दरकिनार करके पुलिस अधिकारी ने कांस्टेबल से कहा इसे मेडिकल के लिए भेजो और पड़ोसियों को बुलाओ!
मैं पहचानती हूं सबको ये दो सौ तीन नंबर वाले मल्होत्रा,ये दो सौ अठारह वाले ये संगीता आंटी इनकी बेटी मेरे साथ पढ़ती थी और ये? ये कौन है?ये नए आए होंगे!
क्या बताएं थानेदार साब इतनी बदबू हमारा तो जीना मुहाल था दो दिन तो लगा कोई चूहा वूहा मार गया होगा फिर लगा नही कुछ और ही है ये! इन लड़कियों का दरवाजा खट खटाया तो इसने खोला ही नही तब आपको फोन किया।
सबसे पहले किसने नोटिस किया?खुस पस खुस पस गुर्र गुर्र सब बिल्लियों की तरह चाक चौबंद, सबको सब कुछ पता था मैं कब बाहर निकल कर दूध उठा ले जाती थी, मैंने कब पर्दा खोला था।
कितने दिनों से मरी पड़ी है तुम्हारी बहन?
बहन? नहीं वो मरी नहीं सो रही है।
थानेदार ऊब गया था।हद ही हो गई न जाने कितने दिनों से लाश के साथ रह रही है ये लड़की!न जाने कब से खाया पिया भी नही है सूख के कंकाल जैसी तो दिख रही।
मरने वाली भी शायद भूख से ही मरी है निरी हड्डियों का ढेर ऊपर चमड़ी लटकी।बास मारने लायक भी तो गोश्त नही ढंग से इसी लिए इतने दिनो बाद पता चला।कमाल ही है!
सुना तो ये है कि कैरेक्टर लेस थी, हमल गिरवा चुकी थी।वर्क फ्रॉम होम भी कुछ गडबड ही रहा होगा, ऑन लाइन सेक्सी चैट करती होगी पर इस कंकाल से वैसी बाते करता कौन होगा वो भी पैसे देकर! थानेदार की हँसी छूटते बची, रोक ली,कुछ पत्रकार भी आ गए थे उनके सामने हँसना मुनासिब न होता l
पर मैने देख लिया था उसका चेहरा हँसते समय पराशर अंकल से मिल रहा था।
अरे कोई इसे अस्पताल ले कर जाओ यार!
साहब लाश भी मोर्चरी भिजवा दें जल्दी बच्चे उल्टी कर रहे बदबू के मारे!
उम्र क्या है?
नाम क्या है?
पिता का नाम?
अस्पताल में फिर से वही प्रश्न पूछे जा रहे थे और मैं बस सोना चाहती थी।