स्मिता सुंदरम एक शिक्षिका, शोधकर्ता और पर्यावरण कार्यकर्ता हैं, जो *सस्टेनेबिलिटी, कार्बन डाइऑक्साइड बायो-सीक्वेस्ट्रेशन, और पारंपरिक ज्ञान प्रणाली* पर कार्य कर रही हैं। उन्होंने *जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU), नई दिल्ली* से पर्यावरण विज्ञान में पीएच.डी. प्राप्त की है और वर्तमान में *जाकिर हुसैन दिल्ली कॉलेज (सांध्य), दिल्ली विश्वविद्यालय* में सहायक प्रोफेसर के रूप में कार्यरत हैं।उन्होंने *कई शोध पत्र प्रकाशित किए हैं* और अपने *शोध व सामाजिक कार्यों के लिए “एनवायर्नमेंटल एक्सीलेंस अवॉर्ड”* सहित कई सम्मान प्राप्त किए हैं।आप उनका यह लेख पढ़िए- मॉडरेटर
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प्राचीन भारतीय ग्रंथों में कहा गया है—”यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः”, अर्थात जहाँ नारी का सम्मान होता है, वहाँ देवताओं का वास होता है। यह कथन केवल सांस्कृतिक आदर्श नहीं, बल्कि हमारे समाज की गहरी जड़ों से जुड़ा हुआ सत्य है।
आज, *अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस 2025* के अवसर पर, हम महिलाओं के *अधिकार, गरिमा और सशक्तिकरण* का उत्सव मना रहे हैं। यह दिवस हर साल *8 मार्च* को महिलाओं की उपलब्धियों को सम्मानित करने और उनके अधिकारों की रक्षा के लिए मनाया जाता है। इसकी शुरुआत *1911* में हुई, जब यूरोप में महिलाओं ने समान वेतन, बेहतर कार्यस्थल सुविधाएँ और मतदान के अधिकार के लिए आवाज़ उठाई। *संयुक्त राष्ट्र* ने *1977* में इसे आधिकारिक मान्यता दी, और तब से यह दिवस अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मनाया जाता है।
*भारतीय परिप्रेक्ष्य में नारी सशक्तिकरण*
यदि हम भारत के परिप्रेक्ष्य में देखें, तो यहाँ *नारी सशक्तिकरण का संघर्ष* पश्चिम की तरह केवल अधिकारों तक सीमित नहीं रहा, बल्कि यह समाज निर्माण, कर्तव्यों और नैतिक मूल्यों को संरक्षित करने की दिशा में रहा है।
भारतीय इतिहास में नारी केवल एक गृहणी या सहायक भूमिका में नहीं थी, बल्कि वह *शिक्षा, नेतृत्व, और युद्धक्षेत्र* में भी आगे रही है। वेदों में गार्गी और मैत्रेयी जैसी विदुषियाँ, मराठा साम्राज्य में अहिल्याबाई होल्कर, स्वतंत्रता संग्राम में रानी लक्ष्मीबाई और हाल के समय में कल्पना चावला और मैरी कॉम जैसी महिलाएँ इस शक्ति का जीवंत प्रमाण हैं।
हमारा इतिहास यह दर्शाता है कि भारतीय समाज में नारी को केवल *समानता नहीं, बल्कि श्रेष्ठता* का स्थान प्राप्त था। लेकिन, विदेशी आक्रमणों और कुछ सामाजिक कारणों से महिलाओं की स्थिति में परिवर्तन आया। आज, पुनः *भारत अपनी गौरवशाली परंपराओं की ओर लौट रहा है*, और महिलाएँ समाज के हर क्षेत्र में अपनी शक्ति का परिचय दे रही हैं।
आज, जब हम *Beijing Declaration* के *30 वर्ष* पूरे होने का जश्न मना रहे हैं, तो हमें यह विचार करना चाहिए—
*”सच्चा सशक्तिकरण क्या है?”*
क्या यह केवल *कानूनी अधिकारों* तक सीमित रहना चाहिए?
या यह हमारी *संस्कृति और परंपराओं से जुड़कर, महिलाओं के लिए **सुरक्षित, गरिमापूर्ण और आत्मनिर्भर समाज* बनाने की दिशा में होना चाहिए?
आज भारत में महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए *बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ, **उज्ज्वला योजना, **महिला स्वयं सहायता समूह (SHGs), **स्टार्टअप इंडिया, और **STEM में महिलाओं को बढ़ावा देने के कार्यक्रम* जैसी नीतियाँ लागू की जा रही हैं। इससे महिलाएँ *आर्थिक और सामाजिक रूप से आत्मनिर्भर* बन रही हैं।
लेकिन, हमारा असली कर्तव्य यह सुनिश्चित करना है कि—
* हर बेटी को *समान अवसर* मिले।
* हर बहन को *सम्मान* मिले।
* हर माँ को *उसकी भूमिका के लिए सराहा जाए*।
“नारी सिर्फ सशक्त नहीं, बल्कि सृष्टि की शक्ति है। जब वह आगे बढ़ती है, तो पूरा समाज आगे बढ़ता है।”
इस *अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस* पर हम संकल्प लें कि *हर नारी को शिक्षा, सुरक्षा और सम्मान देंगे*, जिससे वह अपने सपनों को साकार कर सके।
आप सभी को *अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस 2025 की हार्दिक शुभकामनाएँ!*