Author: admin

पिछले कई दिनों से एक जज और उसके घर में लगने वाली आग और उससे जुड़े तमाम तथ्य खबरों में बने हुए हैं। विष्णु प्रभाकर जी ने बहुत पहले न्यायपालिका के भ्रष्टाचार पर यह कहानी लिखी थी जिसका शीर्षक है धरती अब भी घूम रही है। आप यह कहानी पढ़िए – मॉडरेटर ================================== आयु नीना की दस वर्ष की भी नहीं थी लेकिन बुद्धि काफ़ी प्रौढ़ हो गई थी। जैसा कि अक्सर मातृ-हीन बालिकाओं के साथ होता है, बुज़ुर्गी ने उसके लिए आयु का बंधन ढीला कर दिया था। इसलिए जब उसने सुना कि कुछ दूर पर सोया हुआ उसका…

Read More

आज पढ़िए युवा लेखक आलोक कुमार मिश्रा की कहानी ‘दूध की जाति’। हाल में इसी नाम से उनका कहानी संग्रह प्रकाशित हुआ है। पढ़िए न्यू वर्ल्ड पब्लिकेशन से प्रकाशित इस संग्रह की शीर्षक कहानी- मॉडरेटर =============================== (1) मिसिराइन के प्रसव का दर्द पूरे चढ़ान पर था। दर्द ऐसा कि औरतों की ये नसीहतें कि ‘एतना आवाज ना निकारौ, बहरे मरद बइठे हैं’ जैसे मिसिराइन के कान तक भी न पहुँच पा रहीं थीं। उसकी चीखें सुन बाहर अधीर खड़े परमेसर मिसिर के सीने में पहले से ही तेजी से धुकधुका रहा जी और रफ्तार पकड़ जाता। ऊपर से इस बार…

Read More

बरसों बाद अशोक कुमार पांडेय का कविता संग्रह प्रकाशित हुआ है ‘आवाज़-बेआवाज़’। राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित इस संग्रह को पढ़कर उस पर यह विस्तृत टिप्पणी लिखी है जाने-माने कवि पवन करण ने। आप भी पढ़ सकते हैं- मॉडरेटर  =========================== जहां से आवाज़ आनी थी वहां से चुप्पियों के फ़रमान जारी हो रहे हैं। अशोक कुमार पांडेय की कविता की गति बहुत तेज है। एकदम तूफान सी। जैसे आप प्लेटफार्म पर खड़े हैं और आपके सामने से सनसनाते हुए उस स्टेशन पर न रुकने वाली ट्रेन गुजरती है। आप उसकी गति से थरथराते प्लेटफार्म पर खुद को संभालते हुए बस उसका…

Read More

अविनाश दास द्वारा निर्देशित फ़िल्म ‘इन गलियों में’ पर प्रसिद्ध लेखिका कविता ने यह विस्तृत टिप्पणी की है। उनकी लिखी यह सुंदर टिप्पणी आपसे साझा कर रहा। पढ़ियेगा- मॉडरेटर ===================== ‘इन गलियों में’ फिल्म पर बात करने से पहले कुछ अवांतर लेकिन जरूरी बातें – हम जब इलाहाबाद के पीवीआर में यह फिल्म देख रहे थे, पर्दे के समानांतर पिक्चरहॉल में हमने एक और फिल्म को भी चलते पाया। इलाहाबाद गंगा-जमुनी सभ्यता और तहज़ीब का शहर है। इस फिल्म की कहानी का नाभि-नाल इस शहर से जुड़ा और इसी में कहीं गड़ा हुआ भी है। इस फिल्म का आधारस्त्रोत दिवंगत…

Read More

 प्रमोद द्विवेदी की कहानियाँ अपनी जीवंत भाषा और ज़बरदस्त नाटकीयता के कारण याद रह जाती है। अब यह कहानी ही पढ़िए- मॉडरेटर =========================== घर छोड़कर निकले सिंघल साहब ने ऐसी उम्मीद तो की ही नहीं थी। घर से इतनी दूर, चाय की टपरी पर राष्ट्रीय हिंदी अखबार के लापता कॉलम में अपनी तस्वीर देखकर घबरा गए।   साथ में सूचना थी- ‘सर्व साधारण को इत्तिला किया जाता है,   मेरे पिताजी घनश्याम दास सिंघल, उम्र 68 साल, रंग सांवला, कद पांच फीट आठ इंच, माथे पर कट का निशान, दिनांक 08-04-24 से लापता हैं। इधर कुछ अरसा से उनकी मानसिक दशा…

Read More

तलईकूतल एक प्राचीन और अमानवीय प्रथा है, जो मुख्य रूप से दक्षिण भारत, खासकर तमिलनाडु में प्रचलित रही है, जिसमें बुजुर्गों को उनकी ही इच्छा के विरुद्ध मार दिया जाता था। तमिलनाडु की इसी प्रथा के विचार पर आधारित ‘तलईकूतल’ शीर्षक से ही एक कहानी मैंने पिछले दिनों पढ़ी। अत्यंत ही सहज भाषा और रोचक शैली में लिखी इस मार्मिक कहानी को पढ़ते हुए आप इसकी मुख्य पात्र एलीकुट्टी के दर्द को साझा करने लग जाते हैं, उसके संघर्ष आपको अपने लगने लग जाते हैं। उसके जीवन में आने वाली मुश्किलों और उस पर होने वाले अत्याचारों में ख़ुद को देखने…

Read More

हाल में युवा लेखिका दिव्या विजय का कहानी संग्रह आया है ‘तुम बारहबानी’। इस संग्रह की बहुत सारगर्भित भूमिका लिखी है जाने-माने कवि-लेखक यतीन्द्र मिश्र ने लिखी है। वाणी प्रकाशन से प्रकाशित इस संग्रह की भूमिका आज आपके लिए प्रस्तुत है- मॉडरेटर  ==================================== अपने सर्जनात्मक क्षणों को कथा में रूपान्तरित करने की पुरानी परम्परा है। भारतीय समाज हमेशा से कथाओं और आख्यानों का देश रहा है, जहाँ स्मृतियाँ वाचिक परम्परा में हमारी गाथाएँ आज तक सुनाती चली आ रही हैं। ऐसे में कथा कहने का ढंग बहुश्रुत और लोकप्रिय है। साहित्य के सन्दर्भ में कहानी लेखन को यदि हम मात्र…

Read More

महान रोमांटिक कवि पी बी शेली की कविताओं पर यह लेख लिखा है युवा कवि अंचित ने। आप भी पढ़ सकते हैं- मॉडरेटर  ======================================================== कविता क्यों लिखी जाये या कविता का इस्तेमाल क्या है या कविता और समाज के बीच क्या संबंध है, ये कोई नए प्रश्न नहीं हैं बल्कि ये इतने पुराने प्रश्न हैं कि ग्रीक और रोमन दार्शनिकों एवं सौन्दर्यशास्त्रियों के बीच भी हमेशा गंभीर विमर्श का विषय बने रहे और वहाँ से एक ऐसी धारा की शुरुआत हुई जो फिर विभिन्न पश्चिमी भाषाओं में फैली और पुष्ट होती गई। अंग्रेज़ी साहित्य में भी कविता के उपयोग और…

Read More

उड़िया भाषा के प्रसिद्ध कवि रमाकान्त रथ का कल भुबनेश्वर में निधन हो गया। उनको साहित्य अकादमी पुरस्कार समेत अनेक बड़े पुरस्कार-सम्मान मिले थे। भारत सरकार ने उनको पद्मभूषण से भी सम्मानित किया था। आइये आज उनकी कुछ कविताएँ पढ़ते हैं। अनुवाद दिनेश कुमार माली का है- मॉडरेटर  =============================== संबंध १ पिछले जन्म में सिर धोकर बाल सुखाते समय उसका हँसना रो धोकर उसका आँसू पोंछना मैंने देखा है. ऐसा हुआ उस दिन उसके भीगे बाल भीगे ही रह गए इससे वजन इतना बढ़ा कि उसकी गर्दन झुक गई उस झुकी गर्दन पर किसी ने प्रहार किया. ऐसा हुआ उस…

Read More

मनीषा कुलश्रेष्ठ अपनी कृति में हमेशा ही किसी नये विचार और विषय को लेकर आने के कारण पाठकों को चौंकाती रहती हैं। हम उनकी लेखनी के विविधताओं और उसके विस्तार से परिचित हैं। केवल साहित्य ही नहीं बल्कि पर्यावरण और जीव-जंतुओं के प्रति सजग रहने वाली लोकप्रिय कथाकार मनीषा कुलश्रेष्ठ का नया उपन्यास ‘त्रिमाया’ भारत के मातृवंशीय समाजों पर केंद्रित है जिसमें आपको पर्यावरण की बदलती स्थिति-परिस्थिति के बहाने जीव-जंतुओं के जीवन की भी झलक मिलेगी। फ़िलहाल आप इस उपन्यास का एक अंश पढ़िए। उपन्यास वाणी प्रकाशन से प्रकाशित है। – कुमारी रोहिणी ================= माया का पीढ़ियों से चलता आया…

Read More