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प्रस्तुत हैं भावना झा की कुछ कविताएँ- अनुरंजनी ============== 1. नींद में स्त्री   इस क्षण वह गहरी नींद में है बड़ी मशक्कत से सारी मसरूफ़ियत, चिंताओं और सारे ताम- झाम को बहलाया-फुसलाया है किसी  हठी बच्चे की तरह । जैसे एक अंतराल के बाद वाक्य में   आता हो अल्प विराम   मोहलत पाते ही वैसे  उनींदी पलकों पर दिन भर की श्रांति ने हाजिरी दी है; अभी खदेड़े गए हैं व्यथा, विषाद, पीड़ा दूर कहीं  इस अवधि देह व आत्मा भी उसकी  किसी चोट या जख्म की  तसदीक़ नहीं करेंगे  इस वेला ताने ,नसीहतें या कोई समझाइश नहीं फटकेगें उसके इर्द-गिर्द…

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कल ही गगन गिल को साहित्य अकादमी सम्मान दिये जाने की घोषणा हुई है। पढ़िए कवयित्री अनामिका अनु की उनसे बातचीत- ==================================== 1.अनामिका अनु:आपकी पसंद की पंक्तियाँ?  गगन गिल  :‘हाथों में पता नहीं रबड़ है कि पेंसिल है जितना भी लिखता हूँ उतना ही मिटता है’  2.अनामिका अनु:एक प्रश्न जो आप स्वयं से पूछना चाहती हों?  ‘ऐसा कब तक चलेगा?’  3.अनामिका अनु:समुद्र की लहरों को उमड़ते देखकर मन में क्या आता है?  गगन गिल : ‘मछली मछली कितना पानी?’  4.अनामिका अनु :आपकी प्रिय नदी जिसके तट पर आप लंबे समय तक बैठना चाहती हों?  गगन गिल :अब…

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जानकीपुल ने बाल साहित्य की विधा को प्रमुखता देने का संकल्प लिया है, जिसका पाठकों द्वारा भरपूर स्वागत किया गया। आज हम पढ़ते हैँ उपासना की कहानी ‘नींद की नींद’ *********** एक प्यारी बच्ची है। नाम है उसका नींद। नींद को नींद कभी नहीं आती। उसे कभी नींद आ जाए तो हमें नींद कैसे आएगी? हम सबकी नींद के लिए, नींद को हमेशा जागना पड़ता है। नींद पूरी दुनिया घूमती है। चेन्नई से चेकोस्लोवाकिया तक। हर एक से मिलती है। सबका हाल चाल लेती है। जब जो थका-थका सा दिखता है, नींद चुटकी बजा देती है। चुटकी बजाते ही थके…

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यह विवेक वर्मा की कविताओं के प्रकाशन का पहला अवसर है। उनकी कविताओं से परिचय करा रहे हैं आशुतोष प्रसिद्ध। आज के समय में यह देखना सुखद है कि एक कवि दूसरे कवि को न सिर्फ़ पढ़ रहे हैं बल्कि उनपर अपनी बात भी कह रहे हैं – अनुरंजनी =================================== साहित्यिक लेखन का उद्देश्य जन सामान्य के जीवन को और बेहतर, और सुंदर बनाने का एक प्रयास है। मानवता को नए सिरे से स्थापित करना, बची हुई मानवीयता का परिशोधन करना, रूढ़ शब्दों के बीच ठहरे हुए जीवन में गति भरना, समय के साथ परिवर्तन को स्वीकार करते हुए जागृति…

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हाल ही में बाबुषा कोहली का नया उपन्यास आया है ‘लौ’। इसकी बेहद गंभीर व बारीक समीक्षा कर रहे हैं युवा समीक्षक शुभम मोंगा। यह समीक्षा इसलिए भी ख़ास है क्योंकि इस उपन्यास की पहली समीक्षा प्रकाशित हो रही है- अनुरंजनी ============================== प्रेम में आत्माभिव्यक्ति: लौ          बाबुषा कोहली के लेखन की विशेषता है कि वह लौकिक होते हुए भी अपने भीतर दर्शन की निष्पत्तियों को आत्मसात किए हुए हैं। उनकी लिखाई धरातल के ऊपर जितनी दुनियावी दिखती है, धरातल के नीचे उतनी ही सूक्ष्म, गहन और अपने भीतर संवेदनाओं व प्रेम को अंतर्गुम्फित किए है। यह…

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हाल में ही वरिष्ठ लेखिका नासिरा शर्मा की किताब आई है ‘फ़िलिस्तीन एक नया कर्बला’। लोकभारती प्रकाशन से प्रकाशित इस किताब में इज़रायल और फ़िलिस्तीन के संघर्ष को लेकर कहानियाँ, कविताएँ, लेख, साक्षात्कार आदि हैं। प्रस्तुत है इसी किताब से नाजिया हसन से एक बातचीत-  =============================== नासिरा शर्मा : पिछली आधी सदी से फ़िलिस्तीनी समाज युद्ध की विभीषिका झेल रहा है, ऐसी स्थिति में औरत का सहयोग और योगदान क्या है? नाज़िया हसन : औरत के सहयोग के बिना इस संघर्ष का दो क़दम चलना भी मुश्किल था। औरत की क़ुर्बानी से ही मर्द को शक्ति मिलती है। वह बच्चा…

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आज पढ़िए अनामिका सिंह की ग़ज़लें- ========================= (1) ज़िंदगी के इस सफ़र में देखिए क्या-क्या मिला। दौर-ए-हाज़िर में हमें हर आदमी तनहा मिला। हो गयी तूती की गुम नक्कारखाने में सदा, न्याय की उम्मीद जिससे थी,वही बहरा मिला। चढ़ गये हम अर्श पर छल से सभी को रौंद कर, आईने में हाँ मगर अपना झुका चेहरा मिला। दर्द हैं इतने मिले, है दर्द का अहसास गुम, हाँ मगर नम आँख में ठहरा हुआ दरिया मिला। नफ़रतों की फ़स्ल बो दी आदमी ने मुल्क में, ईद-होली क्या मनाएँ जब चमन जलता मिला। जाइए मत आप इस रंगत पर मेरी खामखाह, सुर्ख़रू…

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प्रसिद्ध कवयित्री-चित्रकार वाजदा ख़ान के चित्रों की प्रदर्शनी दिल्ली के त्रिवेणी सभागार में चल रही है। उसी पर लिखा है कवयित्री स्मिता सिन्हा ने- ======================  त्रिवेणी कला संगम, नई दिल्ली में इन दिनों वाजदा खान की दूसरी एकल प्रदर्शनी “At A Memory Square” ने कला जगत में नई लहर पैदा कर दी है। यह केवल एक कला प्रदर्शन नहीं, बल्कि विचार, स्मृति और अमूर्तता के मेल का अनोखा अनुभव है। वाजदा खान, जो अपने अमूर्त चित्रों और कविताओं के लिए जानी जाती हैं, इस प्रदर्शनी के माध्यम से दर्शकों को अपने आंतरिक और बाहरी संसार की गहराइयों का अनुभव कराती…

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6 दिसम्बर, 2024 को नयी दिल्ली के ‘इंडिया इंटरनेशनल सेंटर’ में, लेखक-विचारक पराग मांदले की नयी पुस्तक ‘गांधी के बहाने’ का लोकार्पण हुआ। अवसर था सेतु प्रकाशन के वार्षिकोत्सव का। ज्ञात हो कि ‘सेतु पाण्डुलिपि पुरस्कार योजना (2024)’ के लिए आयी सौ से भी अधिक पाण्डुलिपियों में से पराग मांदले की पाण्डुलिपि ‘गांधी के बहाने’ को पुरस्कार के लिए चुना गया। सेतु प्रकाशन के इस वार्षिकोत्सव समारोह में वरिष्ठ साहित्यकार अशोक वाजपेयी, वरिष्ठ साहित्यकार ममता कालिया, वरिष्ठ पत्रकार – लेखक मधुकर उपाध्याय, पत्रकार अशोक कुमार और अध्यापक – अध्येता सौरभ वाजपेयी समेत काफी तादाद में साहित्य प्रेमियों, शोधकर्ताओं और प्राध्यापकों…

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साहित्य का जीवन में समावेश सांस्कृतिक मूल्य है। इसमें गीत-कविता बहुधा आते हैं। यह पुस्तक अंश लगभग छ: साल पुरानी एक सच्ची घटना पर आधारित है। कथा की नायिका निशा वर्मा के जन्मदिन के उपलक्ष्य मेँ प्रचण्ड प्रवीर की पुस्तक कल की बात – गान्धार से पाठकोँ के लिए विशेष प्रस्तुति–************कल की बात है। जैसे ही मैँने दफ़्तर मेँ कदम रखा, मेरी नज़र जमीन पर गिरे चमकते-झिलमिलाते झुमके पर जा पड़ी। मैँने झुक कर उसे उठा कर घुमा कर देखा। ‘सोने मेँ जड़े रत्न कहीँ हीरे-मोती न हो!’ मैँने सोचा। ‘क्या करूँ? दफ़्तर मेँ ज़मा कर दूँ? किसी नीयत बुरी…

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