आज अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस है। आज के दिन पढ़िए बहुचर्चित और लोकप्रिय लेखिका तसलीमा नसरीन का लेख ‘महिला दिवस‘। बांग्ला से इस लेख का हिन्दी अनुवाद किया है जानेमाने अनुवादक और कवि उत्पल बनर्जी ने। तसलीमा नसरीन के लेखों का यह संग्रह दो खंडों में ‘स्त्री अधिकार और क़ानून’ नाम से राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित है।- कुमारी रोहिणी
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महिला दिवस की सुबह कुछ फ़ोन आए। सभी ने कहा, ‘हैपी वीमन्स डे’। ठीक जिस तरह वे लोग कहते हैं ‘हैपी वैलेन्टाइंस डे’ या फिर ‘हैपी मदर्स डे’। वैलेन्टाइंस डे या मदर्स डे पर हैपीनेस या सुख की बात होती है। प्रेमी-प्रेमिका या फिर माँओं के आनन्द उत्सव के लिए मूलतः ये दो दिन होते हैं। लेकिन महिला दिवस का तो एक ही उद्देश्य नहीं होता। महिला दिवस की ही स्त्रियों के ख़िलाफ़ वैषम्य को दूर करने के आन्दोलन के लिए की गई थी। अब भी उसी वजह से महिला दिवस मनाया जाता है। यह दिवस स्त्रियों के आनन्द उत्सव का दिवस नहीं है। इस दिवस की उपस्थिति साबित करती है कि नारी आज भी अत्याचारित और अपमानित है, नारी आज भी वंचित और लांछित है। लिहाज़ा इस दिन आज भी स्त्रियाँ अपने प्राप्य अधिकारों के लिए अपना दावा पेश करती हैं। ‘महिला दिवस’ मुझे कभी भी आनन्द नहीं देता। आनन्द नहीं देता क्योंकि मेरे लिए यह दिन अत्यन्त दुख का दिन है। दुख का दिन इसलिए कि हमारे मौलिक अधिकारों को पाने के लिए आज भी हमें रोना पड़ रहा है, चीखना पड़ रहा है, सभा-सेमिनार करने पड़ रहे हैं, सड़कों पर उतरना पड़ रहा है, जुलूसों में जाना पड़ रहा है। कितने दिनों पहले, सम्भवतः 105 साल पहले स्त्रियों ने उत्पीड़ित, निपीड़ित, अत्याचारित और अपमानित न होने के अधिकार की माँग की थी। तब से लेकर आज भी हर साल इस दिन एक ही अधिकार की माँग की जाती है, माँग इसलिए की जाती है कि स्त्रियाँ आज भी स्त्री के रूप जन्म लेने के अपराध में उत्पीड़ित, निपीड़ित, अत्याचारित और अपमानित हैं। आज भी हम स्त्रियाँ वंचित और लांछित हैं। जिस दिन हमें समान अधिकार मिल जाएँगे, उस दिन से इस दिवस का अस्तित्व समाप्त हो जाएगा। पूरे अन्तःकरण से हम लोग इस दिवस की विलुप्ति चाहते हैं।
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मैं तो सब समय कहती हूँ, वर्ष के 364 दिन पुरुष दिवस होते हैं और 1 दिन महिला दिवस। स्त्री और पुरुषों के बीच जो हजारों विषमताएँ हैं, उन्हें यदि हटा दें तो फिर महिला दिवस मनाने की ज़रूरत ही नहीं रहेगी। स्त्रियों से विद्वेष रखने वाले कुछ पुरुष ‘पुरुष दिवस’ मनाने लगे हैं, इसे भी रोकना होगा। कोशिश यह करनी चाहिए कि स्त्री और पुरुष मिलकर ‘मानव दिवस’ मनाने का इंतज़ाम करें। महिला दिवस के दिन क्या बलात्कार नहीं हुए? स्त्रियों पर क्या एक दिन के लिए भी अत्याचार बन्द थे? बच्चियों की तस्करी नहीं की गई, बच्चियों किशोरियों को यौनदासी बनाने के लिए उन्हें वेश्यालयों में नहीं बेचा गया? महिला दिवस पर क्या स्त्रियों की हत्या बन्द थी? स्त्रियों को क्या जलाकर नहीं मारा गया उस दिन? मैं सच बात को खोलकर कहना चाहती हूँ कि महिला दिवस पर समूचे विश्व में स्त्रियों को उत्पीड़ित किया जा रहा है। मेरा महिला दिवस अन्य साधारण दिनों की तरह ही बीता। उस दिन मैंने किसी भी आनन्द-उत्सव में भाग नहीं लिया। कहीं पर वक्तृता या वितर्क भी नहीं किया। एक बड़ी पत्रिका में छपी ख़बर मेरे मन को आधा दिन कष्ट देती रही। ख़बर का शीर्षक था: ‘स्त्रियों के गुप्तांग में दुर्गन्ध की 8 वजहें’। महिला दिवस पर पुरुषों के प्रतिष्ठान से स्त्रियों के लिए यह एक कमाल का उपहार था! पुराने ज़माने से हम लोग पढ़ते आए हैं, सुनते आए हैं कि स्त्रियों के गुप्तांग में भयंकर बदबू होती है। मुझे लगता है उस बदबू को दूर करने के लिए पूरी मानवजाति ने आज आकाश-पाताल एक कर दिया है। बदबू की कितनी ही तरह की वजहें ढूँढ़ी जा रही हैं! कितनी ही तरह के समाधान भी बताए जा रहे हैं! यानी कुदरती गन्ध को ‘दुर्गन्ध’ कहा जाता है। इस गन्ध को दूर करने के लिए कितने ही नुक़सानदेह रसायन बाज़ार में लाए जा रहे हैं! किसी ने पुरुषांग के दुर्गन्ध के बारे में सुना है? पुरुषांग के दुर्गन्ध को लेकर मीडिया में क्यों नहीं लिखा जाता, चर्चा क्यों नहीं की जाती? किन-किन वजहों से पुरुषों के गुप्तांग में दुर्गन्ध होती है, किस तरह उस दुर्गन्ध को दूर किया जा सकता है—इन सबको लेकर क्यों अनुसंधान नहीं होते? स्त्रियों को ही डायन कहकर चिह्नित किया जाता है, उन्हें बदक़िस्मत, अशुभ, नरक का द्वार कहा जाता है, गंदगी से भरी हुई और दुर्गन्ध का आधार कहा जाता है, ताकि स्त्रियाँ शर्म के मारे संकुचित होकर, डर की वजह से दुबक कर रहें, वे आत्मविश्वास खो दें और ख़ुद से नफ़रत करना सीखें। यह तो थी आधे दिन की बात। मेरे मन के ख़राब होने की बात । शेष आधे दिन में मैंने स्वयं को शर्म और भय से मुक्त किया था, मैंने जो आत्मविश्वास खो दिया था, उसे फिर से हासिल कर लिया था, ख़ुद से नफ़रत करने की बजाय मैंने अपने आप से प्यार किया था। इस आधे दिन मैं बहुत अच्छी रही। जो स्त्रियाँ ख़ुद से नफ़रत कर रही हैं, क्योंकि समाज ने उन्हें अपने आप से नफ़रत करना सिखाया है, मैं उन्हें नफ़रत बन्द करने को कहती हूँ। नफ़रत करने से हम ख़ुद ही आगे बढ़ने से ख़ुद को रोकते हैं। नफ़रत करने से इनसान पीछे हटता जाता है। स्त्रियों को षड्यंत्र करके पीछे रखा गया है, और इस पर लड़कियाँ और-और पीछे जाना चाहती हैं। बहुत पहले से उनकी पीठ दीवार से टिक चुकी है। दीवार से पीठ टिकने पर इनसान सामने की ओर जाता है। सामने जो कुछ भी रहता है, उसे तोड़कर और आगे जाता है। वह निरापद दूरी पर चला जाता है। लड़कियाँ कब इनसान बनेंगी?