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अम्बुज पाण्डेय अपनी आलोचना और टिप्पणियों के लिए जाने जाते हैं। गगन गिल की कविताओं पर उनका आलेख पाठकों के लिए विशेष *************** ‘गगन गिल’ की काव्य यात्रा में पिछले चार दशकों से अधिक का समय स्पंदित हो रहा है। इस दीर्घावधि में हिन्दी साहित्य में अभिव्यक्ति, अनुभूति और काव्य संवेदना के धरातल पर बहुत कुछ परिवर्तित हुआ है। स्त्री लेखन अपनी स्वानुभूति, विषयों की विविधता और आत्मबल से पहले की तुलना में अधिक समर्थ सिद्ध हुआ है। संकोच और वर्जनाओं की तमाम सीमाओं को अतिक्रमित करता स्त्री लेखन गुण और परिमाण दोनों दृष्टियों से परिशंसन पा रहा है। जो…

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वागीश शुक्ल अपने अद्वितीय निबन्धों, टीकाओं और अपने लिखे जा रहे उपन्यास के लिए प्रसिद्ध हैं। वे सम्भवतः हिन्दी के अकेले ऐसे लेखक हैं जो हिन्दी के अलावा अंग्रेज़ी, संस्कृत, फ़ारसी और उर्दू पर समानाधिकार रखते हैं। यही कारण है कि उनकी भाषा में बहुकोणीय समृद्धि अनुभव होती है। उनकी नवीन पुस्तक ‘आहोपुरुषिका’ सनातन धर्म में विवाह पर विस्तृत चर्चा है। पुस्तक की परिचयात्मक टिप्पणी मृदुला गर्ग के शब्दोँ मेँ : आहोपुरुषिका की विषाद झंझा उसका एक तिहाई हिस्सा है। बाकी दो तिहाई में, विवाह सूक्त का शास्त्र सम्मत और अत्यन्त विद्वत्तापूर्ण विवेचन है। सनातन धर्म में जहाँ वह देवानुप्राणित…

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जानकी पुल पर कल युवा लेखक आलोक रंजन की कहानी ‘स्वाँग से बाहर’ प्रकाशित हुई थी। कहानी समकालीन जीवन के बेहद जटिल और बारीक समस्या यानी कि रिश्तों के असंख्य विकल्प के बीच जीने के बावजूद भी कोई मन-माफ़िक़ रिश्ता नहीं मिल पाने को रेखांकित करती है। इस संवेदनशील कहानी पर पढ़िए कुमारी रोहिणी की टिप्पणी-  ===================================== संडे को अख़बार पढ़ने या ख़ख़ोरने की आदत बचपन के दिनों में विकसित हुई कुछेक ऐसी आदतों में से एक है जो आज भी बरकरार है। ऐसे में ही आज के हिंदुस्तान टाइम्स के सप्लीमेंट में एक लेखनुमा खबर पर नज़र गई। आद्रिजा…

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आज पढ़िए युवा लेखक आलोक रंजन की कहानी ‘स्वाँग से बाहर’। आलोक रंजन को हम उनके यात्रा वृत्तांत ‘सियाहत’ से जानते हैं लेकिन उनकी कहानियों की भी अपनी अलग जमीन है। बिना किसी शोर-शराबे के जीवन की जटिलताओं को अपनी कहानियों में वे दर्ज करते हैं। प्रस्तुत कहानी इसका अच्छा उदाहरण है। कहानी पढ़कर बताइएगा- प्रभात रंजन =====================   ‘मुझे तुमसे बात करनी है … खाना खाने के बाद बाहर आ जाना।‘ उस वक़्त कमरे में अंधेरा था लेकिन बाहर अंधेरे की सीमा में प्रकाश की ख़ासी मिलावट! मोरों की आवाज़ की असीम निरंतरता उसे भली लगती थी और इस…

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    कुछ कृतियों की प्रासंगिकता लंबे समय तक बनी रहती है। ऐसी ही एक कृति मंज़ूर एहतेशाम  का उपन्यास ‘सूखा बरगद’ भी है। आज इस उपन्यास की समीक्षा कर रही हैं राखी कुमारी। राखी ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से हिंदी विषय में स्नातकोत्तर किया है, वर्तमान में बिहार के एक स्कूल में हिंदी पढ़ाती हैं- अनुरंजनी ================================ सूखा बरगद : धार्मिक कट्टरता के बीच उम्मीद की एक किरण          भारत के इतिहास के पन्नों में विभाजन विभीषिका एक बहुत ही अमानवीय घटना के रूप में दर्ज है| इस विभाजन की त्रासदी को इतिहास के साथ-साथ साहित्य में भी…

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आज 26 नवंबर 2008 मुंबई हमले की 16वीं बरसी है. आजाद भारत के इतिहास में देश पर हुआ यह सबसे बड़े आतंकी हमलों में से एक था. इस हमले में 18 सुरक्षाकर्मियों सहित 166 लोग मारे गए थे और 300 से ज्यादा लोग घायल हुए थे. भारत की आर्थिक राजधानी पर हुए इस हमले की कड़वी स्मृतियां आज भी देश के मन में एक घाव है. एक शहर को बंधक बनाकर उसे दहशत और आतंक के साए में कैद करने के यह काले दिन देश के स्मृति पटल पर भी गहरे घाव की तरह अंकित है. सारंग उपाध्याय न केवल…

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कल साहित्य आजतक में यतीन्द्र मिश्र के कविता संग्रह ‘बिना कलिंग विजय के’ का लोकार्पण हुआ। वाणी प्रकाशन से प्रकाशित इस संग्रह की एक कविता ‘भामती’ पर यह लेख लिखा है कुमारी रोहिणी ने। रोहिणी कोरियन भाषा पढ़ाती हैं तथा हिन्दी में लिखती हैं- मॉडरेटर ============================ आज तक हम कलिंग विजय की गाथा गाते आ रहे हैं। कलिंग अब केवल इतिहास नहीं बल्कि हमारी भाषा और संस्कृति के लिए उपमा की तरह है। ऐसे समय में जब हासिल का अर्थ केवल और केवल जीत होकर रह गया है, हमारे सामने ‘बिना कलिंग विजय के’ नाम से किताब आ जाती है।…

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दीपा मिश्रा की कविताएँ उन स्त्रियों का प्रतिनिधित्व करती हैं जिनके मन में कई ऐसे सवाल हैं जिनका उत्तर वह इस समाज से चाहती हैं लेकिन वे उत्तर भी उन्हें नहीं मिलते हैं। साथ ही उनकी कविताएँ में यह स्पष्टता भी है कि स्त्रियों के लिए प्रेम, जो कि सबसे सहज अनुभूति है, उसकी ही अभिव्यक्ति कर पाना उनके लिए सहज नहीं है। प्रस्तुत हैं उनकी सात कविताएँ- अनुरंजनी 1. माँ नदी बन गई यह मेरा दुर्भाग्य ही था कि मेरे पहुँचने तक न माँ का देह बचा था और न ही कोई अवशेष देह को पिता अग्नि को समर्पित…

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हाल में ही राजकमल प्रकाशन से नन्द चतुर्वेदी की रचनावली प्रकाशित हुई है। चार खंडों में प्रकाशित इस रचनावली का संपादन किया है पल्लव ने। रचनावली पर यह टिप्पणी लिखी है प्रणव प्रियदर्शी ने-  ============================ नंद चतुर्वेदी जैसे कवि, गद्यकार, चिंतक और इंसान का समग्र साहित्य एक साथ पाकर मैंने पहले तो खुद को गदगद महसूस किया, लेकिन उसके बाद जब एक-एक कर चारों खंड उठाए तो मन पर एक तरह का आतंक हावी होता महसूस हुआ। वैसा आतंक जैसा तट पर चट्टानों से टकराकर बिखरती लहरें देख आनंदित होते मन को अचानक समुद्र की विशालता और उसकी गहराई का ख्याल आने पर…

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 ‘आहुति’, दौलत कुमार राय की यह कहानी अयोध्या के ‘राम मंदिर’ निर्माण पर आधारित है। दौलत राजनीति विज्ञान के विद्यार्थी हैं, उन्होंने इसी वर्ष उक्त विषय से स्नातकोत्तर किया है।‌ उनकी कहानी के प्रकाशन का यह पहला अवसर है – अनुरंजनी ================================ आहुति शाम के तकरीबन 5 बज रहे होंगे। कलकत्ता शहर से दसियों कि.मी. दूर एक सुदूर गाँव के लिए, देश के किसी भी ग्रामीण इलाके की तरह ये वक़्त आमतौर पर मवेशियों का चारागाहों से घर की तरफ लौटने का होता है। दिसम्बर – जनवरी की कड़ाके की ठंड में यूँ भी इस वक़्त तक लोग अपने कामों से…

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