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आगामी आठ अगस्त को दिल्ली के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में मनोहर श्याम जोशी स्मृति व्याख्यानमाला किया आयोजन किया जा रहा है। उसी को ध्यान में रखते हुए हिन्दी के वरिष्ठ लेखक ज्योतिष जोशी का यह स्मृति लेख पढ़िए जिसमें उन्होंने मनोहर श्याम जोशी के लेखन के सम्यक् मूल्यांकन का बहुत सुंदर प्रयास किया है- ================================== मनोहर श्याम जोशी आधुनिक हिंदी साहित्य में अपने विस्तार में वैश्विक समझ के लेखक थे। अनेक राहों से गुजरते हुए इक्कीस वर्ष की अवस्था में वे पत्रकारिता में आये थे। इसके पहले मात्र अट्ठारह वर्ष की उम्र में उनकी पहली कहानी प्रकाशित हुई, पर उनकी…

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आदित्य पांडेय की कविताओं के प्रकाशन का यह पहला अवसर है। आप सब भी पढ़ सकते हैं- अनुरंजनी ============================================ मैंने खुद को उतना नहीं बचाया जितना कि तुमने मुझे बचाने के प्रयास किए अनगिनत बार…सड़क परबंद दरवाज़ों के भीतर या पार तुमने बचाया,छुपाया, उघारा, उघरे बदन प्रेम कियाऔर जाने दिया मेरे बदन से निकलने वाली खुशबू पर तुम्हारे डाले गए सेंट का लिहाफ़ हैकई चलते रुकते चीरते बच जाते लिफ़ाफ़ेमुझे पीले रंग और नीली स्याही से ही पहचानते हैंऔर मैं खुद को एक निश्चित पते पर पहुँच जाने से…तो तुम समझ गई होगीबात सीधी है मैं खुद को नहीं जान पाता कभी भीतुम्हारे अतिरिक्त… 2. एक…

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सल्तनतकालीन किरदार मलिक काफ़ूर पर युगल जोशी का उपन्यास आया है ‘अग्निकाल’। पेंगुइन से प्रकाशित इस उपन्यास की समीक्षा लिखी है डॉ मेहेर वान ने। आप भी पढ़ सकते हैं-=============================इतिहास तथ्यों और आंकड़ों का एक संकलन मात्र नहीं हो सकता। इतिहास के साथ एक बड़ी चुनौती यह भी है कि इसे विजेता-पक्ष ही मुख्य रूप से लिखता आया है या इतिहास का वही पक्ष प्रचलन में आ पाता है जिसके साथ सत्ता हो। इतिहास के विशेषज्ञ अक्सर इतिहास को एक दिशा में जाने वाली संकरी पगडंडी की तरह पेश करते आए हैं। इसके विपरीत ऐतिहासिक घटनाएं हमेशा तमाम संभावित दृष्टिकोणों…

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आज पढ़िए युवा लेखक प्रचण्ड प्रवीर का यह व्यङ्ग्य- ========================= प्रेमचन्द जयन्ती के सुअवसर पर एक ख़राब कविता पढ़ने को मिली, जिसका शीर्षक था ‘ख़राब कविता’। वह इतनी ख़राब कविता थी, इतनी ख़राब कविता थी, इतनी ख़राब कविता थी कि उसे ख़राब कहना भी ख़राब की बेइज्जती होगी। इसलिए हमने ख़राब कवि से बातचीत करके इसकी पड़ताल करनी चाही। आप देखेँगे कि हमने कोशिश की है कि ख़राब कविता की चीर-फाड़ की जाए और उसकी ख़राबी को नुमाया किया जाए।ख़राब कविता लिखने वाले से पहला ख़राब सवाल : आपने यह ख़राब काम क्योँ किया?ख़राब कविता लिखने वाले ख़राब कवि का ख़राब…

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1970 के दशक में मनोहर श्याम जोशी ने कमलेश्वर के संपादन में निकलने वाली पत्रिका ‘सारिका’ में दिल्ली के लेखकों पर केरिकेचरनुमा स्तंभ लिखा था ‘राजधानी के सलीब पर कई मसीहे चेहरे’। इस स्तंभ में अज्ञेय, रघुवीर सहाय सहित तमाम लेखकों पर छोटे बड़े केरिकेचर हैं लेकिन सबसे दिलचस्प उन्होंने अपने ऊपर लिखा है। इस तरह का आत्म व्यंग्य आजकल देखने में नहीं मिलता- ==================================== दूसरे व्यक्ति हैं श्री मनोहर श्याम जोशी जो पुत्रवतियों को कोसने के इस पवित्र आयोजन में बतौर निपूती सहर्ष शामिल हुए हैं। आप अधूरी रचनाओं के धनी हैं और शायद इसीलिए उन्हें पूरा बहुत नहीं…

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प्रत्येक व्यक्ति की यौनिकता उसके सामाजिक परिवेश में ही निर्मित-प्रभावित होती है। ज्योति शर्मा की कहानी ‘चिकनी’ भी इस निर्मिति को बखूबी प्रस्तुत करती है, जहाँ बात है स्त्री-यौनिकता की। इस तरह की रचनाओं पर प्रायः अश्लील होने के आरोप लगते हैं लेकिन हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि इस तरह के मूल्य पूर्णतः व्यक्तिगत होते हैं, वह भी हमारे परिवेश से ही निर्मित होता है। इससे पूर्व ज्योति की कविताएँ हम जानकीपुल के अतिरिक्त विभीन्न पत्रिकाओं में पढ़ते आए हैं, आज उनकी कहानी पढ़िए, ‘चिकनी’ – अनुरंजनी ================================   चिकनी देखिए मेरी मजबूरी है कि मैं ‘क्लीन…

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आज पढ़िए अशोक कुमार की कविताएँ। यह कविताएँ वर्तमान समय की उन प्रवृत्तियों की ओर ध्यान ले जाती हैं जिनमें हम सब जीने के लिए बाध्य हैं। जहाँ हर क्षण हम संदेह में जी रहे हैं, निराशा, दुःख के साथ ही हमारा जीवन चल रहा है। जीवन, यानी सोचते रहने का नाम, अशोक कुमार का यही काम उनकी इन कविताओं में भी देख सकते हैं। यह रही कविताएँ-   1.  डर अंधेरा इतना नहीं हैन भीतर न बाहर!फिर भी मन की किसी भीतरी दीवाल परकोई अदृश्य भयदस्तक देता रहता है लगातार एकांत मे होता हूँतो ऐसा लगता है-कि मानों नाउम्मीदीयों के भय सेमौन हो…

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वह एक ऐसी सतह पर था जिसके ऊपर उठना ही नहीं चाहता था मित्र लेखक शशिभूषण द्विवेदी के निधन के बाद मैंने उसको याद करते हुए यह लेख ‘हंस’ में लिखा था। आज उसकी जयंती है तो इसे आप भी पढ़ सकते हैं- ======================= शशिभूषण द्विवेदी के निधन के बाद फेसबुक पर जब लोग बड़ी तादाद में उसको श्रद्धांजलि दे रहे थे मुझे गोविंद निहलानी की फ़िल्म ‘पार्टी’ याद आ रही थी। फ़िल्म में एक वरिष्ठ नाटककार के सम्मान में पार्टी दी जाती है। उस पार्टी में अनेक युवा-वरिष्ठ लेखक मौजूद हैं। लेकिन अमृत मौजूद नहीं है। धीरे धीरे उस…

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आज पढ़िए प्रियंका चोपड़ा की आत्मकथा ‘अभी सफ़र बाक़ी है’ का एक अंश। यह किताब पेंगुइन स्वदेश से प्रकाशित हुई है- ======================================== साल 2000 मिलेनियम ईयर था और जजों का पैनल बहुत ही स्पेशल था : प्रदीप गुहा जिन्हें हम सब तब तक पीजी कहने लगे थे; मीडिया बैरन सुभाष चंद्रा; सुप्रसिद्ध एक्टर वहीदा रहमान; फ़ैशन डिज़ाइनर कैरोलिन हर्रेरा; स्वारोवस्की क्रिस्टल्स के मार्कस स्वारोवस्की; क्रिकेटर मोहम्मद अज़हरूद्दीन; पेंटर अंजलिइला मेनन और कई और लोग। कंपीटीशन से पहले कई कुछ और छोटे-छोटे कंपीटीशंस भी होते थे जैसे—मिस परफेक्ट10, मिस कन्जीनिअलिटी, स्विमसूट और टैलेंट। मैं उन में से कोई भी नहीं जीती।…

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प्रवीण कुमार झा हरफ़नमौला लेखक हैं। उनकी नई किताब ‘स्कोर क्या हुआ है?’ पढ़ते हुए इस बात पर ध्यान गया। वे कई साल से इस किताब पर काम कर रहे थे और यह कहने में मुझे कोई हिचक नहीं है कि हिन्दी में यह अपने ढंग की पहली किताब है। फ़िलहाल आप वाणी प्रकाशन से प्रकाशित इस किताब का अंश पढ़िए-====================== खेल भी एक कला है। संगीत-नृत्य की तरह। जैसे नृत्य की मुद्रायें होती है, वैसे ही खेल में भी भिन्न-भिन्न मुद्राएँ होती है। बल्ले से गेंद के टकराने से संगीत की उत्पत्ति होती है, जैसे सितार का कोई तार छेड़ा…

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