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जानकी पुल की युवा संपादक अनुरंजनी ने संपादन से जुड़े अपने अनुभवों को साझा किया है। आप भी पढ़ सकते हैं। ज्ञानवर्धक है और रोचक भी- प्रभात रंजन  ========================================= संपादक के तौर पर प्रकाशित अनुभवों की अगली कड़ी में यह रचना-केंद्रित अनुभव है। जैसा कि पहले प्रकाशित अनुभव में इसका ज़िक्र हुआ है कि पढ़ने के लिए बहुत कुछ मिला, सिलेबस से बाहर बहुत कुछ। उन रचनाओं में विभिन्न विधाएँ रहीं लेकिन इसमें प्रमुखता कविता, कहानी और समीक्षा की ही रही। इन तीनों विधाओं से गुजरते हुए कई तरह की बातें सामने आईं। सबसे पहले कविताओं के बारे में- 1.जानकीपुल…

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समकालीन शायरों में इरशाद ख़ान सिकन्दर का लहजा सबसे अलग है। सादा ज़ुबान के इस गहरे शायर का नया संकलन आया है ‘चाँद के सिरहाने लालटेन’। राजपाल एंड संज प्रकाशन से प्रकाशित इस संकलन की चुनिंदा ग़ज़लें पेश हैं- प्रभात रंजन ======================================== 1 शीशे में साज़िशों के उतारा गया हमें चारों तरफ़ से घेर के मारा गया हमें सारे अज़ीम लोग तमाशाइयों में थे जब इक अना के दाँव पे हारा गया हमें गोया कि हम भी आगरे से आये हों मियाँ पहले-पहल तो ख़ूब नकारा गया हमें ख़ुश होइए कि रोइए महफ़िल में यार की जब लौट आये हम तो…

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हाल ही में प्रीति जायसवाल का पहला काव्य संग्रह ‘काँच की गेंद में सपने’ प्रकाशित हुआ है। इस किताब की समीक्षा की है प्रत्युष चन्द्र मिश्रा ने। यह समीक्षा इस किताब के बहाने स्त्री-लेखन पर भी बात करती है, आप भी पढ़ सकते हैं – अनुरंजनी ========================                        काँच की गेंद में सपने:काँच की गेंद में बंद सपनों का विस्तृत आकाश    किताब आने की ख़ुशी घर में किसी नए सदस्य के आने की ख़ुशी की तरह होती है और यह किताब यदि कविता की हो तो बात ही क्या!…

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यतीन्द्र मिश्र को हाल के वर्षों में हम ‘लता सुरगाथा’, ‘गुलज़ार साब’ जैसी किताबों से जानने लगे हैं। लेकिन वे मूलतः कवि हैं। लेकिन इस बार उनका कविता संग्रह तेरह साल के अंतराल पर आया है- ‘बिना कलिंग विजय के’। इसी संग्रह के बहाने यतीन्द्र से मैंने उनकी कविताओं और हिन्दी कविता के वितान को लेकर यह बातचीत की है। आप भी पढ़ सकते हैं- प्रभात रंजन ============================ प्रभात- आप मूलतः कवि हैं और हम जैसे लोगों ने आपको आपकी कविताओं से ही जाना-पहचाना, लेकिन नया कविता संग्रह इतने सालों बाद क्यों आया? ऐसा लगा जैसे आपने कविता को वनवास…

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आज पढ़िए युवा कवि विजय राही की छह कविताएँ। जानकीपुल पर उनके प्रकाशन का यह पहला अवसर है – अनुरंजनी =========================== 1. याद (१) मैं तुम्हारी याद था अब कौन मुझे तुम्हारी जगह याद करे  मैं तुम्हारा प्यार था अब कौन मुझे तुम्हारी जगह प्यार करे  मैं तुम्हारे गले का हार था अब कौन मुझे तुम्हारी जगह पहने मैं तुम्हारी जान था अब कौन मुझे तुम्हारी जगह अपनी जान कहे तुम्हारे बग़ैर मैं निपट अकेला हूँ  तुम कब आओगी  कब अपने हाथों से अमरूद खिलाओगी  मैं कब से तुम्हारी बाट जोहता हूँ  कब तुम उस मोड़ पर आकर मेरा…

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आज पढ़िए संयुक्ता त्यागी की पाँच कविताएँ। इन कविताओं में एक तरफ़ स्त्री की वास्तविक स्थिति का चित्रण है, आत्मसंवाद है तो दूसरी तरफ़ उन वास्तविक स्थितियों पर सवाल भी हैं और उनसे बाहर निकल, स्वतंत्र जीवन जीने का आह्वान भी है- अनुरंजनी =============================== 1. वैधव्य माथे पर बाकी रह गया है जो बिंदी का गहरा निशान अब कभी नहीं जाएगा, वो चिन्ह है कि कभी यहाँ लाल बिंदिया दमकती थी, जिसकी जगह अब छोटी काली बिंदी ने ज़रूर ले ली है लेकिन उस खालीपन को नहीं भर सकी है! उसका खालीपन… उसकी आँखों का सूनापन… उसकी रिक्तता…वैधव्य है! क्या…

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दिनांक 15 दिसंबर 2024 को यह खबर सोशल मीडिया पर फैल गई कि उस्ताद ज़ाकिर हुसैन  गुज़र गए। ना जाने कितने संगीत-प्रेमियों के वे चहेते रहे होंगे, अब भी रहेंगे। आज उन्हीं प्रशंसकों में से एक, आनंद कुमार अपने जुड़ाव को हमारे साथ साझा कर रहे हैं। आनंद कुमार स्वयं तबला वादक हैं तथा वर्तमान में  केंद्रीय विद्यालय, मिज़ोरम में संगीत शिक्षक के पद पर कार्यरत हैं- अनुरंजनी =========================================================== ‘उस्ताद ज़ाकिर हुसैन :1951 – फॉरएवर’ मैं शायद पाँच साल का था जब मैंने पहली बार ‘उस्ताद’ शब्द सुना। ‘ वाह! उस्ताद वाह’… उस ‘ताज महल चाय’ के प्रचार में। उसी…

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कल प्रसिद्ध फ़िल्मकार श्याम बेनेगल का निधन हो गया। वे समांतर सिनेमा के पर्याय थे। उनकी फ़िल्म मंथन के बहाने उनकी सिनेमा कला पर यह लेख लिखा है कवि-लेखक यतीश कुमार ने-  ======================================== साठोत्तरी कहानी, यानी बीसवीं शताब्दी के साठ के दशक और सातवें दशक यानी 1960 से 1970 के बीच लिखी कहानियों की प्रमुख धारा पूरी तरह अकहानी आंदोलन, जीवन के प्रति अस्वीकार, अजनबीपन, निरर्थकता बोध परंपरा का पूर्ण नकार, यौन उन्मुक्तता, शिल्पगत अमूर्तता जैसे तत्वों से लबरेज़ है। समय के इसी सोपान पर अकविता ने भी अपनी जगह बनायी और परिस्थितियों द्वारा प्रदत्त सृजन पर सभी बुद्धिजीवियों का…

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बाल साहित्य मेँ आज हम पढ़ते हैँ सुप्रसिद्ध कवि प्रभात की कहानी ‘चींटी की तबीयत’। ********************** चींटी की तबीयत चींटी की तबीयत खराब हो गई। उसे शक्कर का एक दाना तोड़कर खाने को दिया। पर उससे खाया न गया। फिर सूजी का एक दाना दिया। वह भी रखा ही रहा। बछड़ा, बछेरा और मेमना उसके दोस्त थे। वे उससे मिलने गए। चींटी पहाड़ पर एक खण्डहर की टूटी दीवार में रहती थी। चींटी के दोस्तों ने पहाड़ चढ़ा। वे चढ़ाई में जगह-जगह गिर पड़ रहे थे। गिरते तो गाते- गिरे तो गिरे पर लग क्यों गई हमारी तो जान ही…

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प्रस्तुत हैं भावना झा की कुछ कविताएँ- अनुरंजनी ============== 1. नींद में स्त्री   इस क्षण वह गहरी नींद में है बड़ी मशक्कत से सारी मसरूफ़ियत, चिंताओं और सारे ताम- झाम को बहलाया-फुसलाया है किसी  हठी बच्चे की तरह । जैसे एक अंतराल के बाद वाक्य में   आता हो अल्प विराम   मोहलत पाते ही वैसे  उनींदी पलकों पर दिन भर की श्रांति ने हाजिरी दी है; अभी खदेड़े गए हैं व्यथा, विषाद, पीड़ा दूर कहीं  इस अवधि देह व आत्मा भी उसकी  किसी चोट या जख्म की  तसदीक़ नहीं करेंगे  इस वेला ताने ,नसीहतें या कोई समझाइश नहीं फटकेगें उसके इर्द-गिर्द…

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