कन्नड़ भाषा की वरिष्ठ लेखिका बानू मुश्ताक़ की किताब ‘हार्ट लैंप’ को इंटरनेशनल बुकर प्राइज़ देने की घोषणा हुई है। जिसका अनुवाद किया है दीपा भास्ति ने। इसी पुरस्कार पर पढ़िए कोरियन भाषा की विशेषज्ञ कुमारी रोहिणी की यह टिप्पणी। इस लेख के लिए उन्होंने बीबीसी और बुकर प्राइज़ के वेबसाइट के स्रोतों का इस्तेमाल किया है- मॉडरेटर ================= पिछले दिनों अपनी किताब ‘साहित्य के मनोसंधान’ पर आयोजित चर्चा में प्रसिद्ध वरिष्ठ लेखक मृदुला गर्ग ने कहा कि ‘लिखे का ड्राफ्ट क्या होता है मैं समझ नहीं पाती! कहानी-उपन्यास एक बार लिखी जाती है, और आप उसे एक बार ही लिखते…
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प्रसिद्ध लेखिका मृदुला गर्ग के निबंधों का संग्रह हाल में ही पेंगुइन स्वदेश से प्रकाशित हुआ है- साहित्य का मनोसंधान। इस पुस्तक के शीर्षक निबंध का एक अंश पढ़िए, जो मनोविज्ञान और साहित्य को लेकर है- मॉडरेटर ===================================== हर रचनात्मक लेखक कुछ हद तक मनोविश्लेषक का काम करता है; कम-से-कम उसका संबंध मनोवैज्ञानिक पड़ताल से होता है; भले व्यावहारिक रूप से प्रेक्टिस करने वाले मनोविश्लेषक, उसकी चेष्टाओं को अनाड़ी का दखल मानें। यानी जितना अपने पात्रों के आचार-व्यवहार को गढ़ने के लिए, साहित्यकार, मनोवैज्ञानिक सिद्धांतों से उधार लेता है, उतना ही मनोविज्ञान, अपने सिद्धांत गढ़ने के लिए साहित्य से उधार…
युवा कवि अंचित ने यह लेख लिखा है भारतीय मूल के अंग्रेज़ी कवि आगा शाहिद अली पर। आगा शाहिद अली का देहांत बहुत कम उम्र में हो गया लेकिन वे अंतरराष्ट्रीय ख्याति के कवि थे। एक समय में भारतीय अंग्रेज़ी कविता के सबसे लोकप्रिय नाम। आपो अंचित का यह लेख पढ़िए- मॉडरेटर ================================================== विरह का एक विस्तृत पुरालेख गढ़ने वाले कवि आगा शाहिद अली (यह लेख अपने प्रिय और आदरणीय शिक्षक प्रोफ़ेसर शंकर दत्त को समर्पित है) कुछ कवियों से ज़िंदगी में तब मुलाक़ात होती है जब ज़िंदगी का सपना टूटना तो दूर, पूरा बना भी नहीं होता।जैसे आपके बगीचे…
प्रसिद्ध संस्कृतिकर्मी वाणी त्रिपाठी ने आज अपने स्तंभ ‘जनहित में जारी सब पर भारी’ में आज बहुत संवेदनशील विषय उठाया है- क्या अभिनेता-अभिनेत्री के लिए लुक्स ही सब कुछ होता है। क्या इंस्टाग्रामीय युग में कला के ऊपर लुक्स भारी पड़ता जा रहा है। दिखना ही एकमात्र गुण रह गया है? आइये पढ़ते हैं- मॉडरेटर ======================= मनोरंजन की दुनिया में चमक-दमक और आकर्षण का एक सुनहरा पर्दा है, जो बाहर से सब कुछ परियों की कहानी जैसा दिखाता है। लेकिन इस पर्दे के पीछे, एक और दुनिया है—जहां असुरक्षा, सतही मानक, और ‘परफेक्ट इमेज’ का निरंतर दबाव कलाकारों को तोड़ने…
अरुण देव समकालीन कविता के महत्वपूर्ण हस्ताक्षर हैं। इसी साल उनका कविता संग्रह आया है ‘मृत्यु कविताएँ’। जब से संग्रह प्रकाशित हुआ है इसको लेकर लगातार चर्चाएँ हो रही हैं। राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित इस संग्रह की आज विस्तृत समीक्षा पढ़िए। लिखा है प्रोफ़ेसर रवि रंजन ने- मॉडरेटर ============================================== अरुण देव समकालीन हिन्दी कविता के एक उल्लेखनीय कवि हैं. अब तक उनके चार कविता संग्रह प्रकाशित हैं: ‘क्या तो समय’, ‘कोई तो जगह हो’, ‘उत्तर पैगम्बर’ और ‘मृत्यु कविताएँ’. इसके अलावा उन्होंने अनेक पुस्तकों का सम्पादन भी किया है. आज के डिज़िटल युग में हिन्दी की संभवत: सर्वश्रेष्ठ वेब पत्रिका…
ईमेल में रोज़ाना रचनाएँ आती रहती हैं। लेकिन कभी कभी ऐसी रचना आ जाती है कि मेरे मन का संपादक प्रफुल्लित हो जाता है। प्रज्ञा विश्नोई की कहानियाँ जब मेल में आई तो उनको पढ़ते ही बहुत प्रभावित हुआ। आजकल कहानियों में प्रयोग कम होते हैं, समकालीन लेखन में सपाटबयानी बहुत बढ़ गई है। लेकिन इस कहानी की अंतर्पाठीयता ने मुझे बहुत प्रभावित किया। प्रज्ञा पंजाब नेशनल बैंक में आईटी मैनेजर हैं और वनमाली समेत अनेक पत्रिकाओं में उनकी कहानियाँ प्रकाशित हो चुकी है। आप यह कहानी पढ़िए- मॉडरेटर ======================================================= कहानी १: शीर्षक: जलती चींटियों का गीत मैं एक नवोदित…
लिपिका भूषण एक अनुभवी मार्केटिङ् विशेषज्ञ हैँ, जिन्होंने प्रकाशन उद्योग मेँ अठारह साल से अधिक समय तक काम किया है। उन्होंने 2013 में ‘मार्केट माई बुक’ नामक डिजिटल मार्केटिंग एजेंसी की स्थापना की, जो लेखकों और प्रकाशकों के लिए सेवाएँ प्रदान करती है। वे ‘पेंगुइन रैंडम हाउस’ के साथ भी समय-समय पर बतौर सलाहकार सेवाएँ देती रहीं हैं इससे पहले, लिपिका हार्पर कॉलिन्स मेँ वरिष्ठ मार्केटिङ् प्रबन्धक के रूप में कार्यरत थीँ। उनकी विशेषज्ञता के कारण, उन्होंने कई लेखकोँ के साथ सफलतापूर्वक काम किया है, जिससे वे प्रकाशन क्षेत्र मे एक सम्मानित नाम बन गई हैँ। इन दिनोँ उनका पॉडकास्ट…
गुंजन उपाध्याय पाठक कविता-कहानी लिखती रहती हैं, विभिन्न वेब पोर्टल पर उनकी रचनाएँ प्रकाशित होती रही हैं, जानकीपुल पर उनकी कविताओं के प्रकाशन का यह प्रथम अवसर है – अनुरंजनी ============================= 1. आवारा उसकी नसों में फड़कती जुगनुओं कि आत्महत्या का पता आज अलसुबह फर्श की चीखती सिसकी से लगा रात न जाने किस लम्हें में इतने दिनों की स्थगित आत्महत्या पर झिड़क दिया था पूस की चांदनी ने बिस्तर पर खींची रौशनी नहीं थी खरोंची गई ख्वाहिशें थीं कौन संभालेगा? कि विभित्सता को बहुत पहले से जानती थी इसीलिए छांह-छांह चलती मृत्यु की परिकल्पना में उम्र जिया अब जाकर…
आज उस लेखक जन्मदिन है जिसने वहशत के अंधेरों में इंसानियत की शमा जलाई, जिसका लेखन हमारे इतिहास के सबसे भयानक दौर की याद दिलाता है, उस दौर की जब इंसान के अन्दर का शैतान जाग उठा था. उसी सआदत हसन मंटो को याद कर रही हैं जानी-मानी लेखिका बाबुषा कुछ अलग अंदाज में- जानकी पुल. ======================= सलामी मैं उसे लगातार नहीं पढ़ सकती। वो मुझे सन्न छोड़ जाता है। मुझ जैसों को ज़िंदा रहना हो तो उस जैसे से छः -आठ महीने में एक बार मिलना ठीक रहता है। इससे ज्यादा मुलाकातें सेहत के लिए ख़तरा हैं। कभी कभी…
हिन्दी के प्रख्यात लेखक कमलेश्वर की कहानी पढ़िए- कामरेड। 1948 में लिखी इस कहानी में उन्होंने एक वामपंथी संगठन के कार्यकर्ता का छद्म उदघाटित किया है। यह शायद कमलेश्वर जी की पहली प्रकाशित कहानी है और इसको मैंने राजपाल एंड संज से प्रकाशित ‘कमलेश्वर समग्र कहानियाँ’ से लिया है। बहुत अच्छी कहानी है- मॉडरेटर ================================ “लाल हिन्द, कामरेड!” एक दूसरे कामरेड ने मुक्का दिखाते हुए कहा । ‘लाल हिन्द’ कहकर उन्होंने भी अपना मुक्का हवा में चला दिया। मैं चौंका, और वैसे भी लोग कामरेडों का नाम सुन कर चौंकते हैं! वास्तव में किसी हद तक यह सत्य भी है…