कुमाऊँ की होली ख़ास होती है। जब तक मेरे गुरु मनोहर श्याम जोशी जीवित थे कुमाऊँ की होली का रंग हर साल देखता रहा। आज जब दिल्ली विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान की प्राध्यापिका शुभ्रा पंत कोठारी का यह आलेख पढ़ा तो वे दिन याद आ गये- प्रभात रंजन ============================== हमारे कुमाऊँ में होली सिर्फ़ रंग से सराबोर नहीं है, उसका पक्का रंग उसके पक्के सुर और ताल में है या कहूँ था क्योंकि ये रंग फीके पड़ने लगे हैं। होली कुमाऊँनी समाज का अंतरंग रही और इस समाज को प्लेटो…
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आज सुबह मैंने अपने फ़ेसबुक पोस्ट में यह लिखा कि हिन्दी में होली विषयक कविताएँ क्यों नहीं हैं? इस पर मेरे एक पुराने छात्र, जो अब बनारस में किसी आचार्य के शोध छात्र हैं, ने शोध पश्चात घण्टाकर्ण पंडित, ६९/२, कर्णघंटा, वाराणसी की कविताएँ भेजीं और लिखा कि सर आप हिन्दी में लोकप्रिय साहित्य का झंडा उठाते फिरते हैं लेकिन माफ़ कीजिएगा शोध करना अब आपने छोड़ दिया है। ख़ैर, अपने पूर्व छात्र का उत्तर बाद में दूँगा। पहले आप ये कविताएँ पढ़िए। शोध छात्र ने मेल पर घण्टाकर्ण पंडित की यह तस्वीर भेजी है। किन्हीं सज्जन के पास अगर…
संस्कृतिकर्मी वाणी त्रिपाठी ने आज अपने स्तम्भ ‘जनहित में जारी, सब पर भारी’ में बाल साहित्य की ऐतिहासिकता और समकालीन संदर्भों में उसकी प्रासंगिकता पर यह सुंदर टिप्पणी लिखी है। वाणी त्रिपाठी ने बच्चों के लिए ‘Why Can’t Elephants be Red?’ नाम से पुस्तक लिखी थी, जिसका हिन्दी अनुवाद हाल में ही प्रकाशित हुआ है ‘क्यों नहीं हो सकते हाथी लाल?’ वाणी प्रकाशन से प्रकाशित इस पुस्तक का सरस अनुवाद किया है अदिति माहेश्वरी गोयल ने। आप यह लेख पढ़िए और सोचिए कि बच्चों के लिए क्या लिखा जाना चाहिये, किस तरह लिखा जाना चाहिये- मॉडरेटर =============================== प्राचीन काल से…
हाल में ही वरिष्ठ लेखक पंकज सुबीर का कहानी संग्रह राजपाल एंड संज प्रकाशन से आया है- खैबर दर्रा। इस संग्रह की कहानियों पर यह लेख लिखा है दीपक गिरकर ने। आप भी पढ़िए- मॉडरेटर ======================================= हिंदी के सुपरिचित कथाकार और प्रसिद्ध उपन्यास “अकाल में उत्सव” और “जिन्हें जुर्म-ए-इश्क़ पे नाज़ था” के लेखक श्री पंकज सुबीर एक संवेदनशील लेखक होने के साथ एक संपादक भी हैं। हाल ही में इनका नया कहानी संग्रह ख़ैबर दर्रा प्रकाशित होकर आया है। पंकज जी के लेखन का सफ़र बहुत लंबा है। पंकज जी की प्रमुख रचनाओं में “ये वो सहर तो नहीं”, “अकाल…
साल 2025 के लिए इंटरनेशनल बुकर प्राइज के लांगलिस्ट की घोषणा हो चुकी है। साल 2022 के बाद एक बार फिर से एक भारतीय भाषा की लेखिका का नाम इस सूची में नमूदार है। 25 फ़रवरी 2025 को 76 वर्षीय बानू मुश्ताक़ इस सूची में शामिल होने वाली कन्नड़ भाषा की पहली लेखक हैं, जिन्हें अंग्रेज़ी में अनूदित उनके कहानी संग्रह ‘हार्ट लैंप’ के लिए इस पुरस्कार के लिए नामित किया गया है। ‘हार्ट लैंप’ बानू का कहानी संग्रह है जिसमें कुल बारह कहानियाँ हैं। संग्रह में शामिल सभी कहानियाँ 1993 से 2023 के बीच लिखीं गई हैं। कन्नड़ से…
स्मिता सुंदरम एक शिक्षिका, शोधकर्ता और पर्यावरण कार्यकर्ता हैं, जो *सस्टेनेबिलिटी, कार्बन डाइऑक्साइड बायो-सीक्वेस्ट्रेशन, और पारंपरिक ज्ञान प्रणाली* पर कार्य कर रही हैं। उन्होंने *जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU), नई दिल्ली* से पर्यावरण विज्ञान में पीएच.डी. प्राप्त की है और वर्तमान में *जाकिर हुसैन दिल्ली कॉलेज (सांध्य), दिल्ली विश्वविद्यालय* में सहायक प्रोफेसर के रूप में कार्यरत हैं।उन्होंने *कई शोध पत्र प्रकाशित किए हैं* और अपने *शोध व सामाजिक कार्यों के लिए “एनवायर्नमेंटल एक्सीलेंस अवॉर्ड”* सहित कई सम्मान प्राप्त किए हैं।आप उनका यह लेख पढ़िए- मॉडरेटर =================================================== प्राचीन भारतीय ग्रंथों में कहा गया है—”यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः”, अर्थात जहाँ नारी…
युवा लेखिका दिव्या विजय की कहानियाँ तो हम पढ़ते ही आये हैं। अक्सर ही उनकी कहानियाँ बिना किसी अतिरिक्त शोर के महत्त्वपूर्ण और ज़रूरी बातें कह देने में सफल होती रही हैं। आज अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर पढ़िए उनकी डायरी ‘दराज़ो में बन्द ज़िन्दगी’ का एक अंश, और सोचिए कि वास्तव में ज़मीनी स्तर पर महिलाओं के लिए कुछ बदला है या बदलने की सूरत नज़र आती है। यह किताब राजपाल एंड संस से प्रकाशित हुई है। – कुमारी रोहिणी ========================= कल तय हुआ था, सब सिनेमा देखने जाएँगे। मैं जल्दी उठकर तैयार हो गयी बाहर आयी तो…
आज अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस है। आज के दिन पढ़िए बहुचर्चित और लोकप्रिय लेखिका तसलीमा नसरीन का लेख ‘महिला दिवस’। बांग्ला से इस लेख का हिन्दी अनुवाद किया है जानेमाने अनुवादक और कवि उत्पल बनर्जी ने। तसलीमा नसरीन के लेखों का यह संग्रह दो खंडों में ‘स्त्री अधिकार और क़ानून’ नाम से राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित है।- कुमारी रोहिणी =============================================== महिला दिवस की सुबह कुछ फ़ोन आए। सभी ने कहा, ‘हैपी वीमन्स डे’। ठीक जिस तरह वे लोग कहते हैं ‘हैपी वैलेन्टाइंस डे’ या फिर ‘हैपी मदर्स डे’। वैलेन्टाइंस डे या मदर्स डे पर हैपीनेस या सुख की बात होती है।…
आज अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर पढ़िए कुमारी रोहिणी का यह लेख जो स्त्री और भाषा को लेकर है। कुमारी रोहिणी कोरियन भाषा की अध्येता हैं और कोरियन, हिन्दी तथा अंग्रेज़ी में नियमित रूप से लिखती हैं- मॉडरेटर ========================== महिलाओं की भाषा या भाषाओं में महिलाएँ, ये दोनों ही विचार ऐसे हैं जो अक्सर मुझे अपनी ओर खींचते रहते हैं। इसके दो कारण हो सकते हैं, एक तो यह कि मैं ख़ुद एक स्त्री हों और दूसरा यह कि स्त्री होने के साथ ही अपना काम भी भाषाओं के इर्द-गिर्द ही है। भाषा चाहे देशी हो, मातृ हो या विदेशी, तीनों…
आज पढ़िए युवा लेखिका अदिति भारद्वाज की कहानी। अदिति दिल्ली विश्वविद्यालय से शोध कर रही हैं, आलोचना के क्षेत्र में सक्रिय हैं और हाल में ही आलोचना पत्रिका में प्रेमचंद की कहानी ‘कफ़न’ पर उनका आलेख प्रकाशित हुआ जिसकी बहुत प्रशंसा हुई। आप यह कहानी पढ़िए- मॉडरेटर ============================= 1 घर से निकल जब गली में आती है तो रोज़ की वही कुछ चिर-परिचित झलकियां। पड़ोस में बन रही अट्टालिका में काम-करने वाले मज़दूर बीवी-बच्चों समेत आग के इर्द-गिर्द जमा उसे हसरत से देखते हुए। मानो आग तापने का न्योता। वह मुस्कुराती हुई आगे बढ़ती है। गाड़ियां साफ करता वह नौ-दस…