आज मोनिका कुमार की कविताएँ. मूलतः पंजाबी भाषी मोनिका की कविताओं में निराशा का वह भाव नहीं है जो एक तरह से हिंदी कविता का मूल स्वर बन चुका है. वह जिज्ञासा की कवयित्री हैं. कविता को उत्तर-आधुनिक विद्वानों ने अगर चिंतन की एक शैली कहा है तो दूसरी तरफ प्रश्नाकुलता, जिज्ञासा उसमें संवाद का वह भाव पैदा करती है जो कविता को संवाद की पारंपरिक शैली की ओर ले जाती है. मोनिका की कविताओं को पढते हुए अक्सर लोकगीतों की शैली का ध्यान आ जाता है, लोकधुनों का बैकग्राउंड संगीत. लेकिन सायास नहीं बड़े सहज ढंग से. यही पहलू उनकी कविताओं में ताजगी भर देता है. आइये ताज़ा अहसासों की इस पारंपरिक कवयित्री को पढते हैं- जानकी पुल.
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1.
च्युइंगम खाना कैसी अभिव्यक्ति है?
च्युइंगम खाते लोगों को देख मैं उत्सुक होती हूँ
उनके चेहरे का हाव-भाव देख ऐसा लगता है
जैसे उनके मुंह में जैज़ संगीत बज रहा हो
मुक्तिगान गाए जा रहे हों
जैसे उनमें अफ़्रीकी अश्वेतों का जीवाश्म हो
जो अमरीका के खेतों में घास काटता हुआ
घरों में केक बनाता हुआ
ऐसे वाद्य यंत्र की कल्पना करता है
ऐसी धुनें खोजता है
जो एक पल के लिए
उसे वहां पहुंचा देती हैं
जहाँ वह जाना चाहता है च्युइंगम खाते हुए लोग मन में कुछ भी सोच लेते हैं
अशिष्ट दिखने और होने के लिए एक च्युइंगम भी काफ़ी है
च्युइंगम खाना गुस्ताख़ी भी हो सकता है
दुस्साहस और अपरिहार्य आत्मविश्वास भी
ऐसा लिखते हुए मुझे वह तिब्बती लड़की याद आ रही है
जो चंडीगढ़ में सैलून में काम करती है
और किसी औरत का मैनीक्योर करती हुई
उसी औरत का पैडीक्योर करते हुए तिब्बती लड़के से सिर्फ
तिब्बती में बात करती है
च्युइंगम खाते लोगों को देख मैं उत्सुक होती हूँ
उनके चेहरे का हाव-भाव देख ऐसा लगता है
जैसे उनके मुंह में जैज़ संगीत बज रहा हो
मुक्तिगान गाए जा रहे हों
जैसे उनमें अफ़्रीकी अश्वेतों का जीवाश्म हो
जो अमरीका के खेतों में घास काटता हुआ
घरों में केक बनाता हुआ
ऐसे वाद्य यंत्र की कल्पना करता है
ऐसी धुनें खोजता है
जो एक पल के लिए
उसे वहां पहुंचा देती हैं
जहाँ वह जाना चाहता है च्युइंगम खाते हुए लोग मन में कुछ भी सोच लेते हैं
अशिष्ट दिखने और होने के लिए एक च्युइंगम भी काफ़ी है
च्युइंगम खाना गुस्ताख़ी भी हो सकता है
दुस्साहस और अपरिहार्य आत्मविश्वास भी
ऐसा लिखते हुए मुझे वह तिब्बती लड़की याद आ रही है
जो चंडीगढ़ में सैलून में काम करती है
और किसी औरत का मैनीक्योर करती हुई
उसी औरत का पैडीक्योर करते हुए तिब्बती लड़के से सिर्फ
तिब्बती में बात करती है
2.
स्त्रियाँ बहुत रोती हैं
दिल टूटने के बाद
इस तरह रखती हैं दिल पर हाथ नरमी से
प्रभु आ गए जैसे उनकी दाहिनी बाज़ू में
उन्हें सांत्वना देने, दुःख बांटने
फिर देखती हैं आँखों का फैला हुआ काजल
एक पल तो अपनी ही आँखों पे मर जाती हैं
सच्ची आँखों का सच्चा काजल
चाहिए इन्हें एक सच्ची नज़र
पोंछती हैं आंखें उसी हाथ से
संकल्प लेती हुईं
वह बचाएंगी अब से इन्हें बुरी नज़रों से
ऐसा सोचते हुए हाथ में कंघी उठाती हैं
बनाती हैं बाल सुलझाते हुए मुश्किलें
बाल टूटे मानो ग़म छूटे
ठीक-ठाक करते हुए सब
जाती हैं सोने के लिए
एक नींद भी काफ़ी होगी
सुबह कुछ ताज़गी के लिए आदतन प्रार्थना करती हैं इक पुरुष प्रभु से
जो सब स्त्रियों का जानी जान है
दिल टूटने के बाद
इस तरह रखती हैं दिल पर हाथ नरमी से
प्रभु आ गए जैसे उनकी दाहिनी बाज़ू में
उन्हें सांत्वना देने, दुःख बांटने
फिर देखती हैं आँखों का फैला हुआ काजल
एक पल तो अपनी ही आँखों पे मर जाती हैं
सच्ची आँखों का सच्चा काजल
चाहिए इन्हें एक सच्ची नज़र
पोंछती हैं आंखें उसी हाथ से
संकल्प लेती हुईं
वह बचाएंगी अब से इन्हें बुरी नज़रों से
ऐसा सोचते हुए हाथ में कंघी उठाती हैं
बनाती हैं बाल सुलझाते हुए मुश्किलें
बाल टूटे मानो ग़म छूटे
ठीक-ठाक करते हुए सब
जाती हैं सोने के लिए
एक नींद भी काफ़ी होगी
सुबह कुछ ताज़गी के लिए आदतन प्रार्थना करती हैं इक पुरुष प्रभु से
जो सब स्त्रियों का जानी जान है
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3.
जब मिलते हो
मुस्कराने से पहले
मैं देखती हूँ
आँखें पूरी हैं
कान साबुत हैं
पीठ सीधी
तुम्हारे पासपोर्ट की तस्वीर में
तुम्हारे दिल की धड़कन रुकी हुई लगती है
तुम्हारे पासपोर्ट की तस्वीर को मैं हमेशा के लिए भूलना चाहती हूँ
तुम्हारी छाती पर ज़ोर से लगी हुई सरकारी मुहर
माफ़ करना! कोई तमगा नहीं लगती अपने मन की बातें मैं गिलहरियों से करती हूँ
मैंने देखा है गिलहरियाँ ही हैं
जिन्हें मेरी बातों में कोई रुचि नहीं
उन्हें दिलचस्पी है सिर्फ रोटी के उन टुकड़ों में
जो स्कूल के बच्चे अपने टिफिन से गिराते हैं
दिन भर कूदो मचाओ उत्पात और करो इंतज़ार
कोई ज़रूरी नहीं इत्मीनान से बैठकर बातें करना
बस अपनी पूँछ को सम्भालो
पेड़ों पर चढ़ते हुए चूंकि पासपोर्ट बन गया है
वीज़ा आने वाला है
चिट्ठी लिखने का वादा मत करना
मैं लिखूंगी इक फ़रियाद
तुम्हारे जाने के तुरंत बाद
मिलना हो हमें अगर फिर कभी
तुम बन जाओ मैं
और मैं बनूं गिलहरी
मुस्कराने से पहले
मैं देखती हूँ
आँखें पूरी हैं
कान साबुत हैं
पीठ सीधी
तुम्हारे पासपोर्ट की तस्वीर में
तुम्हारे दिल की धड़कन रुकी हुई लगती है
तुम्हारे पासपोर्ट की तस्वीर को मैं हमेशा के लिए भूलना चाहती हूँ
तुम्हारी छाती पर ज़ोर से लगी हुई सरकारी मुहर
माफ़ करना! कोई तमगा नहीं लगती अपने मन की बातें मैं गिलहरियों से करती हूँ
मैंने देखा है गिलहरियाँ ही हैं
जिन्हें मेरी बातों में कोई रुचि नहीं
उन्हें दिलचस्पी है सिर्फ रोटी के उन टुकड़ों में
जो स्कूल के बच्चे अपने टिफिन से गिराते हैं
दिन भर कूदो मचाओ उत्पात और करो इंतज़ार
कोई ज़रूरी नहीं इत्मीनान से बैठकर बातें करना
बस अपनी पूँछ को सम्भालो
पेड़ों पर चढ़ते हुए चूंकि पासपोर्ट बन गया है
वीज़ा आने वाला है
चिट्ठी लिखने का वादा मत करना
मैं लिखूंगी इक फ़रियाद
तुम्हारे जाने के तुरंत बाद
मिलना हो हमें अगर फिर कभी
तुम बन जाओ मैं
और मैं बनूं गिलहरी
4.
ब्रेड पर उगी फफूंद
चुपचाप का पेड़ है
जिसकी जड़ें इसके फूलों में हैं
और फूल बीज के भीतर
जिसे सीरतें प्यारी हैं सूरतों से
फफूंद की गंध
हठ की गंध है
जो किसी भी तरह पूरा होना चाहती है
फफूंद की गंध तड़प की गंध है
जो लिफ़ाफ़े से आज़ादी चाहती है दीमक फ़रिश्ते हैं
जो अलमारी से उसकी आखिरी ख़्वाहिश पूछते हैं
शहर की धुआंसी हवा
हमारी देहों पर उगी फफूंद की फूंक है
हमारी देहों की फफूंद
हमारी चुपचाप का पेड़ है
उन चुटकियों का रोष है, जो हमने नहीं बजाई
उस गूँज की निराशा, जिसे तालियाँ चाहिए थीं
देह पर उगती फफूंद से घिन होती है जिन्हें
उन्हें आइनों से भी चिढ़ होती है
हठ की गंध है
जो किसी भी तरह पूरा होना चाहती है
फफूंद की गंध तड़प की गंध है
जो लिफ़ाफ़े से आज़ादी चाहती है दीमक फ़रिश्ते हैं
जो अलमारी से उसकी आखिरी ख़्वाहिश पूछते हैं
शहर की धुआंसी हवा
हमारी देहों पर उगी फफूंद की फूंक है
हमारी देहों की फफूंद
हमारी चुपचाप का पेड़ है
उन चुटकियों का रोष है, जो हमने नहीं बजाई
उस गूँज की निराशा, जिसे तालियाँ चाहिए थीं
देह पर उगती फफूंद से घिन होती है जिन्हें
उन्हें आइनों से भी चिढ़ होती है
5.
ताप जो पाप की तरह चढ़ा
प्रेम की भांति जिस्म को जकड़ लेता है
ज्वर लहू का आधिक्य जुनून है
आततायी है
जो अपनी ही गति को कूटना चाहता है
अपनी ऊष्मा की हद देखना चाहता है
अपनी ललाई का बल परखता है देह एकल द्वीप है
मृत्यु से अपराजित
मृत्यु के जल से घिरा हुआ
मृत्यु से मिलने को अधीर
ज्वर मृत्यु का अभ्यास है
ज्वर से लड़ना जिंदगी का ज्वर से बचना सिखाया जाता है
जैसे जिंदगी से
लहू की ललाई पर भरोसा भी न करो
आसमानों से औषधियों की प्रार्थना भी करो
मृत्यु के आतंक से पराजित भी रहो ज्वर देह का निकटतम धार्मिक अनुभव है
इसीलिए भीषण है
भयानक है
प्रेम की भांति जिस्म को जकड़ लेता है
ज्वर लहू का आधिक्य जुनून है
आततायी है
जो अपनी ही गति को कूटना चाहता है
अपनी ऊष्मा की हद देखना चाहता है
अपनी ललाई का बल परखता है देह एकल द्वीप है
मृत्यु से अपराजित
मृत्यु के जल से घिरा हुआ
मृत्यु से मिलने को अधीर
ज्वर मृत्यु का अभ्यास है
ज्वर से लड़ना जिंदगी का ज्वर से बचना सिखाया जाता है
जैसे जिंदगी से
लहू की ललाई पर भरोसा भी न करो
आसमानों से औषधियों की प्रार्थना भी करो
मृत्यु के आतंक से पराजित भी रहो ज्वर देह का निकटतम धार्मिक अनुभव है
इसीलिए भीषण है
भयानक है
6.
इस ऊब भरी शाम में
वह सब जो उत्साह से साथ जुड़ता है
कर्कश लगता है
अच्छा खाने की सलाह मत दें
स्वाद ऊब का बैरी है
वायलिन सारंगी बांसुरी से कान गिर रहे हैं
अच्छा संगीत भी ऊब की महिमा को कम करता है नल से बहता बेतुका पानी ऊब का सुंदर अनुवाद है
घड़ी की टिक-टिक आपको सावधान नहीं कर रही
असल में उसे आपसे कोई मतलब नहीं
कंप्यूटर के पंखे से निकलती हवा
आपका साथ दे रही है निस्वार्थ
बिल्ली का दिखना शुभ संकेत है
आप सुबह तक इस ऊब के साथ रह सकते हैं
वह सब जो उत्साह से साथ जुड़ता है
कर्कश लगता है
अच्छा खाने की सलाह मत दें
स्वाद ऊब का बैरी है
वायलिन सारंगी बांसुरी से कान गिर रहे हैं
अच्छा संगीत भी ऊब की महिमा को कम करता है नल से बहता बेतुका पानी ऊब का सुंदर अनुवाद है
घड़ी की टिक-टिक आपको सावधान नहीं कर रही
असल में उसे आपसे कोई मतलब नहीं
कंप्यूटर के पंखे से निकलती हवा
आपका साथ दे रही है निस्वार्थ
बिल्ली का दिखना शुभ संकेत है
आप सुबह तक इस ऊब के साथ रह सकते हैं
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