जानकी पुल – A Bridge of World's Literature.

आज सुबह मैंने अपने फ़ेसबुक पोस्ट में यह लिखा कि हिन्दी में होली विषयक कविताएँ क्यों नहीं हैं? इस पर मेरे एक पुराने छात्र, जो अब बनारस में किसी आचार्य के शोध छात्र हैं, ने शोध पश्चात घण्टाकर्ण पंडित, ६९/२, कर्णघंटा, वाराणसी की कविताएँ भेजीं और लिखा कि सर आप हिन्दी में लोकप्रिय साहित्य का झंडा उठाते फिरते हैं लेकिन माफ़ कीजिएगा शोध करना अब आपने छोड़ दिया है। ख़ैर, अपने पूर्व छात्र का उत्तर बाद में दूँगा। पहले आप ये कविताएँ पढ़िए। शोध छात्र ने मेल पर घण्टाकर्ण पंडित की यह तस्वीर भेजी है। किन्हीं सज्जन के पास अगर घंटाकर्ण पंडित की और कविताएँ हों तो उपलब्ध करवाने का कष्ट करें। हम उनका संग्रह प्रकाशित करना चाहते हैं- मॉडरेटर 

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ठठेरों की धुलेंडी

कलईगरों की बीवियों के मचल पड़े जी
ठठेरों की पिचकारियों से ही खेलेंगी
फ़र्रार फ़िरावाँ, फ़ित्ना है, मोटी, लम्बी
पिचकारियों से पीछे हुई थी बेढंगी

“बता रे कैसे पिचकारी का ख़्याल आया
कहाँ से ऐसी मुफ़ीद ईजाद तू लाया”
पूछते पूछते पसीना हो गई काया
“इस पिचकारी का ख़्याल पजामे में पाया”

कहकर ठठेरे ने इज़ारबंद खोल दिया
माशूक़ों को दिखाया भी और बोल दिया
बीच राह हंगामा अब बरपा था लोगों
ठिकाने न रहा बीवियों का माथा लोगों

“हाय, कलईगर को मुई ने भर्तार किया
लख पिचकारी का बाप लगे बेकार किया
ढीला ऊपर ऊपर बस कलई करता है
और कहता है के हमपर बहुत मरता है

भर्तार धोकेबाज़ का मैं हलवा खाऊँ
जो अब कभी उसकी पलँगड़ी मैं चढ़ जाऊँ
ठठेरे ठहर पास बता अपनी पिचकारी
पिचकारी बड़ी बड़ी लाया मैं हूँ बारी

कलई उतरते तो न तुम्हारी देर लगी
मुझसे न बोलो रही अब न तुम्हारी सगी
इज़ारबंद, अंगिया तोशक मेरा तकिया
जो भिंजावेगा उसी को कहूँगी मैं पिया

उसीसे खेलूँगी होली अबके बरस मैं
जिसकी भरी पिचकारी सबसे बड़ी होगी
टेसू भरा होगा फलालेन चढ़ा होगा
ऐसी पिचकारी मेरे लिए खड़ी होगी

जाफ़रान, संदल, गुलाल, लाओ रे रोली
लाओ होली के दिन फ़लकसैर की गोली
डामर, लीद मिट्टी ला गोबर और लेंडी
मनेगी ऐसे आज ठठेरे की धुलेंडी

* फ़र्रार फ़िरावाँ- बहुत तेज़।
* हलवा खाना- मृत्युभोज करना।
* फ़लकसैर- आसमान की सैर करानेवाली अर्थात भांग।

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होली की बहारें

होली की बहारें देख बैठ गधैया पे
अन्दर ही खेलती जिनके हुए है जापे
इक दूजे की चड्डी लौंडे देते फाड़े
अँगिया में टेसू डाल जाटनियाँ दहाड़ें

जौलानियों पे है डोकरे भी ज़बरदस्त
बूढ़ियाँ हालाँके खा झकोलियाँ है पस्त
मौलवी ने मार लिया गूजरी का गूझा
गूजरी ने चूम लिया रेपटा ना सूझा

नौब्याहा गाल सालियों से देता रगड़े
दुल्हन देवर का पकड़ इज़ारबंद झगड़े
सुसरे का ये हाल है समधन पे अड़ा है
होलियों से पहले ही दिल आया पड़ा है

फापाकुटनियों का निकल पड़ा कारोबार
झाबड़झल्ले तक पलंग तोड़ने तैयार
झाड़ होके लिपट जाऊँगा अबके होला
आती है देखो मेरी पलक का फफोला

ढोकना शेर सा अम्बरजानी तू उसको
केसर से रंगना चूचियाँ कहेगी किसको
मावे की मुठिया खाई न भांग की गोली
उस गेलचोदे की बोलो क्या हुई होली

* जौलानियों पे आना या जौलानियों पे होना : जोश में आना।
* डोकरे- बूढ़े।
* फापाकुटनी- कुट्टनी, प्रेमी और प्रेमिका को मिलानेवाली रसिकमिज़ाज औरत।
* झाबड़झल्ला- ढीलाढाला।
* झाड़ होके लिपटना- कसकर लिपट जाना, छुड़ाए न छोड़ना।
* ढोकना- छिपकर शिकार करना।
*गेलचोदा- मालवा से सूरत बम्बई पर्यन्त स्त्रीपुरुषों में समानरूप से प्रचलित नर्म गाली।

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नज़्मेहोली

पाजीपरस्त था मैं जो होली पे मैंने
उसकी छातियों से सीना ख़ूब लिपटाया
अचकन, पाजामा, लँगोट उसने उतराया
सब उतार उसकी चोली हमने क्या पाया

काली गाय बछड़ेवाली हो दूध लाकर
आम की लकड़ियाँ पे उसे दिनभर पकाकर
मावा किया अम्माँ से गूझिए तलवाए
चपटे सीने पे तिकोने दो रखे, भाए

बाद दुश्मन ने चोली के बंद बांध लिए
धोके देने को क्या क्या खटकरम है किए
होली की भड़क्के में फ़ितने ने बुलाया
बाल से इज़ारबंद तलक गुलाल लगाया

भाँग के पकोड़े खिलाए शर्बत पिलाया
उसके बाद बदन से लग दिखाई फ़िदाई
फिर फ़ितनाएआलम से दुपट्टा गिराया
कल तक खट्टी कैरी थी ख़रबूज़ा पाया

फिर अकेले में ज़रा ज़रा छेड़छाड़ हुई
इतने में बदलगाम करने तैयार हुई
भलमन कहा न दे सकूँगा बग़लगरमाई
गाँठ खोल कलदार तीन दिखा बोली मुई
तू बयाना पकड़ मैं दूँगी तुझे चुदाई

फ़ीलखाने में हाथी की लीद का बिस्तर
खोल दिया घाघरा एकदम से मय अस्तर
चोली उतारने किसी तरह हुई न राज़ी
हाथ डाला तो कहा “गधड़ा, कुत्ता, पाजी”

बीच मज़े में जब रहा न उसे मुतलक़ होश
फाड़ी चोली ऐसा चढ़ा था मुझको जोश
जो सीना उसका हाथीघर में फ़ाश हुआ
मैं तो बेहोश हुआ हाथी बदभागी मुआ
मस्कूड़ा मार सोती रही पढ़ी ना दुआ
ऐसे जो मुझको बरामद हुए दो गूझे
क्या करूँ खा ही लूँ तब तो बस यहीं सूझे

कहाँ होली मनाने के थे इरादे बड़े
कहाँ पसीने से सिड़े गूझे खाने पड़े
जो होली के रोज़ ये नज़्म हमारी पढ़े
उसका अंग, कारोबार, बाल और बच्चे,
नौकरानी दिन दूने रात चौगुने बढ़े।।

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