आज प्रसिद्ध लेखक संजीव पालीवाल के स्तंभ ‘किताबी बात’ की शुरुआत कर रहे हैं। इस स्तंभ के माध्यम से हम हर बार आपको एक किसी नई लोकप्रिय किताब से रूबरू करवाने की कोशिश करेंगे। इस कड़ी में इस बात का ध्यान भी रखे जाने की कोशिश होगी कि इसे पढ़ने वाले को उस विधा की बारीकियों के बारे में भी जानकारी मिले अपने तरह के इस पहले स्तंभ की पहली कड़ी में आज का उपन्यास है ‘मार्क गिमेनेज‘ का ‘द कलर ऑफ़ लॉ‘। आप भी पढ़िए- मॉडरेटर
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मैं लेखक क्यूं बना। ये सवाल कई बार मेरे ज़ेहन में आता है। कई बार मुझसे पूछा भी जाता है। इसका बेहद सीधा और आसान जवाब है किताब पढ़ने की वजह से। मैंने हर तरह की किताबें पढ़ीं हैं। गंभीर साहित्य से लेकर पॉपुलर फिक्शन तक। जो मेरे मन को भाया वो सब पढ़ा है। लेकिन पॉपुलर फिक्शन वो भी क्राइम फिक्शन हमेशा से मेरे दिल के करीब रहा। साल 2008 को मैं अपने लेखन के लिये एक टर्निंग प्वाइंट मानता हूं। ये वो वक्त है जब मुझे अंदर से ये महसूस हुआ कि मुझे भी लिखना चाहिये। एक हूक उठी लिखने की, और ये हुआ “The Colour of Law” नामक उपन्यास की वजह से।
क्राइम फिक्शन का चस्का मुझे बहुत कम उम्र में लगा था। राजन- इकबाल और राम-रहीम सीरीज़ से होते हुए मैं वेद प्रकाश शर्मा, ओम प्रकाश शर्मा, कर्नल रंजीत और सुरेंद्र मोहन पाठक साहब तक आया। लेकिन जब अंग्रेजी का क्राइम फिक्शन पढ़ना शुरू किया तो जुनून एक अलग लेवल पर चला गया। थ्रिल क्या होता है, प्लॉट कैसा होना चाहिये। कैरेक्टर कैसे- कैसे रचे जाते हैं ये सब समझ आया। एक पाठक के रूप में मुझे लगा कि मेरी ग्रोथ हो रही है। मैं एक नयी दुनिया में जा रहा हूं।
साल 1995 से 2008 के बीच बहुत सारा पढ़ा। हिन्दी भी और अंग्रेज़ी। हिन्दी में साहित्य और अंग्रेज़ी में क्राइम। हिन्दी क्राइम पढ़ना छूट गया क्योंकि मेरा टेस्ट अपग्रेड हो गया था। साल 2008 में नोएडा के ग्रेट इंडिया प्लेस में शायद ओम बुक स्टोर होता था। मैं वहां किताबें खरीदने गया था। वहां दो किताबों का एक सेट दिखा। मैंने वो खरीद लिया. लेखक का नाम था, Mark Giminez. किताबों के सेट में थी “The Colour of Law & The Accused”.
“The Colour of Law” जॉन ग्रिशम के स्टाइल में लिखा गया एक ऩॉवेल है लेकिन कहीं-कहीं इसमें पेरी मेसन की झलक भी मिलती है। मैंने सबसे पहले जॉन ग्रीशम के लीगल थ्रिलर पढ़े थे। “The Pelican Brief” पहली किताब थी जो मैंने पढ़ी। बाद में Julia Roberts & Denzel Washington को लेकर इस पर पिक्चर भी बनी। फिर मैने “The Firm” और “Runaway Jury” पढ़ी। “The Firm” पर भी फिल्म बनी। हीरो रहे Tom Cruise. काफी कुछ पढ़ा फिर हाथ में आये मार्क गिमिनेज़।
तो ‘दि कलर ऑफ लॉ’ कहानी हैं एक वकील Scot Fenney की। जो श्वेत यानी गोरा है। साधारण परिवार में पला बढ़ा है। स्कूल में स्टार फुटबालर रहा तो स्कॉलरशिप मिली औऱ एक बड़े लॉ कालेज से डिग्री लेता है। एक अच्छी लॉ फर्म में नौकरी मिलती है। कम वक्त में कामयाबी आती है। मशहूर हो जाता है। जल्द ही फर्म में पार्टनर भी हो जाता है। उसका फ्यूचर ब्राइट है। रहने को हाई क्लास इलाके में बड़ा सा मैंशन है। तीन फैंसी कारे हैं। खूबसूरत पत्नी है जिसे Trophy Wife कहते हैं। पत्नी हाई सोसाईटी की जान है। नौ साल की एक स्मार्ट बेटी है। जिसे प्यार से ‘बू’ पुकारते हैं। स्कॉट फैनी का काम है साम, दाम, दंड , भेद के ज़रिये अपने क्लाइंट्स के हितों की रक्षा करना। पैसा कमाना उसे अच्छा लगता है।
स्कॉट को ज़िंदगी से कोई शिकायत नहीं है। उसे लगता है कि उसकी ज़िंदगी परफेक्ट है। फिर एक दिन स्कॉट एक सेमिनार में भाषण देने जाता है। एक आदर्श वकील को कैसा होना चाहिये। उसकी समाज के प्रति क्या ज़िम्मेदारियां है। इस विषय़ पर वो एक अच्छी तकरीर देता है। सेमिनार में ज़िला जज सेमुअल बुफोर्ड भी होते हैं। अगले दिन वो स्कॉट को बुलाते हैं और अनुरोध करते हैं कि वो एक नशेड़ी ब्लैक वेश्या शवांडा जोन्स का केस लड़े। स्कॉट एक बुज़ुर्ग जज के अनुरोध को ठुकरा नहीं पाता। ये केस उसे प्रो बोनो लड़ना है यानी बगैर फीस लिये, निःस्वार्थ, चैरिटी या धर्मार्थ। शवांडा जोन्स पर सिनेटर क्लार्क मैकेल के बेटे क्लार्क मैकेल की हत्या का आरोप है। सिनेटर मैकेल खुद को अगले अमेरिकी राष्ट्रपति के रूप में देख रहे हैं। उन्होंने अपनी दावेदारी भी प्रस्तुत कर दी है।
स्कॉट शुरू में चाहता है कि शवांडा अपना जुर्म कुबूल कर ले। ताकी ये केस जल्दी खत्म हो। लेकिन शवांडा कहती है कि वो बेकसूर है। वो अपराध स्वीकार नहीं करेगी। वो स्कॉट को ट्रायल में जाने को कहती है। उधर सिनेटर की भी कोशिश होती है कि इस केस को जल्द से जल्द खत्म किया जाये। ये बात कभी बाहर ना आये कि उनका बेटा ड्रग्स लेता था। नशे में वो औरतों के साथ बलात्कार करता था।
सिनेटर अपनी सारी ताकत लगा देता है। वो चाहता है कि स्कॉट केस ना लड़े। स्कॉट के सीनियर पार्टनर भी उसे यही सलाह देते हैं कि वो डिस्ट्रिक्ट जज की बात को ठुकरा दे।
शवांडा से मिलने के बाद स्कॉट को उसकी कहानी पर यकीन होने लगता है। स्कॉट की अंतरात्मा जाग उठती है। वो केस छोड़ने से इंकार कर देता है। इसी के साथ स्कॉट की बरबादी शुरू हो जाती है। जैसे-जैसे केस आगे बढ़ता है उसे नौकरी और पार्टनरशिप दोनों चली जाती है। बंगला और फैंसी कार उसकी नहीं रहतीं। एक हाई प्रोफाइल अटॉर्नी अचानक सबकी नज़रों से गिर जाता है।
इस जंग में स्कॉट अपना सब कुछ हार जाता है। यहां तक की उसकी पत्नी भी उसे छोड़ कर चली जाती है। रह जाती है तो उसकी बेटी बू। और एक नया मेहमान उसके साथ आकर रहने लगता है। वो है शवांडा की बेटी Pajamae। स्कॉट, बू और Pajamae के बीच एक खूबसूरत रिश्ता कायम होता है।
अंत में केस कौन जीतता है। आप समझ सकते हैं। उपन्यास एक पेज-टर्नर है। इसकी तेज़ गति और सस्पेंस से भरी कहानी पाठकों को शुरू से अंत तक बांधे रखती है। खासकर कोर्ट-रूम के दृश्य बेहद रोमांचक और प्रभावशाली हैं, जो इसे एक बेहतरीन लीगल थ्रिलर बनाते हैं।
इस उपन्यास को पढ़ते-पढ़ते मैं सोच में पड़ गया। नस्लीय भेदभाव, वर्ग और अमेरिकी न्याय व्यवस्था में असमानता जैसे संवेदनशील विषयों का अद्भुत चित्र खींचा गया है इस किताब में। यह किताब पाठकों को इन मुद्दों पर सोचने के लिए प्रेरित करती है, खासकर यह दिखाकर कि कानून का ‘रंग’ हमेशा निष्पक्ष नहीं होता।
ए. स्कॉट फेनी का किरदार भी मेरे भीतर बैठ गया। उसका एक स्वार्थी, महत्वाकांक्षी वकील से नैतिकता और मानवता की ओर बढ़ना बेहद प्रेरणादायक है। उसकी आंतरिक लड़ाई और बदलाव बेहद प्रभावशाली है।
गिमेनेज़ का वकील के रूप में निजी अनुभव इस उपन्यास में साफ झलकता है। कानूनी प्रक्रियाओं, कोर्ट-रूम की रणनीतियों और वकीलों की दुनिया का चित्रण इतना विश्वसनीय है कि पाठकों को लगता है कि वे उस माहौल का हिस्सा हैं।
इस किताब को पढ़ते-पढ़ते मुझे लगने लगा कि मुझे भी लिखना चाहिये। मैं भी लिखना चाहता हूं। और मैंने अपना पहला उपन्यास लिखना शुरू कर दिया। ये अलग बात कि वो उपन्यास अभी अधूरा रखा है। वो क्या उपन्यास है और उसकी क्या कहानी है। वो फिर कभी।
2008 से 2018 तक मेरा लेखन का संघर्ष चलता रहा। दस साल मैंने संघर्ष किया। फिर 2019 में मैंने लिखा नैना। ये हैरानी की बात है कि नैना का किरदार लिखते वक्त मेरे ज़ेहन में स्कॉट फेनी ही रहा। आप ध्यान से देखेंगे तो पायेंगे कि नैना की ज़िंदगी और स्कॉट फेनी की ज़िंदगी में बहुत सारी समानताएँ हैं। स्कॉट और नैना दोनों साधारण परिवार से आते हैं। दोनों की शुरुआत साधारण होती। लेकिन दोनों तेज़ी से कामयाबी की सीढियां चढ़ते हैं। मशहूर होते हैं। और फिर दोनों अपना सब कुछ गंवा देते हैं।
नैना तो अपनी ज़िंदगी से हाथ धो बैठती है। स्कॉट फेनी केस तो जीत जाता है लेकिन अंत में वो सड़क पर होता है। न घर होता है, न काम का कोई ज़रिया। साथ में होती हैं दो छोटी बच्चियां। आप सोच रहे होंगे कि स्कॉट का क्या हुआ.. बताता हूं… बताता हूं…
कलर ऑफ लॉ खत्म करने के बाद पढ़ने के लिये मैंने ‘दि एक्यूज़्ड’ उठाया.. और पहले चैप्टर को पढ़ते ही मैं हतप्रभ रह गया। ‘कलर ऑफ लॉ’ ने तो मुझे प्रेरित ही किया था… दिल में हूक पैदा की थी लिखने की.. लेकिन ‘दि एक्यूज़ड’ का पहला चैप्टर पढ़ते ही मैंने टाइपिंग शुरू कर दी। और अपने पहले उपन्यास का पहला चैप्टर लिख डाला.. फिर क्या हुआ.. कहानी जानने के लिये पढ़ते रहिये जानकी पुल…