जानकी पुल – A Bridge of World's Literature.

हाल में ही वरिष्ठ लेखक पंकज सुबीर का कहानी संग्रह राजपाल एंड संज प्रकाशन से आया है- खैबर दर्रा। इस संग्रह की कहानियों पर यह लेख लिखा है दीपक गिरकर ने। आप भी पढ़िए- मॉडरेटर

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हिंदी के सुपरिचित कथाकार और प्रसिद्ध उपन्यास “अकाल में उत्सव” और “जिन्हें जुर्म-ए-इश्क़ पे नाज़ था” के लेखक श्री पंकज सुबीर एक संवेदनशील लेखक होने के साथ एक संपादक भी हैं। हाल ही में इनका नया कहानी संग्रह ख़ैबर दर्रा प्रकाशित होकर आया है। पंकज जी के लेखन का सफ़र बहुत लंबा है। पंकज जी की प्रमुख रचनाओं में “ये वो सहर तो नहीं”, “अकाल में उत्सव”, “जिन्हें जुर्म-ए-इश्क़ पे नाज़ था”,  “रूदादे-सफ़र” (उपन्यास), “ईस्ट इंडिया कम्पनी”, “कसाब.गांधी एट यरवदा.इन”, “महुआ घटवारिन और अन्य कहानियाँ”, “चौपड़े की चुड़ैलें”, “होली”, “प्रेम”,  “रिश्ते”, “हमेशा देर कर देता हूँ मैं”, “ज़ोया देसाई कॉटेज”,  “ख़ैबर दर्रा” (कहानी संग्रह), “अभी तुम इश्क़ में हो” (ग़ज़ल संग्रह), “बुद्धिजीवी सम्मलेन” (व्यंग्य संग्रह), यायावर हैं, आवारा हैं, बंजारे हैं (यात्रा संस्मरण) “बारह चर्चित कहानियाँ”,”विमर्श दृष्टि”, “विमर्श – नक्काशीदार केबिनेट”, “विभोम – स्वर”, “शिवना साहित्यिकी” त्रैमासिक साहित्यिक पत्रिकाएँ (संपादन) शामिल हैं। कई पुरस्कारों और सम्मानों से सम्मानित पंकज जी की कहानियाँ प्रमुख साहित्यिक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही हैं। इस कृति में जीवन के नित नवीन पक्षों को उजागर करती कहानियाँ हैं। मुझे इस संग्रह की अधिकाँश कहानियाँ सशक्त लगी। इस कहानी संग्रह ख़ैबर दर्रा में कई विषयों को समेटे हुए 9 कहानियाँ हैं।

पंकज सुबीर में किस्सागोई की अद्भुत क्षमता है। पंकज सुबीर की कहानियाँ मानवीय मनोभावों और जीवन की सच्चाईयों को इस तरीके से उजागर करती हैं कि पाठक उस कहानी के साथ गहरे से जुड़ जाता है। इन कहानियों में लेखक की खास कहानी शैली और सूक्ष्म संवेदनाओं को पेश करने की उनकी अद्भुत कला परिलक्षित होती है। उनके लेखन में ऐसी बारीकी है जो किरदारों को सजीवता प्रदान करती है।

“एक थे मटरू मियाँ एक थी रज्जो” कहानी न केवल मटरू मियाँ के जीवन की गहरी पड़ताल करती है, बल्कि समाज और राजनीति के उस काले पक्ष को भी उजागर करती है जो अक्सर बाहर से चमकदार और आदर्श प्रतीत होता है, लेकिन अंदर एक पूरी दूसरी दुनिया काम करती है। मटरू मियाँ का चरित्र इस भ्रम को खोलने का काम करता है। उनका जीवन यह दर्शाता है कि जो दिखता है, वह हमेशा सच नहीं होता। समाज और राजनीति में जो नाटक चलता है, वह कभी-कभी हमारे व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन की जटिलताओं को छुपा देता है। पत्रकार दुर्गा दास त्रिपाठी,  दामोदर,  रज्जो और मटरू मियाँ के पात्र इस कहानी को जीवंत और वास्तविक बनाते हैं। इन पात्रों के जरिए कहानी में जो सामाजिक और राजनीतिक स्थितियाँ उभर कर आती हैं, वह काफी गहरी और मार्मिक हैं। कहानी आज के मीडिया के प्रभाव और समाज पर उसके असर को बहुत प्रभावशाली तरीके से बयां करती है। मटरू मियाँ की मृत्यु के समय मीडिया का कवरेज और उस युवा महिला पात्र दीप्ती परिहार का ज़िक्र इस बात को दर्शाता है कि आजकल हम किसी घटना या व्यक्ति को मीडिया के नजरिये से ज्यादा देखते हैं,  न कि वास्तविकता के गहरे और जटिल पहलुओं को समझने की कोशिश करते हैं। इसके साथ-साथ  यह कहानी यह भी दिखाती है कि समाज किस तरह से लोगों के निजी जीवन को अपने मनोरंजन और उत्सुकता के लिए देखता है, बिना यह समझे कि वास्तविकता क्या है। लोग अपनी कल्पना और अनुमान से किसी की जिंदगी के बारे में निष्कर्ष निकालते हैं, जबकि हमें पूरी तस्वीर को समझने की जरूरत होती है। यह कहानी इस तरह से मीडिया और समाज के खोखलेपन को उजागर करती है और यह समझाती है कि हम जो देखते हैं या जो हमें दिखाया जाता है, वह हमेशा पूरी सच्चाई नहीं होती। राजनीति, मूल्यहीनता, अवसरवादिता की जटिलताएँ और अनैतिकताएँ इस कहानी के मुख्य केंद्र हैं, जिसमें मटरू जैसे छोटे कार्यकर्ताओं का दोहन होता है। उनका जीवन एक प्रतीक बन जाता है, जो यह दर्शाता है कि कैसे सत्ता और पैसे की चमक में मानवीय मूल्यों और नैतिकता का मोल घट जाता है। मटरू मियाँ की ज़िंदगी की जद्दोजहद,  संघर्ष और कड़ी मेहनत के बावजूद अंततः वे अपनी ज़िंदगी की जंग हार जाते हैं।

“हरे टीन की छत”  कहानी बचपन में अंकुरित निश्छल प्रेम की कहानी है। “हरे टीन की छत”  फ्लैश बैक शैली में लिखी अर्जुन और मीरा के आत्मीय प्रेम की उत्कृष्ट कोटि की अनूठी कहानी है जो कथ्य और अभिव्यक्ति दोनों ही दृष्टियों से पाठकीय चेतना पर अमिट प्रभाव छोड़ती है। कहानी का कथानक इस तरह है – मीरा के पिताजी प्रशासनिक अधिकारी थे। उनका स्थानांतरण पचमढ़ी हो गया था। प्रशासनिक अधिकारियों की भाषा में पचमढ़ी को “काला पानी” कहते थे क्योंकि यहाँ ऊपर की कमाई की गुंजाइश कम थी। मीरा के पिताजी यहाँ अकेले ही आये थे। वे सरकारी रेस्ट हाउस में ही रहते थे। लेकिन जब बच्चों की परीक्षाएं समाप्त हो गई तो मीरा और उसका छोटा भाई अपनी मम्मी के साथ पचमढ़ी आ गए थे। इस रेस्ट हाउस में अक्सर प्रशासनिक अधिकारियों की पार्टियां होती रहती थी। इन पार्टियों में नाच गाने का भी इंतजाम होता था। एक दिन मीरा ने रेस्ट हाउस में अपने कमरे की खिड़की से देखा कि एक लड़का महिला के समान नृत्य कर रहा है। बाद में मीरा को मालूम होता है कि वह लड़का चौकीदार का बेटा है। सब लोग उस लड़के को जनखा, छक्का कहते थे। उस लड़के का नाम अर्जुन था। मीरा अर्जुन से पूछती है कि तुम नाचने का काम छोड़ क्यों नहीं देते तब अर्जुन मीरा से कहता है कि इससे मुझे पैसे मिलते है और मैं इन पैसों से मेरे पिताजी की सहायता ही करता हूँ। अर्जुन पढ़ने में अच्छा था और वह आठवीं कक्षा तक पढ़ा हुआ है। लेकिन फिर अर्जुन की माँ का देहांत हो जाता है तब अर्जुन स्कूल जाना छोड़ देता है। मीरा अर्जुन से पूछती है कि तुमने इस तरह का नृत्य कहाँ से सीखा। तब अर्जुन मीरा को बताता है कि उसकी माँ शादी-ब्याह और भजन मंडली में इस तरह ही नृत्य करती थी। मैंने इस तरह का नृत्य मेरी माँ से ही सीखा है। धीरे-धीरे मीरा को अर्जुन से लगाव हो जाता है लेकिन कुछ समय पश्चात ही मीरा के पिताजी का स्थानांतरण दूसरे शहर में हो जाता है। मीरा पचमढ़ी में पूरे चालीस वर्षों के अंतराल के बाद आयी है। पिछली बार जब वह आई थी तब यह चम्पक बंगला सरकारी रेस्ट हाउस कहलाता था लेकिन अब यह एक हेरिटेज होटल बन चुका है। मीरा होटल के उसी कमरे में रुकती है जब वह चालीस वर्ष पूर्व गर्मियों की छुट्टी में जिस कमरे में सोती थी। पूरी कहानी फ्लैशबैक में चलती है। मीरा होटल के रिसेप्शनिस्ट से अर्जुन के बारे में पूछती है। रिसेप्शनिस्ट मीरा को बताता है कि अर्जुन अपने पिता की मृत्यु के बाद पचमढ़ी छोड़कर नीचे के क़स्बे मटकुली में रहने चला गया है। उसने वहां एक रेस्टोरेंट खोल लिया है। मटकुली पहुँचते ही मीरा को सड़क किनारे एक बोर्ड दिखता है जिस पर लिखा है “मीरा रेस्टोरेंट”। मीरा रेस्टोरेंट में जाकर भोजन करती है और वह काउंटर पर बैठे हुए अर्जुन को और उसके पास ही बैठे हुए अर्जुन के बेटे को पहचान जाती है। मीरा को कहीं पढ़ी हुई पंक्तियाँ याद आ गई “जीवन के पहले प्रेम को बिछोह के बाद हमेशा यादों में ही रखना चाहिए, उसके पास फिर लौटकर नहीं जाना चाहिए। जो हमारी स्मृतियों में होता है, वह वास्तविकता में नहीं होता। स्मृतियाँ हमेशा उसे सुंदर बनाये रखती हैं। किसी की स्मृतियों को हमेशा सुंदर बनाये रखना चाहते हैं तो उसके पास लौटिए मत, लौट कर आने से स्मृतियों में बसी सुंदरता नष्ट हो जाती है।” मीरा धूप का काला चश्मा लगाकर बिल का पेमेंट करती है तब वह देखती है कि काउंटर के पीछे कुछ तस्वीरें रखी है और उसके साथ ही मीरा ने अर्जुन को दिया हुआ ब्रेसलेट भी रखा हुआ है। मीरा टैक्सी में बैठने के पूर्व एक वेटर को पाँच सौ का नोट और एक पर्ची देती है और वेटर को बोलती है कि यह पर्ची तुम्हारे मालिक को दे देना। अर्जुन उस पर्ची को पढ़ता है उस पर मीरा ने लिखा था – “मेरे नाम और ब्रेसलेट दोनों को चालीस साल से सँभाल कर रखने के लिए शुक्रिया।” पर्ची पढ़ते ही अर्जुन रेस्टोरेंट के बाहर दौड़कर जाता है लेकिन तब तक मीरा की कार दूर क्षितिज की सीमा रेखा पर अदृश्य होती दिखाई दी उसे।    

“ख़ैबर दर्रा” कहानी सामाजिक समस्या की ओर इशारा करती है, जिसमें धर्म, सांप्रदायिकता और मानवीयता के बीच की खाई को दर्शाया गया है। ख़ैबर दर्रे के दोनों ओर अलग-अलग संप्रदाय के लोग रहते हैं और जैसे ही सांप्रदायिक आग भड़कती है, वह अनियंत्रित हो जाती है। यह पूरे समाज के भीतर छिपी असहमति,  घृणा और नफरत की गहरी अभिव्यक्ति है, जिसमें धर्म और मज़हब के नाम पर लोग एक-दूसरे के खिलाफ खड़े हो जाते हैं। यह कहानी सिर्फ सांप्रदायिकता और दंगों के बारे में नहीं है, बल्कि यह समाज में व्याप्त नेतागिरी, गुंडागर्दी  और स्वार्थी राजनीति के खिलाफ भी एक सशक्त संदेश देती है। साथ ही  यह अस्तित्व और संघर्ष की उस गहरी प्रक्रिया को भी उजागर करती है, जिसमें व्यक्ति खुद को और अपने मूल्यों को बचाने के लिए लड़ता है। लेकिन सबसे अहम बात यह है कि यह कहानी मूल्यवत्ता, हृदय परिवर्तन, संवेदनशीलता और मानवीयता की बात करती है। इस कहानी में अपाहिज पिता और कर्तव्यनिष्ठ बेटी अपने व्यवहार से यह दिखाते हैं कि कैसे सदाशयता और आत्मीयता के माध्यम से एक व्यक्ति, जो पहले नकारात्मक विचारों और घृणास्पद भावनाओं से घिरा हुआ था, उसे बदला जा सकता है। वह व्यक्ति, जो पहले दूसरों के प्रति नफरत और दुश्मनी से भरा था, अब सद्भावनाओं और आत्मीयता के कारण बदलाव को स्वीकार करता है। यह दिखाता है कि व्यक्ति के भीतर सकारात्मकता लाने के लिए दया, प्रेम और संवेदनशीलता की आवश्यकता होती है। इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि अगर हम एक-दूसरे के प्रति संवेदनशील और दयालु हों  तो हम समाज में व्याप्त घृणा और नफरत को बदल सकते हैं और एक दूसरे के शुभचिंतक बन सकते हैं।

“वीरबहूटियाँ चली गयीं” मासूम प्रेम की कहानी है। “वीरबहूटियाँ चली गयीं” संग्रह की सर्वाधिक प्रभावशाली कहानी है,  जो पाठक के अंदर धँसती चली जाती है। कथाकार ने इस कहानी को बहुत ही संवेदनशीलता के साथ प्रस्तुत किया है। इस कहानी में प्रकृति की छवियाँ न केवल वातावरण को जीवंत बनाती हैं, बल्कि यह कहानी का एक महत्वपूर्ण पात्र बन जाती हैं, जो मनुष्यता और प्रेम की जटिलताओं को उद्घाटित करती है। कहानी की शुरुआत में प्रकृति का अद्भुत चित्रण पाठक को एक ऐसे समृद्ध संसार में प्रवेश कराता है, जहाँ पेड़, फूल, और हरियाली हर दृश्य को रंगीन और जीवंत बनाती है। इस प्राकृतिक सुंदरता में छुपा दुख, संघर्ष और परिवर्तन एक बहुत ही बारीकी से उकेरा गया है  जो पाठक को सोचने पर मजबूर करता है कि प्रकृति और मनुष्य के रिश्ते कैसे बदल रहे हैं। कहानी में प्रेम का जो रूप दिखाया गया है, वह सचमुच निर्दोष और मासूम है, जो न केवल अपने आप में बल्कि समाज के भीतर भी एक तरह से लुप्त हो रहा है। यह प्रेम वासना से परे है, केवल देने की इच्छा और बिना किसी स्वार्थ के प्यार की अभिव्यक्ति है। लड़के का ब्रेड लाकर लड़की को मुस्कुराने की चाहत, उस निष्कलंक प्रेम को दर्शाती है, जो किसी दिखावे या पाने की चाह से मुक्त होता है। प्रेम को महसूस करने का तरीका भी कितना शुद्ध है, जैसे लड़की का ब्रेड को सूंघना, यह प्रकृति के साथ गहरे संबंध को दर्शाता है, जहाँ रूप, रस, गंध और रंगों के माध्यम से प्रेम महसूस होता है। प्रकृति और पर्यावरण की चिंता इस कहानी का एक महत्वपूर्ण पहलू है। चिरमी के बीज, वीरबहूटियाँ, और जंगल की सुंदरता सिर्फ कहानी में ही नहीं, बल्कि हमारे जीवन के सच्चे प्रतीक हैं। यह लोक विश्वास और प्रकृति के स्वस्थ होने का सूचक हैं और हमें यह याद दिलाते हैं कि हम अपने प्राकृतिक संसाधनों और उनसे जुड़े विश्वासों के साथ किस तरह खिलवाड़ कर रहे हैं। वीरबहूटियाँ और जंगलों की विलोपन होती छवियाँ प्रकृति के नुकसान की कहानी हैं। यह कहानी एक तरह से हमारे समय के उन अनमोल हिस्सों को खोने के बाद एक गहरी खामोशी और अपूरणीय दुःख की आवाज़ बन जाती है। कहानी की यह भावनात्मक गहराई हमें प्रकृति के साथ अपने रिश्ते पर पुनर्विचार करने का अवसर देती है और यह एहसास कराती है कि हमने क्या खो दिया है।

“देह धरे का दंड” कहानी एक संवेदनशील और महत्वपूर्ण सामाजिक मुद्दे को उजागर करती है, जो समाज में व्याप्त होमोफोबिया, अन्याय, और दुराचार के बारे में बताती है। विक्रम और ब्रजेश के अनुभवों के माध्यम से यह कहानी उन युवाओं की मानसिक, शारीरिक और भावनात्मक यातनाओं को दर्शाती है, जो समाज के दृष्टिकोण और पूर्वाग्रहों के कारण पीड़ित होते हैं। कहानी में धर्मगुरु और स्कूल के अध्यापक जैसे प्रतिष्ठित व्यक्तित्वों द्वारा विक्रम जैसे युवकों के साथ दुराचार, समाज की बेईमानी और नैतिक पतन को दर्शाता है। विक्रम और ब्रजेश को खुद यह भी नहीं पता था कि होमोसेक्सुअलिटी क्या होती है  और इस अज्ञानता का शिकार होते हुए वे एक भयानक स्थिति का सामना करते हैं। यह उन युवाओं की स्थिति को भी दर्शाता है  जो समाज के पूर्वाग्रहों के चलते अपनी पहचान और स्वाभिमान को खो बैठते हैं। ब्रजेश की आत्महत्या इस बात का प्रतीक है कि समाज का मानसिक दबाव, गलतफहमियां और अवहेलना किसी व्यक्ति के जीवन के लिए कितनी घातक हो सकती है। समाज का यह दुराग्रह और अस्वीकार विक्रम और ब्रजेश जैसे लोगों को एक ऐसी स्थिति में डाल देता है, जहां वे अपने अस्तित्व को लेकर संघर्ष करते हैं, जबकि उन्हें बस स्वीकृति और समझ की आवश्यकता होती है। कानूनी दृष्टिकोण से, भले ही होमोसेक्सुअलिटी को कानूनी मान्यता मिल गई हो, लेकिन समाज में मानसिकता का परिवर्तन बहुत धीमा होता है। यह कहानी समाज के एक गंभीर पहलू को उजागर करती है, जहां कानूनी मंजूरी और समाज की मानसिकता के बीच एक बड़ा अंतर है। अस्पतालों की जर्जर स्थिति और सरकारी प्रणाली के बहुमुखी चित्रण से यह कहानी स्वास्थ्य सेवाओं की उपेक्षा और उनके अपर्याप्त होने की समस्या भी उठाती है। यह दिखाता है कि कैसे सरकारी संस्थाएं अपने कर्तव्यों को पूरा करने में विफल रहती हैं  और इसका असर आम जनता, खासकर समाज के कमजोर वर्गों पर पड़ता है। कहानी समाज की उन बुराइयों और विडंबनाओं को उजागर करती है, जो किसी भी व्यक्ति को असहाय और अपमानित महसूस करवा सकती हैं। यह एक महत्वपूर्ण संदेश देती है कि हमें अपनी मानसिकता और समाज के दृष्टिकोण को बदलने की आवश्यकता है, ताकि हर व्यक्ति को अपनी पहचान और स्वाभिमान के साथ जीने का अधिकार मिल सके।

“निर्लिंग” कहानी थर्ड जेंडर के लोगों के जीवन में झेलनी पड़ने वाली वेदनाओं और मानसिक यातनाओं को उजागर करती है। इसमें स्पष्ट रूप से यह दिखाया गया है कि समाज किस तरह से शारीरिक रूप से ‘अलग’ और ‘असामान्य’ लोगों को तिरस्कार, घृणा और शोषण का शिकार बनाता है। थर्ड जेंडर के व्यक्ति अपनी पहचान के संघर्ष में न केवल मानसिक दबाव का सामना करते हैं, बल्कि उन्हें शारीरिक शोषण,  भेदभाव और समाज के अन्यायपूर्ण दृष्टिकोण से भी जूझना पड़ता है। समाज में जननांग की कमी को ‘अस्वीकार्य’ या ‘अशुद्ध’ माना जाता है, और यही स्थिति इन लोगों को आत्महत्या करने के लिए मजबूर करती है।

ये आत्महत्याएँ केवल व्यक्तिगत समस्याओं का परिणाम नहीं हैं, बल्कि यह समाज के उत्पीड़न और अस्वीकार के कारण होती हैं। समाज के द्वारा किए गए भेदभाव और शोषण से व्यक्ति अपनी जिंदगी को सहन करने के लायक नहीं पाता और इसे खत्म करने के लिए मजबूर हो जाता है। समाज की मानसिकता में बदलाव की कितनी आवश्यकता है, ताकि किसी भी व्यक्ति को उसकी पहचान, लिंग, या शारीरिक बनावट के आधार पर तिरस्कृत न किया जाए। हर व्यक्ति को समान सम्मान और स्वीकृति मिलने का अधिकार है, चाहे उसकी शारीरिक पहचान या लिंग कुछ भी हो।

“आसमाँ कैसे कैसे”  कहानी के पात्र राजेश, राघवदास, राघवदास की पत्नी माया देवी मानवीय संवेदनाओं को पूरी सत्यता के साथ उजागर करते हैं। यह उस समय की कहानी है जब लोग ज़ुबान के पक्के होते थे। राजेश को अपने मित्र दिलीप की दुकान खरीदनी है, बेटा विनय एग्रीमेंट बनवा कर लाता है और राजेश उस अतीत में खो जाता है, जब आदमी भले ही मर जाये, पर उसकी मृत्यु के बाद भी परिवार सब तरह के लालचों के प्रति अनासक्त होकर अपनी ज़ुबान पर अडिग रहता था। राजेश का अपने बेटे विनय के द्वारा लाए गए एग्रीमेंट के बारे में सोचते हुए अतीत में खो जाना, यह दर्शाता है कि वर्तमान समय में वह मूल्य और ईमानदारी अब खो गई है। आज के समय में, जहां लेन-देन और समझौतों में लचीलापन और स्वार्थ अधिक प्रमुख हैं, राजेश के लिए यह यादें एक प्रकार की खोई हुई चीज़ की तरह हैं, जो अब बस एक अविस्मरणीय अतीत बनकर रह गई हैं।

“कबीर माया पापणीं” भ्रष्ट व्यवस्था के जाल में दम तोड़ती संवेदनाओं की मार्मिक कहानी है, जो उद्वेलित करती है, खासकर अंत टीस छोड़ जाता है। कबीरदासजी कहते हैं कि माया बड़ी ही पापिनी है। कबीर का यह दृष्टिकोण आज भी प्रासंगिक है क्योंकि आज के समय में भी मनुष्य भौतिकवाद और सांसारिक मोह माया में उलझा हुआ है। कहानी कथनी और करनी के अंतर को स्पष्ट रूप से उजागर करती है। यह एक यथार्थवादी कहानी है। निजी रिश्ते व्यावसायिक रिश्तों में बदल चुके है। कहानी का मुख्य किरदार जिला कलेक्टर अरुण सिंह अपनी पत्नी सुनंदा से कहता है “मैं तुमसे कहता हूँ न कि सचमुच ही कलयुग का अंत आ चुका है। आदमी के लिए रिश्ते-नातों की कोई अहमियत ही नहीं रह गयी है, पैसा ही सब कुछ हो गया है। वहाँ फैक्ट्री में मशीन पर काम करने वाला एक वर्कर काम करते समय दुर्घटना के कारण मर गया है, उसके माँ-बाप उसका अंतिम संस्कार करने के बजाये फैक्ट्री के गेट पर लाश लेकर धरना दे रहे है मुआवज़े के लिए बताओ…? सगे माँ-बाप…? बेटे के अंतिम संस्कार की चिंता नहीं है, चिंता पैसों की हो रही है। आदमी और कितना नीचे गिरेगा पैसों के लिए।”  

सुनंदा की सास यानी अरुण सिंह की माँ का स्वास्थ्य बहुत खराब चल रहा है।  डॉक्टर्स ने भी जवाब दे दिया है। सुनंदा अपने पति को समझाती है “तुम नहीं आओगे तो सब जाने क्या-क्या बातें करेंगे और दूसरों की छोड़ो, तुम्हारे अपने बच्चे कह रहे है कि मम्मा दादी की हालत बहुत सीरियस है, पापा को आना चाहिए, वे आ क्यों नहीं रहे है?”

“बी प्रैक्टिकल सुनंदा मैं नहीं आ सकता अभी, शराब की दुकानों के आबकारी ठेकों की नीलामी है दो दिन बाद। यही तो एक समय होता है कलेक्टर के कमाने का। अभी मैं छुट्टी लेकर आऊँगा तो, सब जमा-जमाया खेल बिगड़ जाएगा।” अरुण सिंह ने सुनंदा को समझाने की कोशिश की। 

आबकारी ठेकों की नीलामी के एक दिन पहले ही अरुण सिंह की माँ का देहांत हो जाता है। अरुण सिंह को माँ की मृत्यु की खबर सुनकर रोना नहीं आता है।  अरुण सिंह को रोना इस बात को लेकर आता है कि अब मुझे इसी समय अपने शहर जबलपुर के लिए निकलना पडेगा और शराब की दुकानों के आबकारी ठेकों की नीलामी से आने वाला कमीशन मुझे नहीं मिलेगा। मेरी जगह यह कमीशन मेरे जूनियर अधिकारी को मिलेगा।

“इजाज़त@घोड़ाडोंगरी” कहानी का कैनवास बेहतरीन है। यह कहानी नारी की प्रगतिशील सोच की पैरवी करती है। पंकज सुबीर अपनी इस कहानी द्वारा समाज द्वारा स्थापित परम्परागत पितृसत्तात्मक व्यवस्था के दरवाजों पर अपने प्रतिरोध की दस्तक देते दिखते हैं। ध्रुव की थोथी और थोपने वाली मानसिकता को उकेर कर ध्रुव को छोड़ने का बोल्ड समाधान कहानी की नायिका धरा के माध्यम से प्रस्तुत किया है। ध्रुव की सुंदरता धरा के दाम्पत्य जीवन की मधुरता को लील देती है। तमाम वर्जनाओं को तोड़कर धरा अपने सुंदर और उच्च ब्राह्मण कुल के पति ध्रुव को छोड़कर एक बदसूरत आदिवासी के साथ भाग कर अपने जीवन की एक नयी तस्वीर बनाती है। इस कहानी का कथ्य बुना गया है घोड़ाडोंगरी के रेलवे स्टेशन पर। धरा, ध्रुव से कहती है कि भौगोलिक रूप से देश का केंद्र बिंदु घोड़ाडोंगरी है न कि नागपुर, लेकिन घोड़ाडोंगरी आदिवासियों का एक छोटा कस्बा है जबकि नागपुर एक महानगर है जो सुंदरता का प्रतिनिधित्व करता है।  आदिवासी असुंदरता के प्रतीक माने जाते हैं। इसलिए नागपुर को भारत का केंद्र बिंदु माना गया है। ध्रुव नागपुर रहता है। इसलिए धरा ध्रुव पर तंज कसती है और कहती है कि कैसे बर्दाश्त होता उस सुंदर दुनिया को कि भारत का केंद्र बिंदु एक असुंदर दुनिया के पास रहे। तुम सुंदर दुनिया के प्रतिनिधि ध्रुव भी तो बर्दाश्त नहीं कर पा रहे हो धरा का तुम्हारे स्थान पर असुंदर रवि के पास होना। इजाज़त फिल्म में अंतिम दृश्य में गुलज़ार चूक गए थे। स्त्री के मन को समझने में बड़ी ग़लती कर बैठे थे। किसी मीठी कविता-सी बहती हुई वह फिल्म उस अंतिम दृश्य में मुँह में कड़वाहट भर देती है। तुम सोच रहे होंगे कि मैं तुम्हारे सीने से लगूंगी…रोऊँगी…पैर छूकर जाने की इजाज़त माँगूँगी…    नहीं…कभी नहीं…मुझे कोई अपराध बोध नहीं है…मैं अपने निर्णय पर खुश हूँ, संतुष्ट हूँ।                            

पंकज सुबीर की किस्सागोई लाजवाब है। पंकज सुबीर के इस कहानी संग्रह की हर कहानी अपने आप में बेजोड़ है। पंकज जी की कहानियों के विषय हमेशा गंभीर सामाजिक मुद्दों पर आधारित होते हैं, जो हर वर्ग को सोचने के लिए बाध्य कर देते हैं। संग्रह की सभी कहानियाँ रोचक है। इन कहानियों का दायरा विस्तृत है। जीवन के अनेक रंगों के चित्रण के साथ इन कहानियों में नई भंगिमा एवं नयी ताज़गी का समावेश दिखाई देता है। पंकज जी की कहानियों में सिर्फ पात्र ही नहीं समूचा परिवेश पाठक से मुखरित होता है। स्थान और प्रकृति को बहुत ही निकट से परिचित होकर कथाकार इनका वर्णन रोचकता से करते हैं, इसी वजह से कहानियाँ पाठक को बहुत अधिक प्रभावित करती है। पंकज जी ने इस संग्रह की कहानियों में जितना महत्व इंसानी भावनाओं को दिया है, उतनी ही मुस्तैदी से पेड़-पौधे, फूल, पक्षी, सूरज, चाँद, चाँदनी, धूप, नदी, झील, आकाश आदि भी इन कथाओं में अपनी सहज उपस्थिति दर्ज कराते हैं। कहानियों के कलात्मक उत्कर्ष के साथ-साथ कथाकार पंकज सुबीर की सामाजिक प्रतिबद्धता और प्रयोगधर्मिता सराहनीय है। इस कहानी संग्रह की लगभग सभी कहानियाँ वर्तमान में रहकर अतीत से टकराती हैं। हर पात्र अपने बीते दिनों की यादों में रह-रहकर यात्रा करता है और उन दिनों के सुख-दुख में खोया रहता है। इस कहानी संग्रह की कहानियों में कथाकार ने मनोविज्ञान, नारी की सुकोमल भावनाओं, राजनीति, मूल्यहीनता, अवसरवादिता की जटिलताएँ, अनैतिकताएँ, आत्मीय प्रेम, साम्प्रदायिकता, संवेदनशीलता, मानवीयता, प्राकृतिक सुंदरता, होमोसेक्सुअलिटी, थर्ड जेंडर की वेदनाएँ, भ्रष्ट व्यवस्था, कथनी करनी में अंतर, पितृसत्तात्मक व्यवस्था का प्रतिरोध इन सब आयामों को विश्लेषित किया है। पंकज सुबीर के कथा साहित्य में परिवेश अधिक सशक्तता से प्रस्तुत होता है। पंकज जी की कहानियों के स्त्री चरित्र स्वयं निर्णय लेने की क्षमता रखते हैं। इन कहानियों में पंकज जी की प्रतिबद्धता और उनकी गहन सूझबूझ का भी परिचय मिलता है। लेखक इन कहानियों में स्मृति के पन्नों में पहुँचकर वहाँ के दृश्य साकार कर देते हैं। ये कहानियाँ मानवीय संवेदना और जीवन संघर्ष के चित्र उकेरती हैं। पंकज सुबीर के कथा साहित्य में सामाजिक सरोकारों के साथ मार्मिकता प्रभावी रूप से अभिव्यक्त हुई है। इन 11 कहानियों से गुजरकर पाठक को एक अलग ही अनुभव होता है। कहानी के शीर्षक पाठक के मन में कुतूहल जगाते हैं। इस संग्रह की हर कहानी अपने अनूठेपन से पाठक के मन को छू लेती है।

संवेदनशील व उम्दा कथाकार श्री पंकज सुबीर का कथा साहित्य आम व्यक्ति के दुःख दर्द को अभिव्यक्त करता है। लेखक द्वारा समाज के विविध पक्षों को लेकर चिंताएं व्यक्त की गई है। कथाकार अपने कथा साहित्य में इंसानियत को बचा लेते है। पंकज सुबीर हिंदी साहित्य के ऐसे कथा-शिल्पी हैं जिन्होंने अपने कथा साहित्य में सामाजिक यथार्थ के कई पहलुओं को उजागर किया हैं।  पंकज सुबीर की कहानियों को समझने के लिए मनोविज्ञान के साथ मानव स्वभाव के सृजनात्मक पक्ष की समझ होना भी जरुरी है। इनका कथा साहित्य देश के विविध परिदृश्य,  दुनिया और समाज को समझने की अंतर्दृष्टि देता है।  पठनीयता से भरपूर इन कहानियों का अंत पाठक को चकित करता है। पंकज जी की कहानियाँ समाज के विविध रूपों के स्याह-सफ़ेद सभी रंगों को बेबाकी से उघाड़कर सामने लाती हैं। पंकज सुबीर की कहानियाँ हिन्दी कथा साहित्य के भविष्य को आश्वस्त करती है।

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दीपक गिरकर

समीक्षक

28-सी, वैभव नगर, कनाडिया रोड,

इंदौर- 452016

मोबाइल : 9425067036

मेल आईडी : deepakgirkar2016@gmail.com

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