अंचित की प्रेम कविताएँ

 जीवन में प्रेम का एहसास होना सबसे सुंदरतम अनुभवों में शामिल है। आज कुछ प्रेम कविताएँ पढ़िए। कवि हैं अंचित। इससे पूर्व भी जानकीपुल पर इनकी कविताएँ प्रकाशित हो चुकी हैं, लेकिन उनकी आवाज़ बिलकुल भिन्न थी। राजनीतिक स्वर लिए उन कविताओं के बाद इन प्रेम कविताओं से गुजरना भी एक सुखद एहसास है, जिनमें साथ की सहज व निःस्वार्थ चाह भी है और यदि लगे कि यह प्रेम साथी स्त्री के लिए नुक़सानदायक है तो बिना देर किए उसे अलग हो जाने के लिए सलाह भी है। यह रही कविताएँ- अनुरंजनी

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कुछ कविताएँ महोदया “श” के लिए

1. प्यार की जगह

किसी के पास जगह ख़त्म हो जाती है
और कोई बड़े एहतियात से
कहीं दूर से आकर कहता है
मेरे पास बैठो।

जो भाग रहा है वह भी जगह खोज रहा है,
फ़िलहाल इतनी कि सिर्फ़ एक रात रुक सके।

बिना किसी हिचक चाँद देखा जा सके
रोया जा सके शहर की किसी अंधेरी छत पर
किसी में दुबके।

इतनी लंबी यात्रा में
रोज़ कहाँ मिलेगा कोई ठौर
आदमी फिर भी चाहता ज़रूर है।

2. ईमानदारी

इधर आ तो गई हो
पर इस तरफ़ चले आना
कोई समझदारी भरा फ़ैसला नहीं है।

तुम नहीं जानती अभी कि दुख क्या होता है।
अभी दिन के किसी प्रहर तुमने ठहरकर
मूसलाधार बारिश नहीं देखी।

उमस की कोई सच्ची स्मृति तुम्हारे भीतर नहीं है
जीवन मुस्कुराया है सर्दियों की दोपहर की तरह
प्रथम अनुभवों के कई सफ़हे अभी खुले भी नहीं

यहाँ दुखों का एक पहाड़ है
जिसके जितने क़रीब तुम जाओगी
उसकी छाया तुम्हारे जीवन पर उतनी ही घनी होती जाएगी।

जितने आकर्षण हमारे हिस्से आते हैं उनमें सबसे बुरा है यही
और सबसे मीठा और सबसे दुराग्रही और सबसे लालची
सुख के धागे से सिला हुआ गहरे माँस में धँसता दुख।

एक चुंबन जो मेरे तुम्हारे बीच रहता है उसके नेपथ्य में
दोहराव की एक मोटी किताब है जो तुमने छू कर देखी है।

मैं चाहता हूँ तुम्हारे पैरों की छाप इन पथरीली पगडंडियों पर
और कितना ग़लत है यह चाहना कि तुम छुओ और दुख दरक जाये।

3. देखना

दुनिया पर अभी
छाया है तुम्हारा तिलिस्म

पेड़ मुस्कुरा रहे हैं,
भीड़ ठिठक रही है
हवा अभी बहेगी थोड़ी देर
ये पालतू कुत्ते जो चलते हुए
तुम्हारे पास चले आये हैं
ठहरेंगे, दुलराएँगे।

थोड़ी देर, बहुत थोड़ी देर
यह जादू चलता रहेगा

मैं बहुत दूर से देखूँगा तुमको
जैसे कोई तारा नीला समंदर देखता है।

4. भुलावा

बहुत पुराने शहर पर धीरे धीरे
तुम एक नया शहर लिख रही हो

उमस पर रख रही हो बेफ़िक्री
मेरी उँगलियों पर दाँतों के निशान

उम्र की पूरी एक अलमारी बदल गई है
और मेरी ग़लतियों की फ़ेहरिस्त और-और लंबी हो गई है।

तुम ले जाना कहीं मुझे और
बिखेर देना फिर समेट कर।

कि एक दिन तुम मेरा हाथ थामे चल रही थी,
हम एक साथ जाने-अनजाने भीड़ में खो गये थे।

5. आदर्श प्रेम

उसके घर पर
प्रेमियों का आना निषेध था
और आईने के फ़्रेम पर चिपकीं समुद्री सीपियों
जितनी गिनती थी उनकी।

उसने सबका समय नियत किया हुआ था
और सबके घरों की तरफ़ जाने वाले रास्ते
अच्छे से पहचानती थी।

वह कोई नायिका थी
जो जादुई यथार्थ के किसी उपन्यास से उतर
मेरे जीवन में ऐसे चली आयी थी
जैसे मौसम में पहली बारिश आती है
और छा जाती है उमस और सुखाड़ पर।

एक आदर्श कल्पना में आस्था हमारे समय के हिस्से नहीं आई,
न उसका चाहना ही। ऐसे में कई प्रेमियों वाली वह स्त्री,
जिसने हाल ही बाल कटाये थे, जो दुकानों से पौधे चुराया करती,
जिसको नहीं चाहिए था किसी भी प्रेमी का एक स्पर्श भी अपने घर के भीतर

देर रात उसकी आवाज़ सुनता
दूर बहुत दूर, मैं सोचता था क्या हसीन वाक़या घटा
कि एक स्त्री का नायकत्व मुझसे इतना जी चूकने के बाद
टकराया और खोला इस तरह मुझे
जैसे समुद्री हवा जहाज़ के पाल खोलती है।

 

6. ठंडे हाथों के लिए
(एक स्त्री के एकतरफ़ा प्यार में)

काजल पर मैंने नये बिंब बनाये और
फिर से बेरहम मज़मून ए इश्क़ पर
भरोसा करने की कोशिश की।

फिर से एक गंध को कहा मेरे पास आकर बसे
शहर से अजाने चाहने लगा फिर दृश्य झुटपुटे।

यह जानते हुए कि
ज़िंदगी में नमी की जितनी जगहें हैं
किसी न किसी स्त्री का नाम लिखा है।

पता नहीं क्यों
एक अक्षर दोहराता है अपराध की तरह।
ग्लानि के बादल और बारिश की चाह एक साथ।

किसी और से किसी प्रतीक्षा का वादा न होता तुम्हारा
मेरी पीठ में इतना दर्द न होता और एक लंबी नींद की उत्कट कामना।
हम साथ पौधे ख़रीदा करते।

7. शीरीं फ़रहाद

नब्बे के दशक में कहानियाँ मुकम्मल नहीं होती थीं
इस वाक्य के अधूरेपन को समझने के लिए मुझे
इक्कीसवीं सदी में आना पड़ा।

मुझे यहीं ये भी मान लेना चाहिए कि कवियों को
अधूरेपन का आकर्षण किसी भी उम्र में ले डूब सकता है
क्योंकि लीक के पार की सघन तरलता और वहाँ फैला विष
कभी पीछा नहीं छोड़ता

किसी भी उम्र में जाने कितनी क़समों के बाद भी
बार बार सोने का छल्ला लिए बैठा बूढ़ा बाघ प्रेम
पुकारता है और अनन्य प्रेम किए जाने की इच्छा
खींच लेती है कि इस बार कुछ अलग होगा।

देर शाम उमस कुछ कम होने लगी थी
नदी में पानी कुछ कुछ बढ़ने लगा है कोई कह चुका था
सदी के अंत में कुछ नया नहीं था
इतनी निराशा थी कि लाल दीवारों की सुर्ख़ी झड़ने लगी थी

छोड़ दिया जाना नया नहीं था फिर भी नया था।
मैंने पाँच मिनट तक उसके चश्मे को गौर से देखा
और एक जानी पहचानी बेचैनी से भर गया।

सब तुम्हारे दिमाग़ में है,
अंग्रेज़ी पढ़ने वाली शीरीं ने मुझसे कहा
और चली गई।
कोई फरहाद उसका इंतज़ार करता था।

8. किसी के जाने के बाद

नदियों के शहरों से चले जाने के बाद
वहाँ क्या बचता है!

साँझ मुझे जहाँ से देखे
मैं अब उसे पलट कर देखना नहीं चाहता।

जो पेड़ था भीतर से चींटियों का खाया हुआ
टूट कर भहरा रहा है धीरे धीरे।

कितने प्रतीक खोजे कोई उस शूल के
जो गहरे धँसा हुआ है।

जीवन का राग यहाँ ख़त्म हुआ
दूर बज रही बीन से मेरा कोई सरोकार नहीं।

मैं कहाँ जाऊँगा मैं नहीं जानता
अब तुम भी मुझे बचा नहीं सकती।

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