आज पढ़िए युवा कवि देवेश पथ सारिया को। उन्होंने पेरिस यात्रा पर लिखा है- मॉडरेटर
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किसी शहर की कई परिभाषाएँ हो सकती हैं। जब शहर पेरिस हो तो उनकी संख्या सतही तौर पर ही बहुत हो जाती है। मसलन, दुनिया का सबसे खूबसूरत शहर, कला के दीवानों का तीर्थ, समृद्ध इतिहास और अद्भुत वास्तुकला का ख़ज़ाना। मुहब्बत का लुत्फ़ बेपर्दा लेने वालों का शहर। दुनिया की फैशन राजधानी। सदियों से कलाकारों को बरबस ही अपनी ओर खींचने वाला शहर। पेंटिंग की दुनिया से ताल्लुक़ रखने वाले किसने ऐतिहासिक पेरिस सलोन्स का नाम नहीं सुना होगा।
2017 में मुझे एक कॉन्फ्रेंस के लिए फ्रांस के नीस शहर जाने का मौक़ा मिला। मेरे पास यह अवसर था कि मैं कॉन्फ्रेंस के बाद कुछ दिन घूम सकता था । मेरी बकेट लिस्ट में दो शहर थे- पीसा और पेरिस। सबसे पहले मुझे उन्नीस साल पुराने एक ख़्वाब को पूरा करने इटली के पीसा शहर जाना था। कॉन्फ्रेंस में आने-जाने का ख़र्चा मुझे ताइवान सरकार देने वाली थी, इसलिए भुगतान में किसी भी जटिलता से बचने के लिए यह ज़रूरी था कि वापसी की फ्लाइट उसी देश से पकड़ी जाए, जहां कॉन्फ्रेंस थी। यानी समीकरण पेरिस से वापसी करने पर फिट बैठता था। सभी पक्ष देखने के बाद मैंने कॉन्फ्रेंस समाप्ति के बाद नीस से पीसा और पीसा से पेरिस जाना तय किया। व्यक्तिगत पर्यटन का ख़र्चा मुझे स्वयं उठाना था, यानी पीसा और पेरिस में होटल, खाने और यात्रा का ख़र्चा मेरे अपने सिर था। यूरोप घूमने के लिए मैं इतना कर ही सकता था।
29 अप्रेल 2017 को दोपहर चार बजकर पचास मिनट पर पीसा एयरपोर्ट से मेरी फ्लाइट थी। यह जानना मेरे लिए सुखद था कि पीसा के अवाई अड्डे का नाम महान वैज्ञानिक गैलीलिओ के नाम पर रखा गया है। ईज़ीजेट एयरवेज की फ्लाइट मैंने तीन दिन पहले कॉन्फ्रेंस में मिली एक भारतीय लड़की की मदद से बुक कर ली थी। 140 यूरो में । रेल से जाने पर कुछ रक़म बच जाती पर समय बहुत लग जाता। यात्रा के अंतिम पायदान पर समय घूमने के लिए बचाना ज़्यादा मायने रखता था। इंटरनेट पर पीसा एयरपोर्ट के आँकड़े बताते हैं कि 2017 में पीसा एयरपोर्ट से कुल 52,33,118 यात्रियों ने उड़ान भरी। यदि मैं उस दिन रेल से जाता तो यह आँकड़ा 52,33,117 होता। एक-एक आदमी मिलाकर भीड़ बनती है।
शाम के लगभग साढ़े छह बजे मैं पेरिस से 8 मील दूर स्थित ओर्ली हवाई अड्डे पर उतरा । चार्ल्स डी गॉल एयरपोर्ट, जो कि पेरिस का सबसे बड़ा एयरपोर्ट है, के अस्तित्व में आने से पहले 1974 तक ओर्ली पेरिस का मुख्य एयरपोर्ट रहा था। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जर्मन सैनिकों ने इस पर कब्ज़ा कर लिया था, तब इसे यूनाइटेड किंगडम और अमेरिका की एयर फोर्स ने निशाना बनाया था ताकि जर्मन जहाज़ हवाई अड्डे का इस्तेमाल न कर पाएँ । एयरपोर्ट के कई हिस्से उन आक्रमणों से ध्वस्त हुए। फ्रांस का जीवट ही है कि वह युद्ध के बाद फ़िर उठ खड़ा हुआ और अपनी कलात्मक और सांस्कृतिक पहचान को सहेजा। ओर्ली घरेलू उड़ानों के मामले में पेरिस का व्यस्ततम एयरपोर्ट है। ऐसा नहीं कि ओर्ली हवाई अड्डे से अंतर्राष्ट्रीय उड़ानें न हों। यहां से मध्य पूर्व, अफ्रीका, नार्थ अमेरिका और कैरेबियाई देशों को उड़ानें रवाना होती हैं।
ओर्ली हवाई अड्डे से पेरिस की तरफ रेल जाती है जो पेरिस मेट्रो से भी जुड़ती है। मैंने पेरिस जाने के लिए यही विकल्प चुना। शुरूआत ही बुरी हुई । अपने टिकट को ट्रेन स्टेशन के प्रवेश पर लगे सेंसर पर रखकर मैंने पहले अपना बैग अंदर धकेल दिया । उसके बाद मैं घुसने लगा, तब तक एंट्रेंस लॉक हो चुका था। मेरा टिकट बैग को उस पार भेजने में उपयोग किया जा चुका था, अब वह दोबारा काम नहीं कर रहा था। मैं बैग को उस तरफ़ पड़ा छोड़कर दूसरा टिकट ख़रीदने भी नहीं जा सकता था। आसपास खड़े लोगों ने कहा कि तुम इन धातु के डंडों के नीचे से झुक कर निकल जाओ। इतने बड़े शहर में घुसते ही क़ानून तोड़ना? वह भी एयरपोर्ट के ट्रेन स्टेशन पर? मेरी धड़कन बढ़ गयी। सिक्योरिटी कैमरा भी नज़र रखे हुए था । मैंने बहुत डरते हुए वही किया जो मुझे साथी यात्रियों ने बताया था । यह हरकत मैंने कर तो ली थी पर मैं यह सुनिश्चित कर लेना चाहता था कि मैं किसी पचड़े में ना फँस जाऊँ, इसलिए जैसे ही मुझे स्टेशन पर सिक्योरिटी ऑफिस दिखा, मैं भीतर गया और उन्हें सारी बात बताई। उन्होंने मुझे आश्वस्त किया। मैंने जाकर अपनी ट्रेन पकड़ी।
ट्रेन और मेट्रो आम पेरिसवासी की दैनिक जीवनचर्या का हिस्सा हैं। किसी भी बड़े शहर की तरह यह एक व्यस्त शहर है, पर खूबसूरत वास्तु और कला का शहर भर में बिखराव व्यस्तता को बोझिल नहीं होने देते। वैसे भी फ्रेंच जीवनशैली जीवन को बोझमुक्त रखने पर ज़ोर देती है। मसलन, वे आज भी समाचार मोबाइल की स्क्रीन की अपेक्षा प्रिंटेड अखबार में पढ़ना पसंद करते हैं। किताबें खूब पढ़ते हैं, लाइब्रेरी में लोग अब भी जाते हैं। पैदल चलते हैं, मेट्रो पकड़ने के लिए या राशन की खरीद के लिए। बेमतलब भी खूब चलते हैं। मैंने पाया कि पेरिस के लोग नीस के लोगों की तुलना में ज़्यादा फिट थे। शायद पेरिस मेट्रो स्टेशनों पर पैदल चलना इसके पीछे वजह हो। वे अपनी सब्ज़ियां ताज़ी खरीदना पसंद करते हैं। बहुत से फ्रेंच आज भी छोटी मंडियों से ख़रीददारी करना ज़्यादा पसंद करते हैं। मौसमी सब्ज़ी या फल को तरजीह दी जाती है। फूल, सब्ज़ी या ब्रेड खरीदने जाना विक्रेताओं से एक रिश्ता क़ायम करने में मदद करता है। ब्रेड फ्रेंच ब्रेकफास्ट का अनिवार्य हिस्सा है, वैसे वह दिन के किसी भी भोजन के साथ भी खाई जा सकती है। फ्रेंच वाइन दुनिया भर में मशहूर है जिसकी क़िस्म और स्वाद फ्रांस में बदलता रहता है। यहां लोग अपने इलाक़े की वाइन से भावनात्मक रूप से जुड़े होते हैं । अमूमन ब्रेड सस्ती मिल जाती है और उसके साथ घर में कुछ बनाया जाता है। यदि बाहर खाना है तो शहर भर में सुन्दर कैफे हैं। दुनिया भर की भोजन संस्कृति के रेस्त्रां पेरिस में मौजूद हैं। पेरिस में रेस्त्रां मंहगे और सस्ते दोनों तरह के हैं, यही बात कपड़ों की दुकानों पर लागू होती है। सही जगह की जानकारी स्थानीय निवासियों को होती है। जहाँ तक पर्यटकों की बात है, वे आम तौर पर ठगे जाते हैं।
पर्यटकों के लिए पेरिस सुरक्षित शहर नहीं है। ज़रा सी लापरवाही या सड़क पर मिले किसी अजनबी पर विश्वास करते ही आप ठगे जा सकते हैं। जिप्सी और अन्य तरह के ठग, पॉकेटमार और टूरिस्ट स्कैमर आपको पेरिस में मिलेंगे। मेट्रो या ट्रेन में सफ़र करते हुए भी आपको बगल में बैठने वाले पर नज़र रखनी होती है। यदि खड़े होकर सफ़र कर रहे हैं तो दरवाज़े से दूर खड़े हों। कुछ ऐसे भी चोर होते हैं जो किसी स्टेशन पर घुसते हैं और ट्रेन या मेट्रो चलने से ठीक पहले दरवाज़े के पास खड़े किसी यात्री का बैग छीनकर प्लेटफॉर्म पर भाग जाते हैं। चूंकि मेट्रो का दरवाज़ा बंद हो चुका होता है, आप कुछ नहीं कर सकते। ज़रुरत भर रक़म ही जेब में लेकर चलें। पतलून की पीछे के जेब में अपना पर्स कभी न रखें। मैंने पूरी यात्रा में जींस की सामने की जेब में मोबाइल और पर्स रखा ताकि उनके सही-सलामत मौजूद होने का एहसास रहे। अपनी सोने की अंगूठियाँ मैं ताइवान में ही छोड़ गया था। ऐसी जगहों पर भारत में पहनी जाने वाली पेट पर जेब वाली बनियान बड़ी उपयोगी होती है। आजकल का युवा उसे तिरस्कार की दृष्टि से देखता है, गुज़रे ज़माने की चीज़।
पेरिस में ठहरने के लिए होटल मैंने ऑनलाइन बुक कर लिया था और होटल की तरफ़ से मुझे बता दिया गया था कि किस मेट्रो स्टेशन पर उतरना है। मेरा होटल स्टेशन से क़रीब ही था पर वह पूरा इलाक़ा इतना व्यस्त है कि आप नये हैं तो खो जाएंगे। उस पर आप पहली बार पेरिस देख रहे हैं, जिसकी तुलना किसी और शहर से हो ही नहीं सकती। ऐसे में हक्के-बक्के हो खो जाने की संभावना बढ़ जाती है। मेरे पास वहाँ का लोकल सिम कार्ड भी नहीं था कि गूगल मैप से कोई मदद मिल पाती। मैं कुछ देर अपना बैग लेकर पैदल भटकता रहा। मुझे दिशा नहीं मिल रही थी। चूँकि रात होने लगी थी, हारकर वह पता मैंने एक टैक्सी वाले को दिखाया और उसने मुझे होटल छोड़ दिया। होटल वाक़ई बहुत पास था।
होटल के नाम की स्पेलिंग NESLE होते हुए भी उसका उच्चारण नेल था (न कि नेस्ले) । यह बात मुझे किसी फ्रेंच व्यक्ति ने बताई थी। होटल की दीवारों पर हाथ से सुन्दर चित्र बनाए हुए थे। भीतर एक बाग़ीचा भी था, शांत। वहाँ कुर्सी डालकर सुस्ताया जा सकता था, कोई किताब पढ़ी जा सकती थी। होटल से थोड़ी दूर चलते ही सीन नदी थी। लूव्र संग्रहालय और ऐतिहासिक नॉत्रे-डेम कैथेड्रल वहाँ से पैदल जाया जा सकता था। सबसे पहले मैंने कागज़ात बैग में संभाल कर रखे और सिर्फ ज़रुरत भर के यूरो लेकर बाहर निकला। होटल नेल के बिल्कुल पड़ोस में ही एक भारतीय रेस्त्रां था। लगभग सौ मीटर भर की दूरी पर। मुझे भूख लग आई थी तो उसी रेस्त्रां में घुस गया । उस रेस्त्रां का खाना कुल मिलाकर ठीक ही था। वहाँ दीवारों पर भारतीय आदमियों की पुरानी सी तस्वीरें लगी थीं, जो दशकों पुरानी तो होंगी ही। उन तस्वीरों के दाम सैकड़ों यूरो में थे। जी, वे बेचने के लिए थीं। पेरिस, कला प्रेमियों का शहर। वहाँ ऐसा कुछ बिक जाने की सहज ही उम्मीद की जा सकती है।
30 अप्रैल 2017 का पूरा दिन घूमने के लिए था। पेरिस में देखने के लिए इतना कुछ है कि प्रमुख टूरिस्ट स्पॉट्स घूमने को एक हफ़्ता भी कम पड़ जाए। पेरिस के दीवानों की मानें तो पेरिस एक अनुभव है, जिससे अघाने को एक पूरी उम्र भी नाकाफ़ी हो। मेरे पास फ़क़त डेढ़ दिन था और मुझे तय करना था कि कौनसी जगह मेरे लिए सबसे ज़्यादा मायने रखती है। मोना लिसा को देखना मेरी पहली प्राथमिकता थी, जो कि लूव्र म्यूज़ियम में अपनी मुस्कान बिखेरती हुई मौजूद है। उसके बाद यदि समय बचता तो मुझे एफिल टावर देखना था।
मेरे होटल से लूव्र की दूरी एक किलोमीटर के आसपास थी, दस-पंद्रह मिनट पैदल चलकर वहाँ पहुंचा जा सकता था। सुबह-सुबह मैं पैदल ही चल दिया। मैं सीन नदी के ऊपर पुल से गुज़र रहा था, किनारों पर कलात्मक खम्भों को देखता हुआ। पेरिस की सुबह की धूप और हवा बहुत खुशनुमा थी। बहुत जल्द मेरे मुंह में कड़वी कंकरी पड़ने वाली थी, आकाश में बादल छा जाने वाले थे। वहाँ सीन के ऊपर पुल पर सड़क किनारे फुटपाथ पर कुछ लड़कियाँ खड़ीं थीं। उनके हाथों में तख्तियाँ सी थीं। उन्होंने मुझे अपने पास बुलाया। उनके अनुसार वे एक सिग्नेचर कैम्पेन चला रही थीं, जो कि बच्चों की पढ़ाई के लिए था, एनजीओ टाइप काम। तख्ती पर लगे कागज़ में कुछ नाम-पते पहले से लिखे थे। वे मुझे यह सब बता ही रही थीं कि अचानक एक फ्रेंच लड़की जो दौड़ने निकली थी, वहां से गुजरी और उसने मुझसे कहा- “बी केयरफुल बॉय”। मैं समझ गया कि कुछ घपला है। इसलिए मैंने उस कागज़ पर गोलमोल सा नाम- पता लिखा। मेरे लिखने की देर थी कि वे मुझसे दो सौ यूरो मांगने लगी। मेरे मना करने पर वे उग्र होने लगीं। पिंड छुड़ाने के लिए मैंने कुछ यूरो के सिक्के उन्हें दिए और कहा कि इससे ज़्यादा मैं कुछ नहीं दूंगा। मैं वहाँ से आगे बढ़ने ही लगा था कि अचानक एक पुलिस की कार आकर रुकी। पुलिस वालों ने कार के दरवाज़े धाड़ से बंद किए और उन लड़कियों को पकड़ने के लिए लपकी। जैसा फिल्मों में दिखाते हैं, एकदम वैसा हो रहा था। कुछ ही पल में वे लड़कियाँ गिरफ्तार कर ली गयीं। यह सब मेरी आँखों के ठीक सामने हो रहा था। मैं बगल ही में खड़ा था और लड़कियों के कागज़ में अंतिम नाम मेरा था। पता भी, जो आधा ग़लत था। मैंने ही पुलिस को बताया कि मैं इनके द्वारा द्वारा ठगा गया हूँ। मेरे ऐसा बोलते ही उस लड़की ने मुझे मेरे सिक्के लौटा दिए। मैं वहां से जाने को हुआ तो पुलिस वाले ने मुझसे पासपोर्ट दिखाने को कहा। मैं डर गया। मैं होटल से पासपोर्ट की सिर्फ एक फोटो कॉपी लेकर आया था । पुलिस ने मेरे पासपोर्ट की कॉपी की फोटो खींची। मेरे शंका जताने पर कि मैं ही कहीं इस मामले में फँस न जाऊं (यह भारतीय होने से मिला संस्कार है), फ्रेंच पुलिस ने कहा कि घबराओ मत, हम तुम्हें ठगी के शिकार के तौर पर ले रहे हैं। उन्होंने मुझे यह भी चेक करने को कहा कि मेरा पर्स और मोबाइल तो मेरे पास सलामत हैं न, क्योंकि इस तरह की ठग लड़कियाँ नज़र बचाकर चोरी भी कर लेती हैं। जींस के सामने की जेब ने मुझे बचा लिया था। पुलिस लड़कियों को पकड़ कर ले गई। हालॉंकि लड़कियों से बच निकलने के बावजूद मुझे आगे कहीं और ठगा जाना था।
चलते हुए लूव्र पहुँचा तो वहाँ घुसने से पहले एक और ठग तख्ती लिए खड़ा था। वह अफ्रीका में भुखमरी के नाम पर पर्यटकों से साइन करवा रहा था। मैं अब स्याणा दिखने की कोशिश में उस पर कुछ कस्बाई टिप्पणी करने लगा, जिसे बगल में चल रहे प्रौढ़ पर्यटक ने वैसे ही इग्नोर किया जैसे पेरिस शहर में टूरिस्ट प्लेस पर किसी अजनबी को किया जाना चाहिए। वैसे एक वजह यह भी हो सकती है कि वह व्यक्ति फ्रेंच रहा हो। फ्रेंच अपनी भाषा और संस्कृति के प्रति बहुत समर्पित होते हैं। इसकी वजह से वहाँ काम करने वाले विदेशियों को कई बार तालमेल बिठाने में दिक़्क़त होती है। लम्बे समय तक वहाँ काम करने वालों को फ्रेंच भाषा के साधारण शब्दों से शुरुआत कर धीरे- धीरे फ्रेंच सीख लेने की सलाह दी जाती है। भाषा सीखने में सबसे बड़ी अड़चन शब्दों के उच्चारण की भिन्नता है। इसके अलावा आपको अपने पहनने के तरीक़े में भी फ्रेंच तमीज़ लानी होगी। ज़रूरी नहीं कि सभी फ्रेंच बहुत मंहगे कपडे पहनते हों पर उनका अपना एक ढंग होता है। फ्रेंच लोग मानते हैं कि कपड़ों से स्वयं को जितना अच्छा प्रस्तुत किया जा सके, उतना बेहतर। यदि आपको किसी ने डिनर पर आमंत्रित किया है तो आपसे फूल या वाइन की बोतल जैसा कुछ गिफ्ट लेकर जाने की उम्मीद की जाती है। फूल चुनने की भी अपनी परम्परा है। सम संख्या में फूल ले जाना किसी की मृत्यु का प्रतीक हैं। पेरिस में अपार्टमेंट का किराया चुकाना भी सबके बूते की बात नहीं। कौन भला इस ऐतिहासिक शहर में न रहना चाहेगा। 2020 में नेटफ्लिक्स पर एक वेब सीरीज़ आई थी – ‘एमिली इन पेरिस’, जिसमें एक अमेरिकन लड़की के पेरिस में काम करने के अनुभवों को दिखाया गया था। फ्रेंच लोगों ने इसे अपने प्रति पूर्वाग्रहग्रस्त और रूढ़िवादी मानते हुए आपत्ति जताई थी। काम करने का ढंग भी यहां निराला है – लगभग डेढ़-दो घंटे का लंच ब्रेक ताकि एक-एक निवाले का भरपूर लुत्फ़ उठाया जा सके । फ़िर भले ही शाम छह बजे तक काम करना पड़े। सप्ताहांत में काम की कोई ज़रुरत नहीं, यहां तक कि वे काम के ईमेल भी छुट्टी वाले दिन नहीं पढ़ते। छुट्टी परिवार और दोस्तों के लिए है। शहर में किसी भी जगह जाकर पिकनिक मनाया जा सकता है, जैसे सीन नदी के किनारे, एफिल टावर के नीचे । संगीत की किसी कॉन्सर्ट में जाया जा सकता है। पेरिस में इतने संग्रहालय और एन्टीक शॉप्स हैं, और फ्रेंच व्यक्ति कला से बोर नहीं होते। वे पेंटिंग्स के पीछे की पूरी कहानी की पड़ताल करते हैं।
लूव्र पहले एक महल था। 1989 में इसके सामने 673 कांच के पैनलों वाला पिरामिड जोड़ा गया था। तब कई लोगों ने इसे पेरिस के कला विन्यास के अनुरूप नहीं पाया था। उनका मानना था कि एक पुराने महल के ठीक सामने काँच का बना पिरामिड संगत नहीं लगेगा। बहरहाल, यही पिरामिड अब कला के सबसे बड़े घर में प्रवेश का ज़रिया था। लूव्र में टिकट की क़तार लंबी थी। पेरिस में प्रेम का उछाह हर तरफ़ दृष्टिगत होता था। लूव्र के बाहर चूमते हुए जोड़े।
दूसरे विश्व युद्ध के दौरान नाज़ियों ने दुनिया भर की कला सम्पदा को लूटा और कई कलाकृतियों को नष्ट भी किया। दशकों बाद, अब भी कई कलाकृतियां गायब हैं। कितनी ही पेंटिंगों के सही मालिकों के वंशज उन्हें ढूँढने की कोशिशों में लगे हैं। नाज़ियों के आक्रमण के दौरान लूव्र के तत्कालीन स्टाफ ने लूव्र की अधिकांश कला सम्पदा को छुपा दिया था।
लूव्र न केवल पेरिस, बल्कि दुनिया का सबसे बड़ा संग्रहालय है। इतना बड़ा होते हुए भी यह एक बार में अपने कुल जमा कला संग्रह का मात्र दस प्रतिशत ही दिखा पाता है। वह दस प्रतिशत भी इतना है कि कला की समझ रखने वालों को, जो हर कलाकृति को ठहरकर देखते हैं, लूव्र में कई दिन बिताने होंगे। मोना लिसा लूव्र की सबसे प्रसिद्ध कलाकृति है। कुछ लोग सिर्फ़ उसी को देखने लूव्र जाते हैं, उनके मार्गदर्शन के लिए संग्रहालय में कई जगह मोना लिसा के कक्ष की दिशा दिखाते चिन्ह लगे हैं। संग्रहालय के कर्मचारी भी मदद करने को तत्पर रहते हैं। लूव्र में उस दिन प्रदर्शित मूर्तियों और पेंटिंगों में से जिन्हें मैं देख पाया, उनकी पृष्ठभूमि का वर्णन और कलात्मक व्याख्या इस वृत्तांत की परिधि से बाहर की वस्तु है। फिलवक़्त, मैं तीन चित्रकारों के नाम का ज़िक्र करूंगा जिनकी पेंटिंगों ने मुझे लूव्र में सबसे अधिक प्रभावित किया- जैक-लुई डेविड, यूजेन डेलाक्रॉक्स और लियानार्दो दा विंची। मोना लिसा के अतिरिक्त भी दा विंची की कई और प्रमुख पेंटिंग लूव्र में प्रदर्शित हैं। आप किसी कला या साहित्यिक विधा में रूचि की शुरुआत उसके सबसे प्रसिद्ध प्रतिमानों से करें, पर वहीं रुके न रहें। कला की सही क़द्र करना मैंने लूव्र से सीखा। उसके बाद मैं जिस भी संग्रहालय में गया, बेहतर तैयारी के साथ गया। अधिक मुस्तैदी से उन संग्रहालयों से अधिकतम जानकारी जुटाई। कला के विभिन्न आन्दोलनों के बारे में जाना।
लूव्र के क़रीब ही एक मेट्रो स्टेशन हैं। मेट्रो पकड़ कर मैं अब पेरिस के उस इलाक़े में था जहां वह लोहे का गौरव खड़ा है, जिसे एफ़िल टावर कहते हैं । मुझे भूख लग आई थी। मेट्रो स्टेशन के पास ही एक रेस्त्रां में चला गया। मुझे घर बात करनी थी और रेस्त्रां में वाईफाई मिलने की उम्मीद थी। मैंने रेस्त्रां में वेटर से वाईफाई का पासवर्ड माँगा और वह कुटिलता से बोला कि आप पहले आर्डर करें तभी आपको पासवर्ड दिया जाएगा। मैंने एक वेजीटेरियन पिज़्ज़ा आर्डर कर दिया। आर्डर लेते ही वह चम्पत हो गया। पासवर्ड देने को रुका ही नहीं। मैंने ही बेशर्मी से उसके पीछे लगकर पासवर्ड माँगा। उसने मुझे ग़लत पासवर्ड दिया जो अंत तक कनेक्ट नहीं हुआ। कुल मिलाकर बात यह थी कि उन्हें वाईफाई का पासवर्ड देना ही नहीं था, ताकि उनके यहां कोई ग्राहक ज्यादा देर न रुके और नए ग्राहक आते रहें। पिज़्ज़ा भी गया-गुज़रा ही था। दो दिन पहले मैंने इटली में जीवन का सबसे बढ़िया पिज़्ज़ा खाया था और अब यह बेस्वाद पिज़्ज़ा। इसी तरह के टूरिस्ट स्कैम्स की हम भारत में निंदा करते हैं, जैसे प्रयागराज में मिले वो पण्डे जो संगम नहाने गए अच्छे-खासे सुखी आदमी तक से पिंडदान की दक्षिणा ऐंठ लेते हैं। हर शहर के अपनी तरह के ठग होते हैं।
मैं एफिल टावर की तरफ चलने लगा। रास्ते में एक जगह एक व्यक्ति को घेरे हुए कुछ लोग खड़े थे। वह आदमी तीन गिलासों को जल्दी-जल्दी अदल-बदल करता हुआ किसी एक के नीचे एक गेंद छिपा रहा था। खेल शर्त लगाने का था। यदि आप सही बता देते हैं कि किस गिलास के नीचे गेंद मिलेगी तो वह आपको 100 यूरो देगा वरना आप से 100 यूरो ले लेगा। बीच-बीच में कोई जीत भी रहा था। एक बार मैंने बिल्कुल स्पष्ट ढंग से देखा कि गेंद बीच वाले गिलास के नीचे है। आप मुझे बेवक़ूफ़ कह सकते हैं क्योंकि मैंने शर्त लगाई और सौ यूरो हार गया। बाद में मुझे मालूम हुआ कि यह हाथ की सफाई का खेल है, जिसमें सामने से शर्त लगाने वाला कभी जीत ही नहीं सकता। जो लोग कभी-कभी जीतते हुए दिखाई देते हैं, वे उस बाज़ीगर के अपने आदमी होते हैं जिन्हें बीच-बीच में जिताया जाता है। वे दिन भर पर्यटकों को यह भरोसा दिलाने के लिए बोली लगाते हैं कि इस खेल में जीतना मुमकिन है। वही लोग आपको एक बार हार जाने पर दोबारा बोली लगाने के लिए उकसाते हैं और आदमी सोचता है कि वह अपने हारे हुए पैसे वापस जीत सकता है और दोबारा हार जाता है। मैंने दोबारा शर्त लगाने की बेवकूफी नहीं की। एक दिन में इतने घात झेलने के बाद पेरिस शहर से मेरा मन उचट गया था। फिर भी आगे बढ़ता रहा। कौन जाने एफ़िल टावर देखने का अवसर जीवन में दोबारा मिले, न मिले।
एफिल टावर का नाम आज भले ही दुनिया के सात अजूबों में शुमार हो, उसका बनने का सफ़र आसान नहीं था। टावर के निर्माण से पहले फ्रांस के कई प्रमुख कलाकार, लेखक और अन्य बुद्धिजीवी टावर के निर्माण के विरोध में लामबंद हो गए थे। उन्होंने इसे बेहूदा, बेकार और यहाँ तक कि अश्लील भी कहा। एफिल टावर का नाम फ्रेंच अभियंता गुस्ताव एफिल के नाम पर रखा गया है। दिलचस्प बात यह है कि टावर की डिज़ाइन स्वयं एफिल ने नहीं, बल्कि मॉरिस कोचलीन और एमिले नौजिएर ने एफिल की कंपनी के लिए बनाई थी। उस वक़्त दुनिया में सबसे बड़ी मानव निर्मित इस कृति का निर्माण 1887 में आरम्भ हुआ और दो साल से कुछ अधिक समय में यह बनकर तैयार हुआ। यह 300 मीटर से अधिक ऊंचाई का पहला मानव निर्मित ढाँचा था। आज भी पेरिस में कोई इमारत एफिल टावर से अधिक ऊंचाई की नहीं बनाई गयी है। शुरुआत में इसे 20 साल बाद विघटित कर दिए जाने की योजना थी। पर देखिए कि लगभग 132 साल बाद भी यह पेरिस के मस्तक पर मणि की तरह चमकता हुआ मौजूद है। इसे ‘द आयरन लेडी’ भी कहा जाता है । जो इतनी मुसीबतों के बाद भी अस्तित्व में आए और अपना लोहा मनवाए, वह लौह स्त्री ही हुई। आज दुनिया में कई इमारतों की डिज़ाइन एफिल टावर से प्रेरित है। समय-समय पर इसकी मरम्मत की जाती है। लोहे को जंग से बचाने के लिए युक्तियाँ की जाती हैं।
एफिल टावर के नीचे आसपास के इलाक़े में प्रवेश बिना किसी फीस के है, बस आपको सुरक्षा जांच से गुज़रना होगा। फ्रांस ने अपने हिस्से के आतंकी हमलों को झेला है, ऐसे में यह चौकसी स्वाभाविक भी है। मैं एफ़िल टावर के नीचे आया और टावर के लोहे को देखता रहा कि कैसे मात्र लोहा टुकड़ा- टुकड़ा मिलकर दुनिया का वह अद्भुत टावर बन गया है जिसे प्रत्येक दिन हज़ारों लोग घूमने आते हैं। कितने लोगों की बकेट लिस्ट में यह ज़रूरी तौर पर मौजूद है। जिन्हें ऊंचाई से डर लगता है, वे भी एफिल टावर आने का मोह नहीं त्याग पाते और टावर के नीचे बैठकर जश्न मनाते हैं। मैं टावर में ऊपर जाने के लिए लगी टिकट की लाइन में लग गया। वहाँ तीन तल हैं। सबसे ऊपरी तल जहां गुस्ताव एफिल का ऑफिस है, उन दिनों पर्यटकों के लिए बंद था। ग्यारह यूरो का टिकट लेकर मैं दूसरे तल तक जा सका। वहाँ कुछ गिफ़्ट शॉप और रेस्त्रां हैं। पर असल मज़ा वहाँ से पेरिस शहर का खूबसूरत मंज़र देखने का है । सीन नदी और त्रिभुजों के आकार में नज़र आता सामने का सिटी प्लान। यदि उस समय तक बादल न हो गए होते तो और साफ़ दृश्य दूर तक दिखाई देता। पर, उस स्थिति में शायद दुनिया के इस अजूबे से बादल भरा आसमान न देख पाने की तमन्ना रह जाती । एफिल टावर सुबह से लेकर मध्यरात्रि तक पर्यटकों के लिए खुला रहता है। इसका रूप रात में कुछ और ही नज़र आता है। सर्दियों में एफिल टावर की लाइट्स जल्दी जला दी जाती हैं। मैं गर्मियों में गया था और मुझे अगले दिन की तैयारी के लिए समय रहते लौटना था। एफिल टावर से नीचे उतरते समय यह विकल्प था कि सीढ़ियां उतरते हुए आया जा सकता था। सीढ़ियों का इस्तेमाल कम लोग कर रहे थे। वे क्षण ऐसे थे जब मैं एफिल टावर के लोहे का साक्षात्कार कर पा रहा था। तमाम चमक-दमक से दूर वे सिर्फ़ धातु की सीढ़ियां थीं। लोहा जिसे ढालते समय, ढहा दिया जाना प्रस्तावित किया गया था।
दिन बीतते मैं मानसिक और भावनात्मक तौर पर थक चुका था। दिन का अंत भारतीय खाना खाकर करना चाहता था पर इतनी हिम्मत नहीं थी कि किसी नई जगह जाऊं और वहां भी ठगी से बचता फिरूँ। मैं नजदीकी मेट्रो स्टेशन आया। रास्ते से कुछ फल खरीदकर खा लिए। मेट्रो में सफ़र के दौरान सामान को कसकर पकड़े रहा । होटल रूम आकर थोड़ी देर आराम किया। फ़िर उसी पड़ोस वाले भारतीय रेस्त्रां में जाकर खाना खाया और होटल आकर सो गया।
1 मई 2017 को मेरी फ्लाइट पेरिस से शाम को 6:30 बजे थी। होटल से चेक आउट काफी पहले कर देना था। सुबह-सुबह तैयार होकर मैंने अपना सामान होटल में नीचे रखवा दिया। बीते दिन की घटनाओं के बाद मेरा मन कहीं किसी टूरिस्ट प्लेस पर जाने को नहीं हुआ। सीन नदी के पास एक कैफ़े में गया जहां उपस्थित कर्मचारी भारतीय उपमहाद्वीप का लग रहा था। उसने बताया कि वह श्रीलंका से हैं। वहीं कॉफी और ब्रेड का नाश्ता किया। मेट्रो में बैठ कर यूँ ही किसी रैंडम स्टेशन पर उतर गया। पेरिस की सड़कों पर भटकता रहा। जब लगा कि अब एयरपोर्ट के लिए निकलना चाहिए तो होटल वापस लौटने के लिए टैक्सी ले ली। टैक्सी वाले ने भी ओवर चार्ज किया।
होटल से सामान लेकर दूसरी टैक्सी पकड़कर फ्रांस के सबसे बड़े अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट चार्ल्स डी गॉल एयरपोर्ट पर आ गया। यह पेरिस से करीब 14 मील की दूरी पर स्थित है। इस हवाई अड्डे का नाम फ्रांस के एक सैनिक अफ़सर के नाम पर रखा गया है, जो कालांतर में दस साल तक फ्रांस के राष्ट्रपति रहे। उन्होंने दूसरे विश्व युद्ध के बाद फ्रांस में लोकतंत्र की पुनर्स्थापना में योगदान दिया और फ्रांस का संविधान दोबारा लिखा। चार्ल्स डी गॉल एयरपोर्ट बहुत बड़ा था- क़रीब साढ़े बारह वर्ग मील क्षेत्रफल में फैला हुआ। एयरपोर्ट पर घूमता रहा। एयरपोर्ट के किसी कैफ़े में कुछ शाकाहारी मिला, तो खा लिया। अलग-अलग देशों के लोग दुनिया की फैशन राजधानी से उड़ान भर रहे थे। फैशन के अतरंगी रंगों को देखता रहा। सीन के पुल पर ठगी वाली घटना का डर मेरे भीतर पेरिस से वापसी की उड़ान भरने तक बना रहा। कभी-कभी लगता कि एयरपोर्ट पर इमिग्रेशन वाला रोककर कहेगा कि तुम एक ठगी के गवाह हो। वह डर पेरिस से जहाज़ में बैठने पर जाता रहा। पेरिस से उड़ान एम्स्टरडम पहुंची। जब मैं कॉन्फ्रेंस के लिए आ रहा था तब एम्स्टरडम एयरपोर्ट पर ट्रांज़िट प्रक्रिया में बहुत समय लगा था। ताइवान वापस लौटते समय एम्स्टरडम एयरपोर्ट पर दोनों उड़ानों के बीच एक घंटे से भी कम समय था। मुझे डर लग रहा था कि कहीं फ्लाइट मिस ना हो जाए। वापस लौटते समय सारी प्रक्रिया बहुत जल्दी निपट गई और मैं ताइवान लौट आया।
मैं पेरिस के कड़वे अनुभवों से क्षुब्ध था पर आज पीछे मुड़कर देखता हूँ तो मैं पेरिस की ख़ूबसूरती को याद करता हूँ। लौटने के बाद मुझे उस शहर से प्यार हो गया है। मैं वहाँ दोबारा जाना चाहता हूँ। बेहद औसत मानी गयी फ़िल्म ‘बेफिक्रे’ मैं तीन बार पेरिस की वजह से देख चुका हूँ। मेरी यात्रा के दौरान कोई एक जगह और देख पाने का समय मैंने गँवा दिया था। नॉत्रे-डेम मैंने सड़क से गुज़रते हुए बाहर से देखा था। साल 2019 में जब वहाँ आग लगी, मुझे लगा कि मैंने भीतर न जाकर भूल की है। मैं सीन नदी में बोट पर बैठना चाहता हूँ । कला में मेरी दिलचस्पी बढ़ गयी है और मैं पेरिस के संग्रहालय देखना चाहता हूँ। म्यूज़ी डी ओर्से मेरे होटल के क़रीब था। लूव्र में भी इतने वर्षों में दूसरी कलाकृतियां लगा दी गयी होंगी। एफिल टावर का ऊपरी तल पर्यटकों के लिए खुल गया होगा (मैं एक महामारी विहीन दुनिया की कल्पना कर रहा हूँ)। उन सब रेस्त्राओं और कैफ़ेज़ में बैठना चाहता हूँ, जहां दुनिया के चहेते लेखक और पेंटर घंटों बैठा करते थे। मैं उन लोगों से दोस्ती कर जो एक उम्र पेरिस पर वार देना चाहते हैं, उनकी पसंद की जगह घूमना चाहता हूँ । पेरिस के चोरों से बचने के लिए मैं जेब वाली बनियान खरीदने को भी तैयार हूँ।
~ देवेश पथ सारिया