इन कविताओं पर परंपरा का बोझ नहीं है बल्कि बल्कि इन्हें पढना हिंदी में कविता की अछूती जमीन से गुजरना है. विजया सिंह की कविताओं की ताजगी ने बहुत प्रभावित किया. आप भी पढ़िए- मॉडरेटर.
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1.
रजाई
बुढ़ापे की पहली निशानी है
नाखूनों के नीचे गंदगी का जम जाना
बूढ़े लोग हाथ धोने से कतराते हैं
उन्हें ठण्ड ज्यादा लगती है
रजाई उन्हें दुनिया की सबसे शानदार जगह लगती है
वे उसे लेकर निकल पड़ते हैं
और घर के अन्दर ही रजाई के एक मामूली से मोड़ से
कभी पहाड़, कभी दरिया, कभी दरख़्त बन जाते हैं
ऐसा नहीं, कि उन्हें दुनिया की सैर में कोई दिलचस्पी नहीं
पर रजाई को हर जगह नहीं ले जाया जा सकता
खासकर हवाई जहाज पर तो बिलकुल नहीं
फिर रजाई चाल को बहुत धीमा कर देती है
पेरिस में लूव्र के अन्दर रजाई ले जाने की सख्त मनाई है
उसी तर्ज पर न्यू-यॉर्क, लन्दन, एम्स्टर्डम के हर अजायबघर में
रजाई को बाहर ही छोड़ने के निर्देश हैं
दुनिया के हर दर्शनीय स्थल को रजाई से खास चिढ़ है
नियाग्रा फाल्स की हवाएं रजाई को उडा देना चाहती हैं
साओ पाउलो के नर्तक रजाई पर कड़े हुए फूलों और तितलियों पर नज़र गड़ाए हैं
उन्हें फूल अपने गज़रों के लिये और तितलियाँ अपने जूड़ों के लिये चाहिए
किसी अदृश्य नगाड़े की थाप पर वे बढ़ते आ रहे हैं
उनके थिरकते कदम रजाई को रौंद देना चाहते हैं
उनके सुन्दर शरीर कांसे की मूर्तियों से भी अधिक लोच लिये हैं
उन्होंने सजाने की हर चीज सिरों, कलाइयों, और पाँवों में पहनी हैं
सूरज की रोशनी, चांदनी, हवाएं और बरसात
उनके उघड़े शरीर के आमंत्रण को गहरी कृतज्ञता से चख रही हैं
रजाई की नरम रुई का भरोसा अभी उनके अथके विचारों को नहीं है
अभी उन्होंने जाने नहीं है, उसके प्रतीकों के गूढ़ रहस्य
आम का पेड़, उस पर बैठा तोता, और नायिका के हाथों में पत्र
उनके लिये ख़ास मायने नहीं रखते
अनकही से अधिक उन्हें कही में विश्वास है
कही की तलाश में वह मंगल ग्रह तक जा पहुंचे हैं
जबकि रजाई अनकही की साम्राज्ञी है
जो जीवन की कठिन से कठिन घडी को नींद को सौंप देना चाहती है
समस्याओं के हल वो गूढ़ फलसफी की भाषा में नहीं
सपनों की विखंडित उक्तियों में हम तक पहुंचाती है
सच तो यह भी है कि सिनेमा का पर्दा उसकी ही ईज़ाद है
पहला चलचित्र रजाई के भीतर आँखों के बंद पर्दे पर ही तो देखा गया था
सातों नवगृह उसकी मुट्ठी में झिलमिलाते हुए तारों से अधिक कुछ नहीं
यह बात किसी इतिहास में दर्ज नहीं
कि रजाई या उससे मिलती-जुलती चीज़ दुनिया के हर आविष्कार की तह में है
उसकी नर्म आंच दुनिया की हर निर्ममता का प्रतिकार करने में सक्षम है
यह सचाई यातनागृहों के प्रभारी सबसे बेहतर समझते हैं
और नींद से वंचित रखते हैं उन्हें, जिन्हें वे सबसे ज्यादा सताना चाहते हैं .
2.
आलू
आलू साक्षात् प्रेम है
नर्म है उसका स्पर्श और मीठा उसका स्वाद
जीभ से फिसलता कब हलक में
और कब दिल में
सुकून बन दौड़ने लगता है
यह कामसूत्र से आगे की घटना है
और शिव का तीसरा नेत्र खुलने से पहले की भी
उसकी उन्मुक्त अभिव्यक्ति पर कोई शास्त्र नहीं संभव
वह स्वयं दर्शन है और उसका प्रभाव भी
कामना उसके एक फूल से दूसरे फूल की तरफ उड़ती तितली भर है
यदि कामदेव ने गन्ने के धनुष से फूलों के तीर नहीं
उबले आलू का चोखा और चिप्स के थाल
आत्मयोगी श्री महादेव को प्रस्तुत किये होते
तो यह संभव था कि उल्फत में इतना उत्पात न होता
और न होता प्रणय गुप्त अत्याचार का माध्यम
आलू की सत्ता देवत्व और दानवता से परे रस का सम्पूर्ण प्रबन्ध है
धरती के नीचे उसकी जड़ों ने थाम रखे हैं महाद्वीप
उसके बैंगनी फूल और पीले पुंकेसर
केसर से अधिक वैभव लिये हैं
और अफीम से अधिक मादकता
उसकी आँखें इंद्र की शत आँखों से बृहद, कामुक हैं
और उर्वर है उनका हर आंसू
सिर्फ दृष्टि से स्थापित किये हैं उन्होंने विशाल साम्राज्य
एंडीज से हिमालय तक वे सिर्फ आँखों के सहारे चले आये हैं
असंख्य सर्वहारा जन इन्कलाब की तलाश में
उसकी सराय में आ रहे हैं
घूंट दर घूंट पी रहे हैं इंतज़ार
मनुष्य के मनुष्य होने का.
3.
रंगों का इतिहास नन्ही रिधिमा के लिए
रंगों का इतिहास अभी लिखा नहीं गया है
जब लिखा जायेगा तो यह दर्ज होगा
कि लाल दरअसल खून का नहीं
हमारी आँखों में उतरे पानी का रंग है
नीला आकाश का नहीं
वहाँ से गायब हो चुके सुकून का रंग है
हरा पत्तों का नहीं
धरती के अम्ल का रंग है
बाकि जितने भी रंग हैं
उनके बारे में अफवाह यह है कि
वे इन्ही तीन रगों से मिलकर बने हैं
जबकि सच तो यह है की
सब रंग
जो हमें दिखते हैं और नहीं
हमेशा से हैं
और उस कलाकार की तलाश में हैं
जो उन्हें खोज निकालेगा
रंग हमेशा ही से खिलंदड़ी रहे हैं
उन्हें लुका-छिपी का खेल बेहद भाता है
उन्हें निकालना पड़ता है
दूसरे रंगों की कंदराओं में से
कभी प्यार से, कभी धीरे से धमका कर
जब वे प्रसन्न होते हैं तो अपने आप
प्रगट हो जाते हैं
उन्हें महत्वाकांक्षी लोग बिलकुल नापसंद हैं
जो उन्हें आक्रामक तरीके से खींच कर बाहर पटक देना चाहते हैं
वे उन पर अपनी नामंजूरी ज़ाहिर करते हैं
छितरे रह कर
किरमिच पर आने से इन्कार कर के
दरअसल रंग, रंग हैं ही नहीं
वे तो नन्हे बालक हैं
जो अभी यह चुनाव कर रहे हैं
कि उन्हें इस दुनिया के सबक सीखने भी हैं, या नहीं ।
4.
प्यास
बचपन में एक ऐसी चींटी की कहानी सुनी थी
जिसकी प्यास पूरी नदी पीने पर भी नहीं बुझी
और वे समंदर को पीने चल पड़ी।
ऐसी गहरी प्यास
जो समंदर के खारे जल को भी पी जाये
उसके माणिक, रतनों, खनिजों, और तैरने वाले समस्त जीवों समेत।
ऐसी ही कई प्यासी
वाईट एम्बेसडर कारें निकल पड़ी है
अपने, अपने बिलों से।
उनकी दो नहीं सिर्फ एक आँख है
और वे सिर के आगे नहीं, सिर के ऊपर है
लाल है, जलती बुझती है, और चारों और घूमती है।
ये एम्बेसडर कारें पूरे जम्बुद्वीप का निरिक्षण कर रही हैं
एक अभी इसी वक्त गंगा की तलहटी में उतर रही है
दूसरी उड़ीसा के पहाड़ों में सुरंग से धरती के भीतर जा रही है।
तीसरी गुजरात के कच्छ में तेल स्नान कर रही है
चौथी सौराष्ट्र के कपास को आकाश में उड़ाती हुई सरपट भागी जा रही है
पांचवीं ईरान के पानी पर नहीं, कीटनाशक पर चलती है।
छठी, सांतवी …. सैंकड़ों लाल आँखों वाली सफ़ेद चींटियाँ
हरे पेड़ों वाले जंगलों , नीले रंगों वाली नदियों, ठंडी बर्फीली वादियों
की तरफ चल पड़ी हैं।
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