एक दिसंबर 1994 को झारखंड की सुख्यात कवयित्री और स्त्री-संगठनों से जुड़ी सामाजिक कार्यकर्ता शैलप्रिया का कैंसर की वजह से देहांत हो गया। तब वे 48 साल की थीं। उनके अपनों, और उनके साथ सक्रिय समानधर्मा मित्रों और परिचितों का एक विशाल परिवार है जो यह महसूस करता रहा कि अपने समय, समाज और महिलाओं के लिए वे जो कुछ करना चाहती थीं, वह अधूरा छूट गया है। उस दिशा में अब एक क़दम बढ़ाने की कोशिश हो रही है। उनके नाम पर बने शैलप्रिया स्मृति न्यास ने महिला लेखन के लिए 15,000 रुपये का एक सम्मान देने का निश्चय किया है। पहला शैलप्रिया स्मृति सम्मान उनके जन्मदिन पर 11 दिसंबर को रांची में दिया जाएगा। हिंदी में पुरस्कारों की भीड़ के बीच यह एक और पुरस्कार जोड़ने भर का मामला नहीं है, एक छूटी हुई संवेदनशील परंपरा को आगे बढ़ाने की कोशिश है जिसके केंद्र में वह जनजातीय प्रांतर है जिसकी आवाज़ दिल्ली तक कम पहुंचती है। हालांकि इस सम्मान का दायरा अखिल भारतीय होगा क्योंकि हम यह महसूस करते हैं कि भारतीय स्त्री के सुख-दुख, उसके संघर्ष और उसकी रचनाशीलता के वृत्त और वृत्तांत एक जैसे हैं- उन्हें क्षेत्रों और वर्गों में काटकर-बांट कर देखना उचित नहीं होगा।
9 Comments
सराहनीय प्रयास।
sarahneey prayaas..
बहुत ही प्रेरमास्पद प्रयास है। व्यक्ति के सार्वजनिक प्रयासों को आगे बढ़ाना ही किसी के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होती है। मेरी हार्दिक शुभकामनाएं।
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