सोनू सूद की किताब ‘मैं मसीहा नहीं’ का एक अंश

    कोविड 19 महामारी के दौरान अभिनेता सोनू सूद का नाम किसी मसीहा की तरह उभर कर आया। अलग अलग स्थानों पर अलग अलग परिस्थितियों में फँसे लोगों की मदद करने में उन्होंने यादगार भूमिका निभाई। उन्होंने हाल में मीना के अय्यर के साथ मिलकर किताब लिखी है ‘मैं मसीहा नहीं’, जिसमें उन्होंने उस दौरान के अनुभवों को दर्ज किया है। पेंगुइन से प्रकाशित इस किताब का अंग्रेज़ी से हिंदी अनुवाद मैंने किया है। उसका एक अंश पढ़िए-

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    विस्थापितों का मसीहा

    47 साल की उम्र में जब इस तरह की उपाधियाँ मुझे दी जाती हैं तो मैं थोड़ा सा झेंप जाता हूँ। लेकिन जब जीवन के राजमार्ग पर मैं ठहर गया, आप इस बात से सहमति जताएँगी कि सचमुच में ज़िंदगी थम गई, तब मुझे समझ में आया कि किसी को रातोंरात ऐसा सम्मान नहीं मिल जाता।

    मुझे यह पता था कि मुझे ऐसा कुछ नहीं मिलेगा।

    पंजाब के मोगा से महाराष्ट्र के मुंबई में दक्षिण की दिशा में राष्ट्रीय राजमार्ग 48 पर 1636.2 की दूरी पहाड़ पर चढ़ाई करने जैसी थी। लेकिन परिस्थिति के जितने भी मोड़ आए, मेरे दिल ने उसको आज़माया ज़रूर। चाहे कितना भी कठिन रहा हो लेकिन मैंने वह किया जो मेरे दिमाग़ के व्यावहारिक बाएँ हिस्से ने करने के लिए कहा। बुधवार 15 अप्रैल 2020 अपने दिल की सुनते हुए मैं मुँह पर मास्क लगाए 4000065 ट्रैफ़िक जंक्शन पर पहुँच गया, जो ठाणे ज़िले में कालवा का पिन कोड है। यह स्थान मेरे लिए बोधि वृक्ष के समान साबित हुआ। इसी स्थान पर मुझे ज्ञान प्राप्त हुआ।

    यह सोच कर मुझे सिहरन महसूस होने लगती है कि हम फ़िल्मी सितारों को लोगों का जो प्यार-सम्मान मिलता है अगर मैं उसी में खोया रह गया होता तो मेरी ज़िंदगी कितनी ख़ाली ख़ाली हो गई होती। लेकिन ऐसा लगता था कि भाग्य ने यह तय कर रखा था कि मुझे अपने मक़सद को पाने के लिए इस स्टार की छवि से बाहर निकलकर काम करना था। बल्कि अपनी स्टार छवि का उपयोग करते हुए इस बात की तलाश करना कि कर्मा ने मुझे ऐसी शक्ती इसलिए दी है ताकि मैं निस्वार्थ भाव से मैं उसका उपयोग कर सकूँ।

    मुझे वह मुंबई की सड़कों पर लॉकडाउन के दौरान मिला, जब कोविड 19 महामारी के प्रसार के कारण मैं ट्रक में खाने के पैकेट तथा अन्य ज़रूरत के सामानों को प्रवासी मज़दूरों के बीच बाँटने के लिए गया था।

    मुझे कोई संतोष नहीं हुआ। हर इंसान के भीतर उथल पुथल चलती रहती है। हालाँकि अंदर की उथल पुथल तकलीफ़ देने वाली होती है, लेकिन इसी वजह से इंसान ऐसी राह पर निकल पड़ता है जिसके बारे में उसने सोचा नहीं होता है, जिस राह पर कम ही लोग चल पाते हैं, लेकिन वह राह संतोष पहुँचाने वाली होती है। जहां तक मेरी बात है तो इस भावनात्मक उथल पुथल का नतीजा यह हुआ कि बजाय संतोष होने के मेरी अंतरात्मा जाग उठी। जब महामारी फैली, तो बाक़ी लोगों की तरह ही मार्च के शुरुआती कुछ दिन तो सोते सोते कटी। मैं बड़ी निष्ठा से क़ायदों का पालन कर रहा था। कोविड 19 एक रहस्यमय बीमारी थी; एक एक छिपा हुआ शत्रु था। कोई नहीं जानता था कि यह रक्षक कहाँ निशाना बनाए, कब क़िसको हो जाए। दुनिया में किसी को कुछ पता नहीं था कि इसको रोका कैसे जाए। शायद हम कभी इस सच्चाई को पूरी तरह नहीं समझ पाएँगे कि इस वायरस के पीछे क्या कारण रहे कि इसने दुनिया भर के लोगों को घुटने के बल ला दिया।

    लेकिन शुरुआती कुछ दिन सैनिटाइज़र, हैंडवाश, मास्क, हाथ के दस्तानों का इस्तेमाल करते हुए सुरक्षा के लिए घर में रहते रहते मुझे कुछ असहज महसूस होने लगा। मैं हमेशा से सक्रिय और समर्पण से काम करने वाला आदमी रहा हूँ; मैं ऐसा आदमी नहीं जो सुस्ती से रहे, बेपरवाही दिखाए। मुझे हमेशा कुछ करते रहना पसंद है, मुझे सुस्त भाव से पड़े रहना पसंद नहीं। मेरी अंतरात्मा ने मेरे दिमाग़ को दिल से संदेश भेजे और वह सोच में पड़ गया। मैं जिस बात को बेहतर तरीक़े से जानता समझता था वह यह कि मैं खामोशी से घर में बैठे रहने वाला आदमी नहीं।

    मैंने अपने आपको नाप तौल कर देखा- अपनी शक्ति, सीमाएँ, अवसर और ख़तरों को। मेरी कमज़ोरी यह थी कि मुझे चिकित्सा का ज्ञान नहीं था, न मैं डॉक्टर था, न स्वास्थ्यकर्मी, और तो और मैं तो कम्पाउण्डर भी नहीं था। अवसर मेरे सामने था। मेरे दरवाज़े के बाहर की दुनिया में घबराहट फैली हुई थी, मुझे उसको लेकर कुछ करना था, मुझे उनके लिए आगे बढ़कर कुछ करने की ज़रूरत थी। मुझे यह बिलकुल पता नहीं था कि इसमें ख़तरे क्या होंगे, बाधाएँ किस तरह की आएँगी। लेकिन इस तरह की बातों से मैंने जीवन में कभी हार नहीं मानी। स्टारडम पाने से पहले की अग्निपरीक्षा से गुजरने के बाद से तो बिलकुल नहीं। मेरी एक ताक़त यह रही है कि मैं किसी अनजान चुनौती से डरता नहीं हूँ; मुझे इस बात का भरोसा रहता है कि मैं बाधाओं से संघर्ष करके जीत जाऊँगा। जब मैंने अपनी अंतरात्मा से संवाद किया तो मेरा मनोबल और बढ़ा। मैंने अपने आपसे पूछा कि मेरी सबसे बड़ी ताक़त क्या थी- जवाब मिला कि मेरी विशेष ताक़त थी क्योंकि मैं एक मशहूर हस्ती था। मेरी क़िस्मत थी कि मेरा चेहरा जाना पहचाना था। लोग मुझे जानते थे, वे मेरे चेहरे को पहचान लेते थे, और मेरे नाम से रास्ते बन सकते थे। मुझे इस बात का ख़ास लाभ था कि मैं ज़रूरत पड़ने पर किसी अजनबी के साथ खड़ा हो सकता था और उसको इस बात की आश्वस्ति हो सकती थी कि मैं उनकी तरफ़ से वहाँ देखभाल कर सकता था।

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