तलईकूतल एक प्राचीन और अमानवीय प्रथा है, जो मुख्य रूप से दक्षिण भारत, खासकर तमिलनाडु में प्रचलित रही है, जिसमें बुजुर्गों को उनकी ही इच्छा के विरुद्ध मार दिया जाता था। तमिलनाडु की इसी प्रथा के विचार पर आधारित ‘तलईकूतल‘ शीर्षक से ही एक कहानी मैंने पिछले दिनों पढ़ी। अत्यंत ही सहज भाषा और रोचक शैली में लिखी इस मार्मिक कहानी को पढ़ते हुए आप इसकी मुख्य पात्र एलीकुट्टी के दर्द को साझा करने लग जाते हैं, उसके संघर्ष आपको अपने लगने लग जाते हैं। उसके जीवन में आने वाली मुश्किलों और उस पर होने वाले अत्याचारों में ख़ुद को देखने लगते हैं। ऐसे ही शानदार और बिलकुल अपनी सी लगने वाली पात्र एलीकुट्टी के जीवन और समाज में वर्षों से चली आ रहीं प्रथाओं-कुप्रथाओं को लेकर उसके विचार को जानने के लिए युवा कथाकार आलोक रंजन की इस कहानी को पढ़ा जाना चाहिए। आज उनका जन्मदिन है, जानकीपुल इस कहानी के माध्यम से आलोक रंजन को जन्मदिन की शुभकामनाएँ प्रेषित करता है। यह कहानी मूल रूप से हंस कथा मासिक में प्रकाशित हुई है। हंस से साभार के साथ आपके लिए प्रस्तुत है।- कुमारी रोहिणी
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एलीकुट्टी – चूहे का बच्चा। वह जीवन भर सोचती रही कि उसके बाप ने उसका यह नाम क्यों रखा और पता भी चला तो अब! वह चूहे के बच्चे जितनी निरीह है अभी। फ़र्क इतना कि उन गुलाबी नाजुक जीवों को न तो अपना पता होता है न ही आँख न खुलने की वजह से बाहर की दुनिया का। उन्हें कोई कव्वा उठाकर अपना आहार बना सकता है और यह कौवे की चोंच में समा नहीं पाएगी। आँखें कब मुँद जाए और उसके बाद सदा के लिए खुले ही न! वह जोर लगाकर अपनी आँखें खोले हुए है जैसे आँख बंद होते ही वह खत्म, जैसे शरीर की सारी ताकत आँख और उसके आसपास आ गई हो। हालाँकि जैसे भाँग के नशे में होता है ठीक वैसे ही उसकी पलकें देखने वालों को अधमुँदी ही दिख रही हैं। उसे अपने सामने लोगों की धुंधली छवियाँ ही नजर आ रही हैं पर भीतर के दृश्य साफ हैं। वह जहाँ पहुँच गई है वहाँ रहना नहीं चाहती बल्कि यहाँ तक आना भी नहीं था उसको। कोई भी नहीं आना चाहेगा। इस भरे घर में इंतज़ार भरा हुआ है वह तसल्ली चाहती थी। जिंदगी खामोश और थके कदमों से भारी होकर बैठी है उसके पास चेहरे के भाव ऐसे कि न चाहते हुए उसे जाना हो दूर।
… अँधेरा पूरी तरह से छँटने ही वाला था जब वह सोकर उठी थी। यही एक समय था जब इंसान गर्मी से थोड़ी राहत महसूस कर सकता था वरना चमड़ी जलाकर राख कर देने वाली गर्मियों के दिन हैं अभी। वैसे भी बहुत कम बारिश होती है ऊपर से इस साल एक बूँद पानी नहीं टपका है आकाश से। बचपन से अब तक इसी समय में जागती रही। इतनी सुबह को किए जाने वाले काम बदलते रहे लेकिन उठने का समय नहीं बदला। हर दिन वह एक बेचैन और बची हुई नींद के बीच अपनी आँखें खोलती है। उस समय से डरावना कुछ नहीं है उसकी ज़िंदगी में। वह किसी न किसी के सोने की कीमत चुकाती रही जैसे सभी स्त्रियाँ चुकाती हैं, कभी भाई के तो काभी बाप के फिर हमेशा के लिए पति के! स्त्रियों की नींद भी अपनी नहीं होती! धुँधलके में दिखना मुश्किल होता है पर रोज की तरह उसे वही दिख रहा था अपने घर की जर्जर सीमा। ये नारियल के पत्ते और बाँस नहीं होते तो वह घर किसे कहती। उसके घर में कोई ईंट नहीं लगी , न ही सीमेंट न ही लोहे की छड़ें जिनका विज्ञापन बलवान दिखने वाले अभिनेता करते हैं। वह अपने घर को रोज ही देखती है। बचपन से ऐसे ही घर देखती आयी थी और आसपास भी इन्हीं सामग्रियों से बने घर हैं जिनमें इतने ही विपन्न लोग रहते हैं। कोई कोई अपनी इस स्थिति पर अफसोस करते होंगे लेकिन उन्हें अपने घर की कीमत नहीं पता। इस दौर में एक तबका ऐसा उभरा है जिसे इस तरह की ग्राम्य और सहज चीजों से बहुत प्यार है! ये घर न सिर्फ पर्यावरण के अनुकूल हैं बल्कि ‘मिनिमलिस्टिक’ भी हैं! उस तबके के लिए ऐसे घर तैयार किए जाते हैं फिर वे उनमें अपना कुछ व्यक्त बिताकर लौट जाते हैं सीमेंट – छड़ वाली प्रदूषण भरी दुनिया में! वह भी कोई दुनिया है भला! एलीकुट्टी रोज ही उनकी दुनिया देखती है लेकिन अपनी दुनिया से चलकर अपनी ही दुनिया में लौटना होता है उसे। सूरज के निकलने से पहले के अंधेरे में नारियल के पत्तों के खिसक जाने से जो छेद बनते हैं वे रोशनी बढ़ने के साथ बंद होने लगते हैं तब तक छोटे से आँगन में झाड़ू फिर जाता है , उबलते पानी में वह चाय की पत्ती गिरा आती है। अब वह चाय लेकर बैठेगी ? नहीं , वह उस मरदूद को चाय देकर अपनी साइकिल पर टोकरी लगाने लग जाएगी। बीच बीच में चाय के घूंट भी ले लेगी। चाय में है ही क्या सिवाय पत्ती के। मरदूद उसका पति है जिसे इस उम्र में भी जिम्मेदार होना नहीं आया। कभी मजदूरी मिल गई तो मिल गई वरना एली के लाए पैसों से शराब पीकर जीने वाला इंसान है। दुनिया से कोई खास मतलब उसे नहीं है न ही अपनी बीवी से। शुरू में शरीर चाहिए था उसे पर अब तो खँखड़ बुढ़ापा है। अब एक दूसरे को लेकर न तो स्वीकार है न ही अस्वीकार। रोजमर्रा की गतिविधियाँ तो हैं लेकिन उनके भीतर अलगाव की अविरल धार निरंतर बहती है। एक दूसरे के प्रति अक्रिय रहने की लंबी आदत हो गई दोनों को। वह खाँसता रहे तो भी एली अब उसे पानी नहीं देती। न ही वह उसकी साइकिल का पंचर ठीक करा लाने की जहमत उठाता है। हुआ शायद ऐसा ही हो कि पहले उसने एली की साइकिल ठीक कराने की जहमत न ली हो! साइकिल ही क्यों , उसने तो किसी तरह की जिम्मेदारी नहीं ली। भला हो बच्चे नहीं पैदा हुए वरना उनसे भी उसकी यही निस्संगता होती। बेकार और नाकारे आदमी की दुनिया से भले ही बहुत अपेक्षाएँ हों पर वह दुनिया को ठेंगे पर रखता है। दोनों के बीच की करुणा कुओं के पानी की भाँति सूख चुकी है। यदि बची होगी तो वही नारियल के जर्जर पत्तों की तरह जो जरा से धक्के से टूट जाए। दोनों को ही इस स्थिति से कोई अंतर पड़ता दिखाई नहीं देता। साइकिल पर टोकरी बाँधने के बाद उसने उबलते पानी पर कपड़ा बाँधकर चावल और उड़द की दाल के घोल को कपड़े पर डालकर ढँक दिया। देगची में दो दिनों से एक ही पानी उबल रहा है। आज यदि पानी नहीं मिला तो इडली बनाने भर को भी पानी नहीं बचेगा। जब से कुओं का पानी सूखा तब से सरकार रोज एक टैंकर भेजती है इस गाँव में लेकिन दो दिनों से वह भी नहीं आया है। वह देगची के ऊपर पड़ा ढक्कन उठाती है। बंद पड़ी भाप का एक गुबार उठता है। सुबह की हवा में भाप दिख भी रही है वरना दिन की चौंधिया देने वाली रोशनी में दिखना भी मुश्किल। इडली में में एक सींक घुसाकर इडली के कच्चेपन का अंदाज लेने के बाद वह देगची उतार देती है। देगची हल्की हो चुकी है , पानी बहुत कम बचा है। पानी की बची हुई गर्माहट में इडलियाँ पक जाएंगी। इडली रखने के लिए केले के पत्ते गरम करने लग गई।
–आज पानी का टैंकर आए तो दो बाल्टी पानी भर कर रख लेना … मेरे लिए नहीं तो कम से कम अपने लिए वरना कल से इडली भी नहीं मिल पाएगी। साइकिल की मूठ पकड़े पकड़े एली ने यह बात कही थी। भीतर बैठे पति ने उस पर कोई जवाब नहीं दिया जैसे उसने सुना ही न हो या फिर हवा में बात कह दी गई हो। उसे पता था कि उत्तर नहीं आएगा लेकिन टैंकर आया तो पानी भरकर रख देगा वह आदमी। उस आदमी का स्वार्थ पता है उसे। बाहर इडली खाने के पैसे लगते हैं।
वह अपनी साइकिल पर बैठकर थके हुए कदमों से पैडल मार रही थी। उसे नहीं पता कि उसके राज्य के एक लेखक पी साइनाथ ने तमिलनाडु की महिलाओं के साइकिल चलाने को उनकी आजादी और मजबूती से जोड़कर देखा था। एली कहीं जाने आने के लिए किसी पर निर्भर नहीं है बूढ़े और थके आबनूसी पैर बेशक अकड़ जाएं! गाँव की सीमा से बाहर आते ही रोशनी चौंधियाती हुई उसकी आँखों में घुसने लगी। नतीजतन उसकी आँखें सिकुड़ गई कि कम से कम प्रकाश जा सके और धूल भी। कोयले में धीमे धीमे पकड़ती आग की मानिंद गर्मी बढ़ने लगी थी। जिधर देखो उधर जीवन की शुष्कता फैली है फिर भी जीवन सरकारी बस की तरह चलने को विवश। अभी भाग दौड़ शुरू नहीं हुई है। थोड़ी ही देर में सड़क पूरी तरह से भर जाएगी। सबको मदुरै शहर जाना है। काम करने वालों का नियत समय होता है वे अपने तय वक्त पर ही निकलते हैं पर जिनका अपना काम है उन्हें पहले निकलना पड़ता है। अपने काम वालों की वजह से सड़क पर चिल्ल – पों नहीं मचती जबकि एक ही समय में एक साथ बाहर काम पर निकल आए लोग आसमान सर पर उठा लेते हैं। उसे फूल मंडी जाना है। उससे पहले वैगई का पुल पार करना है।
एक चील आसमान की ऊँचाई में निर्बाध चक्कर लगाते लगाते नीचे उतरने लगी है। वह मँडराते हुए अपना शिकार चिन्हित कर रही है फिर तेजी से झपटकर उठा ले जाएगी अपनी खाना। एली साइकिल से उतरकर लगभग धक्का देते हुए साइकिल को पुल पार कराने लगी। वैगई नदी मदुरै शहर के बीचोबीच कभी कभी बहती है। फिलहाल सूखी पड़ी है। बीच में जो पानी जैसा तरल दिख रहा है वह पानी नहीं है शहर भर का मल है। गर्मी इतनी है कि मल की गंदी धारा भी सूखकर काँटा हो गई है। जबकि यह नदी द्रविड़ सभ्यता की केंद्र रही। इधर इसके किनारे किनारे नए सिरे से खुदाई भी हो रही है। इस सूखी नदी को पार करने वाला पुल लोगों के लिए नहीं बल्कि गाड़ियों के लिए बनाया गया है। शहरों के पुल ऐसे ही होते हैं। काफी दूर से ही ऊँचे उठने लगते हैं और बीचोंबीच पहुँचकर उतरने लगे हैं। गाड़ियाँ तो तेल और बिजली से चलती हैं लेकिन इंसान कैसे चढ़े , कैसे तो खींचे साइकिल , ठेले और रिक्शा! ठेले को धक्का देने वाले मोटरसाइकिल सवार तो मिल जाते हैं पर एली को अपनी साइकिल स्वयं घसीटनी है। पता नहीं शरीर में इतना पानी कहाँ से आ जाता है कि पुल पर चढ़ते चढ़ते उसकी पीठ और चेहरे पर पसीना दिखाई देने लगता है। उम्र के इस पड़ाव पर दर्द का झलक जाना तो उसे समझ आता है लेकिन इस सूखे में उसके चेहरे पर पानी या जाना पानी की बर्बादी है। वह पुल के किनारे को पकड़कर रुक जाती है। हाँफती जिंदगी और मर चुकी नदी में कोई समानता हो सकती है क्या। नदी की सतह पर पड़ी बिवाइयाँ उसके पैरों की दरारों की तरह पिराती होगी। यह व्यक्त अपनी साँसों को नियंत्रित कर आगे बढ़ने का है। फूलों का बाजार धूप के तेज होने से पहले उठने लगता है। पुल के बीचोंबीच पहुँचकर एली साइकिल पर बैठ गई। उसके जीवन का सबसे खूबसूरत पल यही होता है वैगई नदी पर बने पुल की ढाल से बिना पैडल मारे साइकिल नीचे उतारना। यह उसे अपनी जिंदगी की सबसे बड़ी जीत लगती है , वह आसमान की ओर देखकर छोटी सी मुस्कान देती है।
केले के बाजार के बीच से वह अपनी साइकिल ले जाती। एक वक्त था जब इस बाजार में दर्जन से ज्यादा प्रकार के केले बिकते थे लेकिन अब मुश्किल से पाँच–छह किस्में ही मिलती हैं। पर बाहरियों के लिए यह संख्या भी ज्यादा है। एली रोज उन्हें फ़ोटो लेते , वीडियो बनाते देखती है।
–तुम्हें कभी देर नहीं होती एली।
आढ़ती सतीश को कैसे समझाए उम्र के अलावा देर की कोई वजह नहीं है उसके पास। और इस उम्र में भी वह मुरूगन की कृपया से साइकिल चला पा रही है। .. देरी आलस से होती है और गरीब आलस नहीं कर सकता ऊपर से मैं तो स्त्री भी हूँ जिसे कोई आलस करने नहीं देता! वह मुस्कुराकर फूलों को देखने लगती है। चारों ओर फूल ही फूल हैं। यह मंडी विभिन्न प्रकार के ताजे फूलों के लिए जानी जाती है। अलग अलग जगहों से फूल यहाँ आते हैं लेकिन सबसे ज्यादा फूल बंगलोर से आते हैं। कहते हैं उधर के किसान खेती इस तरह करते हैं अन्न नहीं फूल ही खाते हों। फूल मंदिरों को जाते हैं , बड़े लोग घरों के लिए भी ले जाते हैं पर सबसे ज्यादा खपत है मोगरे की। मोगरे बालों में सजाने के लिए खरीदे जाते हैं। जो पहली बार आया हो उसके लिए गुलाब , मोगरा , गेंदा आदि तराजू पर तुलते देखना एक अजीब अनुभव दे सकती है पर एली को नहीं। उसका रोज का काम है। उसे फूलों का सूखा मुँह तक पता चल जाता है। वह मोगरों की ढेरी में से हथेली भर फूल उठा कर देखती है।
–तुम्हारी बूढ़ी आँखों से फूल दिख जाते हैं एली ?
–हाँ! उसी तरह जैसे तुम्हारी माँ को तुम्हारा चेहरा दिख जाता है।
बाजार में रहकर हाजिर जवाब बनना ही पड़ता है वरना कब कोई मूर्ख बनाकर निकल जाए पता नहीं चलता।
फूल मंडी से लौटकर एली को अपनी दुकान लगानी है। वह रोज मीनाक्षी मंदिर वाला रास्ता लेती है। उसकी सालों से इच्छा थी कि उसकी दुकान मंदिर के पास , ऐन सामने की सड़क पर हो कि हर आने जाने वाला उसके फूल खरीदे। उसने बहुत कोशिश की लेकिन कभी इतना पैसा जोड़ ही नहीं पाएगी कि वहाँ की दुकान का किराया ही दे सके। वहाँ से गुजरते हुए रोज वह उन दुकानों को देखती है जिनके फूल खरीदकर लोग मंदिर में जाते हैं। बाहर से आने वालों को औनेपौने भाव पर फूल बेचते हैं ये लोग। लोग भी एक बार की खरीद का सोचकर ले लेते हैं। ये फूल वाले फ्री में चप्पल रखने के नाम पर लुभा लेते हैं उन्हें जबकि पुलिस वाले खुद अपनी निगरानी में चप्पल रखवाने की व्यवस्था करते हैं। ये दुकानदार फिर फूल ही नहीं बल्कि सड़े हुए नारियल तक बेच डालते हैं। इतनी भीड़ रहती है कि किसी को कुछ भी पता नहीं चलता। वह मुश्किल से अपनी साइकिल निकाल रही है। ज्यों ज्यों मंदिर पीछे छूटता है भीड़ कम होती जाती है लेकिन गाड़ियों का शोर बढ़ता जाता है। उसकी साइकिल एक चौराहे पर आकर रुकी है। चौराहे पर एक पुरानी मूर्ति है रामराजू नाम के किसी नेता की। इस छोटे से चौराहे के गुमनाम होने की पूरी संभावना है उस नेता की तरह। मदुरै के मीनाक्षी मंदिर से किसी तरह का संबंध नहीं है उस चौराहे का जो एली के फूल ज्यादा कीमत पर बिक जाएँ। उसे तो बस आसपास से गुजरने वाली महिलाओं का ही सहारा है जो अपने बालों में लगाने के लिए उसका फूल खरीदेंगी। उनमें से ज्यादातर जानी पहचानी हैं। एली की दुकान इसी भरोसे चलती है कि बालों में फूल लगाने वाली स्त्रियाँ सुंदर दिखने लगती हैं , उनके बालों में लगे नारियल तेल की पुरानी गंध मोगरे की खुशबू में दब जाती है जो उनके साथियों को भी भाता हो। साइकिल किनारे खड़ी कर एली अपनी टोकरी उतारती है फिर एक पत्थर के बंधे डंडे के सहारे अपना छाता बाँधकर उसकी छाया में बैठकर फूलों का लंबा गजरा बनाने लगी। यह लंबा गजरा बनता रहेगा जब तक कि सारे फूल खत्म नहीं हो जाते। इसी लंबे गजरे से काट काटकर बेचती रहेगी एली दिन भर।
–दिव्याश्री , कपड़ा उठाकर फूलों को मत देखो .. मैं कभी खराब फूल नहीं लाती .. खुले में फूल सूख जाएंगे और मेरी कमाई मारी जाएगी .. कैसी गर्मी है देख ही रही हो।
–अम्मा गर्मी तो सच में बहुत ज्यादा है .. इस बार तो पानी बरसने का नाम ही नहीं ले रहा है .. मदुरै के सारे पेड़ सूख जाएंगे इस बार।
–तुम्हें पेड़ों की पड़ी है! मेरे घर में आज पानी नहीं आया तो इडली बनाने के लिए भी पानी नहीं है।
–पर अम्मा तुम्हारे उधर तो सुना है पानी के लिए यज्ञ हो रहा है .. देवता खुश होकर वर्षा से खेत खलिहान भर देंगे…
–बेटी , जिनके खेत हैं , देवता भी उन्हीं के हैं। उनके देवता उनकी बात सुनकर उनके लिए पानी बरसाएँगे। यज्ञ से हमें क्या फायदा!
अब तक दिव्याश्री अपना गजरा पा चुकी थी। रोज आने वाले ग्राहक ही इतनी बात कर पाते हैं वरना राह चलते ग्राहक को क्या मतलब!
एली जिस बात से बच रही थी वह फिर से खुल गई। पानी के लिए कीलड़ी में यज्ञ हो रहा है। धनी लोगों का गाँव है , उनकी जमीनें हैं। उधर ही खुदाई भी हुई है जिसमें प्राचीन काल के अवशेष मिल रहे हैं। सरकार का एक मंत्री उसी गाँव से है। उसी के परिवार वाले यज्ञ कर रहे हैं। उनकी जमीन ज्यादा है अपनी आने वाली फसल की चिंता में वे यज्ञ करवा रहे हैं लेकिन गरीब लोग पता नहीं क्यों यज्ञ के नाम पर बेगार कर रहे हैं! वे इतना क्यों नहीं समझते कि देवता प्रसन्न होगा तो बारिश सबके लिए होगी और केवल यज्ञ में शामिल लोगों के लिए बारिश हुई तो ऐसे देवता को मानना निरर्थक! कल वहाँ पर मंत्री भी आने वाला है। हर चीज जैसे कीलड़ी ही जाना चाहती हो। एली को अपने काम से काम रखना है बस आज टैंकर या जाए और पानी मिल जाए उसे।
दिन ढलना एक रोज घटने वाली घटना है उसी तरह नियत समय पर एली का अपनी दो इडलियाँ निकालकर खाना। खाने का उसे कोई शौक नहीं रहा इससे उसका बहुत सर समय बच जाता है वरना सुबह उठकर सांबर – चटनी बनाने में ही उसका बहुत सारा समय बर्बाद हो जाता है। इडली पर बाजार से खरीदी गई सूखी चटनी डालती है और काम तमाम जैसे कोई खीरे पर नमक बुरक कर खा जाता है। केले के पत्ते को कूड़ेदान में डालकर वह अपनी जगह पर आकर बैठ गई। धूप अपना रंग दिखाते जा रही है , चमड़ी जैसे झुलस जाए। ऐसे में लोग अपने घरों से निकलने में कतरा रहे हैं। यह समय तमाम जगहों पर आराम का होता है लेकिन एली अपनी साइकिल घसीटकर घर जाए और फिर बचे हुए फूल बेचने आए यह असंभव है इसीलिए रोज इतनी तेज धूप में भी इसी छाते के नीचे बैठी रहती है गर्मी के कम होने तक। कोई भूली भटकी ग्राहक या भी जाती है लेकिन उसका यह समय ऊँघने में ही बीतता है। छाते के नीचे उसका अस्तित्व कितना कमजोर लगता है। दुबली पतली बूढ़ी औरत जिसके चेहरे की मांसपेशियां जरा भी पानीदार नहीं हैं। वे हड्डियों से चिपकी पड़ी हैं। मुँह खोलकर ऊँघती हुई एली सचमुच किसी चूहे सी लग रही है जिसे खींचकर बड़ा कर दिया हो। सड़क पर गाड़ियों के पीछे उड़ती धूल और इस स्त्री में कितनी तो समानता है। इनकी किसी को परवाह नहीं। किसी दिन यह अपनी जगह पर नहीं आयी तो चौराहा रुक नहीं जाएगा। यह वही चौराहा है जिस पर लगी रामराजू की मूर्ति कुछ सालों में भग्नावशेष की गति पा जाएगी और किसी को कोई फरक नहीं पड़ेगा। यह फरक न पड़ने वाला समय है जिसमें चकाचौंध और क्षण में जीने के भाव भरे हैं। जहाँ जहाँ चमक नहीं है , या चमक की संभावना नहीं वे सब अर्थहीन हो चुके हैं और यह रुकने का नाम नहीं ले रहा है।
एली की साइकिल गोलंबर को पार कर , पैदल पार पाठ के नीचे से जाते हुए फसल में लगने वाले कीड़ों से बचाव की दवा के विज्ञापन वाली दीवार को पार करते हुए जा रही है। उसे बायपास रोड पार करते हुए वैशाली अस्पताल के आगे का चक्कर काटकर उसी रास्ते पर चढ़ना है जहाँ से हर रोज वह फूल लेने मंडी जाती है। फिर से वैगई का पुल आएगा लेकिन शाम को कभी उसके पास इतना वक्त नहीं रहा कि वह नदी की दशा पर अफसोस कर सके जबकि नदी अब भी उतनी ही मरी हुई है जितनी सुबह थी। दिन की तेज धूप ढल चुकी थी लेकिन गर्मी जैसे जले हुए सूरज की राख के साथ नीचे बरस रही थी। विशाल निर्धूम अग्निकुंड जहाँ से निकल भागने से भी मुक्ति नहीं थी। जहाँ जहाँ सूरज छाया की पीछे छिप चुका था वहाँ मकान धूप की सोखी हुई गर्मी छोड़कर उसका काम पूरा कर रहे थे। उन दीवारों पर कोई पानी फेंके तो छन्न की आवाज करते ही पानी तुरंत उड़ जाएगा पर इस किल्लत में पानी फेंकेगा कौन! पानी के खयाल ने एली को बेचैन कर दिया। उसके पैर पैडल पर तेज तेज पड़ने लगे जैसे उसे घर जाने की जल्दी हो। उसे आशंका थी कि उसका पति यदि पानी न ले पाया हो तो क्या होगा। क्या पता टैंकर देर से आए और पति शराब की दुकान में ही दुबका पड़ा हो या किसी से एक चुल्लू दारू माँगने के लिए खड़ा हो। इसलिए वह जल्दी से मौके पर पहुँच जाना चाहती थी। सूरज
नीचे जाने लगा है मकानों की छाया लंबी हो रही है रास्ते पर कुछेक पेड़ बचे हैं उन पर पक्षी लौटने लगे। पानी की कमी ने उसके भीतर डर भर दिया था।
वह जब अपने घर पहुंची उसकी साँस चढ़ने लगी थी , पाँव में अकड़न भी थी लेकिन साइकिल तेज चलाना जरूरी था। मुँह के भीतर थूक सूख चुका था और शरीर की गर्मी उसे बाहर महसूस हो रही थी। रोज की भाँति उसका पति घर पर नहीं था। बिल्ली जैसे दूध के बर्तन की ओर देखती है वैसे ही उसने सूखी पड़ी बाल्टी में पानी टटोलने की कोशिश की। घर में एक बूँद भी पानी नहीं था। गर्मी , प्यास और पानी की गैर मौजूदगी ने उसका गुस्सा बढ़ा दिया लेकिन अकेले घर में किस पर गुस्सा करे वह। वह पानी की उम्मीद में पड़ोसी के यहाँ चली गई। पानी वहाँ भी नहीं था। उन नाउम्मीद क्षणों में उसने अपने पति को कोसा तो पड़ोसन ने असली बात बताई।
–जब तक यज्ञ चल रहा है सारे टैंकर उधर ही जा रहे हैं … वेलु बता रहा था अगले दो दिनों तक ऐसा ही रहेगा।
–कौन टैंकर वाला वेलु?
–हाँ। उन सबको वहीं पानी ले जाने का हुक्म है।उन लोगों का तो अच्छा ही है हमारे गाँव में पानी देने में उसका आधा दिन निकल जाता था अब सीधे टैंकर वहाँ ले जाकर खड़ी कर देता है।
– चलोगी ?
–कहाँ ?
–जहाँ वेलु का टैंकर खड़ा होगा .. बिन पानी के तो हम सब मर जाएंगे।
–पागल है तू .. वहाँ हमें कोई पानी लेने देगा भला! इतने लोग चुप बैठे रहेंगे क्या ?
–बिना पानी के जी लेगी?
एली की सूखी आँखें पड़ोसन के चेहरे पर थी। प्यास से भले व्याकुल न हो लेकिन पानी उसके घर भी नहीं था। सबका पानी यज्ञ की जगह पर जा रहा है , बहुत से लोग आए हैं उनके वास्ते। जिनका पानी है वे प्यासे मर रहे हैं किसी को इसकी चिंता नहीं। चिलचिलाती धूप भले ही बीत चुकी हो लेकिन उसका प्रभाव खत्म नहीं हुआ है। एली का गला सूख रहा था। उसे रोना आ रहा था लेकिन रोने से काम नहीं चलने वाला था। वह तीर की गति से अपने घर गई और पानी की बाल्टी उठाकर यज्ञ वाली जगह की ओर चल दी। पीछे से उसकी पड़ोसन भी आ गई। ज़रूरत का ही कमाल था कि बस्ती की सात-आठ स्त्रियाँ उनके साथ हो ली। रंग बिरंगी प्लास्टिक की बाल्टियाँ थामे वे कीलड़ी की ओर बढ़ी जा रही थी। ऐसा लग रहा था जैसे कोई दल अपने बाल्टी की आहुति देने जा रहा हो।
कीलड़ी से बाहर एक ऊँचाई पर यज्ञ का मंडप बना था। आसपास के लोगों का भारी जमावड़ा था , उन लोगों के बीच आपसी वैर होगा लेकिन वहाँ का सामंजस्य अलग ही था। मंडी से लाए गए फूलों से मंडप को सजा रखा था। एली की रुचि इन सबमें नहीं थी। उसे अपना लक्ष्य दिख रहा था मंडप के दूसरी ओर। दो टैंकर खड़े थे और वहीं एक चल शौचालय खड़ा था। हाजत मंद टैंकर से पानी लेकर शौचालय जा सकते थे। वेलु के ट्रक का पानी यानि एली की बस्ती का पानी टट्टी धोने के काम या रहा था और उधर गाँव पानी के लिए व्याकुल! उसने अपनी पहचान के एक व्यक्ति से बाल्टी भर पानी मांगा। इस बीच स्त्रियों के इस दल को देखकर यज्ञ करवाने वाले परिवार का एक सदस्य भी आ गया।पानी की मांग सुनते ही बिफर पड़ा।
–जब तक यज्ञ हो रहा है तब तक किसी को पानी नहीं मिलेगा… तुम लोग पानी का कोई और इंतजाम करो। इसके लिए मंत्री जी ने पहले ही पर्मिशन ले ली थी .. इस यज्ञ से जो बारिश होगी वह केवल हमारे परिवार के लिए होगी ? फल सब खाओगे तो त्याग भी सबको करना पड़ेगा!
–साब जिंदा रहेंगे तब तो फल खाएंगे .. प्यास से मर जाएंगे हम। हमारे मरने के बाद बारिश हो या सूखा पड़े हम तो देखने नहीं आएंगे न।
एली अपनी बात रख चुकी थी।
–पानी किसी को नहीं मिलेगा चाहे कुछ भी हो जाए... यहाँ बड़े बड़े लोग आ रहे हैं कल तो स्वयं मंत्री जी आने वाले हैं .. तुम लोग जाओ यहाँ से।
–पानी तो हम लेकर जाएंगे …
कहते हुए एली पानी के टैंकर की ओर बढ़ गई। यज्ञ की वेदी से मंत्रोच्चार की आवाज या रही थी लेकिन सबका ध्यान इस ओर हो गया था। एली के साथ साथ बाकी स्त्रियाँ भी उस ओर लपकी। एली ने अपनी बाल्टी लगाई ही थी कि पीछे से किसी का हमला हुआ। स्त्रियों ने बचाव का घेरा बनाया तो कई लोग या गए जिनमें स्त्रियाँ भी थी। भगदड़ मच गई। किसी ने उसे खींचा था शायद एली फिसल गई। उसके बाद क्या हुआ उसे नहीं पता। वह जमीन पर औंधी पड़ी हुई थी , कमर के पास तेज दर्द। उसने उठने की कोशिश की पर उठा नहीं गया। प्यास , थकान और दर्द के मारे उसकी आँखों के आगे अँधेरा छा रहा था। उसकी आँखें अपने आप बंद हो रही थी जैसे वर्षों की थकान उतर आयी हो उनमें…
उसे अस्पताल में ही होश आया। उसके साथ गई दो और स्त्रियों को चोटें आयी थी। कमर में गंभीर चोट आयी थी। उसे हिलने से मना किया गया था। उसने अपनी आँखें खोली तो अपने पति को पास पाया। पीड़ा में भी उसके चेहरे पर मुस्कान या गई। उसका पति अकेले नहीं आया था , गाँव और आसपास के कई लोग या गए थे। असल में मंत्री के गाँव हो रहे यज्ञ का हाल देने के लिए कुछ पत्रकार वहाँ मौजूद थे इसलिए भगदड़ और उसमें हुई हिंसा की खबर फैलते देर नहीं लगी थी। बताया गया कि स्वयं मंत्री जी यज्ञ की जगह जाने से पहले यहाँ आएंगे। एली को इन सबमें अपनी बस्ती की पानी की समस्या का अंत नज़र आया। उसने सोचा मंत्री जी उससे तो ज़रूर मिलेंगे फिर वह अपनी बात कह देगी। सबके सामने मना थोड़े ही कर पाएंगे मंत्री। इससे पहले वह जब भी अस्पताल आयी थी उसे खास तवज्जो नहीं मिली। क्यों ही मिलनी थी! पर अभी इतनी गहमागहमी में भी सब उसे पूछ रहे हैं। पर दर्द! मंत्री के परिवार वाले आकर उसे तरह तरह की बात समझाने लगे कि मंत्री के सामने ज्यादा कुछ बोलने की ज़रूरत नहीं है वगैरह। परिवार वाले मंत्री की इज्जत खटाई में नहीं पड़ने देना चाहते थे।
अगली सुबह मंत्री के आने से पहले हलचल बढ़ गई थी। उसके पति ने पास आकर समझाया कि घर में दो नई बाल्टियाँ या चुकी हैं, वेलु रोज पानी भर जाएगा और इलाज का खर्च मंत्री का परिवार देगा। इसलिए उसे ज्यादा चिंता नहीं करनी चाहिए। मंत्री ने अस्पताल का दौरा किया यह खबर थी। खबर यह भी थी वे मरीजों से मिले और उनका हाल चाल लिया पर यह कहीं नहीं कहा गया कि देखा भर! हाल चाल लेने के लिए बात करनी पड़ती है जो उन्होंने नहीं की। हाँ एली के पति को बुलाकर ज़रूर कुछ कहा फिर चलते बने। स्त्री के बदले पुरुष से बात करके चले जाना वह भी उस पुरुष से जो मरीज भी नहीं है एली को बड़ा खटका। इतना दर्द इतनी तकलीफ है और ये झूठ। दुनिया भर की चिढ़ और उपेक्षा उसके चेहरे पर उमड़ आयी थी। यह एक तरह से उसके संघर्ष का अपमान था लेकिन उधर ध्यान देने वाला कोई न था। मंत्री खबर में आकर चले गए किसी और खबर में शामिल होने और एली की दुनिया फिलहाल वहीं रह गई अस्पताल के बिस्तर पर।
जिस तेजी से अस्पताल खबर में आया था उसी तेजी से गायब भी हो गया। ठीक उसी तरह से एली की तीमारदारी भी प्रभावित हुई। कभी कोई नर्स आ जाती तो आ जाती। डॉक्टर तो मंत्री के जाने के बाद से आया ही नहीं कोई। गैरों की क्या कहें जब एली का पति भी रात भर गायब रहने लगा। दिन में कभी आता कुछ खाने को दे जाता और फिर चला जाता। टट्टी पेशाब के लिए वह लोगों पर निर्भर हो गई। कोई दयावान पकड़कर उसे संडास तक छोड़ आता नहीं तो घिसटते हुए जाना आना होने लगा। एक दिन नर्स ने बोला कि पति को बुलाओ और घर चली जाओ। आराम करने से ही ठीक होगा। बुढ़ापे में कमर दर्द बड़ा खराब होता है। उसका पति दो दिन बाद नमूदार हुआ वह भी बदहवास हालत में। आते ही इस पर बिफर पड़ा।
–घर में कौन नौकर चाकर बैठे हैं, यहीं रहो।
–मैं तो जाना भी नहीं चाहती यहाँ कम से कम बिस्तर तो मिला हुआ है .. किसी का आसरा लेकर टट्टी पेशाब भी चली जाती हूँ घर पर तुम टिकते ही नहीं। वहाँ क्या मिलन है मुझे!
इस बात पर उसके पति को क्रोध आना ही था आया पर नर्स उसे डांटते हुए बाहर ले गई। काफी देर बाद लौटा तो एक अधेड़ ऑटो वाला भी साथ था। वह उसे घर ले जाने आया था।
घर पर एक दो दिन सब ठीक रहा। पति पूरा दिन कहीं नहीं गया। एक दो पड़ोसी भी मिलने आए। उनसे ही पता चला कि सभी घायलों को पैसे मिले थे। एली के पति को ज्यादा मिले। एली जानती थी कि चाहे लाख रुपए भी मिले हों लेकिन वह एक पैसा नहीं देगा और सब दारू की भेंट चढ़ जाएगा। उसने पूछना भी जरूरी नहीं समझा। गर्मी अब भी बदस्तूर कहर ढा रही थी हाँ पानी आ जाता था। उसका पति बाहर से खरीदकर दो बार इडली दे जाता फिर निकल जाता अपनी शराबी दुनिया में। दर्द था कि कम होने के बजाय बढ़ रहा था। खुद रोज पंद्रह किलोमीटर साइकिल चलाकर अपना रोजगार करने वाली एली बिस्तर पर पड़ी टट्टी पेशाब को मोहताज हो गई थी। लाचारी क्या होती है उसे देखकर समझा जा सकता था।
एक दिन वही अधेड़ ऑटो वाला उसके पति के साथ घर आया। उस रात उन लोगों ने घर पर ही शराब पी। एली के लिए दोसा और कुछ खाना आया। बहुत दिनों के बाद अलग सा खाना मिला था। बाद में पति ने बताया कि वे लोग उसे लेकर ऑटो वाले के गाँव जा रहे हैं वहाँ एक बढ़िया डॉक्टर है जिससे इलाज करवाने से उसका दर्द ठीक हो जाए। एली को अपने जीवन में उम्मीद की सख्त ज़रूरत थी। उसे वापस अपनी साइकिल उठानी थी , अपने ठीहे पर बैठना था। ठीहे की याद आते ही उसका मन तड़प उठा।
वे अगली सुबह उस गाँव की ओर निकल पड़े जिसे एली ने काभी नहीं देखा था उसका नाम कहीं किसी बातचीत में आया हो तो हो पर ऐसा कोई गाँव अस्तित्व में हो यह पता नहीं उसे। अनजान के प्रति अज्ञानता रहती ही है। गर्मी और उसका कहर ऐसा कि अपनी बस्ती से ज्यादा अलग नहीं लगा यह गाँव। ऊपर से उसका दर्द भी तो साथ था। पति भी अनजान जगह पर कितना भटकता। चीजें ठीक होने की उम्मीद देती दिखने लगी।
रात भर दर्द का असर रहा और उसे देर से नींद आयी। अगली सुबह उठी थी उसके रिश्तेदार अपने आसपास दिखे। उसे लगा कोई सपना देख रही हो। जो रिश्तेदार उसके घर नहीं आए , जिनसे मिले हुए बरसों हो गए उन्हें देखकर खुशी हुई।लेकिन उसके ये संबंधी अन्य गाँव में किसी और के घर पर उससे मिलने आए। संभव है कहीं किसी आयोजन में आए हों और उसके बारे में पता चला हो तो मिलने आए हों।उसके दर्द ने इतनी भी मोहलत नहीं दे रखी थी इस पर सोचा जाए।
पूरियाँ तले जाने की गंध उस तक आ रही थी। उसे अपने रिश्तेदारों को शुक्रिया कहने का मन हुआ। पूरी के साथ अलग अलग तरह की सब्जी होगी , शायद पायसम भी हो। बीमार और दबा हुआ मन स्वादिष्ट भोजन को लेकर बेचैन हो उठा। पर हुआ इसके विपरीत! सबने खाना खा लिया और एली को कोई पूछने भी नहीं आया। उसे लगा कि रिश्तेदारों की आवभगत में लोग भूल गए होंगे।उसने अपने पति को बुलाकर कहा तो पति का जवाब सुन कर उसका मन बैठ गया।
–कल तुम्हें देखने डॉक्टर आएगा और उसने तुम्हें कुछ भी खाने को देने से मना किया है।
उसके तन बदन में आग लग गई लेकिन दर्द से बेचैन एली कुछ कर नहीं सकती थी। उसे भूखा ही रहना था।
दिन गुजरने लगा। घर में चहल पहल बढ़ गई। भूख और दर्द उसे परेशान किए जा रहे थे लेकिन उसके पास कोई और चारा नहीं था सब झेलते जाने के। उसका शराबी पति बेहद शरीफ बनकर उसके रिश्तेदारों के बीच घूम रहा था। ताश और बातों के दौर चल रहे थे। उसे प्रतीक्षा थी सुबह की।
उस रात भी दर्द का वही दौरा आया पड़ा था। शरीर यूँ भी कमजोर था ऊपर से सेवा परहेज की कमी फिर ये डॉक्टर के इंतज़ार में भूखा रहना सब मिलकर उसकी पीड़ा बढ़ा ही रहे थे। अगली सुबह एली की नींद खुली तो उसे अपना हाथ हिलाना भी मुश्किल लग रहा था। कमजोरी की वजह से कुछ बोलना भी श्रमसाध्य लग रहा था। घर लोगों से भरा था पर उसकी ओर ध्यान देने वाला कोई नहीं। अनजान घर में उसके अपने रिश्तेदार भी थे और पति भी सब ऐसे निश्चिंत जैसे उन्हें याद ही न हो कि एली बीमार और भूखी पड़ी है। कोई बता दे कि डॉक्टर कब आएगा आएगा भी या नहीं। अपने सूखे होंठों पर उसने जीभ फिराई होंठ पर पपड़ी जम चुकी थी। उसकी ऐसी हालत कभी हुई ही नहीं थी। वह पराश्रित थी और बीमार भी।
–डॉक्टर आज नहीं या पाया। कल आएगा … और अगर कल तक न आया तो मैं तुम्हें खाना दे दूंगा। तुम्हारी हालत मुझसे देखी नहीं जाती।
दोपहर बाद पति की यह बात सुनकर एली की आँख से थोड़ा पानी बह निकला। वह निश्चित नहीं कर पा रही थी कि भूख की मियाद बढ़ाए जाने के कारण आँसू बहे हैं या पति को उसकी चिंता है यह जानकर रोना या गया। जो दर्द उसके भीतर प्रवेश कर चुका है उसकी पीड़ा से रोना तो उसने कब का छोड़ दिया था। पीड़ा इतनी गहरी थी कि रोने से उसपर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। दिन अपनी ही गति से बीत रहा था लेकिन सबको लंबा लगने लगा था। रिश्तेदार ऊब रहे थे। सबने गर्मी की दोपहर सोने ऊँघने में निपटाया था और किसी किसी की शाम शराब में बीती थी। रात एली पर कहर बनकर टूटी। भूख से बेहाल होकर उसने खुद को बिस्तर से उतारकर कोई इंतजाम करने की सोची। इसी क्रम में वह बिस्तर से गिर पड़ी। उसकी चीख भी नहीं निकल पायी पर गिरने की आवाज से लोग उठ गए थे। उन्होंने इसे वापस बिस्तर पर डाला। उसका दर्द कई गुना बढ़ गया था। वह चाह रही थी कि कोई उसका शरीर कमर से काटकर अलग कर दे।असह्य पीड़ा और कमजोरी के मारे वह बेहोश हो गई।
सुबह अत्यधिक ठंड से वह होश में आयी। आँखें खोलने जितनी ताकत भी नहीं थी बची थी। खुलती बंद होती पलकों और चमड़े पड़ लगती ठंड के बीच उसे महसूस हुआ कि उसके ऊपर बहुत ठंडा पानी डाला जा रहा है , उसके शरीर से वस्त्र हटाए जा चुके थे। कोई उसके ऊपर कंबल डाल देता। वह अचेत हो गई। सारे रिश्तेदार उसे घेरे खड़े थे। उसके पति ने उसके चेहरे पर जोर की थपकी दी जैसे उसकी जिंदगी फिर से लौटी हो उसने आँखें खोल दी। एक अनजान से दिखने वाले आदमी ने उसकी ओर एक गिलास बढ़ा दिया। वह गोबर का घोल था! भूखी – प्यासी एली गटागट पी गई। इस बीच उसके शरीर पर ठंडा पानी डालना जारी रहा। दर्द , ठंड और कमजोरी ने उसे फिर से अचेत कर दिया।जोरदार कै की वजह से वह होश में आयी और देखते देखते चार-पाँच उल्टियाँ हो गईं।
सब उसके पास से हट चुके थे संभवतः उसे भयंकर बुखार चढ़ गया हो , गोबर की वजह से पेट में इन्फेक्शन हो गया हो, कमजोर तो थी ही। बाहर यही सब कहा जाएगा।
एलीकुट्टी होश में थी या बेहोश या मर गई थी उसे नहीं पता पर वह आखिरी बार अपने पति को देखकर थूकना चाह रही थी! छुटकारा पाने का यह तरीका ढूंढा उसने!! वैगई का पानी ही उसे बचा सकता था।
* तलईकूतल तमिलनाडु के पिछड़े इलाकों में प्रचलित एक प्रथा है जिसमें कमजोर और अशक्त बूढ़े –बुढ़िया से निजात पाने के लिए उन्हें मार दिया जाता है। मारने की कई विधियाँ हैं जिनमें ठंडे पानी से नहला कर नारियल पानी पिला देना, पेट में संक्रमण करने के लिए गोबर , कीचड़ या मानव मल घोलकर पीला देना , नाक बंद कर दूध पिलाना आदि।
इस तरह से मरने में एक दो दिन लग जाते हैं और यदि मरने वाले का पोस्टमॉर्टम भी हो तो हाइपोथरमिया , पेट में संक्रमण , दिल का दौरा आदि कारण सामने आते हैं।