माया एंजेलो को श्रद्धांजलि स्वरुप उनकी कुछ कविताएं. अनुवाद सरिता शर्मा ने किया है. उनका लिखा एक संक्षिप्त परिचय भी- जानकी पुल.
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माया एंजेलो को कई तरह से याद किया जा सकता है. नृत्य के शौकीन उन्हें एक कुशल नर्तकी, फिल्मों में दिलचस्पी लेने वाले लोग उन्हें एक भाव-प्रणव अभिनेत्री और लेखक और मानवाधिकार में विश्वास रखने वाले उन्हें एक महान लेखिका और प्रखर मानवाधिकार कार्यकर्ता के रूप में याद करते हैं.
1928 में जन्मीं माया एंजेलो का असल नाम मार्ग्युरिट जॉनसन था। उन्होंने कई तरह की जिंदगियां जीं। माया एंजेलो ने सैन फ्रांसिस्को में ट्रामकार चलाई और मिस्र के एक अखबार में संपादक रहीं। गरीबी में गुज़र-बसर करने वाली अकेली मां सुश्री एंजेलो को रसोईए का काम करने के अलावा वेश्यावृत्ति तक करनी पड़ी। उन्होंने टेलीविज़न और फिल्मों के लिए स्क्रीनप्ले लिखे, बतौर गायक, नृतक और एक्टर मंच पर काम किया और कालेप्सो संगीत की एक एलबम भी जारी किया।
अपने जीवनकाल में सुश्री एंजेलो की करीब 36 किताबें प्रकाशित हुईं, जिनमें सात आत्मकथाएं, कई कविताएं, निबंध संग्रह, पाक कला की पुस्तकें और बच्चों की किताबें शामिल हैं। 1969 में उन्हें अपनी युगांतकारी किताब, ‘आई नो व्हाय द केज्ड बर्ड सिंग्स’, के कारण खूब प्रसिद्धि मिली। इस किताब में उन्होंने अपने बचपन, किशोरावस्था, बलात्कार, जातीय पहचान और लैंगिकवाद से संघर्षों पर लिखा। ये किताब बेस्ट-सेलर बन गई और नेशनल बुक अवॉर्ड के लिए नामांकित की गई। ये किताब अब भी कई हाई-स्कूल और कॉलेज पाठ्यक्रमों का हिस्सा है और इसकी लाखों प्रतियां बिक चुकी हैं।
माया एंजेलो को जनसाधारण की कवियित्री होने के लिए याद रखा जाएगा। वो एक ऐसे ऊंचे कद वाली शख्सियत और साहित्यकार थीं, जिनके शब्द हर जगह इस्तेमाल किए जाते हैं–फिर चाहे वो राष्ट्रपति के शपथ समारोह के दौरान बोले गए हों या फिर हॉलमार्क ग्रीटिंग कार्ड्स पर छपे हों। माया एंजेलो का 86 वर्ष की आयु में निधन हो गया। उन्हें याद करते हुए उनके बेटे जॉनसन ने लिखा है, “उन्होंने एक शिक्षिका, सामाजसेवी, कलाकार और एक मानव की जिंदगी जी। वो समानता, सहनशीलता और शांति की योद्धा थीं।”
मुझे पता है पिंजरे का पंछी क्या गाता है
मुक्त पंछी फुदकता है
हवा के परों पर
और नीचे को बहता है
झोंके के छोर तक
और अपने पंखों को डुबोता है
सूरज की नारंगी किरणों में
और आकाश पर हक़ जमाता है.
हवा के परों पर
और नीचे को बहता है
झोंके के छोर तक
और अपने पंखों को डुबोता है
सूरज की नारंगी किरणों में
और आकाश पर हक़ जमाता है.
मगर जो पक्षी पड़ा रहता है
अपने तंग पिंजरे में
शायद ही देख पाए
अपने क्रोध की सलाखों के पार
कट गए हैं उसके पंख
और पांव जकड़े हैं
तो वह गाने के लिए मुंह खोलता है.
अपने तंग पिंजरे में
शायद ही देख पाए
अपने क्रोध की सलाखों के पार
कट गए हैं उसके पंख
और पांव जकड़े हैं
तो वह गाने के लिए मुंह खोलता है.
बंदी पक्षी गाता है
डरे हुए स्वर में
अज्ञात बातों के बारे में
मगर जिनकी अब भी चाहत है
और उसकी धुन सुनाई पडती है
कहीं बहुत दूर पहाड़ी पर
क्योंकि बंदी पक्षी आजादी का गीत गाता है.
डरे हुए स्वर में
अज्ञात बातों के बारे में
मगर जिनकी अब भी चाहत है
और उसकी धुन सुनाई पडती है
कहीं बहुत दूर पहाड़ी पर
क्योंकि बंदी पक्षी आजादी का गीत गाता है.
मुक्त पक्षी के ख्यालों में है कोई और समीर
और सरसराते पेड़ों से बहकर आती हवायें
और भोर के उजले बगीचे में इंतज़ार करते मोटे ताजे कीड़े
और आकाश को अपना कहता है.
और सरसराते पेड़ों से बहकर आती हवायें
और भोर के उजले बगीचे में इंतज़ार करते मोटे ताजे कीड़े
और आकाश को अपना कहता है.
पर बंदी पक्षी सपनों की कब्रगाह पर है
उसकी छाया चीखती है दुस्वप्न की चीत्कार पर
कट गए हैं उसके पंख और पांव जकड़े हैं
तो वह गाने के लिए मुंह खोलता है.
बंदी पक्षी गाता है
डरे हुए स्वर में
अज्ञात बातों के बारे में
मगर जिनकी अब भी चाहत है
और उसकी धुन सुनाई पडती है
कहीं बहुत दूर पहाड़ी पर
क्योंकि बंदी पक्षी आजादी का गीत गाता है.
उसकी छाया चीखती है दुस्वप्न की चीत्कार पर
कट गए हैं उसके पंख और पांव जकड़े हैं
तो वह गाने के लिए मुंह खोलता है.
बंदी पक्षी गाता है
डरे हुए स्वर में
अज्ञात बातों के बारे में
मगर जिनकी अब भी चाहत है
और उसकी धुन सुनाई पडती है
कहीं बहुत दूर पहाड़ी पर
क्योंकि बंदी पक्षी आजादी का गीत गाता है.
बूढ़े लोगों को हंसी
खीसें निपोर कर खुश हैं वे
होंठों को इधर उधर हिला कर
मस्तक के बीच रेखाओं को
घुमाते हुए. बूढ़े लोग
बजने देते हैं अपने पेट को
ढोलकी की तरह
उनकी चिल्लाहटें उठकर बिखर जाती हैं
जैसे भी वे चाहते हैं.
बूढ़े लोग हँसते हैं, तो दुनिया को मुक्त कर देते हैं.
वे धीरे- धीरे घूमते हैं, कुटिलता से जानते हैं
सबसे उम्दा और दुखद
यादें.
लार चमकती है
उनके मुंह के कोनों पर,
नाजुक गर्दन पर
उनके सिर कांपते हैं, मगर
उनकी झोली
यादों से भरी है.
जब बूढ़े लोग हंसते हैं, वे सोचते हैं
व्यथाहीन मौत के भरोसे पर
और खुले दिल से माफ़ कर देते हैं
जीवन को उनके साथ जो हुआ
उसके लिए.
अकेले
कल रात
लेटे हुए सोच रही थी
अपनी आत्मा का घर कैसे खोजूं
जल जहां प्यासा न हो
और रोटी का कौर पत्थर न हो
मेरे मन में ये बात आयी
और मुझे महीन लगता मैं गलत हूँ
कि कोई भी,
हां कोई भी
गुजर नहीं कर सकता है यहां अकेले.
अकेले, निपट अकेले
बिना किसी संगी साथी के
अकेले यहां कोई नहीं रह सकता है.
कुछ करोड़पति हैं
इतने पैसे वाले जिसे वे खर्च नहीं कर सकते
उनकी बीवियां प्रेतानियों सी भटकती हैं
बच्चे उदास गाने गाते हैं
महंगे डॉक्टरों मिले हैं उन्हें
अपने पत्थरदिल के इलाज करने के लिए .
फिर भी
कोई भी
कोई भी नहीं
गुजर कर सकता है यहां अकेले.
अकेले, निपट अकेले
बिना किसी संगी साथी के
अकेले यहां कोई नहीं रह सकता है.
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