भारतीय सिनेमा की महान अदाकाराओं में एक सुचित्रा सेन का लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया। उनको श्रद्धांजलि देते हुए यह लेख लिखा है ‘अल्पाहारी गृहत्यागी’ उपन्यास के लेखक प्रचंड प्रवीर ने। महज एक हजार शब्दों में कितना बेहतरीन लिखा जा सकता है यह इस युवा लेखक के इस लेख को पढ़कर मैंने जाना। पढ़िये और बताइये। इसी लेख के साथ जानकी पुल की ओर से सुचित्रा सेन को अंतिम प्रणाम!
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अंतर्राष्ट्रीयफिल्म जगत की तीन महान तारिकाओं – ग्रेटा गार्बो, सेत्सुको हारा, और सुचित्रा सेन – के जीवन में एक असाधारण साम्य रहा है। अपने अभिनय से आम दर्शकों और आलोचकों को मंत्र–मुग्ध कर देने की अद्वितीय क्षमता, नारी के सुदृढ चरित्र का अद्भुत चित्रण, और जीवन के उत्तरार्ध में स्व–निर्धारित रहस्यमयी निर्वासित जीवन। मर्लिन मुनरो, बेटे डेविस, आद्रे हेपबर्न, इंग्रिड बर्गमैन, मीना कुमारी, नूरजहाँ – महान अभिनेत्रियों ने नारी चरित्रों को अनेकों रंग दिये। नारी का बौद्धिक आकर्षण, भाषा और वाणी पर सौम्य नियंत्रण, प्रेयसी की छवि से हट कर विश्वसनीय, दूरदर्शिता, नैतिकता और दार्शनिकता से परिपूर्ण आदर्श व्यक्तित्व की स्वामिनी इन अभिनेत्रियों ने किन्हीं कारणों से सार्वजनिक जीवन से हट जाना श्रेयस्कर समझा। महान अमेरिकी अभिनेत्री ग्रेटा गार्बो ३५ की उम्र के बाद कभी नजर नहीं आयीं। ‘टोकियो स्टोरी‘ जैसी महान जापानी फिल्म की तारिका सेत्सुको हारा ४२ की उम्र से आज ९३ की उम्र में भी कभी नजर नहीं आती। सुचित्रा सेन, ४७ की उम्र के बाद से लोगों की नजरों से दूर होती गयीं। सन् २००५ में उन्होंने दादा साहब फाल्के सम्मान केवल इसलिये ठुकरा दिया कि वह पुरस्कार लेने दिल्ली नहीं आना चाहती थी।
पचास के दशक में सुचित्रा सेन और उत्तम कुमार की जोड़ी ने बंगाली सिनेमा में लोकप्रियता के नये आयाम गढ़े। तकरीबन उसी समय सुचित्रा सेन की पहली हिन्दी फिल्म, दिलीप कुमार के साथ ‘देवदास‘ आयी और पाँच साल बाद देव आनंद साहब के साथ ‘बम्बई का बाबू‘। सुचित्रा सेन को ‘बिमल राय‘ और ‘राज खोसला‘ जैसे महान निर्देशकों का साथ मिला, इस तरह हिन्दी सिने–प्रेमियों को मिली अनोखी सौगात।
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