केरल के कवि और उनकी कविताएँ


    आज पढ़िए केरल के कुछ प्रसिद्ध कवियों के सच्चिदानंदन, अय्यप्पा पणिक्कर, नीरदा सुरेश, चंद्रमोहन एस, जार्ज आर., सोनी सोमाराजन, गीता नायर की कविताएँ। अनुवाद किया है युवा कवयित्री अनामिका अनु ने-

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    1 लेखन

    क्या तुम जानते हो तुमने मेरी कविता कैसे लिखी ?

    क्या तुम जानते हो कि तुमने इसे क्यों लिखा?

    क्या तुम जानते हो हर अच्छी कृति दूसरे के द्वारा ही लिखी जाती है?

    हम स्वयं को नहीं जानते

    दूसरे संभवतः हमें जान सकते हैं

    कविता जानने का माध्यम है

    यह जाने हुए का प्रगटीकरण नहीं है

    वह जो सोचता है कि वह जानता है

    कुछ नहीं लिखता

    अगर कुछ जानना है

    तो कुछ लिखा जाएगा

    इसलिए प्रत्येक पंक्ति लिखते समय

    याद रखो यह कविता स्वयं से अन्य जो

    दूसरा स्वयं है वह लिख रहा है

    हमारे भीतर का लेखक अन्य है

    इसलिए तुम मेरी कविता लिखते हो

    और मैं तुम्हारी

    कवि: अय्यप्पा पणिक्कर

    अनुवादक: अनामिका अनु

    2.एक सैनिक का पत्र

    प्यारी माँ,

    आग्रह है कि लौटती डाक से निम्नलिखित चीजें मुझे भिजवा देना :

    1.हमारे आंगन की गौरैया के गीत

    जो कानों को दे मधुरता

    जब मैं टैंक पर बैठकर मरूस्थल से गुजरूं

    2.आकाश में एक तोता और एक इंद्रधनुष

    झाड़ियों में छिपने के समय

    3.कुछ गुरूवाणी मुझे गर्मी देने के लिए

    जब मैं ठंड में कांप रहा हूँ

    4.एक माचिस की तीली

    जनरल की दी गालियों की ढेर में आग लगाने के लिए

    5.मेरी अनंत भूख को शांत करने के लिए

    माँ की रसोई से एक पालक का पत्ता

    6.पानीपत पर मंडराता एक मेघ भेजना

    ताकि उसको निचोड़ कर बारिश के रस से मैं अपनी प्यास बुझा सकूं

    7.मेरे पालतू कुत्ते जगतार की भौंक भेजना ताकि मैं पूरब से पश्चिम आवाज़ लगा सकूं

    8.मुझे समीरा की ओर दौड़ने से रोकने के लिए एक जंजीर ,जो मेरे पैरों को एकसाथ बांधे रखे

    9.एक चुंबन मेरी अजन्मी बेटी का

    जब मैं सीमा पार खड़े लाचार साथी की गोली खाकर गिरूं

    10.मेरी छोटी बहन जुगनू के आंसुओं से बुनी एक रजाई ,मेरे भाई और मेरे कफ़न के लिए

    जब अंतिम सांस हमारे मांस को छोड़ रही हो

    पुनश्च :

    सेना में जो मेरे भाई हैं उनको यह कहना मत भूलना

    कि मेरे ताबूत को झंडे से न ढंके और न ही दफ़नाते वक़्त बंदूकों की सलामी दें

    कभी भी घर के बच्चों को वर्दी नहीं पहनने देना

    तुम्हारा,

    सुरजीत

    कवि : के सच्चिदानंदन

    अनुवाद : अनामिका अनु

    3.संदर्भ

    मैंने उसे देखा

    मशीन में जाने वाले

    मैले कपड़ों को छाँटते वक़्त

    मैंने देखा उस

    धब्बे और लाल को

    बनियान पर हर जगह

    मानो कोई

    लिपटा और गले लगा हो….

    उसकी छाती से

    वह ज़िद्दी और बेशर्म लाल

    मेरी माँ हमेशा

    बिंदी पर लंबी काली टेक लगाती थी

    और वह मेरे पिता की बनियान थी

    अब मैं अपने पिता को

    बिल्कुल नए संदर्भ में देखने लगी थी

    कवि: नीरदा सुरेश

    अनुवादक: अनामिका अनु

    4.व्यक्तिगत नोट

    मैं पहाड़ी की ढलान पर की मुलायम घास था

    जहाँ हवा कभी नहीं सोयी

    एक दिन सांझ में

    बुद्ध नन्हें मेमने की तरह आए

    मुझे खाया और तृप्त हुए

    टूटा दर्पण

    झड़े पत्ते

    पायल में तब्दील हो गए

    वे दरवाज़े से होकर गुज़रे

    खून की गंध से कमरा भर गया

    जब तक पानवाले ने नींबू को दो भाग में नहीं काटा था

    जब तक मैं और सूरज एक ही थें

    अब

    एक गिलास अंधेरे से भर जाता है

    एक गिलास खून से भरा है

    बेफर

    तुम्हें पता नहीं तुमने क्या पीया है

    जब-तक तुम तारे या शब्द नहीं बन जाते

    तुम्हारे त्यज्य पुष्प मेरी रातें थी

    आकाश मुझ पर से होकर गुज़रा

    जैसे असंख्य सर्प

    सिर कटे घोड़ों की समूची दुनिया मुझसे अपनी प्यास बुझाती है

    पंखुरियों के बीरक्त रौशनी में तब्दील होती है

    एक घाटी जो जागती है

    केवल अंतिम संस्कार के दृश्यों में

    प्रवासी पक्षियों की शरणस्थली

    पूर्णिमा के लिए

    एक काला समुद्र

    एक टूटे चाँद के लिए

    एक हरा समुद्र

    एक क्षण पहले

    एक हाथी इस रास्ते से गुज़रा

    उसके पीछे खाकी फ्राॅक पहने पादरी

    बंदूक ताने

    कोई गोली चलने की आवाज़ नहीं सुनी गई

    दरवाज़े पर दस्तक

    वह खुलता है

    ताबूत बनाने वाले

    उनके हाथ में नापने वाला फीता है

    दर्पण को देखते ही

    वह जंगली भैंस में तब्दील हो गयी

    अपने टेढ़े सींग को हिलाती हुई

    वह मुझमें नाचने लगी

    मुझसे होकर गुज़री

    बिना कोई पदचिन्ह छोड़े

    मैं तुम्हें वह चेहरा वापस नहीं कर सकूंगा

    जो मेरे हाथों से पानी की तरह टपक रहा है

    एक क्षण

    अंकुरित होते बीज

    जागती बहती हवा

    एक क्षण

    नहीं!मैं वापस नहीं दे सकूंगा

    जबकि मेरी फटी खुली छाती में

    एक तितली फड़फड़ा रही है

    कवि: जार्ज आर.

    अनुवादक : अनामिका अनु

    5.काला बक्सा

    दाख़िले के पत्र में

    काले मेटल के बक्से को अनिवार्य बताया गया था

    एक दो दिन

    शहर में बक्सा खोजने के बाद

    पिता को लगा

    कि वह नहीं मिलेगा

    तब उन्हें यह विचार आया

    कि

    क्यों न एक बक्सा खरीदकर

    उसे काला रंग दिया जाए

    लगता है ऐसा हमारी वृत्ति में है कि हम आस-पास की चीजों में

    अर्थ ढूँढते हैं

    अगर वह न मिले

    तो सृजन करते‌ हैं

    एक झूठ का

    जैसे कि काले रंग से पुते एक धातु के बक्से को

    काले मेटल का बक्सा मान लिया जाना

    कवि:सोनी सोमाराजन

    अनुवादक: अनामिका अनु

    6.स्कूल जाने वाले बच्चे ने कहा

    वह जो सफ़ेद-सी चीज

    वहाँ बाहर

    हमारे बिल्कुल नये झील में डूब गयी

    वह “डेजर्ट स्टार”

    जिससे हम स्कूल जाते थें

    अबू के अब्बा ने खरीदा था

    जब वे खाड़ी से बेहतरी के लिए

    वापस लौट आए थे

    अबू अच्छा है

    अल्लाह का शुक्र है

    अबू मेरा जिगरी दोस्त

    जिसकी जेबें भरी-उभरी

    रहती थी दुर्लभ मिठाइयों से

    तब भी

    जब पिता खाड़ी देशों में

    जी तोड़ मेहनत किया करते थे

    अबू सुरक्षित है

    उसका घर उस तरह से नहीं टूटा था

    जैसे मेरा

    लीना पर भी ईश्वर की कृपा है

    प्रलय से ठीक पहले

    उसका परिवार जा चुका था

    क्या मैं उसकी मलाई उंगली पर के

    कृष्ण अंगूठी को कभी छू पाऊंगा

    या क्या

    उसके डोरा वाले स्कूल बैग को मैं कभी उठा सकूँगा?

    ओह !हमारी किताबें

    आंसुओं में गलकर लुगदी हो गयी

    मेरी मां कहती है

    टाइगर सर कैसे कान मरोड़ेंगे

    जब हमारे पास रटा मारने को किताबें ही

    नहीं होंगी

    मेरा फुटबॉल सुरक्षित है

    जब मेरा घर ढ़हा

    कमरे का मेरा वह कोना बचा रह गया

    मैं बाहर ब्रुनो के पीछे भाग रहा था

    जो किसी अजीब सी चीख सुनकर

    फुर्ती से बाहर निकलकर भौंक रहा था

    हालांकि वह बच गया

    पर,मेरा शरीर अब तक उन्हें नहीं मिला

    कवियत्री- गीता नायर

    अनुवादक – अनामिका अनु

    8.कोलाहल के बाद प्रेम

    एक कविता और उसका अनुवाद

    जैसे एक जोड़े उलार स्तन

    उनमें से एक अच्छी तरह गोल अपशब्द

    दूसरा- एक नाशपाती के आकार की शिथिल रूढ़ोक्ति

    मैं बाएं से दाएं लिखता हूं

    वह दाएं से बाएं लिखती है

    (या ठीक इसके विपरीत)

    हमारे सुलेख मिलते हैं

    हमारी अधोगति के नरक में

    किसी अनूदित कविता के साथ लिप्त

    समय के हिम विदर में ईंटों के बीच

    परित्यक्त निर्माण स्थल पर

    कुछ काव्य शैलियों के शील भंग होने के ज़ोखिम से भरा

    अनुवाद के दौरान

    बहुत सी नदियाँ

    तर्क के लहरदार रीढ़ को पार करती हैं

    जैसे पास के बिजली के तारों पर टिकी चिड़ियाँ

    एक अनूदित कविता हमेशा पारगमन में होती है

    जैसे पक्षियों के झुंड उड़ान में

    एक बादल रहित आकाश में सौहार्द की पटकथा लिखते

    क्षितिज खाली पन्नों में डूब जाता है

    एक अखंड साम्राज्य के बोले गए बहुअक्षर

    वाकपटुता के एक खड़े नवांकुर के मंच पर से

    समय-क्षेत्रों में फैले अ अनुवादनीय भौगोलिकताएँ

    को एक साथ चिपका चुकी है,सिलाई के चिन्हों के साथ जो पटरियों के बीच की ट्रैकों सी हैं

    दो प्रेम कविताएँ

    दो भिन्न भाषाओं की

    एक चांदनी रात में भाग गयी

    तोड़कर उस बैस्टिल को जो

    वाक्य विन्यास का

    “प्रत्यक्ष तौर पर अभेद्य किला” है

    कवि : चंद्रमोहन एस

    अनुवादक: अनामिका अनु

    9.चिड़ियों का देश

    चिड़ियों के देश में

    न सीमाएँ होती हैं

    न संविधान

    वे जो उड़ सकते हैं,इसके नागरिक होते हैं

    कवि भी

    पंख इनका झंडा है

    आपने कभी सुना है

    गीत के लिए कोयल को बुलबुल से झगड़ते

    या

    रंग के लिए बगुले का कौवे को भगाना

    यदि उल्लू शोर करता है

    तो इसलिए नहीं

    कि वह तोते से ईर्ष्या करता है

    क्या कभी किसी आॅस्ट्रीच या पेंग्विन ने न उड़ पाने की शिकायत की है

    जन्म लेते ही

    वे आकाश से बातें करने लगते हैं

    बादल और इंद्रधनुष उन्हें सहलाने के लिए उतरते हैं

    कभी-कभी वे अपनी शोखियाँ चिड़ियों को दान में देते हैं

    जैसे बादल हंसों को देता है

    या इन्द्रधनुष मोर को

    वे सूरज और चाँद के बीच में बैठकर स्वप्न देखते हैं

    इसके बाद

    आकाश देवपरियों और सितारों से भर जाता है

    ये अंधेरे में भी देख सकते हैं

    ये जादुई बौने और परियों से बात कर सकते हैं

    ये उतरकर पृथ्वी पर आते हैं

    ताकि घास सुकून महसूस करे

    या अपने गीत से फूलों को खोल सकें

    वे जो फल और कीड़े खाते हैं

    वे उनके अंडों से नन्हें पंखों के साथ प्रस्फुटित होते हैं

    एक दिन मैंने चिड़ियों की तरह रहने की कोशिश की

    मैंने अपनी राष्ट्रीयता खो दी

    देश एक पिंजरा है

    यह तुम्हें खिलाएगी

    पहले तुम्हारे गीत के लिए

    तुम्हारे गीत नापसंद होने पर

    तुम्हारे मांस के लिए

    कवि : के सच्चिदानंदन

    अनुवादक : अनामिका अनु

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